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📍नई दिल्ली | 5 months ago

F-35 fighter: अमेरिकी फाइटर जेट F-35 की खरीद को लेकर तरह-तरह की कयासबाजियां शुरू हो गई हैं। हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान संकेत दिया था कि भारत को F-35 स्टील्थ फाइटर जेट्स देने की योजना बनाई जा रही है। इस खबर के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत इस सौदे को अंजाम देने के लिए उसी रास्ते पर चल सकता है जिस तरह उसने फ्रांस से राफेल फाइटर जेट्स खरीदे थे।

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हालांकि, भारत सरकार ने साफ किया है कि अभी तक कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं मिला है, लेकिन अमेरिका के साथ बातचीत जल्द शुरू हो सकती है। रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह कोई आधिकारिक प्रस्ताव नहीं है। ट्रंप ने सिर्फ यह संकेत दिया है कि अमेरिका इसे संभव बनाने के लिए रोडमैप तैयार कर सकता है। जब हमें औपचारिक प्रस्ताव मिलेगा, तब हम इस पर विचार करेंगे।”

F-35 fighter: क्या भारत सीमित संख्या में F-35 खरीदेगा?

सूत्रों के मुताबिक, भारत सीमित संख्या में F-35 फाइटर जेट्स खरीद सकता है। ठीक वैसे ही जैसे राफेल सौदे में केवल 36 विमान खरीदे गए थे। इसकी वजह यह है कि F-35 की कीमत बहुत ज्यादा है और इसका मेंटेनेंस भी बेहद महंगा है। इसलिए, भारत पूरे बेड़े को अपग्रेड करने के बजाय इसके दो स्क्वॉड्रन बना सकता है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह सौदा होता है, तो यह सरकार-से-सरकार (G2G) डील के तहत होगा, जिससे कीमत और डिलीवरी की गारंटी मिलेगी।

F-35 fighter: अमेरिका की बड़ी चिंता S-400 एयर डिफेंस सिस्टम

अमेरिका ने पहले भारत को F-35 बेचने में दिलचस्पी नहीं दिखाई थी, क्योंकि भारत ने रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा था। अमेरिकी पेंटागन को चिंता है कि S-400 और F-35 को एक साथ ऑपरेट करना मुश्किल होगा, क्योंकि S-400 को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वह अमेरिकी स्टील्थ विमानों की मूवमेंट को पकड़ सके। सूत्रों के मुताबिक, यदि भारत इस डील को आगे बढ़ाता है, तो अमेरिका भारत से यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी शर्तें रख सकता है कि रूसी सैन्य विशेषज्ञों को F-35 तक पहुंच न मिले।

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अमेरिकी रक्षा विभाग का मानना है कि अगर कोई देश S-400 और F-35 को एक साथ ऑपरेट करता है, तो रूसी रडार सिस्टम अमेरिकी स्टील्थ टेक्नोलॉजी को ट्रैक करने के लिए अपडेट हो सकते हैं। क्योंकि दुनिया में अभी तक किसी भी देश ने S-400 और F-35 दोनों को एक साथ नहीं चलाया है। इससे पहले तुर्किए को भी अमेरिका ने F-35 फाइटर जेट देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उसने भी रूस से S-400 मिसाइलें खरीदीं थीं। वहीं अगर अमेरिका भारत को शर्तों में ढील देता है, तो तुर्किए के लिए F-35 की खरीद के रास्ते खुल सकते हैं। माना जा रहा है कि दोनों सिस्टम्स को अलग रखने के लिए अमेरिका कुछ कड़े मॉनिटरिंग प्रोटोकॉल्स जारी कर सकता है।

F-35 fighter: क्या टेंपरेरी सॉल्यूशन है F-35?

भारत अपनी वायुसेना के बेड़े को अपग्रेड करना चाहता है। भारत का AMCA (Advanced Multirole Combat Aircraft) प्रोग्राम 2036 से पहले तैयार नहीं होगा, और इसमें और देरी भी हो सकती है। इसलिए, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि F-35 को एक टेंपरेरी सॉल्यूशन के तौर पर देखा जा सकता है, जब तक कि भारत का AMCA पूरी तरह तैयार नहीं हो जाता। हाल ही में भारत ने फ्रांस से राफेल मरीन एयरक्राफ्ट खरीदे थे, ताकि स्वदेशी ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर्स (TEDBF) के डेवलप होने तक नौसेना की जरूरतें पूरी हो सकें। उसी तरह, F-35 को भी टेंपरेरी सॉल्यूशन माना जा रहा है।

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वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “F-35 बहुत महंगे विमान हैं। न सिर्फ खरीदना, बल्कि इनका रखरखाव और ऑपरेशन भी बेहद खर्चीला है। ऐसे में भारत एक या दो स्क्वाड्रन (36 विमान) तक सीमित रह सकता है।”

क्या F-35 पर ब्रह्मोस मिसाइल लगने देगा अमेरिका?

