📍धर्मशाला/नई दिल्ली | 2 weeks ago
Dalai Lama Reincarnation: अपने 90वें जन्मदिन से चार दिन पहले तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे सम्मानित और प्रभावशाली आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने दो जुलाई को एतिहासिक एलान करते हुए कहा कि उनकी मृत्यु के बाद भी दलाई लामा की संस्था (Institution of the Dalai Lama) चलती रहेगी और उनके पुनर्जन्म (Reincarnation) को केवल गेडन फोडरंग ट्रस्ट (Gaden Phodrang Trust) ही मान्यता देगा। यानी कि केवल उनके द्वारा स्थापित “गदेन फोड्रांग ट्रस्ट” को ही अगला अवतार यानी पुनर्जन्म पहचानने का अधिकार होगा।
उनका ये बयान उस वक्त आया जब पूरी दुनिया उनकी उम्र को लेकर चिंतित थी। 6 जुलाई 2025 को वह 90 साल के हो जाएंगे। ऐसे में यह सवाल बार-बार उठ रहा था कि क्या 14वें दलाई लामा के बाद इस संस्था का अस्तित्व रहेगा या नहीं?
Dalai Lama Reincarnation: कैसे होता है दलाई लामा का पुनर्जन्म
दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे प्रमुख धार्मिक नेता होते हैं। “दलाई लामा” का अर्थ होता है “ज्ञान का महासागर”। यह पद एक “पुनर्जन्म परंपरा” (Reincarnation System) पर आधारित है। तिब्बती बौद्ध परंपरा में यह माना जाता है कि जब कोई उच्च आत्मा जैसे दलाई लामा देह त्यागते हैं, तो वे दोबारा जन्म लेते हैं। यह जन्म उसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए होता है, यानी संसार में करुणा, अहिंसा और अध्यात्म का संदेश फैलाना। माना जाता है कि उनकी आत्मा किसी नवजात बालक में जन्म लेती है और वर्षों की खोजबीन के बाद उस बच्चे की पहचान अगली पीढ़ी के दलाई लामा के रूप में की जाती है। दलाई लामा की परंपरा ‘तुल्कु’ प्रणाली पर आधारित है यानि यानी पूर्व जन्म की आत्मा को पहचानना और उसे प्रशिक्षण देकर नया दलाई लामा बनाना। जिसमें किसी बड़े बौद्ध गुरु की मृत्यु के बाद उसका पुनर्जन्म खोजा जाता है।
🚨 BIG BREAKING | Dalai Lama Declares Sole Authority Over His Reincarnation
🕊️ His Holiness the Dalai Lama has affirmed that only the Gaden Phodrang Trust — a foundation established by him — will have the exclusive authority to recognize his future reincarnation.
📜 In his… pic.twitter.com/gtgdQ6XBuS
— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) July 2, 2025
दलाई लामा की परंपरा 600 साल पुरानी है। पहला दलाई लामा, गेदुन द्रुपा, 1391 में पैदा हुए थे। इसके बाद से यह क्रम चलता आया है। हर दलाई लामा को पिछले दलाई लामा की आत्मा का पुनर्जन्म माना जाता है।
14वें दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को तिब्बत के टकस्तेर गांव में हुआ था। जब वे सिर्फ दो साल के थे, तिब्बती धर्मगुरुओं ने उन्हें 13वें दलाई लामा थुब्तेन ग्यात्सो का पुनर्जन्म माना। उनकी पहचान के लिए खास संकेतों का इस्तेमाल किया गया। एक वरिष्ठ भिक्षु ने छोटे ल्हामो धोंडुप को 13वें दलाई लामा की वस्तुएं दिखाईं तो उन्होंने पहचान लिया, जिससे यह पक्का हो गया कि वही अगला दलाई लामा हैं। दो साल की उम्र में उन्हें 13वें दलाई लामा का पुनर्जन्म घोषित कर दिया गया और 1940 में ल्हासा के पोटाला पैलेस में उन्हें आधिकारिक रूप से गद्दी सौंपी गई और औपचारिक रूप से तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक नेता के रूप में स्थापित किया गया। 1950 के दशक में जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया, तो 1959 में उन्होंने भारत की ओर पलायन कर लिया। तब से वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासन में रह रहे हैं, जहां सेंट्रल तिब्बतेन एडमिनिस्ट्रेशन (Central Tibetan Administration) के नाम से तिब्बती सरकार-इन-एक्ज़ाइल काम कर रही है।

क्या कहा दलाई लामा ने अपने पुनर्जन्म को लेकर?
तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने स्पष्ट रूप से ऐलान किया है कि उनकी मृत्यु के बाद दलाई लामा संस्था (Dalai Lama Institution) जारी रहेगी, और उनके भविष्य के पुनर्जन्म की पहचान केवल Gaden Phodrang Trust द्वारा ही की जाएगी। उन्होंने यह बयान तिब्बत, हिमालयी क्षेत्र, मंगोलिया, रूस और चीन के बौद्ध अनुयायियों की 14 वर्षों से लगातार आ रही अपीलों के जवाब में दिया।
अपने आधिकारिक बयान में दलाई लामा ने कहा, “1969 से मैंने यह कहा है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म होना चाहिए या नहीं, यह तिब्बती जनता और बौद्ध परंपरा से जुड़े लोगों का निर्णय होना चाहिए।” उन्होंने यह भी दोहराया कि चीन या किसी भी बाहरी संस्था को इस प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
दलाई लामा ने स्पष्ट किया कि 24 सितंबर 2011 में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, Gaden Phodrang Trust, जो उनके कार्यालय का हिस्सा है,वही इस प्रक्रिया को धार्मिक परंपराओं के अनुसार पूरा करेगा। इसके लिए बौद्ध धर्मगुरुओं और “वरिष्ठ लामाओं” से सलाह ली जाएगी।
हालांकि दलाई लामा ने इस मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा नहीं की, लेकिन पिछले 14 सालों में उन्हें कई जगहों से पत्र और संदेश मिले। तिब्बत के अंदर और बाहर रहने वाले तिब्बती, तिब्बती निर्वासित संसद के सदस्य, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के लोग, गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), हिमालय क्षेत्र, मंगोलिया, रूस के बौद्ध गणराज्य, और एशिया सहित मुख्यभूमि चीन के बौद्धों ने उन्हें पत्र लिखे। इन सभी ने जोर देकर कहा कि दलाई लामा की संस्था को जारी रखना जरूरी है। खास तौर पर, तिब्बत में रहने वाले तिब्बतियों ने भी अलग-अलग माध्यमों से यही अपील की। इन सभी अनुरोधों को ध्यान में रखते हुए, दलाई लामा ने घोषणा की कि दलाई लामा की संस्था आगे भी चलेगी।
खास बात यह है कि उनका यह बयान 21 मई 2025 को धर्मशाला में तैयार किया गया और 2 जुलाई 2025 को आधिकारिक रूप से जारी किया गया।
चीन को लगेगी मिर्ची
दलाई लामा का यह बयान चीन के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश है। चीन ने कई बार कहा है कि वह अगले दलाई लामा की नियुक्ति अपने नियंत्रण वाली धार्मिक संस्थाओं के जरिए करेगा। चीन सरकार “Golden Urn System” के तहत पुनर्जन्म प्रक्रिया को नियंत्रित करना चाहती है, जो एक तरह की पर्ची निकालने की प्रक्रिया है, जिसमें बालक का नाम रखा जाता है। लेकिन तिब्बती समुदाय और भारत इस कदम का सख्त विरोध करते हैं। दलाई लामा ने गदेन फोडरंग ट्रस्ट को अपने पुनर्जन्म की मान्यता देने का एकमात्र अधिकार देकर चीन के दावों को नकार दिया है। चीन द्वारा नियुक्त कोई भी दलाई लामा अवैध माना जाएगा। वहीं, इससे भारत की स्थिति को भी मजबूती मिलेगी, क्योंकि तिब्बती निर्वासित सरकार (गवर्नमेंट इन एक्साइल) हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित है। भारत को असली आध्यात्मिक उत्तराधिकारी की देखभाल करने वाला देश माना जाएगा। हालांकि, अगर चीन भविष्य में अपने तरीके से कोई दलाई लामा घोषित करता है, तो इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव पैदा हो सकता है। उदाहरण के लिए, चीन पहले पंचेन लामा की नियुक्ति में हस्तक्षेप कर चुका है, और ऐसा ही कुछ यहां भी हो सकता है।
