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📍नई दिल्ली | 5 months ago

Chinese Spyware: रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना के लिए देश की निजी कंपनियों की तरफ से बनाए जा रहे ड्रोन्स में चीनी पार्ट्स के इस्तेमाल पर कड़ी कार्रवाई की है। रक्षा मंत्रालय ने 400 लॉजिस्टिक्स ड्रोन्स के तीन बड़े सौदों को रद्द कर दिया है। यह कदम देश की साइबर सिक्योरिटी और सैन्य गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। सूत्रों का कहना है कि चीनी पुर्जों के चलते ड्रोन्स में हैकिंग और डेटा लीक जैसी घटनाओं का खतरा बढ़ गया था। इससे पहले भी पिछले साल जून में रक्षा मंत्रालय ने लॉजिस्टिक्स ड्रोनों के एक बड़े ऑर्डर को कैंसिल किया था।

Indian Army Cancels 400 Drone Deals Over Chinese Spyware Concerns

Chinese Spyware: ड्रोन्स की कुल कीमत 230 करोड़

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, इन सौदों में 200 मीडियम-एल्टीट्यूड, 100 हैवी-वेट और 100 लाइट-वेट लॉजिस्टिक्स ड्रोन्स शामिल थे। इन ड्रोन्स की कुल कीमत 230 करोड़ रुपये से अधिक थी। ये ड्रोन्स मुख्य रूप से भारत-चीन सीमा पर 3,488 किलोमीटर लंबे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर तैनात किए जाने थे। चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में 2020 से जारी सैन्य तनाव के बीच इन ड्रोन्स की तैनाती बेहद अहम मानी जा रही थी।

रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक, “कुछ भारतीय कंपनियां सेना के लिए बनाए जा रहे ड्रोन्स में चीन में बने इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स का इस्तेमाल कर रही थीं।, जो कि साइबर सिक्योरिटी के लिए एक बड़ा खतरा है। इसके चलते हमारे मिलिट्रीपरेंशन की जानकारी लीक हो सकती थी। ऐसे पार्ट्स के जरिए दुश्मन इन ड्रोन्स को हैक कर सकता है या उन्हें जाम कर सकता है।”

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PoK में चला गया था एक ड्रोन

इससे पहले अगस्त 2024 में जम्मू-कश्मीर के राजौरी सेक्टर में एलओसी के पास तैनात एक इन्फैंट्री यूनिट का एक ड्रोन अचानक कंट्रोल से बाहर हो गया था और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में चला गया। इस घटना की जांच में पता चला कि ड्रोन में तकनीकी गड़बड़ी थी। सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे चीनी पर्ट्स के इस्तेमाल की बात कही गई थी।  इस घटना की जांच के बाद ड्रोन निर्माता कंपनी को भी तलब किया गया था।

चीनी पार्ट्स या सॉफ्टवेयर कोड न हो

रक्षा मंत्रालय ने अब ड्रोन्स की खरीद फरोख्त में सख्त नियम लागू करने का फैसला किया है। इन मानकों के तहत ड्रोन निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके प्रोडक्ट्स में 50 फीसदी से अधिक सामग्री स्वदेशी हो। ड्रोन बनाने वाली कंपनियों को अब यह साबित करना होगा कि उनके ड्रोन्स में किसी भी प्रकार के चीनी पार्ट्स या सॉफ्टवेयर कोड का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसके अलावा, इंडिपेंडेंट टेक्निकल चेक एंड वेरिफिकेशन सिस्टम भी लागू किया जाएगा, ताकि किसी भी तरह की सुरक्षा चूक को रोका जा सके।

साथ ही, रक्षा मंत्रालय ने देश के प्रमुख उद्योग निकायों फिक्की, सीआईआई और एसोचैम को भी निर्देश दिया है कि वे अपने मैंबर्स कंपनियों को ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग में चीनी पार्ट्स के इस्तेमाल से बचने के लिए जागरूकता अभियान चलाएं।

