📍नई दिल्ली | 1 month ago
Luneberg lens: 14 जून 2025 की रात, जब अरब सागर के ऊपर आसमान में तेज हवाएं चल रही थीं, तब एक ब्रिटिश F-35B स्टील्थ फाइटर जेट को केरल के तिरुवनंतपुरम में इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी। यह जेट यूके की रॉयल नेवी के HMS प्रिंस ऑफ वेल्स कैरियर से उड़ा था, जो अपने स्ट्राइक ग्रुप के साथ इंडो-पैसिफिक मिशन पर था। हालांकि यह आम इमरजेंसी लैंडिंग थी, लेकिन घटना के बाद एक टेक्निकल डिबेट भी छिड़ गई। सोशल मीडिया पर यूजर्स “ल्यूनबर्ग लेंस” की बात करने लगे। आखिर ल्यूनबर्ग लेंस क्या हैं? F-35B जैसे स्टील्थ जेट में इनका यूज क्यों होता है? और भारतीय वायुसेना (IAF) की इस जेट को डिटेक्ट करने की बात इतनी चर्चा में क्यों है? आइए, आसान भाषा में समझते हैं।
Luneberg lens: क्या है ये टेक्नोलॉजी?
ल्यूनबर्ग लेंस (Luneberg lens) का नाम सुनकर लग सकता है कि जैसे यह कोई साइंस फिक्शन गैजेट है, लेकिन असल में ये एक साधारण सा रडार रिफ्लेक्टर है, जो रडार सिग्नल्स को बढ़ाकर वापस भेजता है। इसे 1944 में जर्मन साइंटिस्ट रुडोल्फ कार्ल ल्यूनबर्ग ने डिजाइन किया था। खासकर एयर डिफेंस सिस्टम की ट्रेनिंग के लिए इसका इस्तेमाल 1950-60 के दशक से हो रहा है।
A Royal Navy F-35B fighter recovered off an emergency landing at Thiruvananthapuram International Airport on the night of 14 June 25.
Operating from UK Aircraft Carrier, HMS Prince of Wales, it was undertaking routine flying outside Indian ADIZ with Thiruvananthapuram
earmarked… pic.twitter.com/gL2CQcuJc7— Indian Air Force (@IAF_MCC) June 15, 2025
यह लेंस गोलाकार होता है और इसके एक तरफ मेटल कोटिंग होती है। जब रडार की किरणें इस पर पड़ती हैं, तो ये उन्हें फोकस करके कई गुना ज्यादा ताकत के साथ रिफ्लेक्ट करता है। मिसाल के तौर पर, 44 सेंटीमीटर का एक ल्यूनबर्ग लेंस X-बैंड रडार पर 100 वर्ग मीटर तक का रडार क्रॉस-सेक्शन (RCS) बना सकता है। यानी, एक छोटा सा ड्रोन भी रडार पर B-52 जैसे बड़े बॉम्बर जेट जितना बड़ा दिख सकता है।
F-35B स्टील्थ जेट में क्या है ल्यूनबर्ग लेंस का रोल?
F-35B एक स्टील्थ फाइटर जेट है, जिसका मतलब है कि ये रडार से बचने के लिए डिजाइन किया गया है। इसका रडार क्रॉस-सेक्शन (RCS) बहुत छोटा होता है, जिससे दुश्मन के रडार इसे आसानी से पकड़ नहीं पाते। लेकिन शांति के समय पीस टाइम या दोस्त देशों के एयरस्पेस में उड़ते वक्त स्टील्थ जेट्स को रडार पर दिखना जरूरी होता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अगर ये रडार पर न दिखें, तो एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) या फ्रेंडली एयर डिफेंस सिस्टम के लिए प्रॉब्लम हो सकती है। यहीं पर ल्यूनबर्ग लेंस काम आता है।
F-35B के पेट (बेली) पर एक छोटा सा गोल उभार होता है, जिसमें ल्यूनबर्ग लेंस फिट किया जाता है। ये लेंस रडार सिग्नल्स को बढ़ाकर रिफ्लेक्ट करता है, जिससे जेट रडार पर साफ दिखता है। ये खास तौर पर ट्रेनिंग, जॉइंट एक्सरसाइज, या इमरजेंसी सिचुएशन में यूज होता है। इस लेंस को ग्राउंड क्रू आसानी से हटा या लगा सकता है, लेकिन फ्लाइट के दौरान पायलट इसे कंट्रोल नहीं कर सकता।
14 जून की इमरजेंसी लैंडिंग के दौरान क्या हुआ?
