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📍नई दिल्ली | 7 months ago

Army Personnel Salary Attachment: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि सेना कर्मियों की सैलरी को धारा 125 सीआरपीसी (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144) के तहत भरण-पोषण के बकाए को वसूलने के लिए अटैच नहीं किया जा सकता, क्योंकि केवल केंद्र सरकार को ही इस प्रकार की कटौती करने का अधिकार है।

Army Personnel Salary Attachment: High Court Rules Only Central Government Authorized for Deductions

न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बरार ने अपने आदेश में कहा कि सेना अधिनियम के तहत सेना कर्मियों को व्यापक अधिकार और सुरक्षा प्रदान की गई है, ताकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा के अपने कर्तव्यों को बिना किसी बाहरी वित्तीय बाधा के प्रभावी ढंग से निभा सकें।

Army Personnel Salary Attachment: क्या है मामला?

यह फैसला एक याचिका की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने सेना कर्मी की सैलरी से 4,10,000 रुपये की कटौती का आदेश दिया था, ताकि भरण-पोषण का बकाया वसूल किया जा सके।

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याचिकाकर्ता के वकील मदन लाल सैनी ने तर्क दिया कि सेना अधिनियम (आर्मी एक्ट 1950) के तहत बिना केंद्र सरकार की स्वीकृति के इस प्रकार की कटौती नहीं की जा सकती।

सेना अधिनियम के तहत अधिकार और सुरक्षा

न्यायालय ने कहा कि सेना अधिनियम (आर्मी एक्ट 1950) की धारा 25 और 91 के तहत सेना कर्मियों की सैलरी और भत्तों से कटौती केवल केंद्र सरकार की अनुमति से ही संभव है। इसके अलावा, धारा 28 यह सुनिश्चित करती है कि सेना कर्मियों की सैलरी अटैच नहीं की जा सकती।

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न्यायालय ने यह भी कहा कि सेना कर्मियों को दिए गए अधिकार और विशेषाधिकार अन्य कानूनों के तहत उनके पास मौजूद किसी भी अधिकार या विशेषाधिकार को कम नहीं करते, बल्कि यह उनके लिए अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करते हैं।

न्यायालय ने सेना अधिनियम की निम्नलिखित धाराओं का हवाला दिया:

  • धारा 25 और 91: ये धाराएं जवानों के वेतन और भत्तों से कटौती के नियम तय करती हैं।
  • धारा 28: इस धारा के तहत जवानों के वेतन और भत्तों को जब्ती से सुरक्षा प्रदान की गई है।
  • धारा 33: यह धारा स्पष्ट करती है कि जवानों को दिए गए अधिकार अन्य कानूनों के तहत दिए गए अधिकारों के पूरक हैं।

Army Personnel Salary Attachment: न्यायालय का निर्णय

न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बरार ने कहा, “निचली अदालत द्वारा दिए गए आदेश के अनुसार सेना कर्मी की सैलरी को अटैच नहीं किया जा सकता। भरण-पोषण के लिए तय 10,000 रुपये की कटौती के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है।”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई सिविल कोर्ट भरण-पोषण का आदेश देती है, तो लाभार्थी केंद्र सरकार से अनुरोध कर सकता है कि सेना अधिनियम की धारा 91(i) के तहत आवश्यक कटौती की जाए।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सेना कर्मियों को उनके कार्यों में बाधा पहुंचाने से बचाने के लिए यह विशेष संरक्षण दिया गया है। सेना कर्मियों को अपनी सैलरी और भत्तों पर निर्भर रहना पड़ता है, और इस प्रकार की कटौती उनके कर्तव्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।

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वहीं, उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता की अपील स्वीकार कर ली। साथ ही, जवाबदेही तय करते हुए यह निर्देश दिया कि भरण-पोषण के आदेश को लागू करने के लिए उत्तरदाता केंद्र सरकार से संपर्क कर सकता है।

क्या है धारा 125 सीआरपीसी?

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144) के तहत पत्नी, बच्चे और माता-पिता को भरण-पोषण का अधिकार दिया गया है। इसमें विशेष रूप से यह प्रावधान है कि यदि परिवार के लिए आवश्यक धनराशि का भुगतान नहीं किया जाता, तो इसे अदालत द्वारा लागू कराया जा सकता है।

सेना कर्मियों के लिए क्या है खास?

सेना कर्मियों को उनके संवैधानिक अधिकारों और विशेषाधिकारों के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि उनके वेतन और भत्तों की कटौती केवल केंद्र सरकार की स्वीकृति से ही हो सकती है। यह कदम यह सुनिश्चित करता है कि सेना कर्मी अपनी सेवा और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से समर्पित रह सकें।

न्यायालय के फैसले का महत्व

इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि सेना कर्मियों के वेतन और भत्तों को लेकर केंद्र सरकार का विशेष अधिकार है। यह फैसला न केवल सेना कर्मियों के अधिकारों को सुरक्षित रखता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि सिविल अदालतें इस संवेदनशील मुद्दे पर सीधे हस्तक्षेप न करें।

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