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भारतीय वायुसेना ने 1979 में ब्रिटेन से 40 जगुआर सीधे खरीदे थे, जबकि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने तकनीकी हस्तांतरण समझौते के तहत और 100 विमान भारत में बनाए। इस तरह 2008 तक कुल मिलाकर 160 जगुआर विमान वायुसेना के बेड़े में शामिल हो गए। वहीं, अप्रैल 2025 तक, भारतीय वायुसेना के पास 115 जगुआर विमान बचे हैं, जिनमें से 83 उड़ाने की हालात में हैं...
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📍नई दिल्ली | 2 weeks ago

Jaguar Fighter Crash: 9 जुलाई 2025 को राजस्थान के चूरू जिले में भारतीय वायुसेना (IAF) का एक जगुआर ट्रेनर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। यह हादसा दोपहर करीब 1:25 बजे भानुड़ा गांव के पास एक खेत में हुआ, जिसमें विमान पर सवार दोनों पायलटों की मौत हो गई। यह इस साल जगुआर विमानों से जुड़ा तीसरा हादसा है, जिसके बाद भारतीय वायुसेना के पुराने हो चुके विमानों की लाइफ साइकिल और इनके मैंटेनेंस को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। वहीं वायुसेना सूत्रों का कहना है कि क्रैश हुआ जगुआर DARIN-II अपग्रेडेड फाइटर जेट था।

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भारतीय वायुसेना के मुताबिक, यह जगुआर ट्रेनर जेट सूरतगढ़ एयरबेस से नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर था। दोपहर करीब 1:25 बजे, राजस्थान के चुरू जिले के भानुदा गांव (रतनगढ़ तहसील) में यह ट्रेनर जेट दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हादसे की वजह तकनीकी खराबी बताई जा रही है। साथ ही वायुसेना ने दुर्घटना के कारणों की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी गठित कर दी है। चुरु प्रशासन का कहनाा है कि हादसे के तुरंत बाद पुलिस और प्रशासन की टीमें मौके पर पहुंचीं। बचाव और राहत कार्य शुरू किए गए, लेकिन विमान के मलबे में दोनों पायलटों के शव क्षत-विक्षत हालत में मिले। हालांकि किसी भी नागरिक संपत्ति को नुकसान नहीं हुआ है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि पायलटों ने विमान को आबादी वाले इलाके से दूर ले जाकर लोगों की जान बचाने की कोशिश की।

Jaguar Fighter Crash: इस साल जगुआर का तीसरा हादसा

2025 में जगुआर विमानों से जुड़ा यह तीसरा हादसा है। इससे पहले 7 मार्च को हरियाणा के पंचकूला में एक जगुआर विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था, जिसमें पायलट सुरक्षित बाहर निकल गया था। इसके बाद 2 अप्रैल को गुजरात के जामनगर के पास एक अन्य जगुआर विमान क्रैश हुआ, जिसमें पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव की मौत हो गई थी। सिद्धार्थ ने भी विमान को आबादी से दूर ले जाकर कई लोगों की जान बचाई थी। जबकि दूसरा पायलट घायल हो गया था।

केवल भारतीय वायुसेना ही कर रही है ऑपरेट

SEPECAT Jaguar एक ट्विन-इंजन, ग्राउंड-अटैक फाइटर-बॉम्बर विमान है, जिसे ब्रिटेन और फ्रांस ने मिलकर बनाया था। यह विमान भारत के न्यूक्लियर ट्रायड का अहम हिस्सा है और इसका इस्तेमाल डीप पेनेट्रेशन स्ट्राइक मिशनों के लिए किया जाता है। भारतीय वायुसेना में इसे “शमशेर” (न्याय की तलवार) के नाम से जाना जाता है। इसकी डीप स्ट्राइक क्षमता और कम ऊंचाई पर उड़ान भरने के चलते इसी काफी वाहवाही भी मिली है। इसका ‘लो-लो-लो कॉम्बैट रेडियस ऑफ एक्शन’ 650 किलोमीटर है।

