अमेरिका भारत को एक दशक बाद के लिए खतरा मानता है, और इसके अलावा, वह भारत की सैन्य क्षमताओं को लेकर भी चिंतित है। इसलिए उसने बांग्लादेश को भी इसमें शामिल कर लिया। पाकिस्तान हमेशा कुछ पाने को लालायित रहता है, और अब उसे अमेरिका अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रहा है। पाकिस्तान को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अहसास हुआ है कि इस ऑपरेशन में चीनी हथियारों के फेल हो गए हैं। इसलिए वे अमेरिकियों के साथ संबंध बनाने की कोशिश कर रहे हैं...
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📍नई दिल्ली | 6 Jul, 2025, 2:27 PM

HIMARS vs PINAKA: जून में पाकिस्तानी फील्ड मार्शल और सेना प्रमुख आसिम मुनीर के अमेरिका दौरे के बाद पाकिस्तानी एयरफोर्स चीफ (PAF) जहीर अहमद बाबर सिद्धू अमेरिका पहुंचे। पाकिस्तानी सैन्य प्रमुखों का यह दौरा उनकी छटपटाहट दिखा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद से वे काफी बैचेन हैं। बताया जाता है कि बाबर सिद्धू ने अमेरिका से कई एडवांस मिलिट्री प्लेटफॉर्म जिनमें F-16 ब्लॉक 70 फाइटर जेट्स और एयर डिफेंस सिस्टम की मांग की है। साथ ही पाकिस्तान AIM-7 स्पैरो एयर-टू-एयर मिसाइलें और अमेरिकी HIMARS (हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम) की बैटरियों भी खरीदना चाहता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जिस तरह से भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने पाकिस्तानी हमलों को नाकाम किया, उससे पाकिस्तान हैरान और परेशान है। पाकिस्तान अब अमेरिकी HIMARS पर नजरें गड़ा कर बैठा है।

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HIMARS vs PINAKA: अमेरिकी हथियारों में पाकिस्तान की अचानक रुचि क्यों?

सैन्य जानकार बताते हैं कि ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय हथियारों ने जिस तरह से सटीक उनके आतंकी औऱ सैन्य ठिकानों पर सटीक हमले किए, उसके बाद से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। चीनी एयर डिफेंस सिस्टम HQ-9 और HQ-16 के फेल हो जाने के बाद पाकिस्तान को अपनी डिफेंस स्ट्रेटेजी पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। HQ-9 और HQ-16 भारतीय ब्रह्मोस मिसाइलों और ड्रोन स्वार्म्स को रोकने में पूरी तरह विफल रहीं। यहां तक कि पाकिस्तान अपने प्रमुख सैन्य ठिकानों, जैसे कि गुजरांवाला और मियांवाली एयरबेस, और संदिग्ध परमाणु केंद्र किराना हिल्स पर किए गए हमलों का भी कोई प्रभावी जवाब नहीं दे पाया। भारतीय हरॉप लोइटरिंग म्यूनिशन्स ने एक LY-80 रडार को नष्ट कर दिया, और HQ-9P सिस्टम भारतीय ड्रोन्स और लो-फ्लाइंग SCALP मिसाइलों को ट्रैक करने में फेल हो गए।

HIMARS vs Pinaka: Pakistan is lobbying for US-made High Mobility Artillery Rocket System
HIMARS vs PINAKA: Chief of the Air Staff, Pakistan Air Force (PAF), Air Chief Marshal Zaheer Ahmad Babar Sidhu and United States Air Force officials.

चीनी हथियारों पर निर्भरता बनी हार की वजह

पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान ज्यादातर हथियार चीन से खरीद रहा है। उसकी सैन्य शक्ति का 81% हिस्सा चीनी हथियारों पर निर्भर है। हाल ही में भारतीय सेना के डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ, लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने FICCI की कॉन्फ्रेंस में खुलासा किया था कि चीन ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को भारतीय सैन्य गतिविधियों की “लाइव” सैटेलाइट जानकारी मुहैया कराई थी। इसके बावजूद, चीनी हथियार भारतीय हमलों का मुकाबला करने में नाकाम साबित हुए। पाकिस्तान के पास चीनी HQ-9P एयर डिफेंस सिस्टम है, लेकिन चीन का घरेलू HQ-9B सिस्टम कहीं ज्यादा एडवांस है, जिसकी रेंज 250-300 किमी है। इसका मतलब साफ है कि चीन ने पाकिस्तान को घटिया क्वॉलिटी के हथियार निर्यात किए, जो आधुनिक युद्ध की चुनौतियों का सामना करने में फेल हो गए।

