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📍नई दिल्ली | 2 Dec, 2024, 6:23 PM

Autonomous Underwater Vehicles: भारत की नौसेना इस हफ्ते ‘नौसेना दिवस’ मनाने जा रही है, और इस अवसर पर एक बेहद खास और गेम-चेंजिंग इनोवेशन की चर्चा हो रही है — स्वदेशी ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल्स (AUVs)। इन्हें खास तौर पर सागर डिफेंस इंजीनियरिंग ने बनाया है। ये अत्याधुनिक अंडरवाटर ड्रोन, जो ‘इनोवेशन्स फॉर डिफेंस एक्सीलेंस’ (iDEX) पहल के तहत बनाए गए हैं, भारतीय नौसेना की मिशन कैपेबिलिटीज को पूरी तरह से बदलने जा रहे हैं। इन AUVs से नौसेना को माइन क्लीयरेंस, सर्विलांस और रिकॉन्गनाइज़ेंस जैसे महत्वपूर्ण मिशन को अंजाम देने में मदद मिलेगी।

Autonomous Underwater Vehicles: Why These Underwater Drones Are Crucial for the Indian Navy? Undertaking Secret Missions Underwater Without Any Operator

सागर डिफेंस इंजीनियरिंग के सूत्रों ने बताया कि ये AUVs नौसेना की ऑपरेशनल कैपेबिलिटीज में बड़ी बढ़त लेकर आ रहे हैं। इन AUVs को पूरी तरह से ऑटोनॉमस तौर पर काम करने के लिए डिजाइन किया गया है और इनमें अत्याधुनिक सेंसर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और नेविगेशन सिस्टम्स हैं, इन्हें चलाने के लिए किसी मानवीय हस्तक्षेप की जरूरत नहीं पड़ती है। बता दें कि भारतीय नौसेना ने माइन डिटेक्शन जैसे कामों के लिए सागर डिफेंस इंजीनियरिंग को 30 AUVs का ऑर्डर भी दिया है।

सूत्रों ने बताया, “इन AUVs का फायदा यह है कि ये बिना किसी मानव जीवन को खतरे में डाले समुद्र के अंदर मिशन को पूरा कर सकते हैं, साथ ही साथ ऑपरेशनल लागत को भी कम करते हैं। ये प्री-प्रोग्राम्ड रूट्स पर ऑटोनॉमस तरीके से नेविगेट कर सकते हैं, रिकॉन्गनाइज़ेंस कर सकते हैं, और वास्तविक समय में जरूरी डेटा कमांड सेंटर तक भेज सकते हैं, जिससे किसी भी इमरजेंसी हालात में तुरंत तैयारी की जा सकती है।”

इन AUVs का उपयोग विभिन्न प्रकार के मिशन के लिए किया जा सकता है, जैसे माइन काउंटरमेजर्स, पर्यावरण निगरानी, और सर्विलांस। यह उन्हें सैन्य और व्यावसायिक दोनों क्षेत्रों में बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। खास बात यह है कि ये AUVs एक साथ समूहों में काम कर सकते हैं, यानी कई AUVs मिलकर सूचना साझा करते हुए समुद्र की गहराई की मैपिंग और तटीय निगरानी भी कर सकते हैं।

ऑटोनॉमस फीचर होने से AUVs खुद फैसला ले सकते हैं, जिसका इनकी निगरानी की आवश्यकता कम हो जाती है। जिससे ऑपरेटर दूसरे कामों पर फोकस कर सकते हैं, जबकि AUVs बिना ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप के अपने मिशन को अंजाम देते हैं। इससे नौसेना की समुद्र में निगरानी की क्षमता और भी बेहतर हो जाती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है।

इन AUVs का व्यावसायिक क्षेत्र में भी बड़ा उपयोग हो सकता है, खासकर हाइड्रोग्राफिक सर्वे, अंडरवाटर एक्सप्लोरेशन और पर्यावरणीय निगरानी में। सूत्रों का कहना है कि इनका हल्का डिजाइन और एडवांस क्षमताएं इन्हें सैन्य और व्यावसायिक दोनों प्रकार के कार्यों के लिए उपयुक्त बनाती हैं। इन AUVs में AI-चालित सेंसर लगाए गए हैं। जिसके चलते ये AUVs लंबी अवधि के मिशन को बिना निरंतर मानवीय निगरानी के पूरा कर सकते हैं। इसके अलावा, इनकी AI-आधारित सेंसर प्रणाली वास्तविक समय में बेहतर डेटा विश्लेषण करने में मदद करती है, जिससे ऑपरेटरों को कार्रवाई योग्य जानकारी मिलती है और निर्णय लेने की गति बढ़ती है।

वर्तमान में इन AUVs को स्वॉर्म ऑपरेशंस के लिए भी विकसित किया जा रहा है, यानी एक साथ कई यूनिट्स मिलकर काम करेंगे, जिससे मिशन की कार्यक्षमता और कवरेज बढ़ जाएगी। वहीं, भविष्य में, इन AUVs की तकनीक को रक्षा क्षेत्र से बाहर विभिन्न उद्योगों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। हाइड्रोग्राफिक कंपनियां, शोध संस्थान और पर्यावरणीय एजेंसियां इन AUVs का उपयोग समुद्र के तल का मानचित्रण, समुद्री जीवन की निगरानी और प्रदूषण का पता लगाने के लिए कर सकती हैं, जिससे ये सिस्टम बेहद अनुकूलनीय हो जाएंगे।

वहीं, इन AUVs का विकास भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ नौसेना की क्षमताओं को बढ़ाने के बारे में नहीं है, बल्कि यह भारत को वैश्विक मंच पर स्वायत्त रक्षा प्रौद्योगिकियों में एक नेता बनाने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।”

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