भारतीय सेना अब 'काउंटर अनमैन्ड एरियल सिस्टम्स' (C-UAS) की तलाश में है, जिन्हें सीधे तौर पर टैंकों पर लगाया जा सके और जो किसी भी प्रकार के ड्रोन हमले को समय रहते पहचानकर उसे नष्ट कर सकें। सेना ने हाल ही में ऐसे 75 C-UAS सिस्टम की खरीद के लिए 'रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन' (RFI) जारी किया है...
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📍नई दिल्ली | 15 Apr, 2025, 1:18 PM

Drone Shield on Tanks: रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान टैंकों को उड़ाने में जिस तरह से आत्मघाती ड्रोनों का इस्तेमाल किया गया, इससे भारतीय सेना भी सतर्क हो गई है। भारतीय सेना अब अपने पुराने रूसी मूल के टैंकों T-72 ‘अजेय’ और T-90S ‘भीष्म’ को ड्रोन हमलों से बचाने के लिए हाईटेक एंटी-ड्रोन सिस्टम से लैस करने की तैयारी कर रही है। बता दें कि यूक्रेन में चल रही जंग में रूस के हजारों टैंक ड्रोन और आधुनिक मिसाइल हमलों में तबाह हो चुके हैं। इस युद्ध ने दिखा दिया है कि भविष्य के युद्ध बंदूक-बमों से नहीं, बल्कि छोटे, स्मार्ट और आत्मघाती ड्रोन से भी लड़े जाएंगे।

Drone Shield on Tanks: Indian Army to Equip T-90 & T-72 with Anti-Drone Systems

खतरे की घंटी: कैसे ड्रोन बन रहे हैं टैंकों के लिए काल?

भारत के पास करीब 2400 T-72 और 1300 से ज्यादा T-90 भीष्म टैंक हैं। इन टैंकों को मुख्य तौर पर पाकिस्तान के साथ पांरपरिक युद्ध के डिजाइन किया गया था। लेकिन अब ये टैंक ड्रोन हमलों के लिए बेहद संवेदनशील माने जा रहे हैं। यूक्रेन में जो हो रहा है, उससे सबक लेते हुए अब इन टैंकों की सुरक्षा को लेकर सेना ज्यादा सतर्क हो गई है। पिछले एक साल में ही यूक्रेन ने करीब 3,000 रूसी टैंकों और 9,000 बख्तरबंद वाहनों को नष्ट कर दिया है। ये हमले आमतौर पर ड्रोन, आर्टिलरी और एंटी-टैंक मिसाइलों के जरिए किए गए। यूक्रेन के फर्स्ट-पर्सन व्यू (एफपीवी) ड्रोन, स्वार्म ड्रोन, लॉइटरिंग यूएवी और कामिकाजा ड्रोनों ने रूसी टैंकों को भारी नुकसान पहुंचाया है।

सेना को है ‘काउंटर अनमैन्ड एरियल सिस्टम्स’ की तलाश

इसी को देखते हुए भारतीय सेना अब ‘काउंटर अनमैन्ड एरियल सिस्टम्स’ (C-UAS) की तलाश में है, जिन्हें सीधे तौर पर टैंकों पर लगाया जा सके और जो किसी भी प्रकार के ड्रोन हमले को समय रहते पहचानकर उसे नष्ट कर सकें। सेना ने हाल ही में ऐसे 75 C-UAS सिस्टम की खरीद के लिए ‘रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन’ (RFI) जारी किया है।

इन एंटी-ड्रोन सिस्टम में दो तरह की क्षमताएं होनी चाहिए, पहला ‘सॉफ्ट किल’ और दूसरा ‘हार्ड किल’। सॉफ्ट किल सिस्टम में सैटेलाइट बेस्ड नेविगेशन और रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल को जाम करने की क्षमता होगी। यानी ये ड्रोन को भ्रमित कर उन्हें नियंत्रित करने से रोक देगा। यह सिस्टम दुश्मन ड्रोन के जीपीएस या रडार सिग्नल को जाम कर उसे भटका सकता है। वहीं, हार्ड किल सिस्टम ड्रोन की लोकेशन की जानकारी टैंक पर लगे एंटी-एयरक्राफ्ट मशीन गन को देगा, ताकि सीधे फायर करके ड्रोन को नष्ट किया जा सके।

Drone Shield on Tanks: टैंकों के डिजाइन पर न पड़े कोई असर

सेना के एक अधिकारी के मुताबिक, “इन सिस्टम्स को इस तरह से डिजाइन करना होगा कि वह टैंक की बनावट और कार्यक्षमता में कोई बाधा न डाले। न ही टैंकों की मोबिलिटी, एनबीसी (न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल, केमिकल) सुरक्षा और गहराई में पानी पार करने की क्षमता पर कोई असर न पड़े।” चूंकि टैंकों का डिजाइन ‘लेथालिटी, मोबिलिटी और सर्वाइवबिलिटी’ पर आधारित होता है, इसलिए इन पर ज्यादा अतिरिक्त वजन नहीं डाला जा सकता। इसलिए सेना हल्के और कॉम्पैक्ट एंटी-ड्रोन सिस्टम चाहती है। इसके अलावा T-90 और T-72 जैसे भारी टैंकों में पहले से सीमित जगह होती है, इसलिए इनमें अतिरिक्त कवच जोड़ना व्यावहारिक नहीं है।

Drone Shield on Tanks: कैसे होंगे भविष्य के टैंक?

सेना अब भविष्य के टैंकों को हवाई हमलों से बचाने के लिए शुरू से ही डिजाइन में बदलाव कर रही है। 25 टन वजनी स्वदेशी लाइट टैंक ‘Zorawar’ परियोजना के तहत बनाए जा रहे हैं, जिनमें इनबिल्ट एंटी-ड्रोन सिस्टम होंगे। लगभग 17,500 करोड़ रुपये की लागत से बनाए जा रहे 354 लाइट टैंकों को ऊंचाई वाले जैसे लद्दाख और अरुणाचल जैसे सीमावर्ती इलाकों में तैनात किया जाएगा।

सेना के एक अन्य अधिकारी का कहना है, “हम अब हर नए टैंक प्रोजेक्ट में एंटी-एरियल थ्रेट्स और नेटवर्क कनेक्टिविटी जैसे आधुनिक फीचर्स को प्राथमिकता दे रहे हैं। इससे न सिर्फ टैंक की अपनी सुरक्षा होगी, बल्कि पूरी यूनिट की एरिया सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकेगी।”

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चीन के खिलाफ लगाए थे T-90 और T-72 टैंक

2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान क्षेत्र में भारत-चीन सीमा तनाव के दौरान भारतीय सेना ने 15,000 फीट की ऊंचाई पर टी-90 भीष्म और टी-72 टैंकों की तैनाती की थी। भारतीय सेना के लिए यह एक तरह से तकनीकी और लॉजिस्टिक चमत्कार ही था। भारत ने इन टैंकों को चुशूल, देमचोक, और दौलत बेग ओल्डी जैसे क्षेत्रों में तैनात किया था। ये टैंक ऊंचाई वाले कठिन इलाकों और माइनस 40 डिग्री तक के तापमान में प्रभावी ढंग से काम कर सकते हैं।  लेकिन अब सेना समझ चुकी है कि ऊंचाई वाले इलाकों में हल्के, फुर्तीले और ड्रोन-प्रूफ टैंकों की जरूरत है।

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