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📍नई दिल्ली | 19 Dec, 2024, 2:02 PM

India-China Talks: चीन ने हाल ही में बीजिंग में हुई 23वीं भारत-चीन विशेष प्रतिनिधि वार्ता के बाद दावा किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए “छह बिंदुओं पर सहमति” बनाई है। चीन ने इस वार्ता में 2005 के समझौते का हवाला दिया, जिसमें सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करने की बात की गई थी।

India-China Talks: What is the 2005 Agreement China Sticks To, and Why India Disagrees?

हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने चीन के इस दावे का कोई उल्लेख नहीं किया। भारतीय बयान में “छह बिंदुओं पर सहमति” का जिक्र नहीं किया गया।

India-China Talks: चीन का दावा और भारत की चुप्पी

चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्षों ने सीमा विवाद का “उचित समाधान” खोजने के लिए 2005 के राजनीतिक मार्गदर्शक सिद्धांतों के तहत बातचीत जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई है।

हालांकि, भारतीय सूत्रों का कहना है कि 2005 के समझौते का बार-बार उल्लेख करना चीन की रणनीति है, क्योंकि इसमें सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करने की बात कही गई थी, जिसे भारत स्वीकार नहीं कर रहा है।

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2005 का समझौता: क्या कहता है?

2005 में दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता हुआ था। यह समझौता भारत और चीन के बीच दीर्घकालिक साझेदारी को बढ़ाने और सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने के लिए किया गया था।

समझौते के मुख्य बिंदु इस प्रकार थे:

  1. सीमा विवाद को शांतिपूर्ण और मित्रतापूर्ण बातचीत के माध्यम से हल किया जाएगा।
  2. सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित नहीं करने दिया जाएगा।
  3. दोनों पक्ष सीमा के अंतिम समाधान तक वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का सम्मान करेंगे।
  4. सीमा का निर्धारण प्राकृतिक भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर किया जाएगा, जो दोनों पक्षों द्वारा सहमति से तय किया जाएगा।
  5. समझौते के तहत, दोनों पक्ष सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए काम करेंगे।

चीन के 2005 समझौते की ओर लौटने की वजह

सूत्रों के अनुसार, चीन ने 2005 के समझौते का उल्लेख इसलिए किया क्योंकि यह सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करने की बात करता है। चीन हाल के वर्षों में इस पर जोर दे रहा है, लेकिन भारत ने इसे स्वीकार नहीं किया है।

भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि 2020 के पहले की स्थिति बहाल किए बिना द्विपक्षीय संबंध सामान्य नहीं हो सकते। इसका अर्थ है कि जब तक चीन अग्रिम क्षेत्रों से अपने सैनिक वापस नहीं बुलाता, तब तक संबंधों में प्रगति संभव नहीं।

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India-China Talks: समझौते का उल्लंघन और विवाद

2005 के बाद चीन ने कई बार इस समझौते का उल्लंघन किया। रक्षा और सुरक्षा से जुड़े भारतीय सूत्रों का कहना है कि प्रत्येक चीनी घुसपैठ, भले ही वह अस्थायी हो, इस समझौते का उल्लंघन थी।

2013 के देपसांग विवाद, 2017 के डोकलाम गतिरोध और 2020 के गलवान संघर्ष में चीनी घुसपैठ को इस समझौते के उल्लंघन के रूप में देखा गया।

सीमा पर शांति बनाए रखने की प्रतिबद्धता

समझौते में यह भी कहा गया कि अंतिम सीमा समाधान होने तक, दोनों पक्षों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का सम्मान और पालन करना चाहिए।

समझौते के तहत दोनों देशों के बीच 1993 और 1996 के समझौतों के आधार पर सीमा क्षेत्रों में विश्वास निर्माण उपायों को लागू करने और LAC की स्पष्टता सुनिश्चित करने का प्रावधान था।

अक्साई चिन और अरुणाचल पर मतभेद

समझौते में कहा गया था कि दोनों पक्ष सीमा विवाद का “पैकेज समाधान” खोजने के लिए अपने-अपने रुख में बदलाव करेंगे। भारत अक्साई चिन पर दावा करता है, जबकि चीन अरुणाचल प्रदेश, विशेष रूप से तवांग क्षेत्र, पर अपना अधिकार जताता है।

भारतीय पक्ष ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि चीन को 2020 से पहले की स्थिति में वापस जाना चाहिए, जबकि चीन सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करना चाहता है।

चीन की  बुनियादी ढांचे पर आपत्ति

भारतीय रणनीति के तहत 2009 से पूर्वी लद्दाख में बुनियादी ढांचे का निर्माण तेज किया गया। यह गति मोदी सरकार के कार्यकाल में और बढ़ी। चीन इसे 2005 के समझौते का उल्लंघन मानता है।

समझौते में कहा गया कि जब तक सीमा का अंतिम समाधान नहीं हो जाता, दोनों पक्षों को LAC का सम्मान करना चाहिए और शांति बनाए रखनी चाहिए।

नए विवाद की शुरुआत?

हालिया वार्ता में चीन ने 2005 के समझौते का उल्लेख करते हुए कहा कि दोनों पक्षों को सीमा विवाद पर “उचित समाधान” खोजने के लिए आपसी समझ और समायोजन करना चाहिए।

हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान में इन दावों का कोई जिक्र नहीं था, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या दोनों देशों के बीच सहमति वास्तव में बनी है या नहीं।

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद लंबे समय से चल रहा है। 2005 का समझौता इस विवाद को सुलझाने का एक आधार हो सकता था, लेकिन दोनों पक्षों के अलग-अलग दृष्टिकोण और दावों ने इसे और जटिल बना दिया है।

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