भारत सरकार अभी इस मुद्दे पर खुल कर बोलने से से बच रही है। बुधवार 2 जुलाई को दलाई लामा के एलान के बाद और चीन का बयान आने के बाद भी सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी। सूत्रों ने बताया कि भारत का यह मानना है कि यह एक धार्मिक मामला है, और इसमें किसी भी देश, खासकर चीन, का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। भारत ने पहले भी दलाई लामा को धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों की स्वतंत्रता दी है, लेकिन उन्हें भारत में कोई राजनीतिक गतिविधि करने की इजाजत नहीं है...
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📍नई दिल्ली | 3 Jul, 2025, 1:52 PM

Dalai Lama Succession: बातचीत में केंद्र सरकार में एक वरिष्ठ सूत्र कहते हैं, दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है। बड़ी मुश्किल से अभी-अभी गलवान के पांच साल बाद भारत-चीन के संबंधों में थोड़ी तरावट आई है। पिछले साल 23 अक्टूबर को रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS Summit) के दौरान हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी। जो पांच साल बाद पहली औपचारिक द्विपक्षीय बैठक थी। उसके बाद अभी 26 जून को ही चीन के किंगदाओ में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की रक्षा मंत्रियों की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीनी रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून मिले थे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से 23 जून 2025 को SCO के सुरक्षा से संबंधित सम्मेलन के दौरान मुलाकात की थी। कैलाश मानसरोवर यात्रा अभी-अभी बहाल हुई है, लेकिन तिब्बत के सर्वोच्च धार्मिक नेता दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर दिए बयान के बाद सरकार में कन्फ्यूजन की स्थिति है। वह कहते हैं कि समझ नहीं आ रहा कि इस मुद्दे पर क्या प्रतिक्रिया दें।

Explainer Dalai Lama Reincarnation: क्या फिर जन्म लेंगे दलाई लामा? तिब्बती सर्वोच्च गुरु के एलान के क्या हैं मायने? क्या उनका पुनर्जन्म बनेगा भारत-चीन टकराव की वजह?

तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता 14वें दलाई लामा ने हाल ही में अपने उत्तराधिकारी की खोज और चयन को लेकर अहम एलान किया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि उनके उत्तराधिकारी का चयन पूरी तरह से उनकी मर्जी और गदेन फोडरंग ट्रस्ट के दिशा-निर्देशों के आधार पर होगा, जिसमें चीन की कोई भूमिका नहीं होगी। इस घोषणा के बाद भारत सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर बेहद सतर्कता के साथ कदम रख रही है, क्योंकि उसे डर है कि इस मसले के चलते दोनों देशों के बीच सुधरते रिश्तों पर फिर से काली छाया मंडरा सकती है।

Dalai Lama Succession: चीनी राजदूत शू फेइहोंग ने कही ये बात

दलाई लामा ने 2 जुलाई को धर्मशाला में दिए अपने वीडियो संदेश में स्पष्ट किया कि उनके उत्तराधिकारी की खोज उनकी मृत्यु के बाद शुरू होगी और यह प्रक्रिया पूरी तरह से तिब्बती बौद्ध परंपराओं के अनुसार होगी। उन्होंने यह भी कहा कि गदेन फोडरंग ट्रस्ट, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है, इस प्रक्रिया को संभालेगा। दलाई लामा का यह बयान चीन के लिए एक बड़ा झटका है, जो लंबे समय से तिब्बत और वहां की धार्मिक परंपराओं पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।

चीन ने भी तुरंत इस घोषणा पर प्रतिक्रिया दी। भारत में चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने कहा, दलाई लामा और अन्य प्रमुख लामाओं के पुनर्जन्म की प्रक्रिया को “कड़े धार्मिक अनुष्ठानों, ऐतिहासिक परंपराओं और चीनी कानूनों” के अनुसार पूरा करना होगा। उन्होंने यह भी दावा किया कि वर्तमान दलाई लामा का चयन भी 1792 में शुरू हुई स्वर्ण कलश (Golden Urn) प्रणाली के तहत हुआ था, और भविष्य में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाएगी। चीन का कहना है कि इस प्रक्रिया में बीजिंग की मंजूरी जरूरी है।

