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📍नई दिल्ली | 5 months ago

LCA Tejas: भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने स्वदेशी तकनीक में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। बेंगलुरु स्थित डीआरडीओ की डिफेंस बायो-इंजीनियरिंग एंड इलेक्ट्रो मेडिकल लेबोरेटरी (DEBEL) ने स्वदेशी रूप से विकसित ऑन-बोर्ड ऑक्सीजन जनरेटिंग सिस्टम (OBOGS) आधारित इंटीग्रेटेड लाइफ सपोर्ट सिस्टम (ILSS) का सफल हाई एल्टीट्यूड ट्रायल किया है। यह ट्रायल 4 मार्च 2025 को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) के एलसीए-प्रोटोटाइप व्हीकल-3 (PV-3) विमान पर किया गया।

LCA Tejas Successfully Tests Indigenous Oxygen Generating System in High-Altitude Trials

LCA Tejas: क्या है यह नई तकनीक?

अब तक लड़ाकू विमानों में पायलट कन्वेंशनल लिक्विड ऑक्सीजन सिलिंडर्स का इस्तेमाल करते थे। लेकिन यह नई टेक्नोलॉजी पारंपरिक तरल ऑक्सीजन सिलेंडर सिस्टम को पूरी तरह से खत्म कर देगा। OBOGS बेस्ड यह नया सिस्टम फ्लाइट के दौरान रियल टाइम ऑक्सीजन पैदा करती है, जिससे विमान की ऑक्सीजन पर निर्भरता और पायलटों की कार्यक्षमता में जबरदस्त इजाफा होता है। साथ ही इससे लंबे समय तक हाई एल्टीट्यूड पर उड़ान भरना भी संभव होगा।

इस ट्रायल के दौरान ILSS को 50,000 फीट की ऊंचाई तक और उच्च-जी (High-G) गतियों में जांचा गया। इस दौरान ऑक्सीजन की कंसन्ट्रेशन्स, डिमांड ब्रीदिंग सिस्टम, 100% ऑक्सीजन की उपलब्धता, एरोबेटिक मूवमेंट्स और Anti-G Valve की कार्यक्षमता की पूरी जांच की गई। उड़ान परीक्षणों में ILSS ने सभी जरूरी मानकों जैसे टैक्सिंग, टेकऑफ, क्रूज़िंग, जी-टर्न और लैंडिंग को सफलतापूर्वक पूरा किया।

LCA Tejas: भारतीय वायुसेना के लिए गेम-चेंजर

OBOGS आधारित ILSS सिस्टम में 10 लाइन रिप्लेसेबल यूनिट्स (LRU) शामिल हैं, जिसमें लो-प्रेशर ब्रीदिंग रेगुलेटर, ब्रीदिंग ऑक्सीजन सिस्टम (BOS), इमरजेंसी ऑक्सीजन सिस्टम, ऑक्सीजन सेंसर, एंटी-जी वॉल्व जैसी कई महत्वपूर्ण इकाइयां शामिल हैं। इस सिस्टम के आने से भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान अधिक समय तक हवा में रह सकते हैं, जिससे मिशन की क्षमता में बढ़ोतरी होगी।

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भारतीय वायुसेना के लिए यह नई तकनीक एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है। पारंपरिक तरीकों की तुलना में OBOGS अधिक सुरक्षित और भरोसेमंद है क्योंकि यह विमान के अंदर ही रियल टइम ऑक्सीजन पैदा करता है। इसके कारण पायलटों को लंबी उड़ानों में अधिक सहूलियत मिलेगी और वॉर मिशंस में उनकी परफॉरमेंस बढ़ेगी।

इसके अलावा, यह टेक्नोलॉजी एयरक्राफ्ट मैंटेनेंस में भी मददगार होगी। तरल ऑक्सीजन सिलेंडरों की जरूरत खत्म होने से विमानों का ऑपरेशन अधिक आसान होगा। इससे भारतीय वायुसेना को अपने लड़ाकू विमान बेड़े की ऑपरेशनल रेडीनेस को बेहतर बनाए रखने में मदद मिलेगी।

ILSS का निर्माण Larsen & Toubro (L&T) ने DRDO के साथ मिलकर Development cum Production Partner के रूप में किया है। इस प्रणाली में 90% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है।

किन जहाजों में होगी इस्तेमाल?

यह एडवांस टेक्नोलॉजी न केवल तेजस बल्कि अन्य विमानों जैसे MiG-29K के लिए भी कस्टमाइज्ड की जा सकती है। इससे भारत के पुराने विमानों को भी नई टेक्नोलॉजी से लैस किया जा सकता है, जिससे लड़ाकू विमानों की क्षमता और सुरक्षा में वृद्धि होगी।

इस तकनीक के डेवलपमेंट और ट्रायल में डीआरडीओ, हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड, एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी, सेंटर फॉर मिलिट्री ऐरवॉर्थीनेस एंड सर्टिफिकेशन, नेशनल फ्लाइट टेस्ट सेंटर और डायरेक्टरेट जनरल ऑफ एयरोनॉटिकल क्वालिटी एश्योरेंस ने अहम भूमिका निभाई है।

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LCA Tejas Delay: क्या भारत में अब निजी कंपनियां बनाएंगी फाइटर जेट? राजनाथ सिंह को सौंपी रिपोर्ट, क्या होगा HAL का रोल?

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस उपलब्धि पर DRDO, IAF, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और निजी क्षेत्र के भागीदारों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। DRDO के चेयरमैन डॉ. समीर वी. कामत ने भी इस सफलता पर टीम की सराहना की और इसे भारत की स्वदेशी रक्षा उत्पादन क्षमता को मजबूत करने वाला कदम बताया।

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