📍नई दिल्ली | 2 months ago
BrahMos NG: भारतीय वायुसेना (IAF) ने हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान सुखोई-30 MKI लड़ाकू विमानों से ब्रह्मोस (BrahMos) मिसाइल दागकर बड़ी सफलता हासिल की। अब भारत एक कदम और आगे बढ़ाने की तैयारी में है। वायुसेना और भारत और रूस की संयुक्त कंपनी ब्रह्मोस एयरोस्पेस मिलकर ब्रह्मोस मिसाइल का एक नया और हल्का संस्करण तैयार करने जा रहे हैं। इसे ब्रह्मोस नेक्स्ट जेनरेशन (BrahMos NG) कहा जा रहा है। इस मिसाइल को वायुसेना के तीन और लड़ाकू विमानों, मिग-29, मिराज 2000 और स्वदेशी तेजस (LCA) में लगाने की योजना है।
BrahMos NG: ब्रह्मोस मिसाइल की ताकत
ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos NG) भारत और रूस ने मिलकर बनाई है। यह दुनिया की इकलौती सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसे लड़ाकू विमान से दागा जा सकता है। इसकी रफ्तार 2.8 मैक यानी करीब 3400 किलोमीटर प्रति घंटा है। इतनी तेज रफ्तार की वजह से दुश्मन के लिए इसे रोकना लगभग नामुमकिन है। ऑपरेशन सिंदूर में सुखोई-30 MKI विमानों ने भारत की सीमा से 100-200 किलोमीटर अंदर पाकिस्तान के ठिकानों को निशाना बनाया। 10 मई की सुबह इन हमलों ने पाकिस्तान को घुचने पर ला दिया और उसी दिन उन्हें अमेरिका से बीचबचाव करने के लिए भीख मांगनी पड़ी।
BrahMos NG: पहले सी हल्की और ज्यादा खतरनाक
अब तक ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos NG) का वजन 2.5 टन था, जिसे सुखोई जैसे बड़े विमान ही ले जा सकते थे। लेकिन ब्रह्मोस NG को सिर्फ 1.3 टन वजन का बनाया जाएगा। इसका मतलब है कि इसे छोटे विमान जैसे मिग-29, मिराज 2000 और तेजस में भी लगाया जा सकेगा। यह मिसाइल भारतीय वायुसेना की मुख्य हथियार बनने वाली है, जो दुश्मन के ठिकानों को आसानी से नष्ट कर सकती है। ब्रह्मोस NG (BrahMos NG) में पारंपरिक वॉरहेड होगा, जो दुश्मन के मजबूत कमांड सेंटर, कंट्रोल रूम और कम्यूनिकेशन सेंटर को निशाना बनाएगा।
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आसान काम नहीं था सुखोई में ब्रह्मोस लगाना
सुखोई विमानों में ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos NG) लगाना आसान काम नहीं था। भारत ने 1997 से सुखोई विमानों का इस्तेमाल शुरू किया था। 2005 में लोकसभा को बताया था कि भारतीय और रूसी वैज्ञानिकों ने मिलकर सुखोई में ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos NG) लगाने की संभावना को साबित कर दिया है। इसके बाद 2012 में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने 42 सुखोई विमानों में बदलाव करने और 216 हवा से दागी जाने वाली ब्रह्मोस मिसाइलें (BrahMos NG) खरीदने की मंजूरी दी।
वैज्ञानिकों ने दो बड़े काम किए। पहला, सुखोई विमानों को इस तरह बदला गया कि वे भारी मिसाइल ले जा सकें। दूसरा, ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos NG) का वजन 500 किलो कम करके 2.5 टन किया गया और इसे हवा में स्थिरता देने के लिए ‘फिन्स’ (पंख) जोड़े गए। जनवरी 2020 में वायुसेना ने पहली स्क्वाड्रन तैयार की, जिसमें ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस सुखोई विमान शामिल थे। अब वायुसेना की लगभग हर स्क्वाड्रन में ऐसे सुखोई विमान हैं।
रेंज बढ़ाने की कोशिश
शुरुआत में ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos NG) की रेंज 290 किलोमीटर थी, क्योंकि मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजिम (MTCR) के नियमों की वजह से रेंज सीमित थी। लेकिन 2016 में भारत MTCR का सदस्य बना और इसके बाद मिसाइल की रेंज को 450 किलोमीटर तक बढ़ा दिया गया। अब इसे 600 किलोमीटर तक ले जाने की योजना है। इतनी लंबी रेंज की वजह से भारत अपनी सीमा से काफी अंदर तक दुश्मन के ठिकानों को निशाना बना सकता है, वो भी बिना अपने विमानों को खतरे में डाले।
ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस की ताकत
ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos NG) ने अपनी ताकत साबित की। सुखोई-30 MKI विमानों ने भारत की सीमा से ही मिसाइल दागी और पाकिस्तान के अंदर 100-200 किलोमीटर दूर ठिकानों को तबाह कर दिया। इतनी तेज रफ्तार वाली मिसाइल को रोकने की तकनीक पाकिस्तान के पास नहीं थी। इन हमलों ने न सिर्फ दुश्मन के ठिकानों को नष्ट किया, बल्कि पाकिस्तान को यह अहसास भी दिलाया कि भारत की ताकत को हल्के में लेना भारी पड़ सकता है।
क्यों जरूरी है BrahMos NG?
भारतीय वायुसेना के पास सुखोई के अलावा कई छोटे और हल्के लड़ाकू विमान हैं, जैसे मिग-29, मिराज 2000 और तेजस। अभी तक ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos NG) का वजन ज्यादा होने की वजह से इन्हें इन विमानों में नहीं लगाया जा सका। लेकिन ब्रह्मोस NG (BrahMos NG) के हल्के वजन की वजह से अब ये फाइटर जेट भी इस ताकतवर मिसाइल से लैस हो सकेंगे। इससे वायुसेना की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। छोटे विमान ज्यादा तेजी से उड़ान भर सकते हैं और अलग-अलग इलाकों में आसानी से पहुंच सकते हैं। ऐसे में ब्रह्मोस NG (BrahMos NG) इन विमानों को और खतरनाक बना देगी।
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ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos NG) भारत की डिफेंस स्ट्रेटेजी का एक अहम हिस्सा है। यह मिसाइल न सिर्फ दुश्मन के ठिकानों को नष्ट करने में सक्षम है, बल्कि इसे रोकना भी बेहद मुश्किल है। सुखोई के बाद अब मिग-29, मिराज 2000 और तेजस जैसे विमानों में इसे लगाने की योजना से भारत की हवाई ताकत और मजबूत होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा में एक बड़ा फायदा देगा।
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