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📍नई दिल्ली | 3 months ago

K9 Vajra-T Howitzers: भारतीय सेना अपनी तोपखाना क्षमता (Artillary) को और अधिक घातक और आधुनिक बनाने जा रही है। भारतीय सेना के तोपखाने को आधुनिक बनाने के लिए दक्षिण कोरिया की कंपनी हान्वा एयरोस्पेस (Hanwha Aerospace) ने भारत की लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के साथ 253 मिलियन डॉलर (लगभग 2100 करोड़ रुपये) का एक नया करार किया है। इस सौदे के तहत भारतीय सेना को 100 अतिरिक्त K9 वज्र-टी स्वचालित तोपें (सेल्फ-प्रोपेल्ड हॉवित्जर) मिलेंगी। हाल ही में नई दिल्ली स्थित कोरियाई दूतावास में दोनों देशों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में इस समझौते पर दस्तखत किए गए।

K9 Vajra-T Howitzers: Indian Army to Get 100 More in $253M Hanwha-L-T Deal

K9 Vajra-T Howitzers: पहले सौदे की सफलता के बाद दूसरा बड़ा ऑर्डर

नया सौदा पहले के उस ऑर्डर को देखते हुए किया गया है, जिसमें 2017 में 100 K9 वज्र तोपों का ऑर्डर दिया गया था। उस वक्त इस ऑर्डर की डिलीवरी तय समयसीमा से पहली ही कर दी गई थी। जिसके बाद नए ऑर्डर की नींव तैयार हुई। ये तोपें राजस्थान से लेकर लद्दाख तक के विभिन्न इलाकों में सफलतापूर्वक इस्तेमाल की जा रही हैं। पहले बैच में 50% से अधिक स्वदेशी निर्माण हुआ था, लेकिन इस नए ऑर्डर के तहत भारत में 60% तक लोकलाइजेशन का लक्ष्य तय किया गया है। यानी भारत में बनने वाले इस बैच में अधिक घरेलू कंपनियां, विशेषकर MSME सेक्टर, भाग लेंगी।

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K9 Vajra-T Howitzers: सेना की आधुनिकता में मील का पत्थर

भारतीय रक्षा मंत्रालय ने दिसंबर 2024 में K9 वज्र-T तोपों की खरीद के लिए L&T के साथ लगभग 7,628.70 करोड़ रुपये का करार किया था। जिसमें 155 मिमी/52 कैलिबर की K9 वज्र-टी तोपों को ‘बाय इंडियन’ श्रेणी के तहत खरीदने की बात थी। जिससे देश की रक्षा उत्पादन नीति ‘आत्मनिर्भर भारत’ को भी बल मिलेगा।

रक्षा मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, “K9 वज्र-T की खरीद से तोपखाना क्षमताओं में जबरदस्त सुधार होगा और सेना की ऑपरेशनल रेडीनेस बढ़ेगी। यह तोप दुर्गम इलाकों में भी अपनी प्रभावी मारक क्षमता और गतिशीलता से अहम भूमिका निभाएगी।”

K9 Vajra-T Howitzers: सौदे की अहमियत और रक्षा साझेदारी

इस परियोजना से अगले चार सालों में नौ लाख से अधिक मानव-दिवसों का रोजगार पैदा होगा। साथ ही, इसमें कई भारतीय उद्योगों, खासकर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) की सक्रिय भागीदारी होगी। यह भारत के औद्योगिक विकास और स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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K9 Vajra-T Howitzers: 2021 में 100वीं तोप सेना को सौंपी

भारतीय सेना पहले से ही 100 K9 वज्र-टी तोपों को ऑपरेट कर रही है। इनका पहला ऑर्डर 2017 में दिया गया था, जिसे एलएंडटी ने ग्लोबल कॉम्पिटिटिव बिडिंग और सक्सेसफुल फील्ड टेस्टिंग के बाद हासिल किया था। कंपनी ने तय समय से पहले इन तोपों की डिलीवरी पूरी की, और 2021 में 100वीं तोप सेना को सौंपी गई।

एलएंडटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अरुण रामचंदानी ने बताया कि “पहली खेप की तरह दूसरी खेप भी गुजरात के हजीरा स्थित हमारे आर्मर्ड सिस्टम्स कॉम्प्लेक्स (Armoured Systems Complex) में तैयार की जाएगी। खास बात यह है कि नई तोपों में ऊंचाई वाले क्षेत्रों, जैसे लद्दाख, में बेहतर प्रदर्शन के लिए अपग्रेड शामिल होंगे।

वहीं, हान्वा एयरोस्पेस के सीईओ और प्रेसिडेंट जे-इल सन ने इस करार को दोनों देशों के बीच गहरे होते रक्षा संबंधों का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा, “यह दूसरा ऑर्डर कोरिया और भारत के बीच बढ़ती साझेदारी को दर्शाता है। हम भारत की रक्षा क्षमताओं के लिए एक भरोसेमंद साथी बने रहेंगे और भारत के रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के सपने को पूरा करने में योगदान देंगे।”

K9 वज्र: भारतीय सेना की ताकत

ये तोपें शुरू में राजस्थान के भारत-पाकिस्तान सीमा पर तैनात की गई थीं, लेकिन 2020 में लद्दाख में भारत-चीन तनाव के बाद इन्हें पूर्वी लद्दाख में भी तैनात किया गया। K9 वज्र-टी ने भारत के दुर्गम इलाकों में अपनी बेहतरीन क्षमता साबित की है।

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यह एक 155mm/52-कैलिबर ट्रैक्ड सेल्फ प्रोपेल्ड हॉवित्जर है, जो लगभग 40 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक गोलाबारी कर सकती है और 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकती है। यह बर्स्ट मोड में प्रति मिनट छह गोले और लंबे समय तक प्रति मिनट 2-3 गोले दाग सकती है।

यह तोप खासतौर पर उच्च हिमालयी इलाकों, जैसे लद्दाख, के लिए तैयार की गई है, जिसमें कोल्ड वेदर किट और मजबूत सस्पेंशन सिस्टम शामिल हैं।

  • वजन: करीब 50 टन
  • इंजन: 1,000 हॉर्सपावर का डीजल इंजन
  • गति: 67 किमी/घंटा तक
  • गोलाबारी की दर: 15 सेकंड में 3 राउंड (बर्स्ट मोड), 8 राउंड प्रति मिनट (अधिकतम)
  • क्रू मेंबर: 5

भारत ने 2015 में K9 को क्यों चुना:

भारतीय सेना के तोपखाने को आधुनिक बनाने की दिशा में एक अहम फैसला साल 2015 में लिया गया था, जब दक्षिण कोरिया की K9 वज्र ने फील्ड ट्रायल्स में रूस की 2S19 मस्ता-एस को पीछे छोड़ दिया।
2010 के दशक की शुरुआत में भारतीय सेना अपने पुराने तोपखाने को बदलने की कोशिश में थी। बोफोर्स तोप घोटाले के बाद से नए हथियारों की खरीद में देरी हो रही थी। उस वक्त सेना के पास मुख्य रूप से सोवियत-युग की तोपें थीं, जो आधुनिक युद्ध की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही थीं। खासकर ऊंचाई वाले इलाकों जैसे लद्दाख और सियाचिन में तेज, सटीक और गतिशील तोपों की जरूरत थी।
इसी दौरान रक्षा मंत्रालय ने 155 मिमी/52 कैलिबर की स्वचालित तोपों (सेल्फ-प्रोपेल्ड हॉवित्जर) की खरीद के लिए वैश्विक निविदा जारी की। इसमें कई देशों की कंपनियां शामिल हुईं, लेकिन अंतिम मुकाबला दक्षिण कोरिया की हान्वा डिफेंस की K9 थंडर और रूस की 2S19 मस्ता-एस के बीच हुआ।
2015 में इन दोनों तोपों का परीक्षण भारत के अलग-अलग इलाकों में किया गया। इसमें राजस्थान के रेगिस्तान, महाराष्ट्र के मैदान और हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र शामिल थे। इन परीक्षणों में कई मापदंडों पर ध्यान दिया गया:
  • मारक क्षमता: K9 की रेंज 40 किलोमीटर से ज्यादा थी, जबकि 2S19 की रेंज करीब 29-30 किलोमीटर तक सीमित थी।
  • फायरिंग रेट: K9 बर्स्ट मोड में 15 सेकंड में 3 गोले और प्रति मिनट 6-8 गोले दाग सकती थी, वहीं 2S19 की गति इससे कम थी।
  • मोबिलिटी: 50 टन वजनी K9 अपने 1000 हॉर्सपावर इंजन के साथ 67 किमी/घंटा की रफ्तार से चल सकती थी, जबकि 42 टन की 2S19 की गति 60 किमी/घंटा थी। ऊबड़-खाबड़ इलाकों में K9 का हाइड्रोन्यूमैटिक सस्पेंशन इसे बेहतर बनाता था।
  • सटीकता और ऑटोमेशन: K9 में एडवांस फायर कंट्रोल सिस्टम था, जो सटीक निशाना लगाने में मदद करता था। 2S19 में यह तकनीक कम थी।
के9 को चुनने के पीछे बड़ी बात यह भी थी कि हान्वा ने वादा किया था कि K9 का बड़ा हिस्सा भारत में तैयार होगा।