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भारतीय वायुसेना ने 1979 में ब्रिटेन से 40 जगुआर सीधे खरीदे थे, जबकि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने तकनीकी हस्तांतरण समझौते के तहत और 100 विमान भारत में बनाए। इस तरह 2008 तक कुल मिलाकर 160 जगुआर विमान वायुसेना के बेड़े में शामिल हो गए। वहीं, अप्रैल 2025 तक, भारतीय वायुसेना के पास 115 जगुआर विमान बचे हैं, जिनमें से 83 उड़ाने की हालात में हैं। इस समय जगुआर की छह स्क्वाड्रन (अंबाला, जामनगर, गोरखपुर, भुज, और सूरतगढ़) में हैं, जबकि इनमें से 30 ट्रेनर वेरिएंट हैं।

वहीं, भारतीय वायुसेना ही पूरी दुनिया में इस विमान की एकमात्र ऑपरेटर है। ब्रिटेन ने अपने जगुआर विमानों को 2007 तक रिटायर कर दिया था, जबकि फ्रांस ने 2005 में ही इनका ऑपरेशन बंद कर दिया था। ओमान, इक्वाडोर और नाइजीरिया जैसे अन्य देशों ने भी काफी पहले ही इन्हें सर्विस से बाहर कर दिया

भारत ने खरीदे थे पुराने स्पेयर पार्ट्स

2018 में, भारत ने फ्रांस, ओमान, और यूके से 31 डीकमीशन किए गए जगुआर एयरफ्रेम और स्पेयर पार्ट्स हासिल किए थे, ताकि बेड़े को कुछ और सालों तक चालू रखा जा सके। जगुआर विमानों की दुर्घटनाओं की वजहों में तकनीकी खराबी (जैसे अंडरपॉवर्ड रोल्स-रॉयस टर्बोमेका Adour Mk811 इंजन), पुराने एयरफ्रेम, और मैंटेनेंस को लेकर सवाल उठाए गए हैं। भारतीय वायुसेना ने इनके इंजनों को हनीवेल के F125-IN टर्बोफैन इंजनों से बदलने की योजना बनाई थी, जो 30% ज्यादा थ्रस्ट देता। लेकिन 2019 में ज्यादा लागत के चलते इसे रद्द कर दिया गया। Adour इंजन को सपोर्ट करने वाली कंपनी रॉल्स-रॉयस ने साफ कर दिया है कि वह केवल 2035 तक ही इन इंजनों के लिए मेंटेनेंस सपोर्ट देगी। सूत्रों का कहना है कि प्रत्येक विमान के लिए 190 करोड़ रुपये और एचएएल को अमेंडमेंट, टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन के लिए अतिरिक्त 20 करोड़ रुपये की जरूरत थी।

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DARIN अपग्रेड प्रोग्राम

वहीं, समय के साथ आधुनिक युद्ध की जरूरतों को पूरा करने और इसकी ऑपरेशनल लाइफ को लंबा करने के लिए जगुआर में तीन बड़े अपग्रेड भी किए गए। जैगुआर को DARIN (Display Attack Ranging Inertial Navigation) प्रोग्राम के तहत अपग्रेड किया गया।

पहला अपग्रेड DARIN-I 1980 के दशक में मिला। 1982 से HAL द्वारा बनाए गए सभी जगुआर विमानों में DARIN सिस्टम लगाया गया। इनमें नया नेविगेशन/अटैक सिस्टम जोड़ा। जिसके बाद कम ऊंचाई पर यह सटीक हमला करने में माहिर हो गया। जिसके बाद जैगुआर दुश्मन की डिफेंस लाइन को भेदने में माहिर हो गया। यह पहला बड़ा अपग्रेड था, जिसने जैगुआर की नेविगेशन और विपन डिलिवरी कैपेसिटी को एडवांस बनाया।