इसके अलावा, चीन ने पाकिस्तान की हाइपरसोनिक मिसाइलों और एडवांस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की मांग को भी ठुकरा दिया, जो इस्लामाबाद के लिए बड़ा झटका था। चीनी हथियारों को लेकर नाराजगी न केवल सेना में थी, बल्कि जनता भी खुश नहीं दिखी। पाकिस्तानी मीडिया और सोशल मीडिया पर चीनी हथियारों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए। ऑपरेशन सिंदूर ने न केवल पाकिस्तान की सैन्य कमजोरियों की पोल खोल दी, बल्कि इस्लामाबाद को यह भी अहसास करा दिया कि उसकी चीन पर अत्यधिक निर्भरता उसकी युद्धक्षमता को खतरे में डाल रही है।

पाक को अपने पाले में करना चाहता है अमेरिका

सैन्य सूत्रों ने अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे हैनरी किसिंजर के एक कथन का जिक्र करते हुए कहा, “अमेरिका का कोई दोस्त या दुश्मन नहीं है, उसके केवल अपने हित हैं।” वह कहते हैं, अमेरिका अब फिर से उन्हीं देशों की तरफ देख रहा है जिन्हें उसने 20वीं सदी के अंत में छोड़ दिया था। अमेरिका को अब उनकी फिर से पाकिस्तान की जरूरत है।

वह आगे कहते हैं, अमेरिका भारत को एक दशक बाद के लिए खतरा मानता है, और इसके अलावा, वह भारत की सैन्य क्षमताओं को लेकर भी चिंतित है। इसलिए उसने बांग्लादेश को भी इसमें शामिल कर लिया। पाकिस्तान हमेशा कुछ पाने को लालायित रहता है, और अब उसे अमेरिका अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रहा है।

सूत्र कहते हैं कि अब पाकिस्तानियों को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अहसास हुआ है कि इस ऑपरेशन में चीनी हथियारों के फेल हो गए हैं। इसलिए वे अमेरिकियों के साथ संबंध बनाने की कोशिश कर रहे हैं। या यूं कहें कि वे चीन का इस्तेमाल करके अमेरिका के संग अपनी नजदीकियां बढ़ा रहे हैं।

अमेरिका बीते एक दशक में पाकिस्तान के चीन के करीब जाने से नाखुश रहा है। लेकिन अब एयर चीफ सिद्दू की यह यात्रा पाकिस्तान की ओर से यह संकेत मानी जा रही है कि इस्लामाबाद अब चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है और रक्षा खरीद में संतुलन बनाना चाहता है। विश्लेषकों का मानना है कि एयर मार्शल सिद्दू की यह यात्रा पाकिस्तान की एक रणनीतिक संतुलन नीति का हिस्सा है, ताकि वॉशिंगटन को यह भरोसा दिलाया जा सके कि पाकिस्तान अपने रक्षा संबंधों को दोबारा पटरी पर लाने के लिए तैयार है।

पाकिस्तान के पास चीन का A-100 MLRS सिस्टम

पाकिस्तान के पास चीन का A-100 MLRS सिस्टम (Multiple Launch Rocket System) है। लेकिन भारत के स्वदेशी मल्टी बैरल रॉकेट सिस्टम पिनाका के मुकाबले कम प्रभावी है। पाकिस्तान के पास मौजूद चीनी A-100 MLRS सिस्टम में फिक्स्ड ट्यूब्स लगे हैं। इनमें केवल 300 मिमी की रॉकेट ही फायर किए जा सकते हैं। यह सिस्टम फ्लैक्सिबल नहीं है, और ना ही यह अन्य कैलिबर रॉकेट्स के साथ काम कर सकता है।

