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2020 में गलवान के बाद 29-30 अगस्त को पैंगॉन्ग झील इलाके में पास ब्लैक टॉप, हेलमेट टॉप, गुरंग हिल और मगर हिल जैसी टैक्टिकल चोटियों पर भारतीय सेना की तैनाती में उनकी बड़ी भूमिका रही। ये सभी चोटियां कैलाश रेंज में आती हैं। कर्नल जामवाल के नेतृत्व में भारतीय सेना की एक टीम ने इन चोटियों पर कब्जा कर लिया। क्योंकि यहां से चीन की गतिविधियों पर सीधे नजर रखी जा सकती थी...
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📍नई दिल्ली | 1 week ago

MacGregor Memorial Medal 2024: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड एडवेंचर स्पोर्ट्स (NIMAS) के निदेशक और भारतीय सेना के बहादुर अफसर कर्नल रणबीर सिंह जामवाल को 2024 के लिए प्रतिष्ठित मैकग्रेगर मेडल से सम्मानित किया गया है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने उन्हें यह मेडल प्रदान किया। यह सम्मान उन्हें न केवल असाधारण कठिन पर्वतारोहण अभियानों में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए दिया गया, बल्कि भारतीय सेना की सामरिक तैयारियों में महत्वपूर्ण योगदान के लिए भी मिला है। कर्नल रणबीर सिंह जामवाल की अगुवाई में ‘हर शिखर तिरंगा’ मिशन ने भारत के 28 राज्यों के सबसे ऊंचे पर्वत शिखरों पर तिरंगा फहराने का एतिहासिक कार्य पूरा किया, जिसका समापन विश्व की तीसरी और देश की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा (8,586 मीटर) पर पर्वतारोहण अभियान के साथ समाप्त हुआ। बता दें कि कर्नल जामवाल वही व्यक्ति हैं, जिनकी अगुवाई में भारतीय सेना ने 2020 में गलवान के बाद चीन को धता बताते हुए कैलाश रेंज की ब्लैक टॉप, हेलमेट टॉप, गुरंग हिल और मगर हिल चोटियों पर कब्जा किया था और चीन को बातचीत की टेबल पर आने के लिए मजबूर किया था।

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MacGregor Memorial Medal 2024: क्या है मैकग्रेगर मेमोरियल मेडल?

मैकग्रेगर मेडल भारत में सैन्य साहसिकता और खोज के क्षेत्र में सबसे सम्मानित पुरस्कारों में से एक है। इसकी शुरुआत 1888 में मेजर जनरल सर चार्ल्स मेटकाफ मैकग्रेगर की स्मृति में हुई थी, जो यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (USI) के संस्थापक थे। यह मेडल उन सैनिकों को दिया जाता है जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में मिलिट्री एक्सप्लोरेशन या एक्स्ट्रीम एडवेंचर में असाधारण योगदान दिया हो। चाहे वह ऊंचे पर्वत हों, दुर्गम जंगल हों, या सामरिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र, यह पुरस्कार उन लोगों को सम्मानित करता है जो अपनी जान जोखिम में डालकर देश की सेवा करते हैं।

‘हर शिखर तिरंगा’: एक एतिहासिक मिशन

कर्नल रणवीर सिंह जामवाल की अगुवाई में ‘हर शिखर तिरंगा’ मिशन ने भारत के इतिहास में एक अनोखा कीर्तिमान स्थापित किया। इस मिशन का उद्देश्य भारत के 28 राज्यों के सबसे ऊंचे पर्वत शिखरों पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराना था। इस मिशन का समापन कंचनजंगा की चढ़ाई के साथ हुआ, जो न केवल भारत की सबसे ऊंची, बल्कि विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी भी है। कंचनजंगा की चढ़ाई अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती थी। इस पर्वत की ऊंचाई 8,586 मीटर है, और यह अपनी खतरनाक ढलानों, अप्रत्याशित मौसम और तकनीकी कठिनाइयों के लिए जाना जाता है।

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MacGregor Memorial Medal 2024: Indian Army’s Col Ranveer Jamwal Honoured by CDS Gen Anil Chauhan

कर्नल जामवाल ने NIMAS की पांच सदस्यीय टीम का नेतृत्व किया, और इस अभियान में टीम के सभी पांच सदस्य चोटी तक पहुंचने में सफल रहे। यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि मई के मौसम में कंचनजंगा पर 100% शिखर सफलता हासिल करने वाली यह एकमात्र भारतीय टीम थी। इस मिशन ने न केवल भारत के साहसिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा, बल्कि यह देश की एकता और अखंडता का भी प्रतीक बना। कर्नल जामवाल ने कहा, “जम्मू ने मुझे ताकत दी, प्रकृति के प्रति प्रेम सिखाया और मुश्किलों का सामना करने का जज्बा दिया। कंचनजंगा की यह सफलता उतनी ही जम्मू-कश्मीर की है, जितनी पूरे भारत की।” बता दें कि कर्नल आरएस जामवाल जम्मू और कश्मीर से आते हैं और उन्हें भारत का सबसे अनुभवी पर्वतारोही माना जाता है।

पैंगॉन्ग के हीरो- सीमा पर चीन को धकेला था पीछे!