इस मसले पर “वेट एंड वॉच” की नीति

भारत के लिए यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है। भारत में तिब्बती शरणार्थियों की संख्या 66,000 से 85,000 के बीच है, जिनमें से अधिकांश धर्मशाला-मैकलॉडगंज में रहते हैं, जहां 14वें दलाई लामा रह रहे हैं। एक तरफ, भारत दलाई लामा को एक आध्यात्मिक नेता के रूप में सम्मान देता है और 1959 से धर्मशाला में तिब्बती सरकार-निर्वासन (Central Tibetan Administration) को शरण दे रहा है। दूसरी तरफ, भारत नहीं चाहता कि इस मुद्दे के कारण चीन के साथ उसके रिश्ते और खराब हों। पिछले नौ महीनों में भारत-चीन संबंधों में कुछ सुधार के संकेत दिखे हैं, खासकर गलवान घाटी में 2020 के टकराव के बाद। ऐसे में भारत इस मसले पर “वेट एंड वॉच” की नीति अपना रहा है।

हालांकि केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरन रिजिजू ने कहा, “दलाई लामा का स्थान केवल तिब्बतियों के लिए ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में फैले उनके करोड़ों अनुयायियों के लिए अत्यंत सम्मान और आस्था का प्रतीक है। उनके उत्तराधिकारी को लेकर निर्णय लेने का पूरा अधिकार केवल और केवल दलाई लामा के पास है। इसमें किसी भी अन्य देश या सरकार का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

वहीं, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा, “14वें दलाई लामा द्वारा उनकी संस्था के जारी रहने की पुष्टि से मुझे अत्यंत हर्ष और आध्यात्मिक संतोष मिला है। इस फैसले से हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले लाखों लोगों और पूरी दुनिया में फैले उनके अनुयायियों को गहरी खुशी और आध्यात्मिक संबल मिला है। यह घोषणा हमारी आस्था को और भी दृढ़ करती है। यह लोगों की प्रतिबद्धता, सामूहिक ज्ञान और शांति के प्रति विश्वास को और सशक्त बनाती है।”

सूत्रों के अनुसार, भारत सरकार अभी इस मुद्दे पर खुल कर बोलने से से बच रही है। बुधवार 2 जुलाई को दलाई लामा के एलान के बाद और चीन का बयान आने के बाद भी सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी। सूत्रों ने बताया कि भारत का यह मानना है कि यह एक धार्मिक मामला है, और इसमें किसी भी देश, खासकर चीन, का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। भारत ने पहले भी दलाई लामा को धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों की स्वतंत्रता दी है, लेकिन उन्हें भारत में कोई राजनीतिक गतिविधि करने की इजाजत नहीं है। सूत्रों ने बताया कि तिब्बत मसले से जुड़े भारत सरकार के अधिकांश अधिकारी चीन से संबंध बनाए रखने के पक्ष में हैं। वे नहीं चाहते कि नए-नए सुधरे रिश्तों में फिर से कोई आंच आए। हालांकि सरकार में अंदरखाने इस मुद्दे को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।

तिब्बत का “चीनीकरण” में जुटा चीन

तक्षसिला के इंडो-पैसिफिक अध्ययन कार्यक्रम से जुड़ी अनुष्का सक्सेना कहती हैं, चीन ने पिछले कुछ दशकों में तिब्बत को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश की है। उसने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र का नाम बदलकर “शीजांग” (Xizang) कर दिया और वहां की धार्मिक प्रतिष्ठानों पर कड़ा नियंत्रण बना लिया है। बीजिंग ने यह सुनिश्चित करना चाहता है कि सभी जीवित लामाओं का चयन और उनकी गतिविधियां चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नियमों के अनुसार हों। वह कहती हैं, 2016 में, चीन ने एक ऑनलाइन प्रणाली शुरू की थी, जिसके जरिए पुनर्जन्म का दावा करने वाले लामाओं की पहचान की जाती है। इस पूरे ढांचे का मकसद यह है कि तिब्बती धार्मिक संस्थाओं को भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधीन कर दिया जाए।

अनुष्का कहती हैं, चीन का दावा है कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी वही होगा, जिसे वह स्वर्ण कलश प्रणाली के जरिए चुनेगा और जिसे बीजिंग की मंजूरी मिलेगी। लेकिन दलाई लामा ने साफ कर दिया है कि उनका उत्तराधिकारी स्वतंत्र दुनिया में पैदा होगा, न कि चीन में। उनकी किताब वॉयस फॉर द वॉयसलेस में भी उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि तिब्बती बौद्ध धर्म की वैधता केवल उनकी परंपराओं और अनुयायियों की आस्था पर आधारित होगी, न कि किसी सरकार के हस्तक्षेप पर। वह कहती हैं कि चीन की भी दलाई लामा की संस्था को भंग करने के रास्ते पर जाने की संभावना नहीं है।