चीन ने बताया था दलाई लामा को “अलगाववादी”
चीन की सरकार 14वें दलाई लामा को “विभाजनकारी” (Splittist) और “अलगाववादी” बताती है। तिब्बत में दलाई लामा की तस्वीर रखना भी अपराध माना जाता है। 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार पाने के बावजूद उनकी तस्वीरें सार्वजनिक रूप से दिखाने पर पाबंदी है। 2007 में चीन ने एक नया नियम बनाया जिसके तहत बिना सरकारी अनुमति के किसी बौद्ध नेता का पुनर्जन्म मान्य नहीं होगा। यानी चीन चाहता है कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी सिर्फ उसकी मर्जी से घोषित हो। मार्च 2025 में, चीन के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने दलाई लामा को “राजनीतिक निर्वासित” कहा, जिनका तिब्बती लोगों को प्रतिनिधित्व करने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए दलाई लामा की घोषणा चीन के उस एजेंडे को सीधी चुनौती देती है।
दलाई लामा की उम्र अब 90 साल के करीब है। वे जानते हैं कि उनके जाने के बाद क्या होगा, इसलिए वे अपनी शर्तों पर तैयारी कर रहे हैं। गदेन फोडरंग ट्रस्ट और बौद्ध धर्मगुरुओं के जरिए चयन प्रक्रिया को व्यवस्थित करके उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि राजनीतिक शक्तियां इस प्रक्रिया पर कब्जा न कर सकें। दलाई लामा दुनिया भर के बौद्ध समुदायों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वे चीन के दावों को न मानें।
पंचेन लामा की क्या है भूमिका
पंचेन लामा को अमिताभ बुद्ध (बुद्ध के असीम प्रकाश के रूप) का अवतार माना जाता है, जो करुणा और ज्ञान का प्रतीक हैं। दूसरी ओर, दलाई लामा को अवलोकितेश्वर (करुणा के बुद्ध) का अवतार माना जाता है। पंचेन लामा गेलुग स्कूल में दलाई लामा के बाद दूसरा सबसे बड़ा आध्यात्मिक पद है। पंचेन लामाओं ने तिब्बती शासन में सलाहकार की भूमिका निभाई है, खासकर जब दलाई लामा नाबालिग होते थे या निर्वासित जीवन जी रहे होते थे।
वहीं, पारंपरिक रूप से, पंचेन लामा और दलाई लामा एक-दूसरे के पुनर्जन्म की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि दोनों की उम्र में लगभग 50 साल का अंतर होता है। यह रिश्ता गुरु-शिष्य की तरह होता है, जहां पंचेन लामा दलाई लामा के पुनर्जन्म की खोज में मदद करते हैं। पहले आधिकारिक पंचेन लामा, पंचेन लामा की परंपरा की शुरुआत 17वीं शताब्दी में हुई, जब 5वें दलाई लामा, न्गवांग लोबसांग ग्यत्सो, ने अपने गुरु लोबसांग चोकी ग्याल्त्सेन को पहला आधिकारिक पंचेन लामा घोषित किया। यह 1645 की बात है। लोबसांग चोकी ग्याल्त्सेन ताशिलहुनपो मठ (जो तिब्बत के शिगात्से में स्थित है) के प्रमुख थे। इसके बाद, कई अन्य लामाओं को मरणोपरांत पंचेन लामा की उपाधि दी गई, लेकिन आधिकारिक रूप से यह परंपरा 1645 से शुरू मानी जाती है। 10वें पंचेन लामा 1959 में दलाई लामा के निर्वासन के बाद तिब्बत में रहे, लेकिन बाद में चीन के साथ मतभेद के चलते वे नजरबंद रहे और 1989 में उनकी मृत्यु हो गई।
