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📍नई दिल्ली | 6 months ago

Indian Air Force self-reliance: भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर जोर देते हुए चीन के हालिया सैन्य आधुनिकीकरण का उदाहरण दिया। उन्होंने चीन के सिक्स्थ जनरेशन दो स्टील्थ फाइटर जेट्स को लेकर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि भारत को अपने रक्षा अनुसंधान और विकास (R&D) और उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने के लिए तेज़ी से काम करना चाहिए।

Indian Air Force Self-Reliance: IAF Chief Stresses on Lessons from China Stealth Jets

Indian Air Force self-reliance: चीन की सैन्य ताकत में हो रहा इजाफा

वायुसेना प्रमुख ने ‘सुब्रतो मुखर्जी सेमिनार’ में कहा, “आज की दुनिया संघर्ष और प्रतिस्पर्धा से भरी हुई है। हमारे पास पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं पर अपनी सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं, जहां चीन और पाकिस्तान ने सैन्यकरण बढ़ा दिया है।” उन्होंने चीन के वायुसेना में हो रहे भारी निवेश का ज़िक्र करते हुए कहा, “हाल ही में चीन के सिक्स्थ जनरेशन दो स्टील्थ फाइटर जेट्स इसका एक उदाहरण है।”

चीन ने हाल ही में चेंगदू में दो नई पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट्स को पहली बार दुनिया के सामने प्रदर्शित किया, जिससे पूरी दुनिया हैरान रह गई। चीन ने 26 दिसंबर को इन दोनों स्टील्थ फाइटर जेट्स की पहली उड़ान का प्रदर्शन किया। ये विमान अपनी एडवांस टेक्नोलॉजी और कम ऊंचाई पर उड़ने की क्षमता रखते हैं। इन टेललेस, स्टील्थ विमानों के वीडियो ने अमेरिका तक को चौंका दिया। जबकि अमेरिका अभी तक अपने छठी पीढ़ी के फाइटर प्रोजेक्ट को अंतिम रूप नहीं दे पाया है, वहीं, चीन पहले ही इस क्षेत्र में आगे निकल चुका है।

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वहीं, चीन के पास पहले से ही 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स, जैसे चेंगदू J-20, हैं जिन्हें भारत की सीमाओं के पास होटन और शिगात्से जैसे एयरफील्ड्स पर तैनात किया गया है।

भारत के पास नहीं हैं 5वीं पीढ़ी के जेट्स

भारत अभी भी 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स के उत्पादन से बहुत दूर है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सुरक्षा पर कैबिनेट समिति ने मार्च 2022 में स्विंग-रोल एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) के विकास को मंजूरी दी थी। इसके लिए 15,000 करोड़ रुपये से अधिक की शुरुआती लागत तय की गई है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, AMCA का पहला प्रोटोटाइप अगले चार से पांच वर्षों में तैयार होगा। उत्पादन और शामिल किए जाने की प्रक्रिया 2035 के बाद ही शुरू हो पाएगी।

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तेजस को नहीं मिल पा रहा इंजन 

वायुसेना प्रमुख ने कहा, “पहला विमान 2001 में उड़ा था – यानी 17 साल पहले। फिर, 15 साल बाद 2016 में इसे शामिल किया गया। आज हम 2024 में हैं, लेकिन मेरे पास अभी तक पहले 40 विमान भी नहीं हैं। यही हमारी उत्पादन क्षमता है। हमें इस पर काम करने की सख्त जरूरत है। मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि हमें कुछ प्राइवेट कंपनियों को इसमें शामिल करना होगा। अन्यथा, हालात में कोई बदलाव नहीं आएगा।”

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बता दें कि भारत को अपने चौथी पीढ़ी के तेजस मार्क-1ए फाइटर्स का उत्पादन करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसके पीछे एक बड़ी वजह GE-F404 टर्बोफैन जेट इंजन की आपूर्ति में हो रही देरी है। अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक द्वारा GE-F404 टर्बोफैन जेट इंजन की आपूर्ति में देरी की वजह से भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं। इसकी वजह है कि वायुसेना को चीन और पाकिस्तान के खतरों से निपटने के लिए 42.5 स्क्वाड्रन की जरूरत है, जबकि उसके पास फिलहाल केवल 30 स्क्वाड्रन ही हैं।

वायुसेना प्रमुख ने आरएंडडी में हो रही देरी पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “यदि तकनीक समय पर नहीं पहुंचती है, तो उसका महत्व खत्म हो जाता है। हमें आरएंडडी में शामिल जोखिमों और विफलताओं को स्वीकार करने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी।” उन्होंने यह भी कहा, “आत्मनिर्भरता की कीमत चुकानी पड़ेगी, और हमें इसे स्वीकार करना चाहिए। भले ही इसके लिए ज्यादा खर्च करना पड़े। लेकिन यह हमारे देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।”

रक्षा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी पर दिया जोर

वायुसेना प्रमुख ने तेजस फाइटर जेट के धीमे उत्पादन पर भी निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि देरी के चलते भारतीय वायुसेना को कई ऑपरेशनल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। IAF प्रमुख ने चीन और पाकिस्तान से बढ़ते खतरों का ज़िक्र करते हुए कहा कि वायुसेना को कम से कम 180 तेजस मार्क-1ए और 108 तेजस मार्क-2 विमानों की ज़रूरत है। AMCA के प्रोडक्शन और तैनाती तक ये विमान भारतीय वायुसेना की ताकत को बनाए रखने में मदद करेंगे।

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उन्होंने यह भी कहा कि नई तकनीकों को अपनाने और जोखिम लेने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने की जरूरत है। “तकनीक में देरी का मतलब है तकनीक से इनकार। R&D में विफलताओं और जोखिम को स्वीकार करने का रवैया विकसित करना होगा।”

वायुसेना प्रमुख ने रक्षा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता से दीर्घकालिक फायदे होंगे, हालांकि शुरुआती चरणों में इसकी लागत अधिक हो सकती है। उन्होंने निजी और सरकारी क्षेत्रों के बीच तालमेल बढ़ाने पर जोर दिया।

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