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शुक्रवार को नई दिल्ली में संसद की विदेश मामलों की समिति की एक मीटिंग हुई, जिसमें पूर्व विदेश सचिव शिव शंकर मेनन, जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन अमिताभ मट्टू, बांग्लादेश में भारत की पूर्व हाई कमिश्नर रीवा गांगुली दास और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन ने हिस्सा लिया। कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता में हुई बैठक का विषय था “भारत-बांग्लादेश संबंधों का भविष्य”...
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📍नई दिल्ली | 3 months ago

India-Bangladesh relations: भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्ते पिछले कुछ समय से तनाव के दौर से गुजर रहे हैं। खासकर अगस्त 2024 में शेख हसीना की सरकार के सत्ता से बेदखल होने और मोहम्मद यूनुस की अंतिरम सरकार के सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ी हैं। हाल ही में, नई दिल्ली में विदेश मामलों की संसदीय समिति को विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बांग्लादेश में चीन और पाकिस्तान तेजी से रणनीतिक पकड़ मजबूत कर रहे हैं।

India-Bangladesh relations: शशि थरूर की अध्यक्षता में हुई अहम बैठक

शेख हसीना की सरकार के दौरान भारत और बांग्लादेश के रिश्ते काफी मजबूत थे। हसीना की नीतियां भारत के साथ सहयोग और दोस्ती पर आधारित थीं। लेकिन अगस्त 2024 में छात्रों के भारी विरोध के चलते उनकी सरकार गिर गई, और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक केयरटेकर सरकार ने सत्ता संभाली। इसके बाद से दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद सामने आए हैं। खासकर बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के साथ हो रहे उत्पीड़न को लेकर भारत ने बार-बार चिंता जताई है।

शुक्रवार को नई दिल्ली में संसद की विदेश मामलों की समिति की एक मीटिंग हुई, जिसमें पूर्व विदेश सचिव शिव शंकर मेनन, जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन अमिताभ मट्टू, बांग्लादेश में भारत की पूर्व हाई कमिश्नर रीवा गांगुली दास और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन ने हिस्सा लिया।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता में हुई बैठक का विषय था “भारत-बांग्लादेश संबंधों का भविष्य”। कमिटी के चेयरपर्सन, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने बाद में कहा, “हमें चार शानदार विशेषज्ञों से बहुत अच्छी जानकारी मिली। हमारी रिपोर्ट अगले कुछ हफ्तों में आएगी।”

इन विशेषज्ञों ने समिति को यह बताया कि बांग्लादेश में मौजूदा अंतरिम सरकार की नीतियों और राजनीतिक रुख का लाभ उठाकर चीन और पाकिस्तान दोनों ही अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।

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चीन और पाकिस्तान की बढ़ती पैठ

मीटिंग में विशेषज्ञों ने बताया कि यूनुस की अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के बाद बांग्लादेश में चीन और पाकिस्तान का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। कुछ समय पहले, 19 जून 2025 को चीन ने युन्नान प्रांत के कुनमिंग शहर में बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ एक त्रिपक्षीय मीटिंग की थी। इस मीटिंग में व्यापार, निवेश, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, समुद्री सहयोग और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी जैसे मुद्दों पर बात हुई। यह मीटिंग दक्षिण एशिया की भूराजनीति में एक नया समीकरण बनाती दिख रही है।

विशेषज्ञों ने कमेटी को बताया कि चीन ने बांग्लादेश में कई बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में निवेश किया है, जैसे कि कॉक्स बाजार में सबमरीन बेस का निर्माण किया गया है। यह बेस न सिर्फ बांग्लादेश की नेवल पावर को बढ़ाता है, बल्कि बंगाल की खाड़ी में चीन की रणनीतिक मौजूदगी को भी मजबूत करता है। इसके अलावा, मोहम्मद यूनुस की हाल की चीन यात्रा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से उनकी मुलाकात ने तीस्ता नदी परियोजना को लेकर भी चर्चा छेड़ दी है। पहले शेख हसीना की सरकार ने इस प्रोजेक्ट में भारत को प्राथमिकता देने की बात कही थी, लेकिन अब यूनुस सरकार के रुख से भारत के लिए कूटनीतिक चुनौतियां बढ़ रही हैं।

वहीं, पाकिस्तान का प्रभाव भी बढ़ता दिख रहा है। कुछ एक्स पोस्ट्स में दावा किया गया है कि नॉर्थ-ईस्ट इलाके की सुरक्षा को देखते हुए तीनों देशों का यह आपसी सहयोग भारत के लिए खतरे की घंटी है। हालांकि, बांग्लादेश ने स्पष्ट किया है कि यह मीटिंग किसी तीसरे देश (भारत) के खिलाफ नहीं थी और यह सिर्फ आर्थिक सहयोग के लिए थी। फिर भी, भारत के लिए यह स्थिति चिंताजनक है।

अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा की मांग

भारत ने बार-बार बांग्लादेश से अपनी अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है। अप्रैल 2025 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थाईलैंड में बिम्सटेक समिट के दौरान यूनुस से मुलाकात की थी। इस मुलाकात में मोदी ने कहा, “मैंने बांग्लादेश में शांति, स्थिरता, समावेशिता और लोकतंत्र के लिए भारत के समर्थन को दोहराया। हमने अवैध सीमा पार से होने वाले पलायन को रोकने के उपायों पर चर्चा की और हिंदुओं व अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अपनी गंभीर चिंता जताई।”

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विशेषज्ञों ने कमिटी को बताया कि अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों का भारत में आना काफी हद तक कम हो गया है। लेकिन मीडिया में इस मुद्दे को लेकर काफी हाइप बनाया जा रहा है, जो भारत-बांग्लादेश रिश्तों को और खराब कर रहा है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मीडिया की यह बेवजह का तूल देना दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की प्रक्रिया को फिर से बहालकरने में बाधा डाल रहा है।

1971 युद्ध में भारत की भूमिका

मीटिंग में बीजेपी सांसद किरण चौधरी ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारत की भूमिका को याद किया। उन्होंने बताया कि उनके पिता, ब्रिगेडियर आत्मा सिंह, जो 17 कुमाऊं रेजिमेंट का हिस्सा थे, उन्होंने इस युद्ध में बहादुरी दिखाई थी और उन्हें गोलियां भी लगी थीं। उनकी रेजिमेंट को “फांउडिंग फादर” का दर्जा मिला और उनकी यूनिट को बैटल ऑनर्स से नवाजा गया।

क्या हो सकता है समाधान?

कमिटी की मीटिंग में कुछ सांसदों ने सुझाव दिए कि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) को पुनर्जीवित करके चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सकता है। इसके अलावा, लोगों से जुड़ाव बढ़ाने के लिए पत्रकारों के एक्सचेंज का सुझाव भी सामने आया।

एक और अहम मुद्दा गंगा जल बंटवारे की संधि है, जो 2026 में खत्म हो रही है। दोनों देश अगले कुछ महीनों में इस संधि को नवीकरण करने के लिए मीटिंग करेंगे। विशेषज्ञों ने गंगा और तीस्ता नदियों के लिए डाटा शेयरिंग की अहमियत पर भी जोर दिया, क्योंकि यह दोनों देशों के लिए भू-रणनीतिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जरूरी है।

बांग्लादेश में चीन ने शुरू किए कई सॉफ्ट पावर प्रोजेक्ट्स

बैठक में यह भी बताया गया कि बांग्लादेश में चीन इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी, सैन्य उपकरण और शिक्षा संस्थानों के जरिए अपना नेटवर्क बना रहा है। चीन ने ढाका में अपने दूतावास के माध्यम से कई सॉफ्ट पावर प्रोजेक्ट्स शुरू किए हैं, जिनमें चीनी भाषा केंद्र, छात्रवृत्ति योजनाएं और डिजिटल तकनीक की साझेदारी शामिल है।

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पाकिस्तान की उपस्थिति चीन के मुकाबले कम है, लेकिन वह धार्मिक संगठनों और कट्टरपंथी तत्वों के माध्यम से अपना प्रभाव बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। विशेषज्ञों ने यह भी संकेत दिया कि कुछ चरमपंथी संगठनों को पाकिस्तान की शह मिल रही है, जिससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।

क्या है मौजूदा स्थिति?

फिलहाल, भारत और बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक तनाव बना हुआ है। भारत की कोशिश है कि वह बांग्लादेश के साथ अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध बनाए रखे, लेकिन चीन और पाकिस्तान का बढ़ता दखल इस रास्ते में चुनौती बनता जा रहा है। यूनुस सरकार के रुख और बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति ने भी इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है।

विशेषज्ञों का कहना है, भारत की “नेबरहुड फर्स्ट” नीति के तहत बांग्लादेश एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार रहा है। शेख हसीना के समय भारत-बांग्लादेश के संबंधों में अभूतपूर्व प्रगति हुई थी। उस दौरान सीमा विवाद, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स, सुरक्षा सहयोग और जल संसाधनों पर समझौते हुए थे। लेकिन मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता और चीन-पाकिस्तान के बढ़ते दखल ने इस समीकरण को जटिल और अस्थिर बना दिया है।

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बैठक में शामिल विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि अगर भारत इस बदलती स्थिति में मौन रहता है या केवल “रिएक्टिव” की भूमिका निभाता है, तो आने वाले सालों में बांग्लादेश भारत के लिए एक रणनीतिक सिरदर्द बन सकता है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि भारत को अपनी विदेश नीति में लचीलापन लाना होगा। बांग्लादेश के साथ आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सार्क जैसी क्षेत्रीय पहलों से भारत को मजबूत बनाकर इस स्थिति को संतुलित किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए दोनों देशों के बीच खुली बातचीत और आपसी विश्वास की जरूरत है।

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