1995 में, दलाई लामा ने 6 साल के गेदुन चोएक्यी न्यिमा को 11वें पंचेन लामा के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन चीन ने उन्हें हिरासत में ले लिया, और उनका पता आज तक अज्ञात है। इसके बाद चीन ने 5 साल के ग्यांचेन नोर्मा को अपना पंचेन लामा घोषित किया। यह चयन “स्वर्ण घड़ा” पद्धति (जो 1793 में किंग राजवंश द्वारा शुरू की गई पद्धति, जिसमें नामों को एक घड़े से निकाला जाता था) के आधार पर किया गया था। ग्यांचें नोर्मा अब 35 साल के हैं और हाल ही में, जून 2025 में, उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की, जहां उन्हें “तिब्बती बौद्ध धर्म के एकीकरण” और चीनीकरण (धर्म को चीनी विचारधारा के अनुरूप ढालना) को बढ़ावा देने के लिए उपयोग कर रहा है।
हालांकि तिब्बती निर्वासित समुदाय और दलाई लामा चीन के चयन को मान्यता नहीं दी है, लेकिन चीन का दावा है कि पंचेन लामा की नियुक्ति में उसका ऐतिहासिक अधिकार है। दलाई लामा ने कहा है कि जो लोग धर्म में विश्वास नहीं करते, वे लामा के पुनर्जन्म में दखल क्यों दें? उन्होंने अपनी किताब “वॉइस फॉर द वॉयसलेस” में तिब्बतियों से अपील की कि वे चीन की तरफ से चुने गए किसी उम्मीदवार को न मानें।
करमापा ने दी ‘दूसरे बुद्ध’ की उपाधि
दलाई लामा के 90वें जन्मदिन से पहले, तिब्बती बौद्ध धर्म की कर्मा काग्यु परंपरा के प्रमुख 17वें करमापा ओग्येन त्रिनले दोरजे ने भी एक भावुक पत्र जारी करते हुए दलाई लामा को ‘दूसरे बुद्ध’ की उपाधि दी। साथ ही, चीन द्वारा उनके पुनर्जन्म को नियंत्रित करने की कोशिशों को सख्ती से नकारा है।

करमापा ओग्येन त्रिनले दोरजे ने दलाई लामा को “सभी तिब्बती परंपराओं के लिए शरण और रक्षक” बताया और तिब्बत पर चीन के हिंसक कब्जे की निंदा की। उनका यह समर्थन इसलिए भी अहम है क्योंकि करमापा ओग्येन त्रिनले दोरजे का जन्म तिब्बत में हुआ था और उन्हें चीन और दलाई लामा दोनों ने ही मान्यता दी थी।
पत्र में करमापा ओग्येन त्रिनले दोरजे ने लिखा है कि जब तिब्बत की जनता अकेली थी और उनके पास कोई सहारा नहीं था, तब दलाई लामा “पूर्वजों के संदेशवाहक बनकर” आए। उन्होंने कहा कि दलाई लामा ने “बुद्ध के ज्ञान को धरती और आकाश के बीच जीवित रखा” और हिमालय से लेकर दुनियाभर में फैलाया।
करमापा ने चीन को “आक्रामक हमलावर” कहा, जिन्होंने तिब्बत की “बर्फ को खून से लाल कर दिया।” उन्होंने दलाई लामा से पुनर्जन्म की अपील करते हुए कहा, “आप तब तक जीवित रहें, जब तक यह पृथ्वी और मेरु पर्वत टिके रहें।” यह बयान चीन के उस दावे पर सीधी चोट है, जिसमें वह कहता है कि अगला दलाई लामा उसकी निगरानी में चुना जाएगा। 2019 में भी करमापा ने चीन द्वारा तिब्बती परंपरा में हस्तक्षेप के खिलाफ चेतावनी दी थी। कई तिब्बती अनुयायियों की यह भी इच्छा है कि करमापा भारत लौटें, जिससे तिब्बती बौद्ध परंपरा को भारत में और बल मिलेगा और चीन को एक स्पष्ट संदेश जाएगा।
