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थ्री ब्रदर्स अलायंस की शुरुआत 2021 में हुई, जब पाकिस्तान, तुर्किए और अजरबैजान के नेताओं ने अजरबैजान की राजधानी बाकू में एक अहम शिखर सम्मेलन आयोजित किया। इस बैठक में तीनों देशों ने फैसला लिया कि वे अपने राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य रिश्तों को मजबूत करेंगे। इस गठजोड़ का नाम "थ्री ब्रदर्स अलायंस" पड़ा, क्योंकि ये तीनों देश एक-दूसरे को भाई की तरह देखते हैं...
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📍नई दिल्ली | 2 months ago

Three Brothers Alliance: ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान, तुर्किए और अजरबैजान के नापाक गठबंधन का खुलासा हुआ है। जिसके बाद भारत में तुर्किए और अजरबैजान को लेकर विरोध शुरू हो गया है। पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई में तुर्किए का नाम सामने के बाद भारत के कई विश्वविद्यालयों ने वहां की यूनिवर्सिटीज के साथ संबंध तोड़ लिए हैं। इसके अलावा तुर्किए की एविएशन कंपनी सेलेबी से भारत सरकार ने सिक्योरिटी क्लीयरेंस वापस ले लिया है। यह कंपनी दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, कोचिन, अहमदाबाद, गोवा, और कन्नूर जैसे नौ प्रमुख हवाई अड्डों पर ग्राउंड हैंडलिंग और कार्गो संचालन का काम देखती है। साथ ही कई भारतीय सोशल मीडिया यूजर्स ने तुर्किए की यात्रा और वहां के उत्पादों का बहिष्कार करने की अपील की है। मेकमायट्रिप और ईजमायट्रिप जैसी ऑनलाइन ट्रैवल कंपनियों ने बताया कि तुर्किए जाने की बुकिंग्स में भारी गिरावट आई है। वहीं अजरबैजान की बुकिंग्स भी रद्द की गई हैं। तीनों देशों का यह गठबंधन भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है।

Three Brothers Alliance: क्या है और कैसे बना?

थ्री ब्रदर्स अलायंस (Three Brothers Alliance) की शुरुआत 2021 में हुई, जब पाकिस्तान, तुर्किए और अजरबैजान के नेताओं ने अजरबैजान की राजधानी बाकू में एक अहम शिखर सम्मेलन आयोजित किया। इस बैठक में तीनों देशों ने फैसला लिया कि वे अपने राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य रिश्तों को मजबूत करेंगे। इस गठजोड़ का नाम “थ्री ब्रदर्स अलायंस” पड़ा, क्योंकि ये तीनों देश एक-दूसरे को भाई की तरह देखते हैं। इनके बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्ते भी हैं। तुर्किए और अजरबैजान की जड़ें तुर्किक संस्कृति से जुड़ी हैं, वहीं तीनों देश इस्लामिक बहुल हैं।

इस गठबंधन (Three Brothers Alliance) का मुख्य मकसद है कि ये तीनों देश एक-दूसरे के हितों को बढ़ावा दें। मसलन, अगर पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे पर समर्थन चाहिए, तो तुर्किए और अजरबैजान उसकी मदद करेंगे। इसी तरह, अगर अजरबैजान को नागोर्नो-कराबाख विवाद में समर्थन चाहिए, तो पाकिस्तान और तुर्किए उसका साथ देंगे। तुर्किए भी उत्तरी साइप्रस के अपने विवाद में इन दोनों देशों का समर्थन लेता है।

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भारत के लिए क्यों बन गया है खतरा?

हाल ही में पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव फिर से बढ़ गया। पिछले महीने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ, जिसमें 36 लोग मारे गए और 57 घायल हो गए। भारत ने इसका जवाब ऑपरेशन सिंदूर से दिया औऱ पाकिस्तान को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दियाा। इस दौरान तुर्किए और अजरबैजान ने खुलकर पाकिस्तान (Three Brothers Alliance) का समर्थन किया। तुर्किए ने तो पाकिस्तान को ड्रोन तक दिए, जिनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया गया। इन ड्रोनों में तुर्किए का मशहूर बायकर बायरक्तर, और एसिसगार्ड सॉन्गर ड्रोन भी शामिल था।

1971 के बाद यह पहली बार था जब भारत और पाकिस्तान (Three Brothers Alliance) के इतने जबरदस्त हमले देखे गए। भारत ने कहा कि पाकिस्तानी गोलाबारी में उसके 16 नागरिक मारे गए, वहीं भारत ने इन हमलों को पहलगाम आतंकी हमले का जवाब बताया। लेकिन पाकिस्तान ने आतंकी हमले में अपनी किसी भी भूमिका से इनकार किया। इस तनाव के बीच थ्री ब्रदर्स अलायंस ने भारत के खिलाफ एकजुटता दिखाई, जिससे भारत को चिंतित होना लाजिमी था।

यह गठबंधन (Three Brothers Alliance) भारत के लिए एक बड़ी टेंशन के तौर पर उभर रहा है। खासकर 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर तुर्किए ने संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर बार-बार इस मसले को उठाया, औऱ पाकिस्तान का साथ दिया। जिससे भारत की नाराजगी बढ़ी। वहीं, अजरबैजान ने भी पाकिस्तान के कश्मीर रुख का समर्थन किया। इसके अलावा, तुर्किए और अजरबैजान ने पाकिस्तान को सैन्य मदद दी, जैसे ड्रोन, क्रूज मिसाइल और अन्य हथियार, जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा बढ़ गया।

इस गठबंधन के पीछे तुर्किए की क्या भूमिका है?

