📍नई दिल्ली | 2 months ago
NavIC Powers Operation Sindoor : नाविक (Navic) है?
नाविक भारत का अपना नेविगेशन सिस्टम है, जिसे इसरो (Indian Space Research Organisation) ने बनाया है। ये वैसा ही है जैसे अमेरिका का जीपीएस (GPS), रूस का ग्लोनास (GLONASS), या चीन का बेइदोउ (Beidou)। लेकिन नाविक खास है क्योंकि ये पूरी तरह भारत में बना है और भारत के आसपास 1,500 किलोमीटर तक बेहद सटीक लोकेशन बताता है।
के.एल. विलेन, जो एलिना जियो कंपनी के फाउंडर हैं, उन्होंने बताया, “नाविक एक ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है, जो जीपीएस की तरह काम करता है। लेकिन ये इंडियन सिस्टम है, जिसमें 9 सैटेलाइट्स हैं। ये L5 और S-बैंड सिग्नल देता है, और जल्दी ही L1 बैंड भी देगा। इससे हमें 1 मीटर तक की सटीक लोकेशन मिलती है।”
जीपीएस आमतौर पर 10 मीटर तक सटीक होता है, लेकिन नाविक 1 मीटर या उससे भी कम की सटीकता देता है। यानी अगर आपको किसी चीज का सटीक पता करना है, तो नाविक उसका बिल्कुल सही ठिकाना बता देता है। ये सिस्टम अफ्रीका से ऑस्ट्रेलिया तक और 40 डिग्री उत्तर से 40 डिग्री दक्षिण तक काम करता है। विलेन ने कहा, “हमने पेरिस, लंदन, मॉरिटानिया, और ऑस्ट्रेलिया में भी नाविक की टेस्टिंग की है। हर जगह ये शानदार काम करता है।”
ऑपरेशन सिंदूर में क्या हुआ?
ऑपरेशन सिन्दूर एक छोटा लेकिन बहुत पावरफुल सैन्य ऑपरेशन था, जो सिर्फ 4 दिन यानी 96 घंटे तक चला। इसका मकसद था पाकिस्तान के आतंकवाद को खत्म करना और उसकी परमाणु धमकियों को बेकार करना। पाकिस्तान हमेशा से ये कहता रहा कि अगर भारत ने उसके खिलाफ कुछ किया, तो वह परमाणु हथियार (न्यूक्लियर वेपन्स) इस्तेमाल करेगा। लेकिन इस बार भारत ने उसकी इस धमकी को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया।
🚨 India’s Game-Changer: #Akashteer
On the night of May 9–10, as Pakistan launched a massive missile & drone attack, India responded with pinpoint precision – thanks to Akashteer, our fully indigenous, automated Air Defence Control System.
⚡️ Every incoming threat was detected,… pic.twitter.com/ZxhmFCstz1— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) May 16, 2025
मेजर जनरल (रि.) राजीव नारायण ने कहा, “पाकिस्तान हमेशा अपनी न्यूक्लियर छतरी के नीचे आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा। वो सोचता था कि दुनिया उसकी न्यूक्लियर धमकी से डर जाएगी। लेकिन इस बार हमने उसकी धमकी को खत्म कर दिया।”
मेजर जनरल (रि.) राजीव नारायण ने कहा, भारत ने पाकिस्तान के दो बड़े न्यूक्लियर वेपंस स्टोरेज वाले ठिकानों किराना हिल्स और चगाई हिल्स पर सटीक हमले किए। इन हमलों के बाद वहां 4.0 और 5.7 रिक्टर स्केल की सिस्मिक गतिविधियां दर्ज हुईं। इसका मतलब है कि वहां न्यूक्लियर मैटेरियल में कुछ रिसाव (रेडियोलॉजिकल लीक) हुआ। मेजर जनरल नारायण ने बताया, “किराना हिल्स में 5-7 टनल्स थीं, जिनमें से हमने 5 को सील कर दिया। चगाई हिल्स में भी हमने स्टोरेज को हिट किया। अब वहां रेडिएशन की वजह से कोई 1000 साल तक नहीं जा सकता।”