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भारत सरकार ने 2020 में गलवान हिंसा के बाद से चीन के साथ सीमा विवाद के चलते कई मिलिट्री इक्विपमेंट्स और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाए थे। इसके बावजूद देश की कई ड्रोन बनाने वाली कंपनियां लागत कम रखने के लिए चीनी पार्ट्स का इस्तेमाल कर रही थीं, जिससे साइबर सुरक्षा में सेंध लगाने का खतरा बढ़ गया था।

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Chinese Spyware: जून 2024 में एक कंपनी का रद्द किया था ऑर्डर

इससे पहले पिछले साल जून में रक्षा मंत्रालय (MoD) ने लॉजिस्टिक्स ड्रोनों के एक बड़े ऑर्डर को रोक दिया था। आर्मी डिजाइन ब्यूरो (ADB) के अतिरिक्त महानिदेशक मेजर जनरल सीएस मान ने रक्षा समाचार को बताया था कि यह बड़ा खतरा है। सरकार पहले ही मिलिट्री सिस्टम्स में चीनी कंपोनेंट्स की घुसपैठ को रोकने के लिए कदम उठा चुकी है। भारतीय सेना ने चेन्नई की धक्षा अनमैन्ड सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के 200 लॉजिस्टिक ड्रोन की खरीद पर रोक लगाई थी। कंपनी पर अपने ड्रोन में चीनी उपकरणों के इस्तेमाल का आरोप था। धक्षा कोरामंडल इंटरनेशनल की सहायक कंपनी है। रक्षा मंत्रालय (MoD) ने 25 जून को CII, FICCI और ASSOCHAM को पत्र लिखकर धक्षा और दो अन्य कंपनियों से रक्षा उपकरण खरीद में सतर्कता बरतने की सलाह दी थी। हालांकि धक्षा कंपनी के प्रवक्ता ने आरोपों को “असत्य और निराधार” बताते हुए कहा था, “हम अपने डिफेंस ड्रोन में किसी भी चीनी पुर्जों का इस्तेमाल नहीं करते।”

ड्रोन्स में चीनी पुर्जों के खतरे

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, चीनी पुर्जों के इस्तेमाल से सबसे बड़ा खतरा डेटा लीक और मिलिट्री ऑपरेशंस की जानकारी लीक होने का है। चीनी इलेक्ट्रॉनिक्स में ‘बैकडोर’ प्रोग्रामिंग हो सकती है, जो सिक्योरिटी सिस्टम को बाइपास कर संवेदनशील जानकारी दुश्मनों तक पहुंचा सकती है। कम्यूनिकेशन मॉड्यूल, कैमरा सिस्टम और कंट्रोल सिस्टम में छुपे ये कोड ड्रोन के ऑपरेशन में दिक्कत पैदा कर सकते हैं या दुश्मन के नियंत्रण वाले इलाके में ले जा सकते हैं।

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DGMI ने 2010 और 2015 में जारी किए थे निर्देश

रक्षा मंत्रालय के एक इंटरनल नोट के मुताबिक, डायरेक्टर जनरल मिलिट्री इंटेलिजेंस (DGMI) ने 2010 और 2015 में निर्देश जारी कर सेंसिटिव सिक्योरिटी डिवाइसेज में चीनी पार्ट्स के इस्तेमाल पर रोक लगाने के निर्देश दिया था।
बावजूद इसके, ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग में इस निर्देश का पूरी तरह पालन नहीं किया गया। 2017 में चीन में लागू एक कानून के तहत वहां की सभी टेक कंपनियों को सरकारी एजेंसियों के साथ डेटा शेयर करना जरूरी है, जिससे चीनी टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के जोखिम और भी बढ़ जाते हैं। सेना का कहना है कि ड्रोन में लगे सेंसर और फ्लाइट कंट्रोलर रियल-टाइम डेटा और लोकेशन को उन देशों के सर्वर पर शेयर कर सकते हैं।

भारत का ड्रोन बाजार अगले दशक में 40 अरब डॉलर (लगभग 3.36 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंचने की संभावना है। सरकार उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना और ड्रोन रेगुलेशन 2021 जैसे सुधारों के जरिए स्थानीय स्तर पर ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दे रही है। भारतीय सेना भी अगले कुछ सालों में 2,500 से अधिक मिलिट्री ड्रोन खरीदने की योजना बना रही है, जिन पर लगभग 3,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।

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