जबकि पिनाका पॉड्स का सबसे बड़ा फायदा है- फ्लैक्सिबिलिटी। पिनाका के पॉड फ्रेम को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि उसमें अलग-अलग कैलिबर की लॉन्चर ट्यूब्स लगाई जा सकती हैं। यानी एक ही पॉड फ्रेम को बार-बार अलग-अलग तरह की ट्यूब्स से जोड़ा जा सकता है। पिनाका में अलग-अलग एमएम वाले वॉरहेड्स (हाई-एक्सप्लोसिव, क्लस्टर, एंटी-टैंक, और माइन-लेइंग) फायर किए जा सकते हैं। इस रॉकेट सिस्टम को DRDO ने विकसित किया है और इसका निर्माण टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और L&T इसे बना रही हैं।

वहीं, पिनाका में जो लॉन्चर ट्यूब्स इस्तेमाल होती हैं, वे एक बार इस्तेमाल के बाद बदली जा सकती हैं। ये ट्यूब्स ई-ग्लास एपॉक्सी रेजिन से बनी होती हैं और फिलामेंट वाइंडिंग प्रोसेस से बनाई जाती हैं। इससे ट्यूब्स हल्की होती हैं और फायरिंग के बाद पॉड फ्रेम को फिर से प्रयोग में लाया जा सकता है।

जबकि चीनी A-100 में लगे फिक्स्ड ट्यूब्स को बदला नहीं जा सकता। सिस्टम पुराना हो या ट्यूब डैमेज हो, पूरी यूनिट को रिप्लेस करना पड़ता है। जिससे लागत बढ़ाती है और फ्लैक्सिबिलिटी घटती है।

इसके अलावा पाकिस्तान के भेजे जाने वाले A-100 सिस्टम में 10 ट्यूब्स होती हैं, जो केवल 300 मिमी रॉकेट्स फायर कर सकती हैं। जबकि रूस के Smerch सिस्टम में 12 ट्यूब्स होती हैं। पिनाका Mk-1, Mk-2 और Mk-1 एन्हैंस्ड के लिए 6 ट्यूब पॉड्स होते हैं और गाइडेड पिनाका के लिए 4 ट्यूब्स प्रति पॉड मतलब 8 ट्यूब प्रति लॉन्चर ट्यूब पॉड्स होते हैं।

चीनी दावे के अनुसार इसकी रेंज 120 किलोमीटर तक है, जबकि इंप्रोवाइज्ड रूसी Smerch की रेंज 90 किमी है। A-100 की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह रूसी Smerch रॉकेट्स के साथ कंपेटिबल नहीं है, जबकि कई देश अभी भी रूसी रॉकेट्स का इस्तेमाल करते हैं। चीनी कंपनियां खुद कहती हैं कि A-100 का प्रोपल्शन सिस्टम और डिजाइन अलग है, इसलिए इसमें सिर्फ उनके बनाए स्पेशल रॉकेट्स ही इस्तेमाल हो सकते हैं। A-100 की रेंज भले ही 120 किमी हो, लेकिन इसकी सटीकता और आधुनिक युद्ध की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता पिनाका से कम है।

HIMARS में क्यों है पाकिस्तान की रुचि?

दरअसल पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम (MBRLS) को अमेरिकी HIMARS के बराबर बताया है। यूक्रेन-रूस युद्ध में HIMARS ने 30 रूसी सैन्य ठिकानों को नष्ट किया, जिसके बाद इसे काफी भरोसेमंद माना जाने लगा। अमेरिका ने जून 2022 में यूक्रेन को पहले चार HIMARS (अब तक 40) सिस्टम दिए थे। इसके बाद यूक्रेन ने दावा किया कि उसने इनकी मदद से 100 से ज़्यादा हाई-वैल्यू टारगेट (महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों) को तबाह किया। HIMARS ने 100+ किमी दूरी से ही हाई एक्सप्लोसिव और GMLRS जैसे गाइडेड रॉकेट्स के जरिए रूस के सैन्य ठिकानों को टारगेट किया और सटीक हमले किए। पाकिस्तान इसे भारत की सटीक हमले की क्षमता के खिलाफ एक संभावित प्रतिरोधक के रूप में देखता है। पाकिस्तान इस सिस्टम को हासिल करके भारत की लॉन्ग-रेंज आर्टिलरी बढ़त को संतुलित करना चाहता है। यह सिस्टम गाइडेड रॉकेट फायर करता है और तेजी से लोकेशन (शूट-एंड-स्कूट- फायर करके तुरंत स्थान बदलना) बदल सकता है, जिससे जवाबी हमला करना मुश्किल होता है।

