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📍नई दिल्ली | 3 months ago

Cantonment Conspiracy: भारतीय सेना के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे की पहली किताब इन दिनों काफी चर्चा में है। हालांकि यह उनकी पहली किताब नहीं है। उनकी पहली किताब का नाम ‘Four Stars of Destiny’ था, जिसमें उन्होंने अपने सैन्य जीवन के संस्मरण साझा किए थे। लेकिन यह किताब बाजार में आने से पहले ही विवादों में फंस गई और अभी तक रक्षा मंत्रालय की मंजूरी का इंतजार कर रही है। लेकिन उनकी पहली कितााब जो बाजार में आने वाली है, उसका नाम ‘Cantonment Conspiracy’ है, एक फिक्शनल मर्डर मिस्ट्री है, जो भारतीय सेना के एक कैंटोनमेंट पर बेस्ड है और 2026 की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इस फिक्शनल कहानी में एनडीए की पहली महिला कैडेट बैच की बहादुर अधिकारी रेनुका खत्री मुख्य किरदार की भूमिका में हैं। किताब की लॉन्चिंग के दौरान उन्होंने एक दिलचस्प भविष्यवाणी भी की। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि 44 साल बाद भारत को एक महिला आर्मी चीफ मिले।

Cantonment Conspiracy: Ex army chief General MM Naravane Debuts with Military Thriller Novel
Cantonment Conspiracy: A Soldier Turns Storyteller

Cantonment Conspiracy: महिला अफसर के इर्द-गिर्द घुमती है कहानी

‘Cantonment Conspiracy’ की कहानी दो युवा सैन्य अधिकारियों लेफ्टिनेंट रोहित वर्मा और लेफ्टिनेंट रेणुका खत्री के इर्दगिर्द घूमती है, जिन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक शांत और पुराने छावनी क्षेत्र में तैनात किया गया है। यहां सब कुछ ठीक चल रहा होता है, तभी एक मेस पार्टी में एक महिला अफसर पर हमला होता है। सारा शक रोहित पर जाता है, लेकिन रेणुका इस मामले की तह तक जाने की ठान लेती है। लेकिन जैसे-जैसे रेणुका तह तक जाती है, कहानी में नए रहस्य और एक मर्डर मिस्ट्री सामने आने लगती है। अब ये मामला सिर्फ एक हमले का नहीं, बल्कि एक छिपे हुए कातिल की तलाश का बन जाता है। ये कहानी ऐसी है, जो आपको हर पल सोचने पर मजबूर कर देती है कि आगे क्या होगा।

बताया- कैसे एक आर्मी चीफ लिख सकता है फिक्शन

हाल ही में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में जब जनरल नरवणे की नई किताब का विमोचन हुआ, तो वहां मौजूद लोगों में यह जानने की उत्सुकता थी कैसे एक सेना प्रमुख फिक्शन लिख सकता है? क्या कोई ऐसा जनरल, जिसने आतंक से लेकर युद्ध के मैदान तक रणनीति रची हो, अब एक मर्डर मिस्ट्री का लेखक भी बन सकता है? कार्यक्रम में खुद जनरल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हमेशा सीरियस और नॉन-फिक्शन क्यों लिखा जाए? कभी-कभी कुछ हल्का, रोमांटिक और मजेदार भी तो हो सकता है।” उन्होंने बताया कि हर इंसान के अंदर एक कहानी होती है। “मैं तो जिंदगी भर कहानियां सुनाता रहा हूं। ये किताब बस उसी का एक नया रूप है।” उनकी इस बात पर उनकी पत्नी वीणा नरवणे सहित सभी ने मुस्कुरा कर सहमति जताई।

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सबके अंदर एक कहानी, बस लिखने का साहस चाहिए

जनरल नरवणे ने कहा, “मेरे जीवन के अनुभवों की कई परछाइयां इस किताब में दिखती हैं। हम सबके अंदर कोई कहानी होती है, बस उसे लिखने का साहस चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि फिक्शन की खूबी यह है कि आप बिना किसी जवाबदेही के उसमें अपनी कल्पना को खुली उड़ान दे सकते हैं। इस किताब में उनके उन अनुभवों की भी शामिल किया है, जो उन्होंने सेना में सेवा के दौरान मणिपुर, नागालैंड, जम्मू-कश्मीर जैसे अशांत इलाकों में अपनी पोस्टिंग के दौरान बिताए थे।

Cantonment Conspiracy: वास्तविक जीवन से चुने किरदार

जब उनसे यह पूछा गया कि किताब लिखने में सबसे बड़ी चुनौती क्या रही, तो जनरल ने बताया कि कहानी का समय और किरदारों की रैंक को सही रखना आसान नहीं था, ताकि सब कुछ असली लगे। इसके अलावा, किरदारों के नाम चुनना भी एक टेढ़ी खीर था। जनरल नरवणे ने यह भी बताया कि किताब में इस्तेमाल हुए कई नाम और किरदार उनकी सैन्य सेवा के दौरान मिले लोगों के नाम से भी मेल खाते हैं। जैसे कि पुस्तक में कमांडेंट का नाम ‘मदन वर्मा’ है, जो उनके दो पुराने कमांडिंग ऑफिसर्स मदन दास और एनएम वर्मा के नामों से मिलते-जुलते हैं। उन्होंने हंसते हुए कहा, “ना किसी को खुश करने का इरादा था, ना नाराज करने का।”

