📍नई दिल्ली | 7 days ago
Zorawar Light Tank Trials: भारत के स्वदेशी जोरावर लाइट वेट टैंक को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, इस स्वदेशी टैंक का पहला प्रोटोटाइप तैयार हो चुका है, और इसके यूजर ट्रायल्स जल्द शुरू होने जा रहे हैं। ये ट्रायल्स 12 से 18 महीनों तक चलेंगे, जिसमें टैंक को लद्दाख की बर्फीली ठंड और राजस्थान की तपती गर्मी में परखा जाएगा। इसके साथ ही, इसका दूसरा प्रोटोटाइप सितंबर 2025 तक तैयार हो जाएगा। यह टैंक भारतीय सेना को ऊंचाई वाले दुर्गम इलाकों में मजबूती देगा। इस टैंक का नाम महान डोगरा योद्धा ‘जोरावर सिंह’ के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने हिमालय पार कर लद्दाख और तिब्बत तक विजय पताका फहराई थी।
Zorawar Light Tank Trials: यूजर ट्रायल्स अगस्त 2025 से
जोरावर टैंक को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने मिलकर बनाया है। यह टैंक खास तौर पर लद्दाख जैसे ऊंचे और कठिन इलाकों में तैनाती के लिए बनाया गया है, जहां 2020 में चीन के साथ गलवान में हुई झड़प के बाद एलएसी पर भारी टैंक जैसे टी-72 और टी-90 को ले जाने में कई मुश्किलें आई थीं।
इसका पहला प्रोटोटाइप दिसंबर 2024 में टेस्ट किया जा चुका है। वहीं, अब इसे सेना के ट्रायल के लिए भेजा गया है। पहले प्रोटोटाइप का प्रारंभिक परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है। इस दौरान टैंक की 105 मिलीमीटर बैरल, मशीन गन, और गन लॉन्च्ड एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम), मोबिलिटी, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, सस्पेंशन और रडार सिस्टम की क्षमताओं की जांच होगी।

जोरावर टैंक के यूजर ट्रायल्स अगस्त 2025 से शुरू होंगे। इन ट्रायल्स में टैंक को लद्दाख की ठंड यानी -20 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में टैंक को परखा जाएगा। वहीं, राजस्थान की तपती गर्मी 45 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में टैंक के एंड्युरेंस और सेंसर सिस्टम की जांच होगी। ट्रायल्स के बाद, अगर टैंक सभी मानकों पर खरा उतरता है, तो इसे 2027 तक भारतीय सेना में शामिल कर लिया जाएगा। एलएंडटी की गुजरात में मुंद्रा फैक्ट्री में टैंक का उत्पादन शुरू होगा। शुरुआत में 59 टैंकों का उत्पादन होगा, और भविष्य में 354 टैंकों की जरूरत को पूरा करने के लिए इसका उत्पादन बढ़ाया जाएगा।
जोरावर टैंक की खूबियां
जोरावर टैंक को भारतीय सेना की जरूरतों को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया गया है। यह 25 टन वजनी हल्का टैंक है, जिससे ये हाई एल्टीट्यूड इलाकों में भी आसानी से चढ़ सकता है। टैंक में 105 मिलीमीटर की तोप, मशीन गन, और एंटी-टैंक मिसाइलें लगी हैं। इसकी मेन गन दुश्मन के टैंकों और बंकरों को नष्ट कर सकती है।
इसमें ड्रोन कनेक्टिविटी की खूबी है। जोरावर टैंक ड्रोन से जुड़ सकता है, जिससे यह दुश्मन की प्रत्येक गतिविधियों पर नजर रख सकता है और रियल-टाइम जानकारी हासिल कर सकता है। इसमें 760 हॉर्सपावर (570 kW) का VTA903E-T760 कमिंस (Cummins) इंजन लगा है, जो इसे हाई एल्टीट्यूड वाले इलाकों में कम ऑक्सीजन की स्थिति में भी तेज रफ्तार देता है। पहले इसमें रोल्स-रॉयस की जर्मन फर्म एमटीयू के इंजन लगाने का प्रस्ताव था, लेकिन देरी के चलते कमिंस इंजन चुना गया। भविष्य में इसे 1,000 हॉर्सपावर के कमिंस एडवांस्ड कॉम्बैट इंजन से बदला जाएगा। डीआरडीओ भी एक स्वदेशी इंजन विकसित कर रहा है, ताकि विदेशी निर्भरता कम हो। नया कमिंस ACE इंजन 14.3 लीटर, टू-स्ट्रोक, ओपोज्ड-पिस्टन (विपरीत दिशा में चलने वाले पिस्टन) डिजाइन पर आधारित है। इसमें पारंपरिक वाल्व सिस्टम नहीं होता, जिससे यह इंजन साइज में छोटा, ताकतवर और कम गर्मी पैदा करता है। जिससे यह खासतौर पर ऊंचाई और कम ऑक्सीजन वाले इलाकों में आसानी से चढ़ सकता है।
