📍चिंगदाओ (चीन) | 3 weeks ago
SCO Summit: भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जुन के बीच शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान एक अहम बातचीत हुई। इस मुलाकात में भारत ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत-चीन सीमा पर सीमा निर्धारण को लेकर अब कोई अस्थायी समाधान नहीं चलेगा। उन्होंने सीमा निर्धारण के लिए एक ठोस और स्थायी समाधान की जरूरत पर जोर दिया। दोनों देशों के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर तनाव कम करने और सैनिकों की वापसी (de-escalation) के लिए एक रोडमैप तैयार करने की बात भी कही।
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, दोनों मंत्रियों ने भारत-चीन सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने की जरूरत पर गहन चर्चा की। राजनाथ सिंह ने एलएसी पर जटिल मुद्दों को सुलझाने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि दोनों देशों को एक रोडमैप तैयार करना चाहिए, जो स्थायी समाधान और तनाव कम करने की दिशा में काम करे। उन्होंने अप्रैल 2020 में पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर शुरू हुए सैन्य गतिरोध का जिक्र करते हुए कहा कि 2020 के बाद पैदा हुए विश्वास की कमी को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
बता दें कि यह मीटिंग उस समय हुई है जब भारत और चीन के बीच मई 2020 से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य तनाव बना हुआ है। हालांकि 2024 में कुछ स्तर पर डी-एस्क्लेशन पर बातचीत हुई थी, औऱ जिसके बाद तनाव में कमी आई थी। लेकिन अब भी कई संवेदनशील क्षेत्रों में सैनिकों की भारी तैनाती है।
Why India refused to sign joint declaration at #SCO?
India’s refusal to sign the joint declaration at the SCO Defence Ministers’ meeting in Qingdao, China, on June 26, 2025, was driven by disagreements over the document’s handling of terrorism, particularly its selective focus… pic.twitter.com/zo543Ag6fe
— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) June 27, 2025
SCO Summit: क्या है भारत का चार-सूत्रीय प्लान?
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत-चीन सीमा तनाव को कम करने और द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने के लिए एक चार सूत्रीय योजना भी पेश की। इस योजना का उद्देश्य एलएसी पर शांति स्थापित करना और लंबे समय से चले आ रहे विवादों का स्थायी समाधान निकालना है।
2024 डिसएंगेजमेंट प्लान का पालन: 2024 के डिसएंगेजमेंट प्लान को पूरी तरह लागू करना। यह समझौता पूर्वी लद्दाख में डेपसांग और डेमचोक जैसे क्षेत्रों में सैन्य वापसी को सुनिश्चित करता है। दोनों देशों को इस प्लान का सख्ती से पालन करना होगा ताकि तनाव कम हो और विश्वास बहाली हो।
तनाव कम करने के निरंतर प्रयास: एलएसी पर सैन्य तनाव को कम करने के लिए लगातार प्रयास। इसमें सैनिकों की तैनाती को कम करना, गश्ती गतिविधियों में समन्वय और संवाद को बढ़ाना शामिल है ताकि टकराव की स्थिति न बने।
सीमा निर्धारण और परिसीमन में तेजी: सीमा निर्धारण और परिसीमन (demarcation and delimitation) में तेजी लाना। लंबे समय से लंबित सीमा विवाद को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाने और समयबद्ध तरीके से प्रक्रिया को पूरा करने की जरूरत है।
