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📍नई दिल्ली | 8 months ago

OROP Supreme Court: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने भारतीय सेना के रिटायर नियमित कैप्टन (Captains) के लिए वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना के तहत पेंशन में 10 प्रतिशत की वृद्धि की सिफारिशों को स्वीकार नहीं करने का फैसला लिया है। सरकार का यह फैसला तब सामने आया जब गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा था।

OROP Supreme Court: Government Declines Pension Hike for Retired Captains, Informs Apex Court

इस मामले में सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि सरकार ने पेंशन में बढ़ोतरी की सिफारिशों को नहीं स्वीकार किया है। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला भारतीय सेना के रिटायर कप्तानों की पेंशन को लेकर आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (AFT) के एक आदेश के खिलाफ दाखिल की गई अपील पर सुनवाई के दौरान लाया गया था।

AFT ने 7 दिसंबर 2021 को सरकार को निर्देश दिया था कि वह रिटायर नियमित कप्तानों को मिलने वाली पेंशन पर एक फैसला ले। इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसने इस सिफारिश को मंजूरी नहीं दी है।

OROP Supreme Court: क्या था मामला?

सुप्रीम कोर्ट में जब सरकार की ओर से जवाब दिया गया, तो अदालत ने रिटायर सेना कप्तानों के वकीलों से कहा कि यदि वे सरकार के इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं, तो वे इस फैसले को चुनौती दे सकते हैं, क्योंकि इस प्रकार के मामलों में समय की बहुत अहमियत होती है। इसके बाद वकीलों ने कुछ समय लेने की अनुमति मांगी, जिस पर अदालत ने 12 दिसंबर 2024 को मामले की अगली सुनवाई के लिए तारीख तय की।

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इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मामले में कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने केंद्र को यह कहते हुए आलोचना की थी कि पिछले कई सालों से रिटायर कप्तानों की पेंशन पर कोई निर्णय नहीं लिया गया था। कोर्ट ने केंद्र पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था।

OROP योजना और विवाद की जड़ें

इस विवाद की जड़ वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना से जुड़ी है, जिसे केंद्र सरकार ने 2015 में लागू किया था। OROP योजना के तहत, जिन सैनिकों की सेवानिवृत्ति पहले हो चुकी है, उनकी पेंशन को वर्तमान सेवानिवृत्त सैनिकों के समान देने की बात कही गई थी।

लेकिन इस योजना के लागू होने के बाद कुछ विसंगतियां सामने आईं, खासकर सेना के कप्तान और मेजर रैंक के अफसरों की पेंशन में। पेंशन टेबल में सही डेटा की कमी के कारण यह विसंगतियां आईं। केंद्र सरकार ने इन विसंगतियों को सुलझाने के लिए एक न्यायिक समिति का गठन किया था।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि कोच्चि स्थित AFT की पीठ ने 6 विसंगतियों की पहचान की थी, जिन्हें सही किया जाना था, लेकिन अभी तक सरकार ने इस पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया था।

अदालत ने कहा था कि फैसला लिया जाए

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वह रिटायर कप्तानों के मामले में जल्द से जल्द फैसला ले। कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर कोई फैसला नहीं लिया गया तो वह 10 फीसदी की पेंशन वृद्धि को लागू करने का आदेश दे देगा।

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अदालत ने केंद्र को आखिरी मौका दिया था कि वह इस मामले में आवश्यक सुधार कर ले। इसके बाद भी अगर सरकार कोई फैसला नहीं करती, तो अदालत खुद से पेंशन वृद्धि का आदेश दे सकती है।

सेना और सरकार के बीच बढ़ती बहस

इस मामले में विवाद का मुख्य कारण यह है कि रिटायर कप्तानों की पेंशन बढ़ाने की सिफारिशें पिछले कुछ समय से लंबित पड़ी हुई थीं। इस मुद्दे पर सेना के अधिकारी और रिटायर सैनिक लगातार सरकार से न्याय की उम्मीद लगाए हुए थे। उन्हें उम्मीद थी कि सरकार OROP योजना के तहत उनके हक को मान्यता देगी और उन्हें वित्तीय फायदे देगी।

अब यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस निर्णय को क्यों वापस लेती है और क्या अदालत इस फैसले को चुनौती देने का कोई रास्ता खोलती है। सेना के रिटायर कप्तान अपनी पेंशन में वृद्धि की उम्मीद लगाए हुए हैं, और यदि सरकार द्वारा किए गए फैसले को अदालत चुनौती देती है, तो यह मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ आ सकता है।

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