📍नई दिल्ली | 7 Feb, 2025, 1:14 PM
ALH Dhruv Grounded: भारतीय सेना एडवांस लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर ALH ध्रुव के ग्राउंड होने के असर अब भारतीय सेना की ऑपरेशनल तैयारियों पर दिखने लगा है। इसके चलते सेना को सीमावर्ती इलाकों में जरूरी सामान और रसद पहुंचाने के लिए अब सिविल एविएशन कंपनियों की मदद लेनी पड़ रही है। बुधवार को जारी एक आधिकारिक बयान में बताया गया कि सेना के ‘सूर्य कमान’ ने थम्बी एविएशन प्राइवेट लिमिटेड के साथ करार कर सिविल हेलीकॉप्टरों के जरिये हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में फॉरवर्ड पोस्ट तक सप्लाई शुरू कर दी है।
ग्राउंड है ‘वर्क हॉर्स’
भारतीय के ‘वर्क हॉर्स’ कहे जाने वाले स्वदेशी एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (ALH) ‘ध्रुव’ का बेड़ा तकनीकी खामियों के चलते ग्राउंड कर दिया गया और इसकी उड़ानों पर पूर्णतया रोक लगा दी गई। पिछले महीने 5 जनवरी को पोरबंदर में हुए हादसे के बाद यह फैसला लिया गया था। इस हादसे में भारतीय तटरक्षक बल के ALH मार्क-III हेलीकॉप्टर की ट्रेनिंग उड़ान के दौरान क्रैश हो जाने से तीन कर्मियों की मौत हो गई थी। देशभर में मौजूद लगभग 330 ALH हेलीकॉप्टर हैं, और सभी को ग्राउंड कर दिया गयाा है। यहां तक कि 15 सितंबर को मनाए जाने वाले आर्मी डे और रिपब्लिक डे पर भी ध्रुव और इसके दूसरे वैरिएंट्स ने उड़ान नहीं भरी थी।
ALH Dhruv Grounded: थंबी एविएशन के साथ करार
सेना ने थंबी एविएशन प्राइवेट लिमिटेड के साथ कॉन्ट्रैक्ट करके सिविल हेलिकॉप्टर सेवाएं शुरू की हैं, जिनका ऑपरेशन गुरुवार से शुरू हो गया। थंबी एविएशन बेल 412 हेलिकॉप्टरों का उपयोग करती है, जो आमतौर पर पैसेंजर ट्रांसपोर्ट, वीआईपी उड़ानों और मेडिकल इमरजेंसी सेवाओं के लिए उपयोग किए जाते हैं। अधिकारियों के अनुसार, सेना की जरूरतों के आधार पर इन हेलिकॉप्टरों की संख्या तय की जाएगी।
#IndianArmy#SuryaCommand achieved yet another milestone by integrating civil aviation helicopters for Air maintenance of far flung forward posts in Himachal, Garhwal and Kumaon regions. The initiative will go a long way in optimising integral resources besides ensuring logistic… pic.twitter.com/glic7mdJ1h
— SuryaCommand_IA (@suryacommand) February 6, 2025
ALH Dhruv Grounded: हाई एल्टीट्यूड इलाकों में परफॉरमेंस शानदार
भारतीय सेना ध्रुव हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल हाई एल्टीट्यूड इलाकों में रसद, सैनिक साजोसामान और इमरजेंसी सेवाओं में करती है। हाई एल्टीट्यूड इलाकों में इनकी परफॉरमेंस शानदार है। लेकिन हाल के कुछ सालों में बार-बार तकनीकी खामियों और दुर्घटनाओं के चलते इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। इसी के चलते अब सेना ने सीमावर्ती इलाकों में रसद आपूर्ति और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए प्राइवेट एविएशन कंपनियों का रुख किया है।
थंबी एविएशन के हेलीकॉप्टरों की मदद से सेना सीमावर्ती इलाकों में तैनात जवानों को खाद्य सामग्री, दवाइयां और अन्य जरूरी सामान पहुंचाने के साथ-साथ सीमा पर चल रहे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए निर्माण सामग्री भी समय पर भेज सकेगी।
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ALH Dhruv Grounded: 2024 में 40,000 घंटे उड़ान
भारत-चीन सीमा पर 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के आसपास कई इलाके ऐसे हैं जो अभी भी सड़क मार्ग से जुड़े नहीं हैं। ऐसे इलाकों में रसद पहुंचाने के लिए वायुसेना और सेना के हेलीकॉप्टर ही एकमात्र विकल्प होते हैं। लेकिन ध्रुव हेलीकॉप्टरों के ग्राउंड होने के कारण यह चुनौती और भी बढ़ गई थी। ALH हेलीकॉप्टर भारतीय सेना और वायुसेना के लिए एक वर्कहॉर्स की तरह काम करते हैं। अकेले 2024 में भारतीय सेना में ALH हेलीकॉप्टरों ने 5,000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में 40,000 घंटे से अधिक की उड़ान भरी थी।
पिछले साल भी हुआ था करार
इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में भारतीय सेना ने पहली बार बॉर्डर इलाकों आवश्यक सप्लाई के लिए निजी सिविल एविएशन कंपनियों के साथ करार किया था। यह कदम खासतौर पर उन फॉरवर्ड पोस्ट के लिए उठाया गया था, जो सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी के कारण अन्य हिस्सों से कट जाती हैं। इसके तहत सेना ने अपने एविएशन रिसोर्सेज की जगह सिविलियन हेलिकॉप्टरों के इस्तेमाल का फैसला किया था, जिससे न केवल लागत में कमी आएगी, बल्कि सैन्य हेलिकॉप्टरों को युद्ध और इमरजेंसी सेवाओं के लिए सुरक्षित रखा जा सकेगा।
इस करार के तहत जम्मू क्षेत्र की 16 रिमोट चौकियों को पूरे साल और कश्मीर और लद्दाख की 28 चौकियों को 150 दिनों तक सिविल हेलिकॉप्टरों के जरिये सप्लाई दी जाएगी। इस पहल के तहत हेलिकॉप्टर ऑपरेशन के लिए लद्दाख में सात, कश्मीर में दो और जम्मू क्षेत्र में एक माउंटिंग बेस बनाए गए हैं, जो कुल 44 चौकियों को कवर करेंगे। इन बेसों का डेवलपमेंट बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम और पीएम गति शक्ति योजना के तहत किया गया है, ताकि सीमावर्ती इलाकों में एक इंटीग्रेटेड लॉजिस्टिक्स नेटवर्क तैयार किया जा सके।