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Cantonment Conspiracy: किताब के लिए कई बार गए थे अकादमी

दिलचस्प बात यह है कि जनरल नरवणे ने अपनी इस किताब की महिला नायिका के माध्यम से महिलाओं की भागीदारी को रेखांकित करने की कोशिश है। बता दें कि जनरल नरवणे के कार्यकाल में ही सेना में महिलाओं की एंट्री को लेकर एतिहासिक पहल की गई थी। उन्होंने बताया कि इस फैसले में उन्होंने रिटायर्ड एयरफोर्स और नेवी चीफ रहे एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया और एडमिरल करमबीर सिंह की भी मदद ली। उन्होंने बताया, “हमने कई बार अकादमी का दौरा किया था यह देखने के लिए कि महिला कैडेट्स की ट्रेनिंग के लिए क्या-क्या तैयारियां हो रही हैं।”

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संघर्ष की असली जड़ आर्थिक असमानता

हालांकि ‘Cantonment Conspiracy’ को एक फिक्शनल मिलिट्री थ्रिलर के तौर पर पेश किया गया है, लेकिन इसकी परतों में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों की झलक भी मिलती है। चर्चित पत्रकार सुहास बोरकर और पत्रकार नीलांजना बनर्जी के साथ बातचीत में जनरल नरवणे ने स्वीकार किया कि किताब में रोजगार, बांग्लादेश में उभरते तनाव और सामाजिक विषमता जैसे मुद्दों को भी छुआ गया है। उन्होंने कहा, “सिर्फ बंदूक और वर्दी नहीं, संघर्ष की असली जड़ अक्सर आर्थिक असमानता और अवसरों की कमी होती है।”

कभी तख्तापलट में शामिल नहीं रही भारतीय सेना

इस दौरान जनरल नरवणे ने भारतीय सेना की लोकतांत्रिक परंपरा पर भी चर्चा की। उन्होंने इस बात पर गर्व जताया कि भारतीय सेना, उपमहाद्वीप की अन्य सेनाओं विशेषकर पाकिस्तान की सेना के उलट, कभी तख्तापलट में शामिल नहीं रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा, “हमारी सेना अपने दायित्वों को जानती है और सरकार के आदेशों का पालन करती है।”

उन्होंने बताया कि मणिपुर, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर जैसे उग्रवाद प्रभावित इलाकों में तैनाती के दौरान उन्होंने महसूस किया कि अधिकतर विवादों की तह में सामाजिक-आर्थिक असंतुलन छिपा होता है। उन्होंने कहा, “जब आप गहराई से अध्ययन करते हैं, तो पाते हैं कि ज्यादातर अशांति की जड़ कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था से जुड़ी होती है।”

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सम्मान के नाम पर गलत चीजों को छिपाना ठीक नहीं

जनरल नरवणे ने कहा, “मैं जानता हूं कि मेरी पहली किताब शायद मेरे नाम के कारण ज्यादा बिकेगी, लेकिन अगर लोगों को इसकी कहानी पसंद आती है तो मैं आगे और भी फिक्शन लिखने के लिए तैयार हूं, जरूरी नहीं कि वह मर्डर मिस्ट्री हो, वह एक कॉमेडी भी हो सकती है।” वहीं, किताब में फौजी अनुशासन, सम्मान और ईमानदारी की झलक भी पढ़ने को दिखती है। जनरल नरवणे ने कहा, “सम्मान के नाम पर गलत चीजों को छिपाना ठीक नहीं। सच को सामने लाना जरूरी है।”

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अपनी आत्मकथा ‘Four Stars of Destiny’ को लेकर कही ये बात

इस दौरान उनकी आत्मकथा ‘Four Stars of Destiny’ का जिक्र भी हुआ, जो अभी तक रक्षा मंत्रालय की मंजूरी के इंतजार में है। जनरल नरवणे ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, “वो किताब तो पुरानी शराब की तरह है। जितना समय बीतेगा, उतनी कीमती होती जाएगी!”

कार्यक्रम के आखिर में जब एक छोटे बच्चे ने उनसे पूछा कि सेना में कैसे जाएं, तो जनरल नरवणे ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “खूब सब्जियां खाओ और मोबाइल से बाहर निकलकर मैदान में खेलो।” जनरल नरवणे ने यह भी कहा कि सेना में शामिल होने का फैसला दिल से होना चाहिए, न कि माता-पिता या दोस्तों के दबाव में।

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