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📍नई दिल्ली | 7 months ago

Indian Space Strategy: भारतीय सेनाएं अब भविष्य के युद्धों और चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी अंतरिक्ष आधारित क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। इस उद्देश्य के तहत भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना अंतरिक्ष में अपने संसाधनों और बुनियादी ढांचे का विस्तार करने की योजना बना रही हैं।

Indian Space Strategy: Preparing for Future Wars, Keeping an Eye on Enemies
CDS Anil Chauhan

इस महीने की शुरुआत में, रक्षा मंत्रालय में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (DMA) ने एक विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया था। इस बैठक में तीनों सेनाओं के प्रमुख, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के प्रमुख अधिकारी भी मौजूद थे।

Indian Space Strategy: अंतरिक्ष आधारित संसाधनों का विस्तार

इस प्रेजेंटेशन में बताया गया कि भारतीय सेना अब अपने अंतरिक्ष-आधारित संसाधनों और ग्राउंड इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसके तहत उपग्रहों की संख्या बढ़ाने और उनके संचालन के लिए ज़रूरी ग्राउंड इन्फ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने की योजना बनाई जा रही है। इसके तहत, डीएमए और डिफेंस स्पेस एजेंसी (DSA) पर नए ज़िम्मेदारियों को संभालने की योजना बनाई गई है।

हाल ही में, केंद्रीय कैबिनेट ने एक बड़े अंतरिक्ष सर्विलांस परियोजना को मंजूरी दी है, जिसके तहत 52 उपग्रह लॉन्च किए जाएंगे। ये उपग्रह निगरानी, संचार, और अन्य सामरिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल होंगे। इस परियोजना में सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों की भागीदारी होगी।

डिफेंस स्पेस एजेंसी का होगा विस्तार

डीएमए के नेतृत्व में काम करने वाली रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) को और अधिक मज़बूत बनाने की योजना है। इस एजेंसी की जिम्मेदारी न केवल अंतरिक्ष में नए संसाधन तैनात करने की है, बल्कि उन्हें हर प्रकार के खतरों से सुरक्षित रखना भी है।

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इस परियोजना के अंतर्गत भारत की निगरानी क्षमताओं को विशेष रूप से चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) और पाकिस्तान की सीमाओं पर मजबूत किया जाएगा। इसके लिए एजेंसी के कर्मचारियों की संख्या और कामकाज का दायरा बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।

Indian Space Strategy: सैटेलाइट निगरानी से मजबूत होगा सुरक्षा कवच

भारत के पास पहले से ही कई उपग्रह हैं, जो निगरानी और संचार जैसे कार्यों में लगे हुए हैं। अब, नई योजना के तहत सैटेलाइट निगरानी को और बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे भारतीय सुरक्षा बलों को दुश्मनों की हर गतिविधि पर नजर रखने में मदद मिलेगी।

उपग्रहों की नई श्रृंखला के जरिए भारत न केवल अपनी सीमाओं पर निगरानी करेगा, बल्कि समुद्री क्षेत्रों, साइबर हमलों, और अन्य रणनीतिक क्षेत्रों में भी अपनी ताकत बढ़ाएगा।

CDS का अंतरिक्ष की अहमियत पर जोर

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने हाल ही में एक बयान में कहा कि अंतरिक्ष अब “भीड़भाड़ वाला, विवादित, प्रतिस्पर्धात्मक और वाणिज्यिक” क्षेत्र बन चुका है। उन्होंने सेना के नेतृत्व को इस क्षेत्र में राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के लिए नवाचार और अत्याधुनिक तकनीकों को विकसित करने पर जोर दिया।

सीडीएस ने यह भी कहा कि अंतरिक्ष युद्ध के लिए तैयार रहना अब समय की मांग है। उन्होंने सभी संबंधित विभागों और संगठनों से सहयोग करने और अत्याधुनिक प्रणालियों को विकसित करने का आह्वान किया।

52 उपग्रह लिखेंगे भारत की अंतरिक्ष में ताकत का नया अध्याय

कैबिनेट द्वारा स्वीकृत नई अंतरिक्ष निगरानी परियोजना के तहत 52 उपग्रह लॉन्च किए जाएंगे। ये उपग्रह निगरानी, संचार, और वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्रों में भारत को और मजबूत बनाएंगे। यह परियोजना रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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इन उपग्रहों के जरिए भारत चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की सीमाओं पर बेहतर नजर रख सकेगा। इसके अलावा, ये उपग्रह भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी एक नई पहचान देंगे, जहां अंतरिक्ष आधारित तकनीक और संसाधन भविष्य की कूटनीति और सुरक्षा का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं।

सरकारी और निजी क्षेत्र का सहयोग

इस परियोजना में निजी कंपनियों और स्टार्टअप्स की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। ISRO और DRDO के साथ मिलकर निजी क्षेत्र कटिंग एज टेक्नोलॉजी को डेवलप करने में मदद करेगा। इससे न केवल भारत की अंतरिक्ष क्षमता में वृद्धि होगी, बल्कि घरेलू उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य के युद्ध अंतरिक्ष आधारित तकनीकों पर निर्भर करेंगे। इसमें साइबर हमलों, उपग्रहों की निगरानी, और अंतरिक्ष से हमलों को शामिल किया जा सकता है। भारत, इन संभावित खतरों को ध्यान में रखते हुए, अपनी क्षमताओं को लगातार बढ़ा रहा है।

भारतीय सेना के इस कदम से यह साफ है कि भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में केवल एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि एक अग्रणी शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। यह पहल न केवल भारत को मजबूत बनाएगी, बल्कि इसे एक वैश्विक स्तर पर नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करेगी।

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