इस माउंटेनियरिंग एक्सपेडिशन के जरिए जहां भारतीय सेना गलवान के वीरों को अनूठे अंदाज में श्रद्धांजलि देना चाहती थी, तो वहीं लद्दाख के बॉर्डर एरिया में टूरिज्म को बढ़ावा देना भी सेना का उद्देश्य है। इसके लिए भारतीय सेना ने लद्दाख की दो दुर्गम चोटियों माउंट शाही कांगरी (6934 मीटर) और माउंट सिल्वर पीक (6871 मीटर) को चुना। माउंट शाही कांगरी और माउंट सिल्वर पीक लद्दाख की कारोकारोम रेंज में स्थित हैं। जो लद्दाख में देपसांग मैदानों (Depsang Plains) के दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित हैं...
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📍लेह | 18 Jun, 2025, 2:00 PM

Galwan 5 Years: इस साल 15-16 जून को गलवान झड़प के पांच साल पूरे हो गए हैं। पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर चीनी हमले को विफल करने के दौरान वहां तैनात 20 भारतीय सैनिकों ने देश की सुरक्षा में सर्वोच्च बलिदान दिया था। वहीं पांच साल पूरे होने पर वहां की सीमा सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली 14 कॉर्प्स यानी फायर एंड फ्यूरी ने गलवान के बहादुरों को अलग अंदाज में श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर वहां तैनात भारतीय सेना ने लद्दाख के दुर्गम माउंट शाही कांगरी और माउंट सिल्वर पीक पर एक यादगार माउंटेनियरिंग एक्सपेडिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया।

Galwan 5 Years: Indian Army Pays Tribute with Mountaineering Expedition in Depsang Plains

Galwan 5 Years: कब और कैसे हुआ ये मिशन शुरू?

यह विशेष पर्वतारोहण अभियान 28 मई 2025 को शुरू हुआ और 18 जून 2025 को समाप्त हुआ। इसे ‘फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स’ के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला ने हरी झंडी दिखाई थी और 18 जून को हुए समापन पर उन्हें ही पर्वतारोहण दल ने ‘एक्सपेडिशन फ्लैग’ और ‘आइस एक्स’ भेंट किए।

इस अभियान में कुल 28 जवान शामिल थे, जिन्हें कठिन बर्फीले और पथरीले इलाकों में एक्सपेडिशन के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया था। इस एक्सपेडिशन से सेना ने ये भी दिखाया कि कैसे हर एक जवान ने शारीरिक, मानसिक और तकनीकी दक्षता की बदौलत एक्सपेडिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया।

एक्सपेडिशन की शुरुआत और मकसद

इस माउंटेनियरिंग एक्सपेडिशन के जरिए जहां भारतीय सेना गलवान के वीरों को अनूठे अंदाज में श्रद्धांजलि देना चाहती थी, तो वहीं लद्दाख के बॉर्डर एरिया में टूरिज्म को बढ़ावा देना भी सेना का उद्देश्य है। इसके लिए भारतीय सेना ने लद्दाख की दो दुर्गम चोटियों माउंट शाही कांगरी (6934 मीटर) और माउंट सिल्वर पीक (6871 मीटर) को चुना। माउंट शाही कांगरी और माउंट सिल्वर पीक लद्दाख की कारोकारोम रेंज में स्थित हैं। जो लद्दाख में देपसांग मैदानों (Depsang Plains) के दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित हैं। प्लेन्स का इलाका पहले से ही लद्दाख का सबसे सख्त इलाका माना जाता है, और यहां का मौसम भी बदलता रहता है। देपसांग ये इलाके साल भर बर्फ से ढके रहते हैं और यहां का मौसम और भौगोलिक स्थिति बेहद कठोर मानी जाती है। इसके बावजूद, सैनिकों ने हिम्मत नहीं हारी और हर मुश्किल को पार किया।

जीओसी फायर एंड फ्यूरी ले. जनरल हितेश भल्ला को फ्लैंग सौंपते टीम के सदस्य।

एक्सपेडिशन टीम ने इन चोटियों की चढ़ाई दक्षिण-पूर्व दिशा से की, जिससे दूरी थोड़ी कम हुई, लेकिन रास्ता अत्यधिक खतरनाक और चुनौतियों से भरा था। इस दौरान टीम को गहरी दरारें (crevasses), बर्फीले टीलों (cornices) और ग्लेशियरों के बीच से होकर गुजरना पड़ा। सेना ने इस एक्सपेडिशन के जरिए अपने जवानों की हिम्मत और हुनर को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की। साथ ही, ये मिशन गलवान संघर्ष में बलिदान देने वाले जवानों को याद करने का एक तरीका भी था।

जवानों से मुलाकात करते जीओसी फायर एंड फ्यूरी लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला।

क्यों है यह अभियान खास?

सेना के सूत्रों बताया कि यह पहली बार है जब माउंट शाही कांगरी और सिल्वर पीक जैसी ऊंची चोटियों को एक साथ फतह करने के लिए ऐसा सैन्य अभियान चलाया गया है। इस एक्सपेडिशन को आर्मी एडवेंचर विंग ने मंजूरी दी थी, क्योंकि ये मिशन सिर्फ चढ़ाई तक सीमित नहीं था। इसका मकसद था सिविल माउंटेनियर्स को भी इन चोटियों पर आने के लिए प्रेरित करना। सेना चाहती है कि भविष्य में सिविलियन भी इन बर्फीले पहाड़ों पर चढ़ाई करें, जिससे लद्दाख में एडवेंचर टूरिज्म को नई उड़ान मिले। ये एक्सपेडिशन 10 दिन से ज्यादा समय तक चला। इस दौरान टीम ने दिन-रात मेहनत की और हर मौसम का सामना किया। बर्फीले तूफान, कम ऑक्सीजन, और ठंडी हवाओं के बावजूद सैनिकों ने हार नहीं मानी। आखिरकार, जब वे चोटियों पर पहुंचे, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। एक्सपेडिशन खत्म होने पर टीम ने फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स के जीओसी को एक्सपेडिशन फ्लैग और आइस एक्स सौंपा।

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बता दें कि देपसांग का इलाका रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दौलत बेग ओल्डी (DBO) एयरबेस से करीब 30 किमी दक्षिण-पूर्व में है और चीनी सेना ने पहले यहां भारतीय पेट्रोलिंग को ब्लॉक किया था। 2020 से पहले की स्थिति बहाल होने के बावजूद, यहां तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, क्योंकि LAC की अलग-अलग धारणाएं अभी भी विवाद की वजह हैं। पिछले साल 21 अक्टूबर 2024 को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत देपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी और पेट्रोलिंग अधिकारों को बहाल करने की प्रक्रिया शुरू हुई। इस समझौते के तहत, 23 अक्टूबर 2024 से सैनिकों ने अस्थायी संरचनाओं को हटाना शुरू किया, और 29-30 अक्टूबर 2024 तक यह प्रक्रिया पूरी हो गई। समझौते के तहत भारतीय सैनिक पेट्रोलिंग पॉइंट्स (PP) 10 से 13 तक जा सकेंगे। दोनों देशों ने पेट्रोलिंग शेड्यूल साझा करने और टकराव से बचने के लिए 14-15 सैनिकों की टीमें तैनात करने का फैसला किया। फिलहाल, दोनों पक्षों के बीच सैन्य और कूटनीतिक बातचीत जारी है।

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