तोपखाने का आधुनिकीकरण

K9 वज्र-टी भारतीय सेना के आर्टिलरी मॉर्डनाइजेशन अभियान का अहम हिस्सा है। इसके तहत सेना कई 155 मिमी तोप प्रणालियों को शामिल कर रही है, जिनमें K9 वज्र, धनुष और शारंग शामिल हैं। इसके अलावा, उन्नत टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS), माउंटेड गन सिस्टम (MGS), और टोड गन सिस्टम (TGS) भी शामिल करने की प्रक्रिया में हैं।

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ATAGS एक स्वदेशी 155 मिमी/52 कैलिबर हॉवित्जर है, जिसे DRDO ने टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और भारत फोर्ज के साथ मिलकर बनाया है। सेना ने 114 धनुष तोपों का ऑर्डर भी दिया है, जो भारत की पहली स्वदेशी तोप है। इन्हें एडवांस्ड वेपन्स एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड (AWEIL) ने बनाया है और 2026 तक इनकी डिलीवरी पूरी होने की उम्मीद है।

इसके साथ ही, भारत पिनाका मल्टी-रॉकेट लॉन्च सिस्टम (MRLS) में भी निवेश कर रहा है। इस साल फरवरी में 10,147 करोड़ रुपये के अनुबंधों पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें पिनाका के लिए विभिन्न गोला-बारूद शामिल हैं। पिनाका की मारक क्षमता मार्क-I के लिए 40 किमी, मार्क-II के लिए 60-75 किमी और गाइडेड पिनाका के लिए 75 किमी से अधिक है। इसके रेंज को 120 किमी और आगे 300 किमी तक बढ़ाने पर काम चल रहा है।

दक्षिण कोरिया की K9 थंडर

K9 थंडर एक 155 मिमी/52 कैलिबर स्वचालित तोप है, जिसे हान्वा एयरोस्पेस ने तैयार किया है। यह 48 गोले ले जा सकती है और प्रति मिनट छह गोले दागने में सक्षम है। 1999 में पेश होने के बाद से यह दक्षिण कोरिया के डिफेंस एक्सपोर्ट का अहम हिस्सा है और ग्लोबल आटोमेटिक केनन मार्केट में इसकी हिस्सेदारी 50% से अधिक है। पिछले साल तक 1400 से ज्यादा K9 इकाइयां विभिन्न देशों को डिलीवर की जा चुकी हैं या निर्यात के लिए तैयार हैं।

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दक्षिण कोरिया खुद इन तोपों की बड़ी संख्या का इस्तेमाल करता है, जो उत्तर कोरिया से अलग करने वाली डिमिलिटराइज्ड जोन (DMZ) पर तैनात हैं। K9 की खासियत इसका पहाड़ी इलाकों में काम करने की क्षमता है, इसमें एडवांस हाइड्रोन्यूमैटिक सस्पेंशन लगा है। इसे पांच सदस्यों का चालक दल ऑपरेट करता है। K9 थंडर को इस तरह से बनाया गया है कि इस परमाणु, जैविक और रासायनिक खतरों का कोई असर नहीं होता।

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