📍नई दिल्ली | 1 month ago
SIPRI Yearbook 2025: दुनिया भर में न्यूक्लियर हथियारों की तादाद और उनकी ताकत को बढ़ाने का काम तेजी से चल रहा है। 2024 में नौ न्यूक्लियर हथियारों से लैस देशों अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, नॉर्थ कोरिया और इजरायल ने अपने हथियारों को अपग्रेड करने और नए वर्जन जोड़ने के लिए जोरदार प्रोग्राम शुरू किए। जनवरी 2025 तक, दुनिया में करीब 12,241 न्यूक्लियर वॉरहेड्स हैं, जिनमें से लगभग 9,614 को मिलिट्री स्टॉकपाइल में रखा गया है, जो जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल के लिए तैयार हैं। इनमें से 3,912 वॉरहेड्स मिसाइल्स और एयरक्राफ्ट के साथ तैनात हैं, जबकि बाकी सेंट्रल स्टोरेज में सुरक्षित हैं। इन तैनात वॉरहेड्स में से करीब 2,100 को बैलिस्टिक मिसाइल्स पर हाई ऑपरेशनल अलर्ट पर रखा गया है, और ज्यादातर ये रूस और अमेरिका के पास हैं। हाल ही में चीन ने भी शांति के वक्त कुछ वॉरहेड्स मिसाइल्स पर तैनात करना शुरू किया हो सकता है।
सिपरी की ताजा रिपोर्ट (SIPRI Yearbook 2025) के मुताबिक कोल्ड वॉर खत्म होने के बाद से रूस और अमेरिका ने पुराने वॉरहेड्स को धीरे-धीरे खत्म किया, जिससे न्यूक्लियर हथियारों की वैश्विक तादाद में हर साल कमी आती रही। लेकिन अब यह ट्रेंड बदलने की कगार पर है। पुराने हथियारों को खत्म करने की रफ्तार धीमी पड़ रही है, जबकि नए हथियारों को तैनात करने का काम तेज हो गया है। यह बदलाव दुनिया के लिए एक नई चुनौती बन सकता है।
SIPRI Yearbook 2025: रूस और अमेरिका का दबदबा
सिपरी के वेपंस ऑफ मास डिस्ट्रक्शन प्रोग्राम में एसोसिएट सीनियर फेलो और फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स (FAS) में न्यूक्लियर इन्फॉर्मेशन प्रोजेक्ट के डायरेक्टर हंस एम. क्रिस्टेंसेन कहते हैं, “दुनिया में न्यूक्लियर हथियारों की संख्या में कमी का दौर, जो कोल्ड वॉर के खत्म होने के बाद से चला आ रहा था, अब खत्म होने की कगार पर है।” उनका कहना है, इसके बजाय, हम एक स्पष्ट ट्रेंड देख रहे हैं, जिसमें न्यूक्लियर आर्सेनल बढ़ रहा है, न्यूक्लियर रेटोरिक तेज हो रहा है और आर्म्स कंट्रोल समझौतों को छोड़ दिया जा रहा है।
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रिपोर्ट के मुताबिक, रूस और अमेरिका के पास दुनिया के करीब 90 फीसदी न्यूक्लियर हथियार हैं। 2024 में इन दोनों देशों के मिलिट्री स्टॉकपाइल में खास बदलाव नहीं हुआ, लेकिन दोनों ने अपने हथियारों को मॉडर्नाइज करने के बड़े प्रोग्राम शुरू किए हैं। अगर इनके बीच कोई नया समझौता नहीं होता, तो 2010 का न्यू स्टार्ट ट्रीटी, जो फरवरी 2026 में खत्म हो रही है, उसके बाद इनके स्ट्रैटेजिक मिसाइल्स पर तैनात वॉरहेड्स की संख्या बढ़ सकती है। अमेरिका का मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम भले ही चल रहा हो, लेकिन 2024 में प्लानिंग और फंडिंग की दिक्कतों ने इसे धीमा कर दिया। नई नॉन-स्ट्रैटेजिक न्यूक्लियर वॉरहेड्स को जोड़ने से भी इस प्रोग्राम पर दबाव बढ़ा है।