F-35 एक हाई-टेक स्टील्थ फाइटर जेट है, और अमेरिका इसे केवल उन्हीं देशों को बेचता है जो उसके पार्टनर या नॉटो देश होते हैं। अगर भारत को यह फाइटर जेट मिलते हैं, तो अमेरिका यह सुनिश्चित करेगा कि भारत इसे किसी तीसरे देश (जैसे रूस) को नहीं दिखाएगा या इस पर कोई अतिरिक्त मॉडिफिकेशन नहीं करेगा। यहां कि भारत इसमें अपनी जरूरतों के हिसाब से मिसाइलें भी नहीं लगा सकेगा, जैसे कि सुखोई पर लगाई हैं।

सूत्रों का कहना है कि F-35 फाइटर जेट पर ब्रह्मोस मिसाइल लगाना आसान नहीं होगा। F-35 अमेरिकी तकनीक से बना है और इसमें किसी भी बाहरी हथियार को जोड़ने के लिए अमेरिकी सरकार और लॉकहीड मार्टिन की मंजूरी चाहिए। अब तक अमेरिका ने किसी भी गैर-नाटो या गैर-अमेरिकी मिसाइल को F-35 पर लगाने की अनुमति नहीं दी है।

ब्रह्मोस मिसाइल का आकार और वजन भी समस्या खड़ी कर सकता है। F-35 की स्टील्थ क्षमता बनाए रखने के लिए उसके हथियार इंटरनल बे में रखे जाते हैं, लेकिन ब्रह्मोस इसमें फिट नहीं होती। इसे बाहरी रूप से माउंट किया जा सकता है, लेकिन इससे F-35 का स्टील्थ खत्म हो जाएगा और रडार उसे ट्रेक कर लेंगे। इसके अलावा, अमेरिका के पास पहले से कई विकल्प मौजूद हैं। F-35 के लिए AGM-158 JASSM (स्टील्थ क्रूज मिसाइल), AGM-88 HARM (एंटी-रेडिएशन मिसाइल) और LRASM (एंटी-शिप मिसाइल, जो ब्रह्मोस जैसी ही भूमिका निभाती है) जैसी मिसाइलें हैं। इनका इस्तेमाल अमेरिकी सेना करती है और अगर अगर भारत F-35 लेता है, तो अमेरिका चाहेगा कि भारत इन्हीं मिसाइलों का इस्तेमाल करे। यहां तक कि अगली पीढ़ी की ब्रह्मोस-एनजी भी AMRAAM या JASSM से है।

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ब्रह्मोस को पहले से ही Su-30MKI जैसे लड़ाकू विमानों पर तैनात किया जा रहा है और भविष्य में इसे राफेल और स्वदेशी AMCA जैसे विमानों के साथ भी जोड़ा जा सकता है। अगर भारत F-35 खरीदता है, तो वह कुछ हद तक हथियारों को कस्टमाइज़ करने पर बातचीत कर सकता है, लेकिन ब्रह्मोस के इंटीग्रेशन की संभावना कम है।

Minister Piyush Goel with Mr. Michael Williamson, President at Lockheed Martin International
Minister Piyush Goel with Mr. Michael Williamson, President at Lockheed Martin International

क्या ‘मेक इन इंडिया’ होगा F-35?

अमेरिका के साथ इस डील में एक और दिलचस्प पहलू यह है कि क्या इसे ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत भारत में ही बनाया जा सकता है। हालांकि अभी तक का इतिहास रहा है कि अमेरिका इसे खुद बना कर ही एक्सपोर्ट कर रहा है। लेकिन जॉइंट प्रोडक्शन की चर्चाओं को बल तब मिला जब हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने लॉकहीड मार्टिन इंटरनेशनल के अध्यक्ष माइकल विलियमसन के साथ बैठक की और भारत में रक्षा और एयरोस्पेस सेक्टर में निवेश और एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग के अवसरों पर चर्चा की। हालांकि लॉकहीड मार्टिन ने टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) के साथ मिलकर भारतीय वायुसेना के C-130J ‘सुपर हरक्यूलिस’ विमानों के लिए देश में पहली मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल (MRO) सुविधा स्थापित करने का एलान किया है। इसके अतिरिक्त, लॉकहीड मार्टिन और टाटा ने भारतीय वायुसेना के मीडियम ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट (MTA) जरूरतों के लिए C-130J विमानों की लोकल मैन्युफैक्चरिंग और असेंबली की भी पेशकश की है। बता दें कि गुजरात में, टाटा और एयरबस ने वडोदरा में C-295 विमानों के जॉइंट प्रोडक्शन के लिए एक संयंत्र स्थापित किया है, जो भारतीय वायुसेना की ट्रांसपोर्ट जरूरतों को पूरा करेगा। इसलिए ऐसी संभावना बेहद कम है कि F-35 को लॉकहीड मार्टिन भारत में बनाएगी।

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