सूत्रों ने बताया कि इन सस्ते ड्रोनों का काम रडार को बिजी रखना था, ताकि असली हमलावर और जासूसी ड्रोन भारतीय सीमा में अंदर तक घुस सकें। जासूसी ड्रोन में कैमरे और सेंसर लगे हुए थे, जो भारतीय सेना की गतिविधियों की जानकारी जुटा रहे थे। वहीं, हमलावर ड्रोनों में छोटे-छोटे विस्फोटक थे, ताकि वे भारतीय ठिकानों पर हमला कर सकें। सूत्रों का कहना है कि अगर सेना समय पर इस रणनीति को समझने में चूक कर जाती तो, वे हमारे एयर डिफेंस नेटवर्क की कमजोरियों का पता लगा सकते थे...
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📍नई दिल्ली | 20 May, 2025, 4:12 PM

Pakistan Clutter Strike Strategy: 8 और 9 मई की रात को पाकिस्तान ने जिस तरह से भारत की पश्चिमी सीमा के कई इलाकों में ड्रोन अटैक किया, उससे पाकिस्तानी सेना की एक बड़ी चौंकाने वाली रणनीति का खुलासा हुआ है। दरअसल पाकिस्तानी सेना की चाल थी कि बेहद सस्ते और बेसिक ड्रोन भारतीय सीमा में दाखिल करके भारतीय रडार सिस्टम को कन्फ्यूज किया जाए और फिर बड़े हमले को अंजाम दिया जाए।

सैन्य सूत्रों के मुताबिक इस रणनीति के तहत पाकिस्तान ने सैकड़ों सस्ते और बेसिक ड्रोन भारतीय सीमा में भेजे। इस भीड़ में कुछ खतरनाक हमलावर और जासूसी ड्रोन छिपाकर भेजे गए थे। ये यब भारतीय रडार सिस्टम को भ्रमित करने के लिए किया गया था। 8 मई की रात को पाकिस्तान ने भारत की पश्चिमी सीमा पर बारामूला से लेकर बाड़मेर तक कई जगहों पर ड्रोन भेजे। पहले दिन कुछ ही आर्म्ड ड्रोन देखे गए, लेकिन अगले दिन यानी 9 मई को हालात औऱ गंभीर हो गए। सूत्रों ने बताया कि दूसरी रात को करीब 300 से 400 ड्रोन भारतीय सीमा में दाखिल हुए। इन ड्रोनों को कई ग्रुप में बांटा गया था, और हर ग्रुप में सैकड़ों ड्रोन शामिल थे।

Pakistan Clutter Strike Strategy: भारतीय रडारों को “सैचुरेट” करने की साजिश

इन ड्रोनों की खास बात यह थी कि इनमें से ज्यादातर बेहद सस्ती क्वॉलिटी के और साधारण ड्रोन थे। इनमें न तो कोई हथियार था और न ही कोई खास तकनीक। लेकिन इन बेहद सस्ते क्वॉलिटी के ड्रोनों की भीड़ में कुछ खतरनाक ड्रोन छिपे हुए थे। इनमें से कुछ हमलावर ड्रोन थे और कुछ जासूसी करने वाले ड्रोन। सैन्य सूत्रों के मुताबिक चाल दिन तक चले ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान ने करीब 800 से 1000 ड्रोन का इस्तेमाल किया। ये ड्रोन अलग-अलग साइज और टाइप के थे। पाकिस्तान की रणनीति थी कि बड़ी संख्या में सस्ते ड्रोन भेज कर भारतीय रडारों को “सैचुरेट” (भर देना) किया जाए, ताकि आर्म्ड ड्रोन छिपकर हमला कर सकें।