DARIN II

पहले अपग्रेड के बाद 1990 के दशक के अंत से 2000 के दशक की शुरुआत तक DARIN II अपग्रेड चला। जिसमें एडवांस इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (EW) सूट, रडार वार्निंग रिसीवर्स (RWR), और नए हथियारों को इंटीग्रेट किया गया। साथ ही, ऑटोपायलट, नए डिस्प्ले, और HOTAS (Hands On Throttle And Stick) सिस्टम ने पायलटों के लिए विमान को कंट्रोल करना आसान बनाया। साथ ही, समुद्री हमले की क्षमता के लिए कुछ विमानों में सी ईगल और हार्पून जैसी एंटी-शिप मिसाइलें भी शामिल की गईं। इसका नतीजा था पूरी तरह से स्वदेशी DARIN-II, विमान को रनवे के टचडाउन पॉइंट तक अंधेरे में भी गाइडेंस देता है।

एक रिटायर्ड जगुआर पायलट कहते हैं, “अंबाला की जानी-मानी सर्दियों की धुंध में, जब आप अपना हाथ भी न देख पाएं, तब भी जगुआर आसानी से लैंड और टेकऑफ कर रहा था।”

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DARIN III

वहीं, 2011 में DARIN III अपग्रेड शुरू हुआ। भारतीय वायुसेना के डिप्टी चीफ, एयर मार्शल आरकेएस भदौरिया ने एचएएल बेंगलुरु में DARIN-III से लैस एक जगुआर उड़ाया और उसके बाद उन्होंने इस अपग्रेडेड सिस्टम को “इनिशियल ऑपरेशनल क्लीयरेंस” दे दी। यह अपग्रेड जगुआर को 21वीं सदी का सुपर फाइटर यानी आधुनिक युद्ध का योद्धा बनाने की कोशिश थी। इसमें ग्लास कॉकपिट, नया मिशन कंप्यूटर, इजरायली EL/M-2052 AESA रडार, और GPS-बेस्ड नेविगेशन सिस्टम शामिल हुए। इस अपग्रेड से जगुआर को दुश्मन के इलाके में बेहद सटीक बमबारी करने की क्षमता मिली। वहीं, न्यू जेनरेशन लेजर गाइडेड बम (NGLGBs), अमेरिका से 2010 में खरीदा गया Textron CBU-105 सेंसर फ्यूज्ड वेपन, रुद्रम-1, AIM-9 साइडविंदर, और ASRAAM जैसे हथियारों ने इसे मल्टीरोल फाइटर बनाया। सेंसर फ्यूज्ड वेपन टैंकों को नष्ट करने में माहिर है। यह हथियार हवा में कई “स्मार्ट बमलेट्स” में विभाजित हो जाता है, जो स्वचालित रूप से टैंक को खोजकर उसके टरेट (ऊपरी भाग) को भेदते हैं।

2031-32 तक बने रहेंगे सर्विस में

सूत्रों का कहना है कि 2025 तक, 50-60 जगुआर इस स्टैंडर्ड तक अपग्रेड हो चुके हैं, और यह प्रोसेस अभी जारी है। DARIN-II से लैस लगभग 60 जगुआर उसी सिस्टम के साथ काम करते रहेंगे, जबकि बाकी 60 विमान जो अभी भी पुराने DARIN सिस्टम से लैस हैं, उन्हें अब DARIN-III में अपग्रेड किया जाएगा। इस अपग्रेड के बाद जगुआर 2031-32 तक सर्विस में बने रहेंगे। हालांकि IAF के 30 ट्रेनर वेरिएंट में से सभी को DARIN III अपग्रेड नहीं मिला। सूत्रों का कहना है कि ट्रेनर जेट्स मुख्यतः ट्रेनिंग के लिए हैं, अक्सर पुराने स्टैंडर्ड्स पर ही रहते हैं।

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