रूस का मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम भी चुनौतियों से जूझ रहा है। 2024 में नए सरमात इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) के टेस्ट में नाकामी और अन्य सिस्टम्स के अपग्रेड में देरी हुई। अमेरिका का अनुमान था कि रूस अपने नॉन-स्ट्रैटेजिक वॉरहेड्स की संख्या बढ़ाएगा, लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हुआ। फिर भी, आने वाले सालों में दोनों देशों की तैनाती बढ़ने की संभावना है। रूस अपनी पुरानी स्ट्रैटेजिक फोर्स को मॉडर्नाइज कर हर मिसाइल पर ज्यादा वॉरहेड्स तैनात कर सकता है, जबकि अमेरिका मौजूद लॉन्चरों पर ज्यादा वॉरहेड्स जोड़ सकता है और खाली साइलो को फिर से सक्रिय कर सकता है।
चीन का तेजी से बढ़ता जखीरा
चीन का न्यूक्लियर आर्सेनल सबसे तेजी से बढ़ रहा है। SIPRI के मुताबिक, चीन के पास अब कम से कम 600 वॉरहेड्स हैं, और 2023 से हर साल करीब 100 नए वॉरहेड्स जोड़े जा रहे हैं। जनवरी 2025 तक, चीन ने देश के उत्तरी रेगिस्तानी इलाकों और पूर्वी पहाड़ी क्षेत्रों में करीब 350 नए ICBM साइलो बनाए हैं या बनाने का काम पूरा कर लिया है। अगर चीन अपनी फोर्स को इसी तरह बढ़ाता है, तो दस साल में इसके पास 1500 वॉरहेड्स हो सकते हैं, जो रूस और अमेरिका के मौजूदा स्टॉकपाइल का करीब एक-तिहाई होगा।
ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देश भी नहीं हैं पीछे
ब्रिटेन ने 2024 में अपने न्यूक्लियर वॉरहेड्स की संख्या नहीं बढ़ाई, लेकिन 2023 की इंटीग्रेटेड रिव्यू रिफ्रेश में वॉरहेड्स की सीमा बढ़ाने की योजना को मंजूरी दी गई थी। जुलाई 2024 में चुनी गई लेबर सरकार ने चार नए न्यूक्लियर-पावर्ड बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन (SSBNs) बनाने और लगातार समुद्र में न्यूक्लियर डिटरेंस बनाए रखने का वादा किया। हालांकि, अब उसे ऑपरेशनल और फाइनेंशियल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
फ्रांस ने 2024 में तीसरी जेनरेशन के SSBN और नए एयर-लॉन्च्ड क्रूज मिसाइल को डेवलप करने का काम जारी रखा। मौजूद सिस्टम्स को रिफर्बिश और अपग्रेड करने का भी प्रयास हुआ, जिसमें एक बेहतर बैलिस्टिक मिसाइल और नया वॉरहेड मॉडिफिकेशन शामिल है।
भारत-पाकिस्तान ने बढ़ाया न्यूक्लियर आर्सेनल
2024 में भारत ने अपने न्यूक्लियर आर्सेनल को थोड़ा और बढ़ाया है, और नए तरह के न्यूक्लियर डिलीवरी सिस्टम विकसित करने का काम जारी रखा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के नए ‘कैनिस्टराइज्ड’ मिसाइल्स, जो वॉरहेड्स के साथ ट्रांसपोर्ट किए जा सकते हैं, शांति के वक्त भी न्यूक्लियर वॉरहेड्स ले जाने में सक्षम हो सकते हैं। जब ये मिसाइल्स पूरी तरह से ऑपरेशनल हो जाएंगे, तो हर मिसाइल पर कई वॉरहेड्स ले जाने की क्षमता भी हो सकती है।
उधर, पाकिस्तान ने भी 2024 में नए डिलीवरी सिस्टम डेवलप करने और फिसाइल मटीरियल इकट्ठा करने का काम जारी रखा, जिससे संकेत मिलता है कि आने वाले दशक में उसका न्यूक्लियर आर्सेनल बढ़ सकता है।
SIPRI के वेपन्स ऑफ मास डिस्ट्रक्शन प्रोग्राम में एसोसिएट सीनियर रिसर्चर और FAS में न्यूक्लियर इन्फॉर्मेशन प्रोजेक्ट के एसोसिएट डायरेक्टर मैट कोरडा ने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर के दौरान न्यूक्लियर से जुड़े सैन्य ढांचे पर हमले और गलत सूचनाओं का मेल एक सामान्य टकराव को भी न्यूक्लियर संकट में बदल सकता था। यह उन देशों के लिए एक सख्त चेतावनी है जो न्यूक्लियर हथियारों पर अपनी निर्भरता बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।”
नॉर्थ कोरिया और इजरायल की तैयारी
