📍नई दिल्ली | 11 Jun, 2025, 1:07 PM
Women in Indian Armed Forces: 7 से 10 मई तक चले ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को इस मिशन का चेहरा बनाया गया। पूरे देश ने उनकी काबिलियत की सराहना की। वहीं 9 मई को लेफ्टिनेंट कमांडर यशस्वी सोलंकी (27) को भारत के राष्ट्रपति की पहली महिला एड-डी-कैंप (ADC) बनने का गौरव प्राप्त किया। ये नियुक्तियां बताती हैं कि भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिका लगातार बढ़ रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 11 सालों में भारत ने नारी शक्ति को सशक्त बनाने की दिशा में कई ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। खास तौर पर रक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए सरकार ने कई नीतिगत बदलाव किए, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं की संख्या में लगभग तीन गुना बढ़ोतरी हुई है।
2014 में जहां सशस्त्र बलों में लगभग 3,000 महिला अधिकारी थीं, वहीं आज यह संख्या बढ़कर 11,000 से अधिक हो गई है। एक दशक पहले तक जिन क्षेत्रों में महिलाओं की मौजूदगी सीमित थी, वहीं अब वे स्थायी कमीशन से लेकर नेशनल डिफेंस अकादमी (NDA) जैसे संस्थानों में अपनी जगह बना चुकी हैं। मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने पर केंद्र ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें नारी सशक्तिकरण का विशेष तौर पर उल्लेख किया गया है। खासतौर पर सेना में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को इस रिपोर्ट में महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में दर्शाया गया है।
Women in Indian Armed Forces: 2014 में सिर्फ 3,000 महिला अधिकारी, अब 11,000 के पार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद से रक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए। सरकार ने अपने 11 साल के कार्यकाल के अवसर पर जारी एक बयान में कहा, “पिछले 11 वर्षों में महिलाएं भारत के रक्षा बलों में केंद्र में रही हैं। 2014 में तीनों सेनाओं में केवल 3,000 महिला अधिकारी थीं, लेकिन आज यह संख्या 11,000 से अधिक हो गई है। यह बदलाव नीतियों और सोच में आए परिवर्तन का स्पष्ट प्रमाण है।”
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An Indian Army contingent has reached Ulaanbaatar, Mongolia to take part in Multinational Military Exercise #KhaanQuest, scheduled from 14–28 June 2025. Represented by troops from the Kumaon Regiment, including 1 Woman Officer and 2 Women… pic.twitter.com/MNdZDmXPxp— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) June 11, 2025
हालांकि, यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि 2014-15 के आंकड़ों में महिला डॉक्टर, डेंटिस्ट और नर्स शामिल नहीं थीं, जबकि नवीनतम आंकड़ों में इन्हें शामिल किया गया है। फिर भी, यह बढ़ोतरी महिलाओं की सेना में बढ़ती भागीदारी को दर्शाती है।
स्थायी कमीशन से खुला नेतृत्व का रास्ता
मोदी सरकार ने महिलाओं को सेना में लंबे समय तक सेवा देने और नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाने के अवसर प्रदान करने के लिए कई कदम उठाए। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है 507 महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन (Permanent Commission) दिया गया। जिसके बाद महिलाओं को न केवल लंबी अवधि तक सेना में बने रहने का मौका मिला, बल्कि उन्हें विभिन्न रैंकों और शाखाओं में नेतृत्व करने का अवसर भी मिला।
हालांकि यह बदलाव तब संभव हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि भारतीय सेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) की महिला अधिकारियों को भी स्थायी कमीशन का अधिकार है। सरकार द्वारा शारीरिक सीमाओं का हवाला देकर की गई दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने “लिंग आधारित रूढ़ियों” (Sex Stereotypes) के तौर पर खारिज कर दिया। इस फैसले ने सेना में महिलाओं के लिए नए रास्ते खोले और उनके करियर को नई दिशा दी।
राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में महिलाओं की एंट्री
2021 में सुप्रीम कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसके तहत महिलाओं को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में प्रवेश की अनुमति दी गई। कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद, 30 मई 2025 को एनडीए के 148वें कोर्स से 17 महिलाओं का पहला बैच ग्रेजुएट हुआ। 2021 के बाद से अब तक कुल 126 महिला कैडेट्स को एनडीए में शामिल किया गया है। यह दिन देश की सैन्य शिक्षा और लैंगिक समानता की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ।
सरकार ने अपने बयान में कहा, “यह बदलाव रक्षा क्षेत्रों में महिलाओं के व्यापक एकीकरण को दर्शाता है, चाहे वह युद्ध सहायता हो या फाइटर जेट उड़ाना। यह इस विश्वास को रेखांकित करता है कि शक्ति और सेवा लिंग से परे हैं।”
महिलाएं अब फाइटर पायलट भी, युद्धक मोर्चों पर भी तैनात