भारत के सामने है दोहरी चुनौती

अनुष्का आगे कहती हैं, भारत के सामने इस मसले पर एक नैतिक और रणनीतिक दुविधा है। नैतिक रूप से, भारत को तिब्बती समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करना चाहिए और दलाई लामा की पसंद को मान्यता देनी चाहिए। लेकिन रणनीतिक दृष्टिकोण से, यह कदम भारत-चीन संबंधों को नुकसान पहुंचा सकता है। वह कहती हैं कि नई दिल्ली के लिए सबसे आसान तरीका यह है कि वह इस मुद्दे से दूर रहे और यह तर्क दे कि यह एक धार्मिक मुद्दा है, न कि राजनीतिक।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत ने चीन द्वारा चुने गए उत्तराधिकारी को मान्यता देने से इनकार किया, तो बीजिंग इसे अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देख सकता है। इससे दोनों देशों के बीच तनाव फिर से बढ़ सकता है, जैसा कि 2017 में दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा के कुछ महीनों बाद 73 दिन तक चले डोकलाम सैन्य टकराव के दौरान देखा गया था।

दूसरी ओर, अगर भारत चीन के चुने हुए उत्तराधिकारी को मान्यता देता है, तो इस कदम से तिब्बती समुदाय और भारत के अपने लोगों के बीच असंतोष पैदा हो सकता है, जो दलाई लामा को बहुत सम्मान देते हैं। इसके अलावा, भारत का यह कदम तिब्बती शरणार्थियों के अधिकारों और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता के सवाल को कमजोर कर सकता है।

सूत्र कहते हैं कि यह किसी से नहीं छुपा है कि भारत ने दलाई लामा को सभाएं आयोजित करने की स्वतंत्रता दी है। विदेशी अनुयायी उनसे मिलने धर्मशाला आते हैं। यहां तक कि पिछले साल पूर्व अमेरिकी सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी भी कुछ सांसदों के साथ दलाई लामा से मिली थीं। उनसे मिलने को लेकर भारत ने किसी को नहीं रोका है। वह कहते हैं कि यह तर्क कि भारत ने 2003 में तिब्बत पर चीनी संप्रभुता को स्वीकार किया था, यहां लागू नहीं होता है, और उत्तराधिकार के प्रश्न को क्षेत्रीय स्वायत्तता से अलग रखा जाना चाहिए।

चीन के इस सेंटर ने दी थी चेतावनी

चीन की तिब्बत नीति को आकार देने वाले बीजिंग स्थित चाइना तिब्बतोलॉजी रिसर्च सेंटर ने 2019 में चेतावनी दी थी कि अगर भारत “पारंपरिक” प्रक्रिया के माध्यम से दलाई लामा की नियुक्ति की अवहेलना करता है, तो द्विपक्षीय संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उस दौरान बारत सरकार ने कहा था कि कोई भी बुद्धिमान नेता या मित्र देश ऐसा नहीं करेगा, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि भारत इस मामले से दूर रह सकता है या सार्वजनिक तौर से चीनी चयन का समर्थन नहीं कर सकता है।

चीन इस मुद्दे को अपनी संप्रभुता (sovereignty) से जोड़कर देख रहा है। उसका मानना है कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनना उसका आंतरिक मामला है। बीजिंग ने पहले ही संकेत दे दिए हैं कि वह तिब्बत में किसी भी तरह के विरोध को बर्दाश्त नहीं करेगा। तिब्बत में पहले भी हिंसक विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं, और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के वेस्टर्न थिएटर कमांड की मजबूत मौजूदगी के चलते वह किसी भी स्थिति को नियंत्रित करने में सक्षम है।

चीन ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह दलाई लामा की संस्था को खत्म करने की कोशिश नहीं करेगा, बल्कि वह अपने चुने हुए उत्तराधिकारी को वैधता देने की कोशिश करेगा। अगर दोहरे उत्तराधिकार की स्थिति बनती है, यानी एक दलाई लामा भारत और तिब्बती समुदाय द्वारा चुना जाए और दूसरा चीन द्वारा, तो यह स्थिति और जटिल हो सकती है।

Dalai Lama Succession: India Treads Cautiously Amid China Tensions
Panchen Lama visits Jokhang Temple in Lhasa