टैंक में मॉड्यूलर कवच (आर्मर) और एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम है, जो इसे दुश्मन के हमलों से बचाती है। साथ ही, इसमें एडवांस सेंसर और नाइट विजन सिस्टम हैं, जो रात में भी ऑपरेशन को आसान बनाते हैं। हल्के वजन और मजबूत सस्पेंशन सिस्टम के चलते यह ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्तों, नदियों, और झीलों को आसानी से पार कर सकता है।
दूसरे प्रोटोटाइप में किए कई सुधार
जोरावर टैंक के पहले प्रोटोटाइप के परीक्षणों के आधार पर, डीआरडीओ और एलएंडटी ने दूसरे प्रोटोटाइप में कई सुधार किए हैं। दूसरा प्रोटोटाइप एडवांस सस्पेंशन सिस्टम के साथ आएगा, जो इसे ऊंचे पहाड़ों और कठिन रास्तों पर अधिक स्थिरता और रफ्तार देगा। साथ ही, इंजन को कम ऑक्सीजन वाले खासतौर पर लद्दाख की 15,000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में बेहतर प्रदर्शन के लिए ट्यून किया गया है। इसमें नए सेंसर जोड़े गए हैं, जो सैनिकों को युद्ध के मैदान में दुश्मन की स्थिति, मौसम, और इलाके की जानकारी देंगे। इससे सेना को रणनीतिक बढ़त मिलेगी। इसके अलावा टैंक का वजन कम रखा गया है ताकि इसे भारतीय वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर जैसे विमानों से जल्दी से सीमा पर ले जाया जा सके।
स्वदेशी बैरल लगाने की तैयारी
जोरावर टैंक के पहले प्रोटोटाइप में बेल्जियम की Cockerill 105mm HP बैरल लगाई गई थी। वहीं, भारत इस आयातित बैरल की जगह अब स्वदेशी 105mm HP बैरल का इस्तेमाल करना चाहता है। इसके लिए डीआरडीओ के तहत आने वाला आयुध अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (ARDE) काम कर रहा है। ARDE ने स्वदेशी 105mm बैरल के डिजाइन का कार्य पूरा कर लिया है और इसके निर्माण के लिए एक इंडस्ट्रियल पार्टनर का भी चयन कर लिया गया है।
🚀 Global Defence Giant Sets Up Turret Manufacturing in India! 🇮🇳🔧
Belgium’s John Cockerill Defense, a world leader in turret manufacturing, has partnered with Electro Pneumatics & Hydraulics (India) Pvt Ltd to produce turrets for India’s Project Zorawar light tanks. This marks… pic.twitter.com/oKp3AUGVdU— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) March 4, 2025
यह 105mm बैरल हाई-एक्सप्लोसिव एंटी-टैंक (HEAT) राउंड्स और आर्मर-पियर्सिंग फिन-स्टैबलाइज्ड डिसकार्डिंग सबोट (APFSDS) राउंड्स दाग सकेगी। सााथ ही, DRDO एक गन-लॉन्च्ड एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (GLATGM) भी बना रहा है, जिसे इस 105mm बैरल से दागा जा सकेगा। इससे टैंक की मारक क्षमता काफी बढ़ जाएगी और यह दूर तक स्थित आर्मर्ड टारगेट्स को भी आसानी से नष्ट कर सकेगा।
लद्दाख के लिए क्यों जरूरी है जोरावर?
2020 में लद्दाख की गलवान घाटी भारत-चीन तनाव के दौरान भारतीय सेना ने ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए हल्के टैंकों की जरूरत महसूस की। भारतीय सेना के भारी टैंकों T-72 और T-90 को वहां पहुंचाने में काफी परेशानी हुई थी। उनका वजन ज्यादा होने की वजह से उन्हें हवाई जहाजों या सीमित रोड कनेक्टिविटी के जरिए लाना मुश्किल था। वहीं, जोरावर इस कमी को दूर करेगा क्योंकि यह हल्का, तेज और ताकतवर है। दिसंबर 2024 में भारतीय वायुसेना ने सी-17 ग्लोबमास्टर या आईएल-76 के जरिए इसे एयरलिफ्ट करके दिखाया था कि जोरावर को विमान से जल्दी से लद्दाख जैसे दूर-दराज के इलाकों में पहुंचाया जा सकता है। यह टैंक ऊंचे पहाड़ों, नदियों, और कठिन इलाकों में भी आसानी से काम कर सकता है।
यह टैंक चीन के ‘टाइप-15’ लाइट टैंक को टक्कर देने के लिए डिजाइन किया गया है। टाइप-15 भी हल्का टैंक है, जिसे चीन ने हिमालयी क्षेत्रों में तैनात किया है। जोरावर उबड़-खाबड़, पहाड़ी और बर्फीले इलाकों में आसानी से चल सकता है, और झीलों या नदियों के किनारे पर भी इसका इस्तेमाल किया जा सकताा है।
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