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📍नई दिल्ली | 7 months ago

China in Doklam: चीन और भारत के बीच सीमा विवादों का इतिहास लंबा और जटिल है। हाल ही में, चीन ने भूटान की सीमा में नई बस्तियां बसाकर एक बार फिर से क्षेत्रीय विवाद को तूल दे दिया है। खास बात यह है कि यह विवाद उस समय सामने आया है जब बीजिंग में आज स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव स्तर की वार्ता होनी है। इस वार्ता में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजील डोवाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच मुलाकात होनी है। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य भारत-चीन सीमा पर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) को लेकर चल रही तनावपूर्ण स्थिति को सुलझाना है। इस वार्ता की सहमति प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कज़ान बैठक के दौरान हुई थी। यह वार्ता 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद पहली बार हो रही है, और पिछले पांच वर्षों में पहली ऐसी बैठक होगी।

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China in Doklam: इस साल अक्तूबर में हुआ था खुलासा

हालांकि गांव बसाने को लेकर जो खुलासा हाल ही में हुआ है, वह नया नहीं है। इससे पहले इसी साल अक्टूबर 2024 में तिब्बती विश्लेषकों के नेटवर्क टरकोइस रूफ (Turquoise Roof) की तरफ से एक रिपोर्ट जारी हुई थी, जिसमें बताया गया था कि चीन ने भूटान की सीमा में 22 गांव बसा लिए हैं। चीन के इन 22 गांवों में से 19 पूर्ण रूप से रिहायशी गांव हैं, जबकि तीन कम बसावट वाले क्षेत्र हैं। इन्हें बाद में छोटे शहरों में बदला जाएगा। वहीं इन 22 गांवों में से सात में निर्माण कार्य शुरू होने का खुलासा 2023 की शुरुआत में हो गया था।

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इन गावों में 752 रिहायशी ब्लॉक बनाए गए हैं, जिनमें 2284 परिवारों को बसाने की योजना है। इसके अलावा, अधिकारियों, निर्माण कर्मियों, सीमा पुलिस और सैन्यकर्मियों समेत 7000 लोगों को इन गांवों में बसाया जा रहा है। इन गांवों को बनाने के लिए चीन ने भूटान का करीब 825 वर्ग किमी इलाका कब्जा किया है। वहीं, ये गांव काफी ढलान वाली इलाके और ऊंची घाटी वाले क्षेत्रों में बनाए गए हैं, जिसकी समुद्र से ऊंचाई 3832 मीटर तक है। चीन का बसाया सबसे ऊंचा गांव मेनचुमा समुद्री से करीब 4670 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

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China in Doklam: डोकलाम का महत्व

सैटेलाइट डेटा के मुताबिक, इनमें से आठ गांव डोकलाम पठार के करीब 2020 के बाद से बनाए गए हैं। इन बस्तियों की रणनीतिक स्थिति भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि ये भारत के “सिलीगुड़ी कॉरिडोर” के पास स्थित हैं। टरकोइस रूफ की रिपोर्ट के अनुसार, चीन भूटान पर दबाव डाल रहा है कि वह पूर्वोत्तर क्षेत्रों को अपने पास रखे और डोकलाम पठार चीन को सौंप दे। 1990 के दशक में चीन ने भूटान को ऐसा प्रस्ताव दिया था, लेकिन भूटान ने इसे खारिज कर दिया था। वहीं, चीन की इन गतिविधियों का सीधा असर भारत पर पड़ सकता है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निगरानी और भूटान को चीन के प्रभाव से बचाने के लिए भारत को ठोस रणनीति अपनानी होगी। 2017 में भारत और चीन के बीच हुए डोकलाम गतिरोध के बाद से चीन ने अपनी निर्माण गतिविधियों को और तेज कर दिया है।

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पूर्व भारतीय राजदूत अशोक कंठा ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “चीन की यह कार्रवाई 1998 में भूटान और चीन के बीच हुए शांति समझौते का उल्लंघन है। यह समझौता सीमा विवाद सुलझने तक यथास्थिति बनाए रखने की बात करता है।”

डोकलाम वही क्षेत्र है, जहां 2017 में भारत और चीन के बीच 73 दिनों का सैन्य गतिरोध हुआ था। भारत ने उस समय चीन को सड़क निर्माण से रोक दिया था, क्योंकि यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है।