नॉर्थ कोरिया अपने मिलिट्री न्यूक्लियर प्रोग्राम को अपनी नेशनल सिक्योरिटी का अहम हिस्सा मानता है। SIPRI के अनुसार, उसके पास अब करीब 50 वॉरहेड्स हैं, और पर्याप्त फिसाइल मटीरियल से 40 और वॉरहेड्स बनाए जा सकते हैं। जुलाई 2024 में साउथ कोरिया ने चेतावनी दी कि नॉर्थ कोरिया ‘टैक्टिकल न्यूक्लियर वॉपन’ डेवलप करने के आखिरी चरण में है। नवंबर 2024 में किम जोंग उन ने अपने देश के न्यूक्लियर प्रोग्राम को ‘असीमित तरीके से’ आगे बढ़ाने का ऐलान किया।
इजरायल, जो सार्वजनिक रूप से न्यूक्लियर हथियारों को स्वीकार नहीं करता, अपने आर्सेनल को मॉडर्नाइज कर रहा है। 2024 में उसने एक मिसाइल प्रोपल्शन सिस्टम का टेस्ट किया, जो उसके जेरिको फैमिली के न्यूक्लियर-कैपेबल बैलिस्टिक मिसाइल्स से जुड़ा हो सकता है। साथ ही, डिमोना में अपने प्लूटोनियम प्रोडक्शन रिएक्टर साइट को अपग्रेड करने का काम भी चल रहा है।

आर्म्स कंट्रोल पर संकट
SIPRI डायरेक्टर डैन स्मिथ ने अपनी 2025 की रिपोर्ट में न्यूक्लियर आर्म्स कंट्रोल पर संकट की चेतावनी दी है। रूस और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय न्यूक्लियर कंट्रोल कई सालों से संकट में है और अब लगभग खत्म हो चुका है। न्यू स्टार्ट, जो रूस और अमेरिका की स्ट्रैटेजिक न्यूक्लियर फोर्स को सीमित करता है, फरवरी 2026 तक प्रभावी है, लेकिन इसके नवीनीकरण या बदलाव की कोई बातचीत नहीं हो रही। अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में और अब फिर दोहराया कि किसी भी नए समझौते में चीन के न्यूक्लियर आर्सेनल पर भी सीमा होनी चाहिए, जो बातचीत को और मुश्किल बना देगा।
स्मिथ ने नए हथियारों की रेस के जोखिमों पर भी चेतावनी दी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), साइबर कैपेबिलिटीज, स्पेस एसेट्स, मिसाइल डिफेंस और क्वांटम टेक्नोलॉजी जैसे नए तकनीकों का तेजी से विकास न्यूक्लियर कैपेबिलिटीज, डिटरेंस और डिफेंस को बदल रहा है, जिससे अस्थिरता बढ़ सकती है। मिसाइल डिफेंस और समुद्र में क्वांटम टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से देशों के न्यूक्लियर आर्सेनल की भेद्यता प्रभावित हो सकती है। साथ ही, AI और अन्य तकनीकों से संकट में फैसले तेज होने से गलतफहमी, गलत कम्युनिकेशन या तकनीकी गलती से न्यूक्लियर संघर्ष का खतरा बढ़ गया है।
नए देशों में न्यूक्लियर हथियारों की दिलचस्पी
ईस्ट एशिया, यूरोप और मिडल ईस्ट में न्यूक्लियर स्टेटस और स्ट्रैटेजी पर चर्चा हो रही है। इससे संकेत मिलता है कि और देश अपने न्यूक्लियर हथियार डेवलप कर सकते हैं। इसके अलावा, न्यूक्लियर-शेयरिंग अरेंजमेंट्स पर भी ध्यान बढ़ा है। 2024 में रूस और बेलारूस ने दावा दोहराया कि रूस ने बेलारूसी जमीन पर न्यूक्लियर हथियार तैनात किए हैं। कई यूरोपीय NATO सदस्यों ने अमेरिकी न्यूक्लियर हथियार अपने यहां रखने की इच्छा जताई, और फ्रांस के प्रेसिडेंट इमैनुएल मैक्रों ने ‘यूरोपीय पहलू’ में फ्रांसीसी न्यूक्लियर पावर की बात की।
मैट कोरडा ने कहा, “यह याद रखना बहुत जरूरी है कि न्यूक्लियर हथियार सुरक्षा की गारंटी नहीं देते। हाल ही में भारत और पाकिस्तान में हुई हिंसक घटनाओं ने साफ दिखाया कि न्यूक्लियर हथियार संघर्ष को रोकने में असफल रहते हैं। इनके साथ बढ़ोतरी और भयानक गलतफहमियों का जोखिम भी जुड़ा है, खासकर जब गलत सूचनाएं फैल रही हों, और ये देश की आबादी को सुरक्षित करने के बजाय असुरक्षित बना सकते हैं।”