📍नई दिल्ली | 6 months ago
Apache AH-64E: भारत ने फरवरी 2020 में अमेरिका से Apache AH-64E लड़ाकू हेलीकॉप्टर की खरीद का ऑर्डर दिया था, इनमें से 22 हेलीकॉप्टर भारतीय वायुसेना को मिल चुके हैं, लेकिन बाकी भारतीय सेना को मिलने वाले छह हेलिकॉप्टरों की डिलीवरी अभी तक नहीं हुई है। वहीं, मोरक्को ने भारत के बाद यानी जून 2020 में अपाचे हेलीकॉप्टर का ऑर्डर दिया था और उसे उनकी डिलीवरी भी मिलनी शुरू हो गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भारत को अभी तक अपाचे हेलीकॉप्टर क्यों नहीं मिले? क्या यह डिलीवरी लाइन में देरी का मामला है या फिर कुछ और वजहें हैं?
सूत्रों के मुताबिक सेना को दिसंबर 2024 में बोइंग से तीन एएच-64ई अपाचे हमलावर हेलीकॉप्टरों के पहले बैच की डिलीवरी होनी थी, लेकिन अभी तक डिलीवरी नहीं हो पाई है। भारतीय सेना की एविएशन कॉर्प्स को अब भी अपने अत्याधुनिक अपाचे AH-64E अटैक हेलीकॉप्टरों का इंतजार है। अमेरिका से छह हेलीकॉप्टरों का यह बेड़ा पहले ही भारत आ जाना चाहिए था, लेकिन अब तक इसकी डिलीवरी नहीं हो सकी है। भारतीय थल सेना को तीन-तीन के बैच में ये हेलीकॉप्टर मिलने थे और योजना के अनुसार मई-जून 2024 तक इनकी पहली खेप आ जानी चाहिए थी। वहीं, भारतीय सेना की पहली अपाचे स्क्वाड्रन अब भी अपने लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की प्रतीक्षा कर रही है।
भारत ने अमेरिका के साथ फरवरी 2020 में छह अपाचे हेलीकॉप्टरों की खरीद के लिए 600 मिलियन डॉलर (करीब 5000 करोड़ रुपये) का समझौता किया था। यह सौदा भारतीय सेना की हवाई युद्ध क्षमता को बढ़ाने के लिए किया गया था, जिससे थल सेना के हेलीकॉप्टर बेड़े को और मजबूती मिल सके। लेकिन पहले बैच की डिलीवरी में ही तीन महीने से अधिक की देरी हो चुकी है, जिससे सेना की तैयारियों पर असर पड़ रहा है।
Apache AH-64E: राजस्थान के नागतलाव में पहली अपाचे स्क्वाड्रन की तैनाती
भारतीय सेना के एविएशन कॉर्प्स ने मार्च 2024 में नागतलाव, जोधपुर में अपनी पहली अपाचे स्क्वाड्रन का गठन किया था। यहां के पायलट और ग्राउंड स्टाफ पहले ही ट्रेनिंग ले चुके हैं और ऑपरेशन के लिए तैयार हैं। लेकिन डिलीवरी में हो रही देरी के कारण फ्लाइट ऑपरेशन शुरू नहीं हो सका। सेना के अधिकारियों को भी यह स्पष्ट जानकारी नहीं है कि इन अटैक हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी कब पूरी होगी।
Apache AH-64E: डिलीवरी में “प्रोडक्शन लाइन इश्यू”?