पिछले एक दशक में, भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका केवल संख्या तक सीमित नहीं रही। सरकार ने नीतिगत बदलावों के माध्यम से महिलाओं को उन क्षेत्रों में भी अवसर प्रदान किए, जो पहले पुरुषों के लिए आरक्षित माने जाते थे। उदाहरण के लिए, महिलाएं अब न केवल युद्ध सहायता भूमिकाओं में, बल्कि फाइटर पायलट, नौसेना के युद्धपोतों पर तैनाती और अन्य तकनीकी क्षेत्रों में भी सक्रिय हैं।
जहां पहले महिलाएं केवल सपोर्ट सर्विसेज में दिखती थीं, वहीं अब वे फ्रंटलाइन की भूमिकाएं भी निभा रही हैं। वायुसेना में महिलाएं अब फाइटर जेट्स उड़ा रही हैं और सेना में वे इन्फैंट्री व इंजीनियरिंग कोर जैसी शाखाओं में शामिल हो रही हैं। नौसेना में भी महिला अधिकारियों को युद्धपोतों पर तैनाती दी जा रही है।
2016 में, भारतीय वायुसेना ने पहली बार तीन महिला फाइटर पायलटों को कमीशन किया। इनमें अवनी चतुर्वेदी, भावना कंठ और मोहना सिंह शामिल थीं, जिन्होंने न केवल देश में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी सुर्खियां बटोरीं। इसके बाद, कई अन्य महिलाओं ने इस क्षेत्र में कदम रखा और आज भारतीय वायुसेना में महिला पायलटों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
नौसेना में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। 2020 में, नौसेना ने पहली बार दो महिला अधिकारियों को युद्धपोतों पर तैनात किया। इसके अलावा, महिलाएं अब नौसेना के हेलिकॉप्टर पायलट के रूप में भी सेवा दे रही हैं। सेना में, महिलाएं सैन्य पुलिस में शामिल हुई हैं और सीमा पर तैनात इकाइयों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रही हैं।
सैनिक स्कूलों से लेकर अग्निवीर बन रहीं महिलाएं
सरकार ने सैनिक स्कूलों में भी लड़कियों के दाखिले की अनुमति दी है। अब देशभर के 33 सैनिक स्कूलों में छात्राएं पढ़ाई कर रही हैं। इससे भविष्य में NDA और सेना की अन्य शाखाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी और बढ़ेगी।
अग्निपथ योजना के तहत भी महिलाओं की भर्ती को बढ़ावा दिया जा रहा है। थलसेना, वायुसेना और नौसेना में ‘अग्निवीर’ के तौर पर महिला अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है और फील्ड में तैनात किया जा रहा है।
युद्धपोतों पर महिलाओं की तैनाती
भारतीय नौसेना में भी बदलाव की लहर देखने को मिली है। पहले महिलाओं की तैनाती केवल किनारे (shore-based postings) तक सीमित थी। लेकिन अब INS विक्रांत जैसे विमान वाहक पोत पर भी महिला अधिकारी तैनात की जा रही हैं। यह न केवल साहसिक है बल्कि तकनीकी दृष्टिकोण से भी महिला अधिकारियों की क्षमताओं पर भरोसा जताने का प्रतीक है।
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण और कल्याण योजनाओं में भागीदारी
महिलाओं को अब Armed Forces Tribunal (AFT) जैसे संस्थानों में भी प्रतिनिधित्व मिलने लगा है। इसके अलावा महिला अधिकारियों को प्रशासनिक निर्णय लेने वाली समितियों में भी शामिल किया जा रहा है।
सरकार की कई योजनाएं जैसे कि Ex-Servicemen Welfare Schemes, जिसमें युद्ध विधवाओं और शहीदों की पत्नियों को सम्मान और सहायता दी जाती है, उसमें भी महिला सैनिकों की भूमिका उभर कर सामने आई है।
DRDO, HAL, और रक्षा उद्योग में महिलाओं की सक्रिय भूमिका
यह बात केवल वर्दीधारी सैनिकों तक सीमित नहीं है। DRDO, HAL और अन्य रक्षा अनुसंधान एवं उत्पादन संस्थानों में भी महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ी है। महिला वैज्ञानिक अब स्वदेशी मिसाइल, युद्धक ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित सिस्टम्स पर काम कर रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भारत की बेटियां
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन (UN Peacekeeping Missions) में भी भारत की महिला सैनिकों की उपस्थिति अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश की साख बढ़ा रही है। भारत ने कई बार महिला फोर्स कंटिंजेंट्स को UN मिशन में भेजा है, जो संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में सेवा देते हुए मानवता की मिसाल पेश कर रही हैं।
सरकार ने किए कई नीतिगत बदलाव
महिलाओं को सशस्त्र बलों में शामिल करने के लिए सरकार ने कई नीतिगत बदलाव किए। इनमें भर्ती प्रक्रिया में सुधार, प्रशिक्षण कार्यक्रमों में लैंगिक समानता और कार्यस्थल पर बेहतर सुविधाएं शामिल हैं। उदाहरण के लिए, सेना ने महिलाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित किए हैं, जो उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए हैं।
इन नीतिगत बदलावों का प्रभाव न केवल सेना तक सीमित है, बल्कि समाज में भी देखा जा सकता है। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने युवा लड़कियों को प्रेरित किया है कि वे रक्षा क्षेत्र में करियर बनाने के बारे में सोचें। स्कूलों और कॉलेजों में आयोजित होने वाले जागरूकता कार्यक्रमों ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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