तिब्बत में पंचेन लामा, कर सकते हैं बड़ा एलान

हालांकि चीन इस ऐलान पर पहले ही नजर रख रहा है। इसी साल 6 जून 2025 को बीजिंग में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पंचेन लामा (ग्यालत्सेन नोरबू) की मुलाकात हुई थी। यह मुलाकात दलाई लामा के 90वें जन्मदिन (6 जुलाई 2025) से ठीक एक महीने पहले हुई, जिसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मुलाकात के दौरान पंचेन लामा ने सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के प्रति अपनी निष्ठा दोहराई। चीन ने 1995 में 11वें पंचेन लामा के रूप में नियुक्त किया था। शी जिनपिंग ने पंचेन लामा से तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में जातीय एकता, धार्मिक सौहार्द, स्थिरता, विकास और प्रगति को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने का आग्रह किया। शी जिनपिंग ने पंचेन लामा से तिब्बती बौद्ध धर्म के “चीनीकरण” को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयास करने को कहा। यह चीन की उस नीति का हिस्सा है, जो 2012 से सभी धर्मों (बौद्ध धर्म और इस्लाम सहित) को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मार्गदर्शन में लाने की कोशिश कर रही है।

Panchen Lama visits Jokhang Temple in Lhasa

ग्यालत्सेन नोरबू को चीन ने 1995 में 5 साल की उम्र में पंचेन लामा नियुक्त किया था, जबकि दलाई लामा द्वारा चुने गए पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा को उसी समय चीन ने गायब कर दिया था। गेधुन अभी तक लापता हैं, और उन्हें दुनिया का सबसे कम उम्र का राजनीतिक बंदी माना जाता है। पंचेन लामा तिब्बती बौद्ध धर्म की गेलुग परंपरा में दलाई लामा के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक नेता हैं। पंचेन लामा को बुद्ध के ज्ञान (प्रज्ञा) के अवतार अमिताभ बुद्ध का रूप माना जाता है, जबकि दलाई लामा को करुणा के अवतार अवलोकितेश्वर का रूप माना जाता है।

वहीं खास बात यह रही कि दलाई लामा के इस एलान के दौरान पंचेन लामा ने 1 जुलाई 2025 को पंचेन लामा ग्यालत्सेन नोरबू (एरदनी चोस-क्यी ग्याल-पो) ने दक्षिण-पश्चिम चीन के तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (Xizang Autonomous Region) की राजधानी ल्हासा स्थित जोखांग टेंपल का दौरा किया। यह मंदिर तिब्बती बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है और लाखों बौद्ध श्रद्धालु इसे तीर्थ के रूप में देखते हैं। वहीं पंचेन लामा की इस यात्रा के चीन की तरफ से आधिकारिक फोटो भी जारी किए। सूत्रों ने बताया कि चीन जल्द ही पंचेन लामा के जरिए दलाई लामा के पुनर्जन्म को लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी करवा सकता है। चीन यह दिखाना चाहता है कि वह तिब्बती बौद्ध धर्म की परंपराओं को “संविधान और कानून” के दायरे में रखते हुए आगे बढ़ा रहा है।

तिब्बती समुदाय को भारत से है उम्मीद

धर्मशाला में रहने वाले तिब्बती समुदाय और दुनिया भर में फैले तिब्बती बौद्ध अनुयायी इस मुद्दे को लेकर बहुत उम्मीदों के साथ भारत की ओर देख रहे हैं। 6 जुलाई को दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के मौके पर धर्मशाला में एक बड़ा आयोजन होने वाला है, जिसमें धार्मिक अनुयायी, कलाकार, और विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इस आयोजन को दुनिया भर के तिब्बती बौद्ध अनुयायी भी उत्साह के साथ देखेंगे।

तिब्बती समुदाय का मानना है कि भारत को उनकी धार्मिक स्वतंत्रता और परंपराओं का समर्थन करना चाहिए। कई तिब्बती नेताओं ने भारत सरकार से अपील की है कि वह दलाई लामा के ट्रस्ट द्वारा चुने गए उत्तराधिकारी को मान्यता दे और चीन के किसी भी हस्तक्षेप को खारिज करे।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी है नजर

इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी नजर है। अमेरिका ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन को एक धार्मिक मामला मानता है, जिसमें किसी भी सरकार की भूमिका नहीं होनी चाहिए। 2019 में, अमेरिका ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाने की धमकी दी थी, और उसने तिब्बती स्वायत्तता और धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करने की बात कही थी।

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हालांकि, भारत ने इस मुद्दे पर अमेरिका की तरह खुलकर कोई रुख नहीं अपनाया है। भारत की नीति हमेशा से संतुलित रही है, और वह इस बार भी सावधानी के साथ आगे बढ़ना चाहता है। भारत का मानना है कि यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा है, लेकिन वह इसे राजनीतिक रंग देने से बचना चाहता है।

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