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📍नई दिल्ली | 5 months ago

Russia-Ukraine Peace Talks: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एलान किया है कि वह रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए बातचीत करेंगे। हालांकि, इस घोषणा के साथ ही कई सवाल खड़े हो गए हैं, खासकर यह कि ट्रंप ने इस वार्ता के लिए सऊदी अरब को ही क्यों चुना है?

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ट्रंप ने इस संभावित वार्ता की कोई निश्चित तारीख नहीं बताई, लेकिन उन्होंने कहा कि यह बैठक निकट भविष्य में हो सकती है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी इसमें शामिल हो सकते हैं। सऊदी अरब ने इस पहल का स्वागत किया है और कहा है कि वह रूस-यूक्रेन के बीच शांति वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

ट्रंप ने इस वार्ता के लिए पुतिन और जेलेंस्की से फोन पर बातचीत की थी। इसके बाद उन्होंने रूस और अमेरिका के प्रतिनिधियों को बातचीत शुरू करने के लिए कहा। उनकी इस पहल को लेकर सऊदी अरब ने भी बयान जारी कर कहा कि वे इस वार्ता को सफल बनाने में सहयोग करेंगे।

Russia-Ukraine Peace Talks: सऊदी अरब को क्यों चुना गया?

सऊदी अरब को इस वार्ता का स्थल चुनने के पीछे कई कारण हैं। पहला कारण यह है कि यह एक तटस्थ देश है। यूरोप के कई देश यूक्रेन युद्ध में सीधे शामिल हैं, इसलिए वहां वार्ता कराना मुश्किल था। इसी वजह से सऊदी अरब को एक तटस्थ और सुरक्षित स्थान माना गया, जहां रूस और यूक्रेन दोनों पक्ष बिना किसी पूर्वाग्रह के बातचीत कर सकते हैं।

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दूसरा बड़ा कारण यह है कि सऊदी अरब और रूस के बीच मजबूत कूटनीतिक और आर्थिक संबंध हैं। 2023 में जब पुतिन ने रियाद का दौरा किया था, तब मोहम्मद बिन सलमान ने उन्हें विशेष मेहमान के रूप में आमंत्रित किया था। इसके अलावा, रूस के खिलाफ इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) ने अरेस्ट वारंट जारी किया है, लेकिन सऊदी अरब इस कोर्ट का सदस्य नहीं है, जिसका मतलब है कि पुतिन वहां बिना किसी कानूनी डर के आ सकते हैं।

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Russia-Ukraine Peace Talks: मध्यस्थ की भूमिका में सऊदी अरब

सऊदी अरब ने अतीत में भी कई अंतरराष्ट्रीय मामलों में मध्यस्थ की भूमिका निभाई है। उदाहरण के तौर पर, रूस में कैद अमेरिकी नागरिकों की रिहाई में सऊदी अरब की बड़ी भूमिका रही है। हाल ही में रूस ने अमेरिकी टीचर मार्क फोगल को रिहा किया, जिसमें सऊदी अरब का बड़ा योगदान था।

सऊदी अरब ने कई बार पुतिन और जेलेंस्की को शांति समझौते की संभावना तलाशने के लिए न्योता दिया है। उन्होंने 2023 में जेद्दा में एक अंतरराष्ट्रीय सभा आयोजित की थी, जिसमें कई देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।

इस पूरे घटनाक्रम में सऊदी अरब अपनी छवि को और मजबूत कर सकता है। गल्फ मामलों के विशेषज्ञ अब्दुल्ला बाबुद मानते हैं कि सऊदी अरब मध्यस्थ की भूमिका निभाने के साथ-साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को भी और गहरा करना चाहता है।

Russia-Ukraine Peace Talks: तेल भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर

सऊदी अरब को इस वार्ता के लिए चुनने के पीछे तेल भी एक बड़ा कारक है। अमेरिका, रूस और सऊदी अरब दुनिया के तीन सबसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक ऊर्जा बाजार प्रभावित हुआ है और तेल की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव आया है।

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विशेषज्ञों का मानना है कि इस वार्ता के दौरान तेल की कीमतों को स्थिर रखने पर भी चर्चा हो सकती है। 2024 के अंत में, रूस और सऊदी अरब ने ओपेक प्लस के तहत तेल उत्पादन को सीमित करने का फैसला किया था, ताकि वैश्विक बाजार को स्थिर किया जा सके।

अमेरिका को भी अपने ऊर्जा सेक्टर के लिए सऊदी अरब के साथ मजबूत रिश्ते बनाने की जरूरत है। ट्रंप की प्राथमिकता क्लीन एनर्जी से ज्यादा जीवाश्म ईंधन पर केंद्रित रही है, इसलिए सऊदी अरब उनके लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार हो सकता है।

ट्रंप का सऊदी अरब से रणनीतिक जुड़ाव

डोनाल्ड ट्रंप जब 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति बने, तब उनकी पहली विदेश यात्रा सऊदी अरब की थी। इस यात्रा से सऊदी अरब को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई पहचान मिली थी।

ट्रंप ने संकेत दिया है कि अगर वह फिर से राष्ट्रपति बनते हैं, तो उनकी पहली विदेश यात्रा एक बार फिर सऊदी अरब हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर सऊदी अरब 500 अरब डॉलर के अमेरिकी उत्पाद खरीदता है, तो वे वहां जाने को तैयार हैं।

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने भी संकेत दिया है कि वह अगले चार वर्षों में अमेरिका में करीब 500 अरब डॉलर का निवेश करने की योजना बना रहे हैं। ट्रंप ने इसे एक कदम आगे बढ़ाते हुए कहा कि वे चाहते हैं कि यह निवेश 1,000 अरब डॉलर तक पहुंचे।

अमेरिका-सऊदी संबंध और अन्य कूटनीतिक एजेंडे

सऊदी अरब और अमेरिका के बीच संबंध हमेशा आर्थिक और सैन्य रणनीति पर आधारित रहे हैं। बाइडन प्रशासन ने जहां सऊदी अरब के साथ संबंधों को संतुलित किया, वहीं ट्रंप इसे और मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप, सऊदी अरब, अमेरिका और इज़राइल के बीच एक मजबूत गठबंधन बनाना चाहते हैं। इससे मध्य पूर्व में अमेरिका का प्रभाव बढ़ेगा और चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित किया जा सकेगा।

हालांकि, सऊदी अरब को लेकर अमेरिका की नीति हमेशा विवादित रही है। सऊदी अरब का मानवाधिकार रिकॉर्ड खराब रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसने धार्मिक पुलिस को हटाने, महिलाओं को गाड़ी चलाने की अनुमति देने जैसे सुधार किए हैं, जिससे उसकी छवि में सुधार आया है।

क्या यह वार्ता सफल होगी?

रूस-यूक्रेन युद्ध अब तक के सबसे लंबे और जटिल युद्धों में से एक बन चुका है। ट्रंप की यह पहल युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है, लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या पुतिन और जेलेंस्की इस वार्ता को गंभीरता से लेते हैं।

सऊदी अरब की इस वार्ता में भूमिका को लेकर भी अलग-अलग विचार हैं। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह एक मजबूत शांति वार्ता हो सकती है, जबकि कुछ का कहना है कि सऊदी अरब इस वार्ता से अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों को साधने की कोशिश कर रहा है।

फिलहाल, सारी निगाहें इस संभावित वार्ता पर टिकी हैं और आने वाले दिनों में इसका क्या नतीजा निकलता है, यह देखने वाली बात होगी।

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