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📍नई दिल्ली | 20 Dec, 2024, 1:52 PM

Tashi Namgyal: करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की घुसपैठ का सबसे पहले पता लगाने वाले बटालिक सेक्टर के गारकन गांव के बहादुर चरवाहे ताशी नामग्याल का निधन गुरुवार को हो गया। लद्दाख की आर्यन घाटी के नाम से मशहूर इस अनजान नायक ने भारतीय सेना को समय रहते चेतावनी दी, जिससे 1999 के करगिल युद्ध में भारत की जीत सुनिश्चित हुई और अनगिनत सैनिकों की जान बच सकी। इसी साल उनसे मेरी (हरेंद्र चौधरी) करगिल के 25 साल समारोह में मुलाकात हुई थी। जिसमें वे सरकार से काफी खिन्न भी नजर आ रहे थे। उनका कहना था कि सरकार से उन्हें कोई पहचान या सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। यहां तक कि सरकार ने उनकी गरीबी को देखते हुए उन्हें कोई सम्मान राशि भी नहीं दी।

Tashi Namgyal: Unsung Hero of Kargil War Who First Alerted India About Pakistani Intrusion Passes Away

1999 में दिया था सबसे बड़ा अलर्ट

लेखक से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया था कि उस समय उनकी उम्र 35 साल थी। भारतीय सेना को घुसपैठ के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, तो 2 मई को वे जानवरों (याक) की देखभाल और उन्हें चराने के लिए गरखुन नाला (धारा) पर गए थे। वे दौड़ते हुए वापस आए और उन्होंने वहां बर्फ में कुछ निशान देखे। यह बहुत असामान्य था क्योंकि कोई भी वहां नहीं जाता था।

लेखक के साथ ताशी नामग्याल

उनके भाई मोरुप त्सेरिंग ने दूरबीन उठाई और वे जुबार हिल पर एक नाले के पास पहुंचे। वे कहते हैं, “हम सलवार-कमीज़ पहने छह से सात लोगों को साफ़-साफ़ पहचान सकते थे। हमें यकीन नहीं था कि वे भारतीय सेना से नहीं थे।”

उन्होंने तुरंत निकटतम सेना पोस्ट जाकर इसकी सूचना दी। इससे पहले भी 1997 में उन्होंने याल्डोर क्षेत्र में पाकिस्तान सेनी के गश्ती दल की गतिविधियों की जानकारी दी थी, लेकिन तब किसी ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। इस बार भी, उनकी बात को पहले नकारा गया, लेकिन उनका साहस और धैर्य अंततः रंग लाया और आखिरकार सरकार को उनका बात माननी पड़ी।

सेना को कैसे मिला सबूत

उन्होंने बताया था कि गरखुन गांव के पास एक चौकी पर मौजूद बारा साहब को इस बारे में जानकारी दी। एक दिन बाद, एक लेफ्टिनेंट और कुछ सैनिक त्सेरिंग और ताशी के साथ गए ताकि वे खुद देख सकें कि दोनों किस बारे में बात कर रहे थे।

वे कहते हैं, “जब हम करीब पांच किलोमीटर ऊपर गरखुन नाला पहुंचे, तो हमें घुसपैठिए दिखाई दिए। हम वापस आए और मुझसे पूछा गया कि क्या नाले तक पहुंचने का कोई और रास्ता है। मैं उन्हें दाह नाला ले गया।” वहां भी घुसपैठियों की भरमार थी और वहां अच्छी तरह से बनाए गए बंकर और बहुत सारा गोला-बारूद था।

जब सेना के अधिकारियों ने उनके दावों की जांच की, तो उन्हें पता चला कि पाकिस्तानी सेना वास्तव में इलाके में सक्रिय थे। गरखुन नाले और दाह नाले में घुसपैठियों ने बंकर और गोला-बारूद का बड़ा जखीरा जमा कर रखा था। ताशी ने सेना को दुर्गम रास्तों की जानकारी दी और घुसपैठियों की स्थिति का सटीक विवरण दिया।

मेरा पुराना इंटरव्यू

गुमनाम नायक का योगदान

करगिल युद्ध के दौरान, ताशी ने सेना के लिए कुली के रूप में काम किया और रसद और हथियार पहुंचाने में मदद की। उनकी बहादुरी और योगदान ने न केवल भारतीय सेना को समय पर तैयारी का मौका दिया, बल्कि दुश्मन की साजिशों को भी विफल किया।

सम्मान के बदले उपेक्षा

ताशी नामग्याल जैसे नायकों को वह पहचान और सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। ताशी ने मुलाकात के दौरान बताया था, “हमने सेना के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन आज भी हम गुमनाम हैं। हमें आज भी पूछताछ का सामना करना पड़ता है। मेरा भाई आज भी मजदूरी करता है। क्या आपको लगता है कि हमें कभी हमारे काम का इनाम मिलेगा?”

सभी सच्चे नायकों की तरह, वे भी गुमनाम ही ररहे। उनकी गरीबी भरी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया। उनके हाथ और कपड़े अभी भी धूल से सने थे, क्योंकि जब वह भेड़ और याक चराने के अलावा किसी और की जमीन पर काम करते हैं तो अपनी आजीविका चलाते हैं। उन्होंने बताया था कि वे और उनके भाई ताशी नामग्याल कारगिल के बटालिक क्षेत्र के गरखुन गांव में हीरो हैं, लेकिन इसके अलावा उनकी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला है।

सादगी में बीता जीवन

ताशी नामग्याल ने अपना जीवन बेहद सादगी से बिताया। उनके अद्वितीय योगदान के बावजूद, उन्होंने कभी कोई बड़ा दावा नहीं किया और देशभक्ति को अपने जीवन का आधार बनाया।

करगिल के गुमनाम नायकों को कब मिलेगा हक?

ताशी और मोरुप जैसे नायकों की कहानियां यह सवाल उठाती हैं कि क्या हमारे देश में गुमनाम नायकों को उनका हक मिल पाता है? जब हम करगिल की विजय का जश्न मनाते हैं, तो हमें उन अनजान और निस्वार्थ नायकों को भी याद करना चाहिए, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश की रक्षा की।

ताशी नामग्याल का निधन देश के लिए एक बड़ी क्षति है। उनका योगदान हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके जीवन ने यह सिखाया कि असली नायक वह होता है, जो बिना किसी प्रशंसा की अपेक्षा के अपना कर्तव्य निभाता है।

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