लेकिन भारतीय सेना ने इस रणनीति को समझ लिया था। सूत्रों ने बताया कि भारतीय सेना ने पहले से ही 26 से 28 अप्रैल को एक सिमुलेशन एक्सरसाइज की थी, जिसमें ड्रोन हमलों का सामना करने की तैयारी की गई थी। इस एक्सरसाइज में जवानों को सिखाया गया कि रडार को बेवजह ही चालू न करें, ताकि दुश्मन को हमारी स्थिति का पता न चले। जब ड्रोन हमले की शुरुआत हुई, तो सेना ने सही समय पर रडार चालू किए और एंटी-एयरक्राफ्ट गनों से उन्हें मार गिराया।

खतरनाक ड्रोन को पहचानना मुश्किल

सैन्य सूत्रों का कहना, पाकिस्तान की इस रणनीति का मुख्य मकसद भारतीय रडार सिस्टम को “क्लटर” करना था। क्लटर का मतलब है रडार पर इतनी सारी चीजें एक साथ दिखाना कि असली खतरे को पहचानना मुश्किल हो जाए। जब सैकड़ों ड्रोन एक साथ उड़ते हैं, तो रडार स्क्रीन पर बहुत सारे बिंदु (डॉट्स) दिखाई देने लगते हैं। ऐसे में यह समझना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा ड्रोन खतरनाक है और कौन सा नहीं।

सूत्रों ने बताया कि इन सस्ते ड्रोनों का काम रडार को बिजी रखना था, ताकि असली हमलावर और जासूसी ड्रोन भारतीय सीमा में अंदर तक घुस सकें। जासूसी ड्रोन में कैमरे और सेंसर लगे हुए थे, जो भारतीय सेना की गतिविधियों की जानकारी जुटा रहे थे। वहीं, हमलावर ड्रोनों में छोटे-छोटे विस्फोटक थे, ताकि वे भारतीय ठिकानों पर हमला कर सकें। सूत्रों का कहना है कि अगर सेना समय पर इस रणनीति को समझने में चूक कर जाती तो, वे हमारे एयर डिफेंस नेटवर्क की कमजोरियों का पता लगा सकते थे।

ड्रोनों को मार गिराने में खर्च हुआ खूब गोला-बारूद

सूत्र ने यह भी कहा कि पाकिस्तान का एक और मकसद था भारत का गोला-बारूद और मिसाइलों बेवजह बरबाद करना। इन ड्रोनों की वजह से भारत को काफी गोला-बारूद खर्च करना पड़ा। साथ ही, इतने सारे ड्रोनों ने आम लोगों में डर भी पैदा कर दिया।

सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान ने अपने सर्विलांस ड्रोनों में LiDAR (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) तकनीक का इस्तेमाल किया था, ताकि अहम भारतीय सैन्य ठिकानों की जानकारी जुटा सके। सूत्रों ने बताया कि यह सही है कि इनमें से कुछ ड्रोन तुर्की के बने थे, हालांकि सभी ड्रोनों की जानकारी नहीं मिली।

जैसे ही भारतीय सेना को इन ड्रोनों की गतिविधियों का पता चला, उन्होंने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी। भारतीय वायु सेना ने अपने एय़र डिफेंस सिस्टम को एक्टिवेट किया और ड्रोन को रोकने के लिए कई कदम उठाए। सेना ने पुरानी लेकिन आज भी प्रभावी सोवियत-युग की एल/70 एंटी-एयरक्राफ्ट गन का इस्तेमाल किया, जो ड्रोन को मार गिराने में कारगर साबित हुईं। इसके अलावा, स्वदेशी हथियारों जैसे पेचोरा, ओएसए-एके और एलएएडी गन ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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वहीं, इस रणनीतिक हमले ने भारत के सामने एक नई चुनौती भी खड़ी कर दी है। सस्ते ड्रोन की भीड़ के बीच खतरनाक ड्रोन को पहचानना और उन्हें रोकना आसान नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में ऐसे हमले और बढ़ सकते हैं, क्योंकि ड्रोन तकनीक सस्ती और आसानी से उपलब्ध हो रही है। भारतीय सेना को अब अपने रडार और एय़र डिफेंस सिस्टम को और एडवांस बनाना होगा।

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