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📍नई दिल्ली | 3 months ago

26 Rafale Marine Deal: कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने मंगलवार को भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल मरीन फाइटर जेट्स की खरीद को मंजूरी दे दी। ये अब तक की सबसे बड़ी फाइटर जेट डील है, जिसकी कीमत 63,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है। ये सौदा फ्रांस के साथ सरकार-से-सरकार समझौते (G2G) के तहत होगा।

26 Rafale Marine Deal: India Approves ₹63,000 Cr Contract to Boost INS Vikrant’s Combat Power

26 Rafale Marine Deal: इस डील में क्या-क्या शामिल है?

इस सौदे के तहत नौसेना को 22 सिंगल-सीटर और 4 ट्विन-सीटर राफेल मरीन जेट्स मिलेंगे। सिर्फ विमान ही नहीं, बल्कि इस डील में फ्लीट मेंटेनेंस, लॉजिस्टिकल सपोर्ट, स्टाफ की ट्रेनिंग और भारत में प्रोडक्शन को बढ़ावा देने वाली ऑफसेट शर्तें भी शामिल हैं। यानी फ्रांस भारत में कुछ निवेश भी करेगा। वहीं, यानी यह डील सिर्फ एक सैन्य सौदा नहीं, बल्कि भारत की स्वदेशी रक्षा उत्पादन नीति को भी मजबूती देने की दिशा में एक बड़ा कदम भी है।

26 Rafale Marine Deal: इन जेट्स की डिलीवरी कब शुरू होगी?

सौदा साइन होने के करीब पांच साल बाद जेट्स की डिलीवरी शुरू होगी। जब ये विमान भारतीय नौसेना में शामिल होंगे, तब इन्हें सीधे भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत पर तैनात किया जाएगा। फिलहाल INS विक्रांत से MiG-29K लड़ाकू विमान ऑपरेट हो रहे हैं, लेकिन राफेल मरीन के आने से इस एयरक्राफ्ट कैरियर की ताकत और अधिक बढ़ जाएगी।

गौरतलब है कि भारतीय वायुसेना पहले से ही 36 राफेल जेट्स ऑपरेट कर रही है, जो अंबाला और हासीमारा जैसे रणनीतिक एयरबेस पर तैनात हैं। लेकिन नौसेना के लिए जो राफेल मरीन जेट्स आ रहे हैं, वो थोड़े अलग हैं। इन्हें समुद्र में काम करने के लिए खास तौर पर तैयार किया गया है। मतलब, ये जहाज की छोटी जगह से उड़ान भरने-उतरने में माहिर हैं।

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बडी-बडी एरियल रीफ्यूलिंग सिस्टम

इस डील का एक और खूबी है “बडी-बडी” एरियल रीफ्यूलिंग सिस्टम। इस तकनीक के जरिए एक राफेल जेट हवा में उड़ते हुए ही दूसरे राफेल विमान को ईंधन भर सकता है। लगभग 10 राफेल विमान इस सिस्टम से लैस होंगे, जो वायुसेना की फ्लेक्सिबिलिटी और तैयारियों को बेहतर बनाएगा। इससे लंबे मिशन पर जाने में आसानी होगी।

रक्षा सूत्रों का कहना है कि इस डील में जमीन पर इस्तेमाल होने वाले इक्विपमेंट्स और सॉफ़्टवेयर अपग्रेड्स को भी शामिल किया गया है, जिससे वायुसेना के मौजूदा राफेल फ्लीट को और बेहतर बनाया जा सकेगा। वहीं नौसेना को अपने विमानवाहक पोतों पर कुछ विशेष उपकरण और सिस्टम इंस्टॉल करने होंगे, ताकि ये 4.5 जेनरेशन के राफेल मरीन जेट्स पूरी क्षमता के साथ संचालन कर सकें। अभी मिग-29K जेट्स INS विक्रमादित्य से उड़ते हैं, और वो अपनी जगह पर बने रहेंगे। लेकिन राफेल के आने से नौसेना को एक नई ताकत मिलेगी, जो समुद्र में भारत की पकड़ को और मजबूत करेगी।

स्वदेशी TEDBF पर फोकस

वहीं, भारतीय नौसेना अब सिर्फ विदेशी टेक्नोलॉजी पर निर्भर नहीं रहना चाहती है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) देश का पहला पांचवीं पीढ़ी का स्वदेशी लड़ाकू विमान डेवलप कर रहा है, जिसे बाद में नेवल वर्जन में बदला जाएगा। यह विमान ट्विन-इंजन डेक-बेस्ड फाइटर (TEDBF) होगा, जो भारतीय वायुसेना के लिए बनाए जा रहे एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) का नौसैनिक रूप होगा। AMCA को एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) तैयार कर रही है।

इस दिशा में काम तेजी से चल रहा है और रक्षा मंत्रालय चाहता है कि आने वाले सालों में नौसेना भी स्वदेशी फाइटर जेट्स के सहारे अपनी ताकत में इजाफा करे। राफेल मरीन जेट्स अगले पांच-सात सालों में नौसेना का हिस्सा बन जाएंगे, और तब तक शायद TEDBF भी तैयार होने की राह पर होगा। ये दोहरी रणनीति भारत को समुद्र और आसमान दोनों में मजबूत बनाएगी। आईएनएस विक्रांत और भविष्य में आने वाले आईएनएस विशाल जैसे एयरक्राफ्ट कैरियर्स के लिए ये स्वदेशी जेट्स एक स्थायी समाधान बन सकते हैं।

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जहां तक फ्रांस के साथ इस डील की बात है, यह सिर्फ एक व्यावसायिक सौदा नहीं बल्कि रणनीतिक साझेदारी का विस्तार भी है। भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सहयोग लगातार गहरा हो रहा है, राफेल इसका एक प्रमुख उदाहरण है। भारत ने राफेल के माध्यम से न सिर्फ आधुनिक तकनीक को अपनाया है, बल्कि इसके जरिए अपनी रक्षा कूटनीति को भी नई ऊंचाई दी है।

राफेल मरीन जेट्स को नौसेना में शामिल करना इसलिए भी अहम है, क्योंकि समुद्री सुरक्षा का महत्व अब पहले से कहीं ज्यादा बढ़ चुका है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सक्रियता और वैश्विक रणनीतिक बदलावों को देखते हुए, भारत के लिए यह जरूरी है कि वह अपनी नौसैनिक ताक़त को अत्याधुनिक बनाकर क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखे।

राफेल मरीन जेट्स में जो खूबिया हैं, जैसे एडवांस रडार सिस्टम, लंबी दूरी की मिसाइलें, लेटेस्ट एवियोनिक्स और मल्टी-रोल कैपेबिलिटी, वे भारतीय नौसेना को किसी भी चुनौती का मुकाबला करने में सक्षम बनाएंगी।

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