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📍नई दिल्ली | 5 months ago

IAF Chief: भारतीय वायुसेना को अपनी युद्ध क्षमता को बनाए रखने और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए हर साल कम से कम 35-40 नए लड़ाकू विमानों की जरूरत है। यह मांग वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने हाल ही में दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान रखी। उन्होंने कहा कि मौजूदा बेड़े में मौजूद अंतर को भरने और अगले कुछ वर्षों में चरणबद्ध तरीके से सेवा से बाहर हो रहे मिराज, मिग-29 और जगुआर जैसे पुराने लड़ाकू विमानों की भरपाई करने के लिए यह बेहद जरूरी है।

IAF Chief: Indian Air Force Needs 35-40 New Fighter Jets Annually, Stresses Private Sector Involvement

IAF Chief: वायुसेना की जरूरतें और मौजूदा चुनौतियां

एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने इस मौके पर कहा, “हमें हर साल दो स्क्वाड्रन जोड़ने की जरूरत है, यानी 35-40 नए विमान चाहिए। इस क्षमता को रातों-रात तैयार नहीं किया जा सकता।” वर्तमान में भारतीय वायुसेना के पास केवल 31 स्क्वाड्रन हैं, जबकि पाकिस्तान और चीन जैसे दो मोर्चों पर संभावित युद्ध के लिए कुल 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है। ऐसे में नए विमानों की संख्या बढ़ाना वायुसेना के लिए एक प्राथमिकता बन गया है।

अभी वायुसेना मिराज-2000, मिग-29 और जगुआर जैसे लड़ाकू विमानों का उपयोग कर रही है, जो 1980 के दशक में शामिल किए गए थे। इन विमानों की संख्या लगभग 250 है और इन्हें विस्तारित लाइफ-साइकिल के तहत ऑपरेट किया जा रहा है। लेकिन 2029-30 के बाद इन्हें चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना है। ऐसे में नई पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का तेजी से निर्माण जरूरी हो गया है।

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तेजस की उत्पादन क्षमता पर उठे सवाल

वायुसेना प्रमुख ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित तेजस लड़ाकू विमानों को लेकर भी बात की। उन्होंने कहा, “HAL ने अगले साल 24 तेजस मार्क-1A विमानों के उत्पादन का वादा किया है, और मैं इससे खुश हूं। लेकिन हमें और अधिक विमानों की आवश्यकता है।” उन्होंने HAL द्वारा तेजस के उत्पादन में देरी पर भी चिंता व्यक्त की। दरअसल, HAL को 83 तेजस मार्क-1A विमानों की आपूर्ति करनी है, लेकिन इसका उत्पादन तय समय से पीछे चल रहा है।

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IAF Chief ने प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी को बताया जरूरी

वायुसेना प्रमुख ने साफ संकेत दिए कि लड़ाकू विमानों के उत्पादन में निजी क्षेत्र को शामिल किए बिना जरूरी संख्या को पूरा कर पाना मुश्किल होगा। उन्होंने टाटा-एयरबस द्वारा निर्मित C-295 ट्रांसपोर्ट विमान का उदाहरण देते हुए कहा कि निजी क्षेत्र की भागीदारी से 12-18 विमानों का अतिरिक्त प्रोडक्शन संभव हो सकता है।

उन्होंने कहा, “मैं यह वचन ले सकता हूं कि मैं विदेशी लड़ाकू विमान नहीं खरीदूंगा, लेकिन हमारे पास संख्या की भारी कमी है। वादा किए गए विमानों की डिलीवरी धीमी है, और इस अंतर को भरने के लिए हमें अन्य विकल्पों पर भी विचार करना होगा।”

इससे पहले, एयरो इंडिया 2025 में भी वायुसेना प्रमुख ने तेजस मार्क-1A के उत्पादन की गति को लेकर चिंता जताई थी और इसे तेज करने की जरूरत बताई थी।

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2024 के बाद वायुसेना की रणनीति

भविष्य की योजनाओं को लेकर एयर चीफ मार्शल सिंह ने कहा कि 2047 तक भारतीय वायुसेना को तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर और अत्याधुनिक बनाना प्राथमिकता होगी। उन्होंने बताया कि भविष्य में वायुसेना का ढांचा मौजूदा बेड़े से बहुत अलग नहीं होगा, लेकिन तकनीक में बड़ा बदलाव आएगा। उन्होंने कहा, “हमें डेटा ट्रांसफर और लक्ष्यों को वास्तविक समय में सभी प्लेटफार्मों तक पहुंचाने में सक्षम होना चाहिए।”

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उन्होंने आगे कहा कि इससे हमें भविष्य में ऑटोमेशन और जल्दी फैसला लेने की क्षमता बढ़ेगी। वायुसेना आकार में भी बड़ी होगी और तकनीक के मामले में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगी।

क्या रक्षा मंत्रालय बढ़ाएगा निजी क्षेत्र की भागीदारी?

रक्षा मंत्रालय पहले ही एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर चुका है, जो लड़ाकू विमानों के धीमे उत्पादन की समस्या पर समाधान सुझाएगी। इसमें निजी क्षेत्र को अधिक भागीदारी देने का विकल्प भी शामिल है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यदि निजी कंपनियों को लड़ाकू विमानों के निर्माण में शामिल किया जाता है, तो प्रोडक्शन में तेजी आ सकती है और वायुसेना की जरूरतों को समय पर पूरा किया जा सकता है।

वायुसेना के बेड़े में क्या होंगे बदलाव?

वर्तमान में भारतीय वायुसेना की प्राथमिकता स्वदेशी तकनीक को अपनाने की है। एयर चीफ मार्शल सिंह ने कहा, “अगर हमें कोई घरेलू तकनीक मिलती है जो विदेशी प्लेटफार्मों की 90% क्षमता तक पहुंचती है, तो मैं उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हूं। हमें इसी दिशा में आगे बढ़ना होगा।”

विशेषज्ञों का मानना है कि तेजस मार्क-1A और भविष्य के AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) जैसे स्वदेशी विमान वायुसेना की रीढ़ बन सकते हैं। लेकिन इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र का सहयोग जरूरी होगा।

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