अपाचे AH-64E को भारतीय सेना की पश्चिमी सीमाओं पर वार ऑपरेशंस में इस्तेमाल करने के लिए शामिल किया गया है। ये अटैक हेलीकॉप्टर अपनी एक्सीलेंट मोबिलिटी, लीथल वेपन सिस्टम्स और एडवांस्ड टार्गेटिंग टेक्नोलॉजी के लिए जाने जाते हैं। भारतीय सेना के लिए ये बेहद जरूरी हैं क्योंकि ये किसी भी ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
गौरतलब है कि भारतीय वायुसेना पहले ही अपने 22 अपाचे हेलीकॉप्टरों को ऑपरेशनल कर चुकी है। ये हेलीकॉप्टर 2015 में अमेरिका के साथ हुए एक अलग सौदे के तहत शामिल किए गए थे। हालांकि, भारतीय थल सेना अब भी इन मॉ्र्डन हेलीकॉप्टरों का इंतजार कर रही है, जिससे उसकी युद्ध क्षमता में बड़ा इजाफा हो सके।
सूत्रों के अनुसार, अमेरिकी रक्षा विभाग और बोइंग की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि भारत की डिलीवरी में “प्रोडक्शन लाइन इश्यू” की वजह से देरी हो रही है। हालांकि, अमेरिका की ओर से अब तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि अपाचे हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी कब शुरू होगी और अगली संभावित तारीख क्या होगी। लेकिन सेना को मिलने वाले हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी अभी तक रुकी हुई है। इसके विपरीत, मोरक्को को उसके ऑर्डर किए गए अपाचे हेलीकॉप्टर मिलने शुरू हो गए हैं।
वहीं सूत्रों का कहना है कि जब मोरक्को को समय पर डिलीवरी दी जा सकती है, तो भारत के मामले में प्रोडक्शन लाइन में दिक्कत क्यों आ रही है? रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका ने भारत के मुकाबले मोरक्को को प्राथमिकता दी है, क्योंकि अफ्रीका और मध्य पूर्व में अमेरिका की रणनीतिक जरूरतें अलग हैं। मोरक्को अमेरिका का करीबी सैन्य सहयोगी है और उसकी सुरक्षा रणनीति में वॉशिंगटन की सीधी भागीदारी रहती है। इसलिए, भारत के बजाय मोरक्को को पहले अपाचे हेलीकॉप्टर सौंपे जा रहे हैं।
क्या भारत को जानबूझकर इंतजार कराया जा रहा है?
रक्षा मामलों के जानकारों का कहना है कि भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ वर्षों में रक्षा साझेदारी मजबूत हुई है, लेकिन इस तरह की घटनाएं संकेत देती हैं कि भारत अब भी अमेरिका के शीर्ष प्राथमिकता वाले डिफेंस कस्टमर्स में शामिल नहीं हुआ है। भारत ने हाल के सालों में अमेरिका से कई रक्षा उपकरण खरीदे हैं, जिनमें P-8I समुद्री गश्ती विमान, C-17 ग्लोबमास्टर, C-130J सुपर हरक्यूलिस और MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन शामिल हैं। लेकिन जब डिलीवरी की बात आती है, तो अमेरिका की ओर से “प्रोडक्शन लाइन में दिक्कत”, “नियम-कानून की प्रक्रिया” और “लॉजिस्टिक्स समस्या” जैसे कारण बताए जाते हैं, जो संदेह पैदा करते हैं कि क्या भारत को जानबूझकर इंतजार कराया जा रहा है।
अमेरिका से जवाब मांगे भारत
रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि भारत को इस मुद्दे पर अमेरिका से स्पष्ट जवाब मांगना चाहिए। अमेरिकी सरकार को यह बताना चाहिए कि डिलीवरी में और कितनी देरी होगी और इसे तेज करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। यदि अमेरिका अपने “रणनीतिक साझेदार” भारत को प्राथमिकता नहीं देता है, तो यह भविष्य में दोनों देशों के रक्षा संबंधों पर असर डाल सकता है।
चीन-पाकिस्तान बढ़ा रहे ताकत
उनका कहना है कि इस देरी का सीधा असर भारतीय सेना की ऑपरेशनल क्षमताओं पर पड़ेगा। चीन और पाकिस्तान हवाई युद्धक क्षमताओं में लगातार अपनी सैन्य ताकत को बढ़ा रहे हैं। चीन ने हाल ही में अपने Z-10 अटैक हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड किया है और पाकिस्तान को भी नई तकनीक से लैस लड़ाकू हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराए हैं। ऐसे में, भारत को जल्द से जल्द अपने अपाचे हेलीकॉप्टरों की जरूरत है ताकि वह अपनी हवाई आक्रमण और टैंक रोधी युद्धक क्षमताओं को मजबूत कर सके।

मोरक्को को 36 AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टर?