बता दें कि करमापा लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के काग्यु स्कूल, विशेष रूप से कर्मा काग्यु शाखा, के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता हैं। वे पुनर्जन्म की एक प्राचीन परंपरा का हिस्सा हैं, जो लगभग 900 साल से चली आ रही है। करमापा को “बुद्ध की सभी गतिविधियों का अवतार” माना जाता है। 17वें करमापा की मान्यता को लेकर विवाद है। दलाई लामा ने उग्येन त्रिनले दोरजे को 17वें करमापा के रूप में मान्यता दी है, जो वर्तमान में अमेरिका में रहते हैं। पिछले साल जब दलाई लामा अमेरिकी इलाज के लिए गए थे, तो ज्यूरिख में दोनों की मुलाकात भी हुई थी। वहीं, दूसरे दावेदार, थाए दोरजे भी हैं, लेकिन शादी करने के बाद उनकी दावेदारी पर सवाल उठने लगे हैं।
क्या है अमेरिका का रुख?
अमेरिका ने तिब्बती मानवाधिकारों की रक्षा के लिए लगातार समर्थन जताया है। 2024 में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रिजॉल्व तिब्बत अधिनियम (Resolve Tibet Act) कानून पर हस्ताक्षर किए, जिसमें चीन से तिब्बत को अधिक स्वायत्तता देने की मांग की गई। अमेरिकी सांसदों ने यह भी स्पष्ट किया है कि वे चीन के अगले दलाई लामा के चयन में हस्तक्षेप का विरोध करते हैं। वहीं 2020 में अमेरिकी कांग्रेस के बनाए तिब्बती नीति और सहायता अधिनियम (Tibetan Policy and Support Act – TPSA) में यह स्पष्ट किया गया है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म (रीइनकार्नेशन) और उनके उत्तराधिकारी के चयन का निर्णय केवल तिब्बती बौद्ध नेताओं और तिब्बती लोगों के पास विशेष अधिकार है, न कि चीनी सरकार के पास। यह कानून चीन के किसी भी हस्तक्षेप को अस्वीकार करता है और चीनी अधिकारी अगर इस प्रक्रिया में दखल देते हैं, तो उन पर यों पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी देता है। इसके अतिरिक्त, इस अधिनियम में ल्हासा में एक अमेरिकी वाणिज्य दूतावास स्थापित करने का प्रावधान है और तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति पर नजर रखने की बात कही गई है।
अगले दलाई लामा कहां पैदा होंगे?
मार्च 2025 में प्रकाशित अपनी किताब Voice for the Voiceless में दलाई लामा ने कहा, उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर पैदा होगा। वे 1959 से भारत में निर्वासित जीवन जी रहे हैं, और यह संकेत देता है कि अगला दलाई लामा भी किसी स्वतंत्र देश में पैदा हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि वे अपने उत्तराधिकारी की पहचान से जुड़े सभी नियम और प्रक्रिया लिखित रूप में छोड़ देंगे, ताकि आगे कोई भ्रम न हो। धर्मशाला में सोमवार को उन्होंने कहा कि उत्तराधिकार के लिए एक स्ट्रक्चर होगा, लेकिन इसकी विस्तृत जानकारी नहीं दी।