भारत ने एक ही रात में पाकिस्तान के 11 बड़े एयरबेस को नष्ट कर दिया। इनमें जैकबाबाद भी शामिल था, जहां पाकिस्तान के F-16 विमान रखे थे। ये विमान न्यूक्लियर वेपंस ले जा सकते हैं। मेजर जनरल नारायण ने कहा, “11 एयरबेस को हमने पूरी तरह बेकार कर दिया। उनकी एयरफोर्स अब कुछ नहीं कर सकती।”
नाविक ने कैसे किया कमाल
नाविक ने इस ऑपरेशन में सबसे बड़ा रोल निभाया। इसकी 1 मीटर की सटीकता की वजह से भारत की ब्रह्मोस मिसाइल, ड्रोन, और तोपखाने ने दुश्मन के ठिकानों को बिल्कुल सटीक निशाना बनाया। केएल विलेन ने बताया, “नाविक की मदद से हम 50 किलोमीटर दूर 3×2 फीट के छोटे से दरवाजे को भी हिट कर सकते हैं। हमारी मिसाइल्स और ड्रोन्स को फ्लाइट में रीयल-टाइम लोकेशन डेटा मिलता है, जिससे वो बिल्कुल सही टारगेट पर जाती हैं।”
आकाशतीर को दी ताकत
इस ऑपरेशन में भारत की स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम आकाशतीर ने भी कमाल किया। ये सिस्टम S-400, MR-SAM (इजरायल के साथ मिलकर बनाया), और स्वदेशी ड्रोन्स के साथ जुड़ा था। आकाशतीर ने दुश्मन के हवाई हमलों को रोका और भारतीय हथियारों को सही टारगेट तक पहुंचाया। मेजर जनरल नारायण ने कहा, “आकाशतीर ने दुनिया को चुप करा दिया। ये दिखाता है कि हमारी पुरानी गन्स को भी अपग्रेड करके मॉडर्न वॉर में इस्तेमाल किया जा सकता है।”
इस ऑपरेशन में इस्तेमाल हुए सारे बड़े उपकरण नाविक, आकाशतीर, ड्रोन, और मिसाइल्स भारत में बने थे। मेजर जनरल नारायण ने गर्व से कहा, “इस पूरे सिस्टम में एक भी चीज विदेशी नहीं थी। ये है ट्रूली आत्मनिर्भर भारत।”
पाकिस्तान की हालत क्यों खराब हुई?
ऑपरेशन सिन्दूर ने पाकिस्तान को हर तरह से तोड़ दिया। मेजर जनरल नारायण ने बताया, “पाकिस्तान के पास अब न फ्यूल बचा है, न गोला-बारूद। उनकी आर्मी पूरी तरह टूट चुकी है।” पाकिस्तान के 11 एयरबेस नष्ट हो गए। उसकी एयरफोर्स अब कुछ नहीं कर सकती। न्यूक्लियर स्टोरेज साइट्स को नुकसान पहुंचा, जिससे उसकी परमाणु ताकत कमजोर हो गई है। उन्होंने कहा, पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। अब उसके पास सैन्य ऑपरेशन्स चलाने के लिए पैसे नहीं हैं। उसने अमेरिका और चीन से मदद मांगी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मेजर जनरल नारायण ने कहा, “चीन ने साफ मना कर दिया। अमेरिका के प्लेन्स आए, लेकिन वो सिर्फ टोही उड़ान भर रहे थे। कोई मदद नहीं मिली।”
मेजर जनरल नारायण के अनुसार, अमेरिका और चीन के डिफेंस सिस्टम्स को भी नाकामी का सामना करना पड़ा। अमेरिका के प्रोटेक्शन सिस्टम्स चगाई हिल्स में फेल हो गए। चीन के सिस्टम भी कुछ नहीं कर पाए।
नाविक का इस्तेमाल कहां-कहां?