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रिसर्चर रॉबर्ट बार्नेट ने कहा, “चीन ने डोकलाम और आसपास के क्षेत्रों में रणनीतिक दबाव बनाकर भूटान को भारत से दूर करने की कोशिश की है। भूटान, जो भारत की सुरक्षा चिंताओं को समझता है, अब इस विवाद को त्रिपक्षीय समाधान की दिशा में ले जाने की बात कर रहा है।”

भारत-भूटान संबंधों की परीक्षा

भूटान में भारत की सैन्य उपस्थिति, भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दल (IMTRAT), 1963 से है। लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने इन संबंधों को एक नई चुनौती दी है। रक्षा विशेषज्ञ प्रवीण साहनी ने कहा, “यदि भारत अपनी जमीन पर चीन के सैनिकों को हटाने में विफल रहा है, तो भूटान भारत से मदद की उम्मीद क्यों करेगा?” उनका कहा है कि चीन ने भूटान के 800 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दल (IMTRAT) यानी Indian Military Training Team भूटान की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए जिम्मेदार है, लेकिन अगर भारत अपनी ही जमीन से PLA को हटाने में असफल रहा है, तो भूटान भारत से मदद की उम्मीद क्यों करेगा? भूटान जल्द ही चीन के साथ अपना सीमा विवाद सुलझा लेगा, और हम IMTRAT को भूटान से वापस आते देखेंगे। यह 1963 से वहां तैनात है, लेकिन अब यह इतिहास बन सकता है।”

सीमा पर हालात और भारतीय प्रतिक्रिया

भारत और चीन के बीच अप्रैल 2020 से लद्दाख में सैन्य गतिरोध चल रहा है। हाल ही में, 21 अक्टूबर को दोनों देशों ने डेमचोक और डेपसांग जैसे विवादित क्षेत्रों से सेना हटाने पर सहमति जताई। इसके दो दिन बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मुलाकात की और सीमा विवाद पर चर्चा की।

हालांकि, रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने कहा, “24 अक्टूबर को मोदी-शी के बीच हुई बातचीत के बावजूद भारत-तिब्बत सीमा पर हालात सामान्य नहीं हैं। अभी भी 1,20,000 चीनी सैनिक लद्दाख से अरुणाचल तक तैनात हैं। इस सैन्य गतिरोध को समाप्त करने के लिए आज विशेष प्रतिनिधियों की बैठक हुई।

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पूर्वी लद्दाख में भारतीय क्षेत्र पर बनाए गए बफर ज़ोन और नो-पैट्रोलिंग क्षेत्रों ने स्थिति को सामान्य करने की चुनौती को और जटिल बना दिया है। जब तक इन अस्थायी उपायों को समाप्त नहीं किया जाता और चीनी सैनिक कब्जाए गए क्षेत्रों से पीछे नहीं हटते, भारतीय सीमा बल अपने पारंपरिक गश्त क्षेत्रों में वापस नहीं जा पाएंगे।

चीन की बस्तियों का रणनीतिक मकसद

चीन की ओर से बनाई गई बस्तियां केवल स्थानीय लोगों के पुनर्वास के लिए नहीं हैं। ये बस्तियां सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं और चीन की “तथ्य बदलने की नीति” का हिस्सा हैं।

अशोक कंठा ने कहा, “यह वही तरीका है, जैसा चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप बनाकर अपनाया था। चीन धीरे-धीरे भौगोलिक तथ्यों को बदलकर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है।”

भारत के लिए भविष्य की चुनौती

रिपोर्ट्स में कहा गया है कि भूटान अब चीन को थिंपू में दूतावास खोलने की अनुमति दे सकता है। यह कदम भूटान और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देगा।

रॉबर्ट बार्नेट ने कहा, “भविष्य में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत और चीन में से कौन भूटान को अधिक लाभ पहुंचाकर अपने पक्ष में कर सकता है।”

चीन का बयान

चीन के भारत में राजदूत जू फेइहोंग ने कहा, “चीन भारत के साथ मतभेदों को ईमानदारी और सद्भावना के साथ सुलझाने और द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर और स्वस्थ दिशा में ले जाने के लिए काम करने को तैयार है।”

इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि चीन अपनी क्षेत्रीय शक्ति को बढ़ाने और अपने पड़ोसियों पर दबाव डालने की नीति जारी रखे हुए है। भारत के लिए यह समय है कि वह न केवल भूटान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करे, बल्कि अपनी सीमा सुरक्षा और सामरिक योजनाओं को भी और सुदृढ़ बनाए।

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