14 जून 2025 को HMS प्रिंस ऑफ वेल्स कैरियर से उड़ा F-35B जेट अरब सागर के ऊपर मिशन पर था। लेकिन खराब मौसम और कम फ्यूल की वजह से पायलट कैरियर पर लैंड नहीं कर सका। ऐसे में उसने डायवर्जन रिक्वेस्ट किया और तिरुवनंतपुरम में लैंडिंग की। भारतीय वायुसेना ने इसे रूटीन प्रोसीजर बताया और कहा कि IAF ने फ्लाइट सेफ्टी के लिए जेट को फुल सपोर्ट दिया। IAF के रडार ने जेट को डिटेक्ट किया, क्लासिफाइड किया, और लैंडिंग के लिए गाइड किया।
17 जून को यूके रॉयल नेवी की टेक्निकल टीम हेलिकॉप्टर से तिरुवनंतपुरम पहुंची। ये टीम जेट के सभी पैरामीटर्स चेक कर रही है ताकि इसे वापस कैरियर पर भेजा जा सके। HMS प्रिंस ऑफ वेल्स अपने स्ट्राइक ग्रुप के साथ इंडो-पैसिफिक में 8 महीने के मिशन पर है, जिसमें F-35B जेट्स, ड्रोन, हेलिकॉप्टर, और न्यूक्लियर अटैक सबमरीन शामिल हैं।
ल्यूनबर्ग लेंस पर शुरू हुई डिबेट?
F-35B की लैंडिंग के बाद सोशल मीडिया और डिफेंस सर्कल्स में “ल्यूनबर्ग आर्ग्यूमेंट” (Luneberg argument) की चर्चा शुरू हुई। कुछ लोगों का कहना है कि IAF का इस जेट को डिटेक्ट करना कोई बड़ी बात नहीं, क्योंकि जेट पर ल्यूनबर्ग लेंस (Luneberg lens) लगा था। इस लेंस की वजह से जेट का रडार क्रॉस-सेक्शन यानी RCS बढ़ गया होगा, जिससे रडार को इसे पकड़ने में आसानी हुई। उनका तर्क है कि ये रूटीन प्रोसीजर था, न कि IAF के Integrated Air Command and Control System (IACCS) रडार की कोई खास काबिलियत।
दूसरी तरफ, कुछ लोग IAF की तारीफ कर रहे हैं। उनका कहना है कि भले ही ल्यूनबर्ग लेंस (Luneberg lens) लगा हो, लेकिन IAF के एयर डिफेंस सिस्टम ने जेट को तुरंत डिटेक्ट, क्लासिफाइड, और सेफ लैंडिंग कराई, जो सिस्टम की रेडीनेस दिखाता है। कुछ एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि अगर लेंस नहीं होता, तब भी IAF के VHF रडार शायद जेट को पकड़ लेते, क्योंकि ऐसे रडार स्टील्थ जेट्स के खिलाफ इफेक्टिव माने जाते हैं।
हालांकि, IAF ने इस बात की पुष्टि नहीं की कि जेट पर ल्यूनबर्ग लेंस (Luneberg lens) था या नहीं। इसलिए, दोनों ही पक्षों के दावे अभी अनुमानों पर आधारित हैं। कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में ये भी दावा किया गया कि जेट इंडियन नेवी और रॉयल नेवी की जॉइंट एक्सरसाइज का हिस्सा था, और लेंस जानबूझकर लगाया गया था। लेकिन इसकी कोई ऑफिशियल कन्फर्मेशन नहीं है।
ल्यूनबर्ग लेंस का दूसरा यूज: डिसेप्शन टैक्टिक्स