नाविक सिर्फ आर्मी के लिए नहीं, बल्कि आम लोगों के लिए भी बहुत काम का है। के.एल. विलेन ने बताया कि इसका इस्तेमाल कई जगह हो सकता है। जैसे ड्रोन से सटीक कीटनाशक छिड़काव, जमीन के नक्शे बनाने और प्रॉपर्टी विवाद सुलझाने में, गाड़ियों की ट्रैकिंग और नेविगेशन के अलावा 5G और 6G नेटवर्क के लिए सटीक टाइम सिग्नल में भी इसका यूज हो सकता है।
विलेन ने कहा, “अगर नाविक को सही से इस्तेमाल करें, तो हम 50 फीसदी तक वेस्टेज बचा सकते हैं और 30 फीसदी से ज्यादा आउटपुट पा सकते हैं।”
ऑपरेशन सिंदूर ने दिए भारत को कई बड़े सबक
के.एल. विलेन के मुताबिक, नाविक में और सैटेलाइट्स जोड़ने की जरूरत है। “हमें 11 सैटेलाइट्स चाहिए, ताकि L1, L5, और S-बैंड मिलकर और बेहतर कवरेज दें।” के.एल. विलेन ने भी जोड़ा, “नाविक आज दुनिया का सबसे बेहतर नेविगेशन सिस्टम है। अगर हम इसे पूरी तरह अपनाएं, तो भारत की ताकत और दोगुनी हो जाएगी।” साथ ही, भारत को अपने डिफेंस इंडस्ट्री में और पैसे लगाने होंगे। मेजर जनरल नारायण ने कहा, “हमारी डिफेंस इंडस्ट्री ने दिखा दिया कि अगर इच्छा हो, तो रास्ता निकल आता है।”
नाविक सिस्टम को करें और मजबूत
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इस साल 29 जनवरी को NVS-02 सैटेलाइट लॉन्च किया था। इसका मकसद पुराने IRNSS-1E सैटेलाइट को रिप्लेस करना और नाविक (Navigation with Indian Constellation) सिस्टम को और मजबूत करना था। लेकिन एक तकनीकी खराबी (पायरो वाल्व में दिक्कत) की वजह से ये सैटेलाइट अपने सही ऑर्बिट (Geostationary Orbit) तक नहीं पहुंच सका और Geostationary Transfer Orbit (GTO) में अटक गया।
2015 से 2018 तक इसरो के पूर्व चेयरमैन रहे ए.एस. किरण कुमार ने इस असफलता, नाविक सिस्टम की मौजूदा स्थिति के बारे में कहा, “हम NVS-02 सैटेलाइट का इस्तेमाल दिन में कुछ घंटों के लिए कर रहे हैं। भले ही ये अपने पूरे मकसद को पूरा नहीं कर पाया, लेकिन अगले 10 साल तक ये काम कर सकता है। हम नाविक को और बेहतर करने के लिए काम कर रहे हैं। जल्द ही NVS-03 और NVS-04 सैटेलाइट्स लॉन्च होंगे।”
उन्होंने बताया कि नाविक का पूरा सिस्टम तैयार करने की जरूरत है, ताकि भारत की नेविगेशन क्षमता और मजबूत हो।
स्मार्टफोन में हो सकता है यूज
क्या नाविक को स्मार्टफोन्स में इस्तेमाल किया जा सकता है? इस सवाल पर किरण कुमार ने जवाब दिया, “आज कई स्मार्टफोन्स में नाविक का सपोर्ट है। भारत ने नए मोबाइल फोन्स में नाविक सिग्नल्स का सपोर्ट अनिवार्य कर दिया है। अगर आप भारत में हैं या इसके 1,500 किलोमीटर के दायरे में, तो आपका फोन नाविक का इस्तेमाल कर सकता है।”
उन्होंने कहा कि नाविक, जीपीएस से अलग है क्योंकि ये भारत का अपना सिस्टम है और खास तौर पर भारत और आसपास के इलाकों के लिए बनाया गया है। ये ज्यादा सटीक है और 24 घंटे कवरेज देता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीटिक में भी कारगर
किरण कुमार ने नाविक की राष्ट्रीय सुरक्षा में अहमियत पर जोर देते हुए कहा, “नाविक भारत को एक स्वतंत्र नेविगेशन सिस्टम देता है, जो विदेशी सिस्टम्स पर निर्भर नहीं है। ये खासकर रणनीतिक और सुरक्षा के लिहाज से बहुत जरूरी है।” उन्होंने बताया कि नाविक सैटेलाइट्स के सिग्नल्स से जमीन पर मौजूद डिवाइसेज अपनी सटीक लोकेशन पता कर सकती हैं। ये सैन्य ऑपरेशन्स, ड्रोन नेविगेशन, और मिसाइल टारगेटिंग के लिए बहुत काम आता है।
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क्या नाविक को सार्क देशों के साथ कूटनीति के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है? इस सवाल पर किरण कुमार ने कहा, “नाविक का ‘क्षेत्रीय’ मतलब है भारत की सीमा से 1,500 किलोमीटर का दायरा। इस इलाके में कोई भी नाविक-सपोर्टेड डिवाइस लोकेशन सर्विस दे सकती है। नाविक के सैटेलाइट्स जियोस्टेशनरी हैं, यानी वो हमेशा एक ही जगह रहते हैं। इससे 24/7 कवरेज मिलता है और सटीकता बढ़ती है।” उन्होंने बताया कि भारत इस सिस्टम को अपने पड़ोसी देशों के साथ शेयर कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय सहयोग बढ़ेगा।