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📍नई दिल्ली | 7 months ago

1971 War Surrender Painting: हाल ही में भारतीय सेना के प्रमुख जनरल की ऑफिस के बैकग्राउंड से एक ऐतिहासिक पेंटिंग जो 1971 की जंग में पाकिस्तान सेना के सरेंडर की थी, उसे हटा लिया गया था। रक्षा समाचार डॉट कॉम ने इस मुद्दे को मुरजोर से उठाया था। लेकिन अब बड़ी खबर सामने आई है। पूर्व सैन्य अधिकारियों और रक्षा समाचार.कॉम के सवाल उठाने के बाद 16 दिसंबर को विजय दिवस के मौके पर उस एतिहासिक पेंटिंग को नई जगह मिल गई है। उस पेंटिंग को अब मानेकशॉ सेंटर में लगाया गया है। यह सेंटर 1971 की जंग के हीरो फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के नाम पर समर्पित है। बता दें कि यह तस्वीर भारतीय सेना की एक बड़ी एतिहासिक जीत की याद दिलाती रही है, जब 93 हजार से ज्यादा पाकिस्तान सेना ने पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश के ढाका में भारतीय सेना के सामने बिना शर्त समर्पण किया था।

1971 War Surrender Painting: News Impact! Gets New Placement at Manekshaw Centre

इस घटना ने सभी का ध्यान उस समय खींचा था, जब सेना प्रमुख समेत तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने नेपाली सेना के आर्मी चीफ से मुलाकात की थी, जो इन दिनों 14 दिसंबर तक भारत दौरे पर थे। उस समय यह तस्वीर दीवार से नादारद दिखी और उसके जगह एक दूसरे फोटो लगी थी। यह चित्र 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तान की सेना के समर्पण के दौरान लिया गया था, जो भारतीय सेना की सबसे बड़ी जीतों में से एक मानी जाती है।

1971 War Surrender Painting: News Impact! Gets New Placement at Manekshaw Centre

1971 War Surrender Painting: सेना के पूर्व अधिकारियों ने जताई थी गहरी चिंता

बता दें कि तस्वीर हटाने के फैसले को लेकर सेना की तरफ से कोई पूर्व जानकारी साझा नहीं की गई थी। जिसके बाद रक्षा विशेषज्ञों औऱ सेना के पूर्व अधिकारियों ने गहरी चिंता जताई थी। कुछ विशेषज्ञों का मानना था कि इस चित्र को हटाने के पीछे कोई विशेष विचारधारा हो सकती है, जो भारतीय सेना के ऐतिहासिक और सैन्य गौरव को नकारने की कोशिश कर रही है। बता दें कि 9 दिसंबर तक यह फोटो सेना प्रमुख के दफ्तर की दीवार पर मौजूद थी, जिसमें वे उस दिन भारतीय मिलिट्री हिस्ट्री पर किताबें लिखने वाले कुछ लेखकों से मिले थे। उसके बाद Indian Army ADGPI की तरफ से एक्स अकाउंट पर 13 दिसंबर को दो फोटो शेयर की गईं, जिसमें यह बताने की कोशिश की गई कि दोनों फोटो अभी भी सेना अध्यक्ष के ऑफिस में हैं।

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क्या लिखा है पोस्ट में

वहीं आज जब पूरा राष्ट्र 1971 की जंग में भारत की जीत को लेकर मनाए जाने वाले कार्यक्रम विजय दिवस को सेलिब्रेट कर रहा है, तो इस वर्ष इस गौरवशाली दिन को और खास बनाने के लिए, भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और जवानों ने मानेकशॉ सेंटर, नई दिल्ली में 1971 युद्ध के सरेंडर की ऐतिहासिक पेंटिंग को एक प्रतिष्ठित स्थान पर स्थापित किया है। सेना की तरफ से जारी पोस्ट में इसकी जानकारी दी गई है।

विजय दिवस के मौके पर, जनरल उपेन्द्र द्विवेदी COAS और  AWWA की प्रेसिडेंट सुनीता द्विवेदी के साथ , 1971 की आत्मसमर्पण पेंटिंग को उसके सबसे उपयुक्त स्थान, मानेकशॉ सेंटर में स्थापित किया। यह सेंटर 1971 युद्ध के आर्किटेक्ट और नायक, फील्ड मार्शल सम मानेकशॉ के नाम पर है। इस अवसर पर भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारी और सेवानिवृत्त अधिकारी उपस्थित थे।