ल्यूनबर्ग लेंस (Luneberg lens) का इस्तेमाल केवल सेफ्टी के लिए नहीं होता। युद्ध के समय इसका इस्तेमाल दुश्मन को धोखा देने के लिए भी होता है। मिसाल के तौर पर, रूस अपने लॉन्ग-रेंज ड्रोन्स में ल्यूनबर्ग लेंस यूज करता है। इससे छोटा सा ड्रोन रडार पर बड़ा टारगेट दिखता है, जिससे दुश्मन का ध्यान भटकता है और असली अटैक ड्रोन्स टारगेट तक पहुंच जाते हैं। यूक्रेन भी इस टैक्टिक का इस्तेमाल करता है। उनके ADM-160 MALD ड्रोन्स में ल्यूनबर्ग लेंस लगे होते हैं, जो दुश्मन के मिसाइल्स को अपनी तरफ खींचते हैं, ताकि असली क्रूज मिसाइल्स सेफ रहें।
F-35B जैसे जेट्स में भी ट्रेनिंग के दौरान ल्यूनबर्ग लेंस (Luneberg lens) यूज करके RCS को वैरी किया जाता है। इससे पायलट्स और ग्राउंड क्रू को ये समझने में मदद मिलती है कि अलग-अलग सिचुएशन में रडार जेट को कैसे डिटेक्ट करता है। ये डिसेप्शन टैक्टिक्स का भी हिस्सा है, ताकि दुश्मन को कन्फ्यूज किया जा सके।
भारतीय वायुसेना ने की मदद
वहीं भारतीय वायुसेना ने न सिर्फ जेट की सेफ लैंडिंग कराई, बल्कि यूके की टेक्निकल टीम को फुल सपोर्ट भी दिया। HMS प्रिंस ऑफ वेल्स का इंडो-पैसिफिक मिशन भी भारत के लिए अहम है, क्योंकि दोनों देश इस रीजन में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना चाहते हैं।
🇮🇳✈️ Defence Alert: A British Royal Navy F-35 fighter jet made an emergency landing at Trivandrum Airport, India.
🇮🇳 Indian authorities granted immediate clearance.
🇬🇧 Royal Navy chopper MJS-101 reached the site.
✈️ Jet still grounded – sources say a hydraulic fault caused the… pic.twitter.com/1IA7Gueers— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) June 17, 2025
कुछ डिफेंस एनालिस्ट्स का मानना है कि ये इमरजेंसी लैंडिंग एक तरह से जॉइंट ऑपरेशनल कैपेबिलिटी को टेस्ट करने का मौका भी था। IAF का IACCS (इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम) इस मौके पर एक्टिव रहा, जिसने जेट को ट्रैक और गाइड किया। ये सिस्टम भारत की एयर डिफेंस का रीढ़ है और ऑपरेशन सिंदूर के बाद एख बार फिर इसने अपनी इफिशिएंसी साबित की है।
Luneberg lens: सेफ्टी या स्टील्थ का कॉम्प्रोमाइज?
ल्यूनबर्ग लेंस (Luneberg lens) का इस्तेमाल स्टील्थ जेट्स के लिए दोधारी तलवार की तरह होता है। एक तरफ, ये खासकर पीसटाइम में सेफ्टी के लिए जरूरी है, तो दूसरी तरफ, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर युद्ध के समय गलती से लेंस हटाना भूल जाए, तो जेट का स्टील्थ फायदा कम हो सकता है। हालांकि, F-35B जैसे एडवांस जेट्स में ऐसे रिस्क को मिनिमाइज करने के लिए सख्त प्रोसीजर्स होते हैं।