विशेष प्रतिनिधि स्तर की बातचीत: मौजूदा तंत्र के जरिए मतभेदों को प्रबंधित करने और रिश्तों को बेहतर करने के लिए नई प्रक्रियाएं विकसित करना। यह तंत्र आपसी संवाद को बढ़ावा देगा और जटिल मुद्दों का समाधान निकालने में मदद करेगा। यह योजना भारत-चीन संबंधों में स्थिरता और विश्वास बहाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इसके अलावा, राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि हाल ही में शुरू किया गया भारत का ऑपरेशन सिंदूर आतंकवाद के खिलाफ भारत की सैद्धांतिक स्थिति को दर्शाता है। 22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जिक्र करते हुए, जिसमें 26 लोग मारे गए थे, राजनाथ सिंह ने इसकी कड़ी निंदा की और कहा कि भारत आतंकवादी नेटवर्क को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जताई खुशी
मुलाकात के दौरान राजनाथ सिंह ने कैलाश मानसरोवर यात्रा के लगभग छह साल बाद फिर से शुरू होने पर खुशी जताई। उन्होंने इसे दोनों देशों के बीच सकारात्मक कदम बताया। रक्षा मंत्री ने अपने चीनी समकक्ष को बिहार की मधुबनी पेंटिंग भेंट की, जो मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक कला है और अपनी रंगीन रेखाओं और पैटर्न के लिए जानी जाती है।
SCO दस्तावेज पर भारत का रुख
बैठक से पहले, राजनाथ सिंह ने SCO दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि इसमें आतंकवाद के मुद्दे को कमजोर किया गया था और पहलगाम हमले का जिक्र नहीं था। सूत्रों के अनुसार, चीन, जो SCO की अध्यक्षता कर रहा है, और उसका करीबी सहयोगी पाकिस्तान, इस दस्तावेज में आतंकवाद के मुद्दे को हल्का करने की कोशिश कर रहे थे। इसके बजाय, दस्तावेज में बलूचिस्तान में हुए हमलों और जाफर एक्सप्रेस हाईजैकिंग का उल्लेख किया गया था, जिसे भारत के खिलाफ एक राजनीतिक संदेश के तौर पर देखा गया। भारत ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए दस्तावेज पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया। जिसके बाद एससीओ का साझा बयान जारी नहीं हो सका।
सकारात्मक दिशा में बढ़ते रिश्ते
राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर कहा, “चिंगदाओ में एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जुन के साथ बातचीत की। हमने द्विपक्षीय रिश्तों से जुड़े मुद्दों पर रचनात्मक और दूरदर्शी विचारों का आदान-प्रदान किया। कैलाश मानसरोवर यात्रा के छह साल बाद फिर से शुरू होने पर खुशी जताई। दोनों पक्षों की जिम्मेदारी है कि इस सकारात्मक गति को बनाए रखा जाए और द्विपक्षीय रिश्तों में नई जटिलताएं न जोड़ी जाएं।”
चीन की ओर से जारी बयान में कहा गया कि भारत बीजिंग के साथ किसी भी टकराव की तलाश में नहीं है और आपसी विश्वास और संवाद को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, भारत की ओर से इस मुलाकात पर अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
2024 में हुए डिसएंगेजमेंट समझौते के बाद पहली बैठक
यह मुलाकात भारत और चीन के बीच 2024 में हुए डिसएंगेजमेंट समझौते के बाद पहली उच्च-स्तरीय बैठक थी। मई 2020 में शुरू हुए पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था। पिछले साल अक्टूबर में रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्तों में सुधार देखा गया है। पीएम मोदी ने तब कहा था, “भारत-चीन रिश्ता न केवल हमारे लोगों के लिए बल्कि वैश्विक शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।”
हाल ही में डेपसांग और डेमचोक में डिसएंगेजमेंट समझौता होने के बाद दोनों पक्षों ने सीमा पर शांति बनाए रखने की प्रतिबद्धता जताई है। इस मुलाकात को दोनों देशों के बीच नए सिरे से शुरू हुए राजनयिक रिश्तों को और मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
रक्षा मंत्रालय के बयान के अनुसार, दोनों मंत्रियों ने डिसएंगेजमेंट, तनाव कम करने, सीमा प्रबंधन और अंततः सीमा निर्धारण से जुड़े मुद्दों पर प्रगति के लिए विभिन्न स्तरों पर परामर्श जारी रखने पर सहमति जताई। राजनाथ सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों को अच्छे पड़ोसी जैसे हालात बनाने चाहिए, ताकि आपसी लाभ के साथ-साथ एशिया और विश्व में स्थिरता के लिए सहयोग किया जा सके।