इस गठबंधन की शुरुआत तुर्किए ने की ही थी। तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन अपने देश का प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं। वे इस्लामिक और तुर्किक देशों के साथ गठजोड़ (Three Brothers Alliance) करके अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं। तुर्किए और अजरबैजान के बीच तुर्किक सांस्कृतिक रिश्ते बहुत पुराने हैं। 2020 में जब अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच नागोर्नो-कराबाख को लेकर युद्ध हुआ, तब तुर्किए ने अजरबैजान को सैन्य मदद दी। इस मदद की वजह से अजरबैजान ने आर्मेनिया को हरा दिया। पाकिस्तान ने भी इस युद्ध में अजरबैजान का साथ दिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ पाकिस्तानी भाड़े के सैनिकों ने अजरबैजान की तरफ से लड़ाई भी लड़ी। इस जीत के बाद इन तीनों देशों ने अपने रिश्तों को और मजबूत किया और थ्री ब्रदर्स अलायंस बनाया।

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भारत ने तेज की अपनी कूटनीति

भारत ने इस गठबंधन (Three Brothers Alliance) का मुकाबला करने के लिए अपनी कूटनीति को तेज कर दिया है। भारत ने उन देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत किए हैं, जो इस गठबंधन से परेशान हैं। इनमें आर्मेनिया, ईरान, साइप्रस और ग्रीस जैसे देश शामिल हैं। आर्मेनिया के साथ भारत ने सैन्य सहयोग बढ़ाया है। भारत ने आर्मेनिया को हथियार-स्थान रडार, तोपखाने और रॉकेट लांचर जैसे उपकरण बेचे हैं। जेम्सटाउन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में भारत और आर्मेनिया के बीच 2 बिलियन डॉलर का रक्षा समझौता हुआ था, जिसके बाद आर्मेनिया भारत से सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाला देश बन गया।

लेकिन इससे अजरबैजान नाराज हो गया। अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने पिछले साल भारत से आर्मेनिया को हथियार देना बंद करने की मांग की थी। ऑपरेशन सिंदूर के बाद जब भारत में अजरबैजान का विरोध शुरू हुआ तो गुरुवार सुबह 10 बजे, अजरबैजान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर भारत से आर्मेनिया को हथियारों की आपूर्ति बंद करने की मांग की। हालांकि यह पहली बार नहीं हुआ है, पिछले साल अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने भी भारत से ऐसा ही अनुरोध किया था, लेकिन भारत ने इसे ठुकरा दिया था।

वहीं गुरुवार को भी अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच तनाव की खबरें आईं। नागोर्नो-कराबाख क्षेत्र में आज सुबह दोनों देशों की सेनाओं के बीच हल्की झड़प हुई, जिसमें किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है। अजरबैजान ने आर्मेनिया पर सीमा उल्लंघन का आरोप लगाया था, वहीं, आर्मेनिया ने इसे खारिज कर दिया।

ईरान भी इस गठबंधन से चिंतित

थ्री ब्रदर्स अलायंस (Three Brothers Alliance) से केवल भारत ही नहीं ईरान भी इस गठबंधन से चिंतित है। ईरान में लाखों अजरी लोग रहते हैं, जो सांस्कृतिक रूप से अजरबैजान से जुड़े हैं। ईरान को डर है कि अजरबैजान इन रिश्तों का इस्तेमाल अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा देने के लिए कर सकता है। भारत ने ईरान के साथ मिलकर इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनाने की बात कही है, जो भारत को ईरान और आर्मेनिया के रास्ते यूरोप से जोड़ता है। इससे भारत की रणनीतिक स्थिति मजबूत हुई है।

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भारत ने साइप्रस और ग्रीस के साथ भी अपने कूटनीतिक रिश्ते मजबूत किए हैं। साइप्रस का तुर्किए के साथ उत्तरी साइप्रस को लेकर पुराना विवाद है। भारत ने साइप्रस का समर्थन किया, और बदले में साइप्रस ने भारत के कूटनीतिक मुद्दों का साथ दिया है।

तुर्किए-अजरबैजान का बॉयकॉट

हाल के दिनों में भारत के तुर्किए और अजरबैजान (Three Brothers Alliance) के साथ रिश्ते और खराब हुए हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने एक तुर्किए विश्वविद्यालय के साथ अपना शैक्षणिक समझौता भी रद्द कर दिया है। वहीं, जामिया यूनिवर्सिटी ने भी ऐसा ही कदम उठाया है। भारतीय पर्यटक भी तुर्किए और अजरबैजान का बहिष्कार कर रहे हैं।

पश्चिमी एशिया (मिडिल ईस्ट) मामलों के जानकार और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) में डिप्टी डायरेक्टर और फैलो कबीर तनेजा का कहना है, “यह गठबंधन (Three Brothers Alliance) भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा नहीं है। यह भारत के लिए एक स्थानीय समस्या तो है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह ज्यादा प्रभावशाली नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि तुर्किए और अजरबैजान ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में ज्यादा निवेश नहीं किया है, जिससे इस गठबंधन की ताकत सीमित है।”

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विशेषज्ञों का कहना है कि अगर थ्री ब्रदर्स अलायंस अपने सैन्य और कूटनीतिक सहयोग को और बढ़ाता है, तो यह भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। वहीं, भारत इसके लिए पहले से ही तैयारियों में जुटा हुआ है। वह अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ा रहा है और नए गठबंधनों को मजबूत कर रहा है। रूस का इस क्षेत्र में प्रभाव कम होना भी भारत के लिए एक मौका है, क्योंकि आर्मेनिया जैसे देश अब रूस की जगह भारत की ओर देख रहे हैं।

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