कर्नल जामवाल की बहादुरी सिर्फ माउंटेनियरिंग तक ही सीमित नहीं है। 2020 में गलवान के बाद 29-30 अगस्त को पैंगॉन्ग झील इलाके में पास ब्लैक टॉप, हेलमेट टॉप, गुरंग हिल और मगर हिल जैसी टैक्टिकल चोटियों पर भारतीय सेना की तैनाती में उनकी बड़ी भूमिका रही। ये सभी चोटियां कैलाश रेंज में आती हैं। कर्नल जामवाल के नेतृत्व में भारतीय सेना की एक टीम ने इन चोटियों पर कब्जा कर लिया। क्योंकि यहां से चीन की गतिविधियों पर सीधे नजर रखी जा सकती थी। इन इलाकों में 18,000 फीट से ज्यादा ऊंचाई, माइनस 15 डिग्री तापमान, कम ऑक्सीजन और दुश्मन की मौजूदगी जैसी चुनौतियों के बीच उन्होंने भारतीय सेना को चोटी तक पहुंचाया। उन्हें और उनकी टीम को दिन में सिर्फ 2 घंटे की नींद मिलती थी जबकि 20-20 घंटे की चौकसी करनी पड़ती थी।

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29-30 अगस्त की रात को उनकी चौकसी के कारण भारतीय सेना ने चीन की किसी भी संभावित हरकत का मुकाबला किया। इस मिशन ने लद्दाख में भारत की स्थिति को मजबूत किया, और अब स्पांगुर गैप, रीजुंग पास और रेकिंग पास जैसे क्षेत्रों में सेना की पकड़ मजबूत हो गई है। इसके चलते चीन के सैन्य शिविर अब भारत की निगरानी में हैं। वहीं, जब भारत ने इन चोटियों पर कब्जा किया तो चीन को मजबूरन बातचीत की टेबल पर आना पड़ा।

सातों महाद्वीप की चोटियों पर लहराया तिरंगा

कर्नल जामवाल अकेले ऐसे भारतीय पर्वतारोही भी हैं जिन्होंने ‘सेवन समिट्स’ यानी सातों महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटियों पर सफल चढ़ाई की है। इनमें माउंट एवरेस्ट (एशिया), माउंट एकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका), माउंट मैककिनली (उत्तरी अमेरिका), माउंट एल्ब्रस (यूरोप), माउंट किलिमंजारो (अफ्रीका), माउंट कार्स्टेन्स पिरामिड (ऑस्ट्रेलिया) और माउंट विन्सन (अंटार्कटिका) शामिल हैं। 2019 में, उन्होंने अंटार्कटिका के माउंट विंसन (लगभग 5,000 मीटर) पर चढ़ाई की थी।

तेनजिंग नॉरगे पुरस्कार से सम्मानित

कर्नल जामवाल जाट रेजिमेंट में एक जवान के रूप में सेना में शामिल हुए थे। वे हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर स्कूल के इंस्ट्रक्टर भी रह चुके हैं, जहां सियाचिन और लद्दाख की पोस्टिंग से पहले जवानों को कठिन परिस्थितियों में युद्ध के लिए तैयार किया जाता है। कर्नल जामवाल को पर्वतारोहण में उनकी उपलब्धियों के लिए 2013 में तेनजिंग नॉरगे राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया था। इसके अलावा उन्हें राज्य पुरस्कार, आईएमएफ (इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन) गोल्ड मेडल और कई अन्य सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।

भूकंप में चलाया रेस्क्यू ऑपरेशन

अप्रैल 2015 में जब नेपाल में विनाशकारी भूकंप आया था, तब कर्नल जामवाल एवरेस्ट बेस कैंप में थे। इस आपदा में 22 पर्वतारोहियों और शेरपाओं की जान चली गई थी, लेकिन उनकी टीम सुरक्षित रही। बाद में उन्होंने वहां रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया और कई लोगों की जान बचाई।

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फ्रॉस्ट बाइट में खोई थी एक ऊंगली

2009 में उत्तराखंड के माउंट माना पर चढ़ाई के दौरान कर्नल जामवाल 7 घंटे तक 23,000 फीट की ऊंचाई पर बर्फीले तूफान में फंसे रहे थे। इस दौरान उन्हें फ्रॉस्ट बाइट हो गया था और उन्होंने अपनी एक ऊंगली खो दी थी। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

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