यह पेंटिंग भारतीय सशस्त्र बलों की सबसे बड़ी सैन्य जीतों में से एक का प्रतीक है और भारत की न्याय और मानवता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। मानेकशॉ सेंटर में इसे प्रतिष्ठापित करने के बाद, यहां आने वाले गणमान्य व्यक्तियों और दर्शकों को इसका दर्शन करने का अवसर मिलेगा।

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Indian Army: Historic Photo Disappears from Army Chief's Office Wall, Former Officers Question if Government is Overlooking Indian Army's Glorious Victory

किसने बनाई है नई पेंटिंग

सेना के सूत्रों ने कहा कि नई पेंटिंग, ‘कर्म क्षेत्र– कर्मों का क्षेत्र’, जिसे 28 मद्रास रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब ने बनाई है। इस पेंटिंग में सेना को एक “धर्म के रक्षक” के रूप में दर्शाया गया है, जो केवल राष्ट्र का रक्षक नहीं बल्कि न्याय की रक्षा और देश के मूल्यों की सुरक्षा के लिए लड़ती है। यह पेंटिंग बताती है कि सेना तकनीकी रूप से कितनी एडवांस हो गई है। पेंटिंग बर्फ से ढकी पहाड़ियां पृष्ठभूमि में दिख रही हैं, दाएं ओर पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील और बाएं ओर गरुड़ा और श्री कृष्ण की रथ, साथ ही चाणक्य और आधुनिक उपकरण जैसे टैंक, ऑल-टेरेन व्हीकल्स, इन्फैंट्री व्हीकल्स, पेट्रोल बोट्स, स्वदेशी लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर्स और एच-64 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर्स दिखाए गए हैं।

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1971 युद्ध की अहमियत

दूसरी तरफ, एयर वाइस मार्शल (रिटायर्ड) मनमोहन बहादुर ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि 1971 का युद्ध भारत के रक्षा इतिहास में सबसे बड़ी जीत थी। उन्होंने यह भी कहा कि यह युद्ध भारत के एकीकृत राष्ट्र के रूप में पहली सैन्य विजय का प्रतीक है, और इस चित्र को हटाना भारतीय सेना की इस महान उपलब्धि को नजरअंदाज करना है। उनका कहना था कि यह चित्र कई देशों के सैन्य प्रमुखों और गणमान्य व्यक्तियों के लिए भारत की सामरिक ताकत और उसकी सफलता का प्रतीक था।

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1971 की समर्पण तस्वीर का महत्व

भारतीय सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग ने कहा कि यह चित्र पिछले 1000 सालों में भारत की पहली बड़ी सैन्य विजय का प्रतीक था। यह न केवल सैन्य दृष्टिकोण से बल्कि भारतीय एकता और शक्ति का प्रतीक भी था। उन्होंने आरोप लगाया कि जो लोग इस चित्र को हटाने का कारण बने हैं, वे भारतीय सेना के गौरव को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, और इस कदम के पीछे एक विशेष विचारधारा काम कर रही है जो भारत के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास को बढ़ावा देती है।

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बताया- बदलाव समय की जरूरत

इस मुद्दे पर रिटायर्ड पश्चिमी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल कमलजीत सिंह ने भी अपनी राय दी थी। उनका कहना था कि बिना पूरे हालात को देखे इस चित्र पर टिप्पणी करना सही नहीं होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि बदलाव समय की जरूरत है और आने वाली पीढ़ियों को इसे समझने और उनका दृष्टिकोण बदलने का अवसर देना चाहिए। उनका यह भी मानना ​​है कि यह मामला राजनीतिक और सांस्कृतिक विमर्श का हिस्सा बन चुका है और इससे आगे बढ़ने की जरूरत है।

विजय दिवस के मौके पर भारतीय सेना द्वारा इस ऐतिहासिक पेंटिंग को मानेकशॉ सेंटर में स्थापित करना भारतीय सेना के इतिहास और गौरव को सम्मानित करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। यह पेंटिंग न केवल भारतीय सेना की महानता का प्रतीक है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को हमारे सैन्य इतिहास और उपलब्धियों से परिचित कराएगी।

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