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AMCA के लिए जो नया इंजन विकसित होना है, उसमें 110–130 किलो न्यूटन की थ्रस्ट क्षमता होनी चाहिए। यह विमान की सुपरसोनिक गति, स्टील्थ क्षमता और हथियार ले जाने की क्षमता के लिए जरूरी है। फिलहाल पहले प्रोटोटाइप और Mk-1 संस्करण में अमेरिका का GE F414 इंजन लगाया जा रहा है। लेकिन भारत का लक्ष्य है कि Mk-2 संस्करण में स्वदेशी इंजन लगाया जाए...
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📍नई दिल्ली | 1 week ago

AMCA indigenous engine: भारत सरकार ने स्वदेशी फाइटर जेट इंजन विकसित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) को यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वह फ्रांस की साफरान (Safran) कंपनी या ब्रिटेन की रोल्स-रॉयस (Rolls-Royce) के साथ मिलकर अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के लिए इंजन तकनीक का सह-विकास करे।

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यह फैसला उस समय आया है जब भारत अपने 5.5वीं पीढ़ी के ट्विन-इंजन स्टील्थ लड़ाकू विमान AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) के विकास में तेजी लाना चाहता है। इस परियोजना में स्वदेशी इंजन विकसित करना एक बड़ी चुनौती रही है, जिसे अब हल करने की कोशिश हो रही है।

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AMCA indigenous engine: इंजन बना ‘बॉटलनेक’ 

भारत के रक्षा क्षेत्र में इंजन तकनीक लंबे समय से एक कमजोर कड़ी रही है। AMCA जैसे उच्च तकनीक वाले विमान में अत्याधुनिक इंजन की आवश्यकता होती है जो सुपरसोनिक गति और स्टील्थ क्षमता के लिए उपयुक्त हो। लेकिन अब तक भारत पूरी तरह से विदेशी इंजन निर्माताओं पर निर्भर रहा है।

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एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार, “इंजन एक बाधा बन चुका है। यह एक रणनीतिक फैसला है, जिसे अब लेना जरूरी हो गया है।”

Rolls-Royce और Safran में कड़ा मुकाबला

दोनों कंपनियों रोल्स-रॉयस और साफरान ने DRDO के बेंगलुरु स्थित गैस टर्बाइन रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट (GTRE) के साथ सहयोग करने का प्रस्ताव दिया है। सरकार को जल्द ही DRDO से कैबिनेट नोट प्राप्त होगा, जिसके बाद औपचारिक निर्णय लिया जाएगा।

दोनों कंपनियां तकनीक हस्तांतरण (Technology Transfer) और बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) साझा करने पर भी सहमत हैं। यानी जो तकनीक विकसित होगी, वह भारत की होगी और उसे दूसरे देशों को बेचा भी जा सकेगा।

क्या है AMCA इंजन की जरूरत?

AMCA के लिए जो नया इंजन विकसित होना है, उसमें 110–130 किलो न्यूटन की थ्रस्ट क्षमता होनी चाहिए। यह विमान की सुपरसोनिक रफ्तार, स्टील्थ क्षमता और हथियार ले जाने की क्षमता के लिए जरूरी है। फिलहाल पहले प्रोटोटाइप और Mk-1 संस्करण में अमेरिका का GE F414 इंजन लगाया जा रहा है। लेकिन भारत का लक्ष्य है कि Mk-2 संस्करण में स्वदेशी इंजन लगाया जाए।

डिलीवरी में देरी से बढ़ी चिंता

Tejas Mk-1A फाइटर जेट के लिए GE द्वारा आपूर्ति किए गए F404 इंजन की डिलीवरी में हुई देरी से सरकार को यह अहसास हुआ कि विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता खतरनाक हो सकती है। अमेरिका की कंपनियां कोविड के बाद से आपूर्ति श्रृंखला में समस्याओं से जूझ रही हैं, जिसका असर भारत की रक्षा परियोजनाओं पर भी पड़ा है।

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एक अधिकारी ने कहा, “जैसे हमने मरीन इंजनों के लिए देश में निर्माण शुरू किया है, वैसे ही विमान इंजन के लिए भी आत्मनिर्भरता जरूरी है।”

Kirloskar मॉडल की तरह लोकल सप्लाई चेन बनाने की तैयारी

सरकार का विचार है कि जैसे कि किर्लोस्कर मरीन इंजनों के लिए स्वदेशी क्षमता विकसित कर रहा है, वैसे ही विमान इंजनों के लिए भी एक लोकल सप्लाई चेन तैयार की जाए। इससे भविष्य में किसी विदेशी निर्भरता से बचा जा सकेगा।

Aeronautical Development Agency (ADA) ने इच्छुक कंपनियों से सूचना (Request for Information – RFI) भी जारी कर दी है और प्रारंभिक दौर की बातचीत शुरू हो चुकी है।

Safran और Rolls-Royce के प्रस्तावों में क्या अंतर?

फ्रांसीसी कंपनी साफरान ने राफेल फाइटर जेट के M88 इंजन से जुड़ी तकनीक को आधार बनाकर नया इंजन डिजाइन करने की बात की है। साथ ही राफेल डील के तहत मिले ऑफसेट लाभों का उपयोग करके स्वदेशी ‘कावेरी इंजन प्रोग्राम’ को भी पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव दिया है।

वहीं, ब्रिटिश कंपनी रोल्स-रॉयस ने ट्रांसपोर्ट और नागरिक विमानों में उपयोग के लिए कई हाई थ्रस्ट इंजन प्लेटफॉर्म साझा करने की बात की है। वह भारत के लिए खासतौर पर एक नए सैन्य इंजन प्लेटफॉर्म पर काम करना चाहती है।

भारत की दीर्घकालिक योजना क्या है?

सरकार का उद्देश्य केवल AMCA के लिए इंजन बनाना नहीं है, बल्कि दीर्घकालिक दृष्टिकोण से स्वदेशी इंजन निर्माण प्रणाली विकसित करना है। यही वजह है कि अब F-35 और Su-57 जैसे विदेशी फाइटर जेट्स की खरीद की भी योजना बनाई जा रही है ताकि तत्काल जरूरतें पूरी की जा सकें। खासकर पाकिस्तान द्वारा J-10C जैसे नए फाइटर विमान खरीदने के बाद भारत को अपनी ताकत और बढ़ानी पड़ी है।

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अमेरिकी विकल्प पर संदेह

अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन के प्रस्ताव में कई समस्याएं हैं। उसमें ‘एंड-यूज मॉनिटरिंग’ जैसे सख्त प्रावधान हैं, जो भारत की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिहाज से उपयुक्त नहीं माने जा रहे। इसके अलावा, भारतीय वायुसेना के पास पहले से ही फ्रांस, रूस और स्वदेशी विमानों का मिश्रण है, जिसमें Su-30MKI, राफेल, मिराज 2000 और तेजस Mk1A शामिल हैं। अमेरिकी विमानों के साथ इनकी इंटरऑपरेबिलिटी (आपसी तालमेल) एक चुनौती बन सकती है।

AWACS और रिफ्यूलर जैसे दूसरे उपकरणों पर भी फोकस

सरकार अब केवल इंजन ही नहीं, बल्कि एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (AWACS) और मिड-एयर रिफ्यूलर जैसी क्षमताओं पर भी ध्यान दे रही है। इनकी खरीद के लिए भी रक्षा मंत्रालय ने प्रस्ताव (RFI) मंगाए हैं।

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