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📍नई दिल्ली | 7 months ago

Takshashila Survey 2024: भारत और चीन के संबंधों को लेकर आम जनता की सोच क्या है? तक्षशिला इंस्टीट्यूट के हालिया सर्वे में इस सवाल का जवाब ढूंढा गया है। यह सर्वे तक्षशिला के इंडो-पैसिफिक स्टडीज प्रोग्राम में स्टाफ रिसर्च एनालिस्ट अनुष्का सक्सेना ने किया है। PULSE OF THE PEOPLE- STATE OF INDIA-CHINA RELATIONS सर्वे के नतीजे बताते हैं कि अधिकांश भारतीयों का मानना है कि सीमा विवाद (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल – एलएसी) दोनों देशों के रिश्तों में तनाव का मुख्य कारण है। साथ ही, पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी लोग एक बड़ी चुनौती मानते हैं।

Takshashila Survey 2024: Public on India-China Ties, Democracy in China a Game-Changer?

Takshashila Survey 2024: सीमा विवाद है मुख्य कारण

सर्वे में शामिल 54.4 फीसदी लोगों का मानना है कि भारत-चीन संबंधों में तनाव का सबसे बड़ा कारण एलएसी पर चल रहा सीमा विवाद है। यह मसला भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा भी प्रमुखता से उठाया जाता रहा है।

26.6 फीसदी लोगों ने चीन के भारत के पड़ोसी देशों में बढ़ते प्रभाव को दूसरा सबसे बड़ा कारण बताया। यह एक दिलचस्प तथ्य है क्योंकि चीन-पाकिस्तान की दोस्ती, भारत-अमेरिका साझेदारी, और चीन के पक्ष में भारी व्यापार असमानता जैसे मुद्दों को लोग कम प्राथमिकता दे रहे हैं।

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Takshashila Survey 2024: आर्थिक संबंधों पर सकारात्मक रुख

भारत-चीन के आर्थिक संबंधों को लेकर जनता की राय अपेक्षाकृत सकारात्मक रही।

  • व्यापार: 49.6 फीसदी लोगों का मानना है कि चीन के साथ व्यापार बढ़ाना भारत के विकास और सुरक्षा के लिए फायदेमंद है।
  • निवेश: 56.3 फीसदी लोगों ने कहा कि चीन से निवेश भारतीय रोजगार के नए अवसर खोल सकता है।
  • प्रतिभा: 52.4 फीसदी लोगों का मानना है कि अगर किसी विशेष उद्योग में भारतीय प्रतिभा की कमी हो तो चीनी विशेषज्ञों का स्वागत किया जाना चाहिए।
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Takshashila Survey 2024: अगर चीन में होता लोकतंत्र…

सर्वे ने यह भी सवाल किया कि क्या चीन में लोकतंत्र होता तो भारत-चीन के रिश्ते बेहतर होते? इस सवाल पर 61.5 फीसदी लोगों का मानना है कि अगर चीन एक बहुदलीय लोकतंत्र होता तो दोनों देशों के रिश्ते बेहतर हो सकते थे। लेकिन 46.6 फीसदी लोगों ने इस बात पर संदेह जताया कि अगर वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के स्थान पर कोई और होता, तो भी हालात अलग हो सकते थे। यह संकेत देता है कि लोगों का मानना है कि भारत-चीन संबंधों की जटिलता केवल नेतृत्व तक सीमित नहीं है।

भारत का झुकाव किस तरफ: अमेरिका या चीन-रूस?

सर्वे में यह सवाल भी पूछा गया कि अगर भारत को किसी गुट का समर्थन करना पड़े तो वह किसे चुनेगा?  अमेरिकी-नेतृत्व वाले पश्चिम या चीन-रूस।

  • 69.2% लोगों ने कहा कि भारत को अमेरिका-नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के साथ खड़ा होना चाहिए, न कि चीन-रूस के गठजोड़ के साथ।
  • हालांकि, क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का समूह) को लेकर लोगों की राय मिली-जुली रही। 50.8% लोगों ने इसे “कुछ हद तक प्रभावी” माना, जबकि 44.4% लोगों ने इसे “अप्रभावी” बताया।

तिब्बत और ताइवान पर भारत की नीति

तिब्बत और ताइवान जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भारत की नीति को लेकर लोगों की राय सामने आई। सर्वेक्षण में पूछा गया कि यदि चीन और भारत में निर्वासित तिब्बती प्रशासन अपने-अपने अगले दलाई लामा को चुनते हैं, तो भारत को क्या करना चाहिए।

  • तिब्बत: 64% लोगों ने कहा कि अगर चीन और निर्वासित तिब्बती प्रशासन अपने-अपने दलाई लामा के उत्तराधिकारी घोषित करते हैं, तो भारत को निर्वासित तिब्बती प्रशासन के उम्मीदवार का समर्थन करना चाहिए। 17.9% ने सुझाव दिया कि भारत को किसी भी नाम को मान्यता नहीं देनी चाहिए।
  • ताइवान: ताइवान संघर्ष के मामले में 54.4 फीसदी लोगों ने कहा कि भारत को शांति-दूत की भूमिका निभानी चाहिए। केवल 3.5 फीसदी लोगों ने सैन्य हस्तक्षेप की वकालत की, जबकि 28.7 फीसदी ने अमेरिका को लॉजिस्टिक समर्थन देने की बात कही।
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सैन्य और राजनीतिक उपाय

भारत-चीन संबंधों में सुधार के लिए लोगों ने दो प्रमुख सुझाव दिए:

  1. सैन्य क्षमता बढ़ाना: 41.2% लोगों ने कहा कि भारत को अपनी सैन्य ताकत और रोकथाम क्षमता को मजबूत करना चाहिए।
  2. नेताओं के बीच संवाद: 31% लोगों ने उच्च-स्तरीय राजनीतिक वार्ता फिर से शुरू करने की वकालत की।
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