मोरक्को को AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टरों की खरीद के लिए 36 यूनिट्स तक की मंजूरी दी गई थी, जिसमें 24 हेलीकॉप्टर पक्के ऑर्डर के तौर पर और 12 अतिरिक्त विकल्प के रूप में शामिल थे। इस सौदे में 12 लॉन्गबो रडार का भी प्रावधान था, जिससे हेलीकॉप्टरों की टार्गेटिंग और युद्ध क्षमताएं और अधिक प्रभावी हो जाती हैं।
मोरक्को को अमेरिकी कंपनी बोइंग से मिले इस सैन्य पैकेज में प्रिसीजन-गाइडेड वेपन सिस्टम भी शामिल हैं। इसमें 1,000 से अधिक AGM-114 हेलफायर मिसाइलें, 600 APKWS लेजर-निर्देशित रॉकेट, 50 से अधिक FIM-92 स्टिंगर मिसाइलें और 5,216 हाइड्रा 70 अनगाइडेड रॉकेट दिए गए हैं, जो अपाचे की मारक क्षमता को और बढ़ाते हैं।
इसके अलावा, इस सौदे में 30 मिमी गोला-बारूद के 93,000 राउंड, विभिन्न सहायक प्रणालियां और लॉजिस्टिक्स सेवाएं भी शामिल हैं। कुल पैकेज की अनुमानित लागत $4.25 बिलियन आंकी गई थी। इन अपाचे के आगमन के साथ, मोरक्को मिस्र के बाद AH-64 ऑपरेट करने वाला दूसरा अफ्रीकी देश बन गया है। हालांकि, इस महाद्वीप में एडवांस AH-64E वर्जन को तैनात करने वाला मोरक्को पहला देश है, जिसे “गार्जियन” के रूप में भी जाना जाता है।
Apache Helicopters: जल्द खत्म होगा इंतजार! भारतीय सेना को दिसंबर 2024 में मिलेगा पहला AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टर बैच
वहीं, भारत को अपाचे हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी में देरी के चलते भारतीय सेना को रणनीतिक स्तर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान और चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के मद्देनजर सेना के लिए ये हेलीकॉप्टर बेहद अहम हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि भारत को ये हेलीकॉप्टर कब तक मिलेंगे, लेकिन इस देरी ने भारतीय सेना की युद्ध क्षमताओं को प्रभावित किया है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस डील में और देरी होती है, तो भारतीय सेना को अपने मौजूदा संसाधनों पर ही निर्भर रहना होगा। इससे जमीनी अभियानों में हवाई समर्थन देने की क्षमता सीमित हो सकती है।
क्या भारत को अन्य विकल्प तलाशने होंगे?
यदि अपाचे हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी में और देरी होती है, तो भारतीय रक्षा मंत्रालय को अन्य विकल्पों पर भी विचार करना पड़ सकता है। भारत पहले से ही लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (LCH) प्रोजेक्ट पर जोर दे रहा है, जिसे HAL ने डेवलप किया है। इसके अलावा, अन्य देशों के साथ भी सामरिक समझौतों पर विचार किया जा सकता है।
भारतीय सेना को अपनी पहली अपाचे स्क्वाड्रन को ऑपरेट करने के लिए अभी और इंतजार करना होगा। अमेरिका की ओर से कोई स्पष्ट डिलीवरी टाइमलाइन नहीं दी गई है, जिससे भारतीय सैन्य रणनीति को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अब यह देखना होगा कि क्या अमेरिका जल्द से जल्द इन हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी कर पाता है, या भारतीय सेना को अपने मौजूदा संसाधनों के साथ ही काम चलाना पड़ेगा।
भारत को अपाचे हेलीकॉप्टर की जरूरत क्यों?
भारत के लिए अपाचे AH-64E एक महत्वपूर्ण लड़ाकू हेलीकॉप्टर है, जिसे दुनिया का सबसे आधुनिक और घातक अटैक हेलीकॉप्टर माना जाता है। भारतीय सेना और वायुसेना दोनों के लिए यह हेलीकॉप्टर रणनीतिक रूप से बेहद अहम है, खासकर चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा पर बढ़ते तनाव को देखते हुए।
अपाचे AH-64E हेलीकॉप्टर की खासियतें:
- हेलफायर मिसाइल से लैस यह हेलीकॉप्टर दुश्मन के टैंकों और बख्तरबंद वाहनों को नष्ट करने में सक्षम है।
- इसमें लॉन्गबो रडार लगा है, जिससे यह दिन और रात दोनों में सटीक हमले कर सकता है।
- एडवांस एवियोनिक्स और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम, इसे किसी भी युद्धक्षेत्र में इस्तेमाल के लिए आदर्श बनाते हैं।