HIMARS को आप एक चलती-फिरती रॉकेट बैटरी कह सकते हैं। इसमें लगे रॉकेट जीपीएस की मदद से गाइडेड होते हैं, यानी ये बहुत सटीक होते हैं। एक HIMARS 6 जीपीएस गाइडेड रॉकेट्स (69 किमी रेंज) या 2 प्रेसिजन स्ट्राइक मिसाइल्स या 1 आर्मी टैक्टिकल मिसाइल (300 किमी रेंज) फायर कर सकता है। इसके रॉकेट्स का वजन लगभग 200 पाउंड होता है और हर रॉकेट 13 फीट से ज़्यादा लंबा होता है।

HIMARS की एक खास बात यह है कि इसे बहुत कम सैनिकों यानी 3 लोगों की टीम ही ऑपरेट कर सकती है। इतना ही नहीं, इसे दुबारा लोड करने में केवल 1 मिनट लगता है, यानी यह तेजी से फायरिंग के लिए फिर से तैयार हो जाता है। वहीं इसे M1140 6×6 व्हील ड्राइव वाले ट्रक पर लगाया जाता है। HIMARS ट्रक को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि वह पहाड़, रेगिस्तान, दलदली ज़मीन और बर्फीले इलाकों में भी आराम से चल सके। यही कारण है कि HIMARS को आज दुनिया के सबसे भरोसेमंद और घातक मोबाइल रॉकेट सिस्टम में गिना जाता है।

HIMARS में अलग-अलग क्षमता वाले कई तरह के रॉकेट और मिसाइल इस्तेमाल किए जाते हैं। इनमें सबसे पहला है GMLRS, यानी गाइडेड मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम, जिसकी रेंज करीब 69 किलोमीटर तक है। इसके बाद आता है ER GMLRS, यानी लंबी दूरी वाला वर्जन, जिसकी रेंज 150 किलोमीटर मानी जाती है।

अगर टैक्टिकल लेवल की बात करें, तो HIMARS में ATACMS नामक मिसाइल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है, जिसकी मारक दूरी 300 किलोमीटर तक जाती है। लेकिन सबसे नई और एडवांस मिसाइल है PrSM (Precision Strike Missile), जो करीब 499 किलोमीटर या उससे भी अधिक दूरी तक सटीक वार करने में सक्षम है। इन सभी रॉकेटों की खासियत यह है कि ये जीपीएस गाइडेड होते हैं। अमेरिकी रक्षा निर्माता लॉकहीड मार्टिन के अनुसार, प्रत्येक रॉकेट लक्ष्य के महज 16 फीट के दायरे में गिरता है, जो इसे मॉडर्न वारफेयर के लिए एक बेहद सटीक और भरोसेमंद हथियार बनाता है।

क्या ऑपरेशन सिंदूर में हुआ था पिनाका का इस्तेमाल?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ऑपरेशन सिंदूर में पिनाका का इस्तेमाल नहीं किया गया था। हां, अग्रिम मोर्चे पर इसकी तैनाती जरूर की गई थी। इसे रिजर्व में रखा गया था। सूत्र बताते हैं कि अगर इसका इस्तेमाल हो जाता, तो निश्चित तौर पर पाकिस्तान को मौजूदा से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता। एक सूत्र ने बताया कि पाकिस्तान को अंदेशा था कि भारत पिनाका का इस्तेमाल करेगा। जिससे वह काफी डरा हुआ था। यहां तक कि पाकिस्तान ने पिनाका की मूवमेंट पर नजर रखने के लिए ड्रोन भी भेजे थे। लेकिन उन्हें मार गिराया गया।

पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर (MBRL) के बारे में कहा जाता है कि एक पूरी बैटरी अगर पूरे दमखम के साथ इस्तेमाल की जाए, तो यह लगभग 1000 मीटर x 800 मीटर (0.8 वर्ग किलोमीटर) के इलाके को बरबाद कर सकता है। दरअसल एक पिनाका बैटरी में 6 लॉन्चर होते हैं, और प्रत्येक लॉन्चर में 12 रॉकेट्स होते हैं। यानी, एक बैटरी में कुल 72 रॉकेट्स होते हैं। ये 72 रॉकेट्स 44 सेकंड में फायर किए जा सकते हैं, जो एक बड़े क्षेत्र (सैन्य ठिकानों, हथियार डिपो, या सैनिकों की टुकड़ियों) को तुरंत तबाह कर सकते हैं। सेना सूत्रों के अनुसार, एक बैटरी एक बार में 7.2 टन विस्फोटक सामग्री दुश्मन के इलाके में गिरा सकती है। पिनाका को 8×8 टाट्रा या BEML-टाट्रा ट्रक पर लगाया जाता है, जो इसे तेजी से तैनात करने में मदद करता है। इसकी शूट-एंड-स्कूट क्षमता दुश्मन के जवाबी हमलों से बचाती है।

प्रत्येक रॉकेट में हाई-एक्सप्लोसिव फ्रैगमेंटेशन (HE-FRAG), क्लस्टर म्यूनिशन, या अन्य वॉरहेड्स होते हैं, जो बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाते हैं। एक बैटरी का हमला 1000 मीटर x 800 मीटर (लगभग 0.8 वर्ग किलोमीटर) के क्षेत्र को प्रभावी ढंग से नष्ट कर सकता है। यह क्षेत्र सैन्य ठिकानों, हथियार डिपो, या सैनिकों की टुकड़ियों को तबाह करने के लिए काफी बड़ा है। खासकर अगर क्लस्टर म्यूनिशन का इस्तेमाल किया जाए, तो यह सैकड़ों छोटे-छोटे विस्फोटकों में बंट जाता है, जो एक बड़े क्षेत्र में तबाही मचा सकता है।

पिनाका में कई देशों ने दिखाई रूचि

पिनाका की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि फ्रांस, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, वियतनाम औरर कुछ यूरोपीय और दक्षिण-पूर्व एशियाई देश इसमें रूचि दिखा चुके हैं। वहीं, आर्मेनिया पिनाका MBRL का पहला विदेशी खरीदार है। 2023 में उसने भारत से 245 मिलियन डॉलर की डील के तहत पिनाका सिस्टम खरीदा था। ये सिस्टम आर्मेनिया को ईरान के रास्ते डिलीवर किए गए, ताकि वह अजरबैजान के खिलाफ अपनी रक्षा को मजबूत कर सके। सूत्र बताते हैं कि भारत अब हर साल 5,000 से ज्यादा पिनाका रॉकेट बनाने की क्षमता हासिल कर चुका है।

भारतीय सेना के पास 6 पिनाका रेजिमेंट

वहीं, भारतीय सेना के पास 2025 तक 6 पिनाका रेजिमेंट (108+ लॉन्चर) हैं, और 4 और रेजिमेंट ऑर्डर पर हैं। भारत ने 2025 में 10,147 करोड़ रुपये के कॉन्ट्रैक्ट्स के साथ पिनाका की गोला-बारूद क्षमता बढ़ाई, जिसमें एरिया डिनायल म्यूनिशन (ADM) और हाई-एक्सप्लोसिव प्री-फ्रैगमेंटेड (HEPF) रॉकेट्स शामिल हैं। भारत का लक्ष्य भारतीय सेनाओं में 2030 तक 22 पिनाका रेजिमेंट्स तैनात करना है।

Pinaka and HIMARS Showcase Firepower Together at Yudh Abhyas 2024

2024 में पिनाका औऱ HIMARS दिखे थे साथ-साथ

पिछले साल 2024 में पहली बार भारतीय सेना का पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट सिस्टम और अमेरिकी सेना का HIMARS (हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम) एक ही फायरिंग रेंज पर एकसाथ गरजे थे। युद्ध अभ्यास 2024 में पहली बार भारत-अमेरिका ने लॉन्ग रेंज फायरपावर की ताकत दिखाई थी। सूत्रों ने बताया कि युद्ध अभ्यास 2024 के दौरान अमेरिका ने भारत को HIMARS सिस्टम बेचने का भी ऑफर दिया था।

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