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चीन की सैन्य अंतरिक्ष क्षमता में तेजी से बढ़ोतरी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन रही है। 2010 में जहां चीन के पास केवल 36 उपग्रह थे, वहीं 2024 तक यह संख्या बढ़कर 1,000 से अधिक हो गई है, जिनमें से 360 उपग्रह खुफिया, निगरानी और टोही (आईएसआर) मिशनों के लिए हैं। चीन ने डायरेक्ट असेंडेंट एंटी-सैटेलाइट मिसाइल, को-ऑर्बिटल सैटेलाइट्स), इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर उपकरण और हाई-पावर लेज़र वेपन बना लिए हैं। जो अन्य देशों की सैटेलाइट गतिविधियों में रुकावट पैदा कर सकते हैं...
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📍नई दिल्ली | 3 months ago

Space-Based Surveillance: ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत अब दुश्मन की हर गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने की बड़ी तैयारी कर रहा है। भारत सरकार ने 52 डिफेंस सैटेलाइट्स (रक्षा उपग्रहों) को तेजी से लॉन्च करने की योजना बनाई है। ये सैटेलाइट्स आर्म्ड फोर्सेस के लिए खास तौर पर तैयार किए जा रहे हैं। साथ ही, देश एक व्यापक सैन्य अंतरिक्ष नीति (Military Space Doctrine) को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में भी है। इस कदम से भारत अपनी रक्षा क्षमताओं को और मजबूत करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने अंतरिक्ष आधारित निगरानी (स्पेस-बेस्ड सर्विलांस) कार्यक्रम के तीसरे चरण (Space-Based Surveillance-SBS-3) को मंजूरी दी थी। इस परियोजना की लागत 26,968 करोड़ रुपये है। इसके तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 21 उपग्रहों का निर्माण और लॉन्चिंग करेगा, जबकि तीन निजी कंपनियां मिलकर 31 उपग्रह तैयार करेंगी।

Space-Based Surveillance: 2029 से पहले सभी 52 सैटेलाइट अंतरिक्ष में होंगे

सूत्रों के मुताबिक, पहला उपग्रह अगले साल अप्रैल तक लॉन्च किया जाएगा, और 2029 के अंत तक सभी 52 उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया जाएगा। इस पूरे मिशन की अगुवाई डिफेंस स्पेस एजेंसी (Defence Space Agency – DSA) और इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (IDS) कर रहे हैं। एक सूत्र ने बताया, “हम इन उपग्रहों को तेजी से निम्न पृथ्वी कक्षा (लो अर्थ ऑर्बिट) और भू-स्थिर कक्षा (जियोस्टेशनरी ऑर्बिट) में स्थापित करने के लिए समयसीमा को और कम करने की कोशिश कर रहे हैं। जिन तीन निजी कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट मिला है, उन्हें उपग्रहों के निर्माण में तेजी लाने के निर्देश दिए गए हैं।”

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कवर होगा चीन, पाकिस्तान और हिंद महासागर क्षेत्र

SBS-3 का मुख्य उद्देश्य चीन, पाकिस्तान और हिंद महासागर क्षेत्र के बड़े हिस्सों को कवर करना है। इसके लिए उपग्रहों को इस तरह डिजाइन किया जा रहा है कि वे कम समय में दोबारा उसी क्षेत्र की निगरानी (रिविजिट टाइम) कर सकें और बेहतर रिजॉल्यूशन (इमेजिंग क्वालिटी) के साथ तस्वीरें उपलब्ध करा सकें। इससे दुश्मन की छोटी से छोटी गतिविधि को भी तुरंत ट्रैक किया जा सकेगा। इसके अलावा, सैन्य अंतरिक्ष नीति को भी और बेहतर किया जा रहा है, ताकि भारत की अंतरिक्ष आधारित रक्षा रणनीति को और मजबूती मिले।

इसके साथ ही भारतीय वायुसेना तीन हाई-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम (High Altitude Platform System – HAPS) हासिल करने की योजना बना रही है। ये बिना पायलट वाले विमान होते हैं जिन्हें “स्यूडो-सैटेलाइट्स” (Pseudo-satellites) भी कहा जाता है। ये स्ट्रैटोस्‍फेयर (Stratosphere – समताप मंडल) में लंबे समय तक उड़ान भर सकते हैं और जासूसी, सर्विलांस और निगरानी (ISR – Intelligence, Surveillance and Reconnaissance) मिशनों में मदद करते हैं।

ऑपरेशन सिंदूर ने बढ़ाई सैटेलाइट की अहमियत

सूत्रों ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, जो 7 से 10 मई के बीच चले ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने घरेलू सैटेलाइट्स जैसे Cartosat के साथ-साथ विदेशी कॉमर्शियल सैटेलाइट्स का इस्तेमाल किया। इसका मकसद पाकिस्तान के सैन्य मूवमेंट पर नजर रखना था। एक अन्य सूत्र ने कहा, “हमें अब अपनी OODA लूप (Observe, Orient, Decide, Act) को Qj तेज करना होगा। जितनी जल्दी भारत 52 सैटेलाइट्स की पूरी सीरीज को अंतरिक्ष में स्थापित करेगा, उतना बेहतर रहेगा।”

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स्पेस डोमेन में चीन की चुनौती

चीन की सैन्य अंतरिक्ष क्षमता में तेजी से बढ़ोतरी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन रही है। 2010 में जहां चीन के पास केवल 36 उपग्रह थे, वहीं 2024 तक यह संख्या बढ़कर 1,000 से अधिक हो गई है, जिनमें से 360 उपग्रह खुफिया, निगरानी और टोही (आईएसआर) मिशनों के लिए हैं। चीन ने डायरेक्ट असेंडेंट एंटी-सैटेलाइट मिसाइल, को-ऑर्बिटल सैटेलाइट्स), इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर उपकरण और हाई-पावर लेज़र वेपन बना लिए हैं। जो अन्य देशों की सैटेलाइट गतिविधियों में रुकावट पैदा कर सकते हैं।

चीन बना चुका है एयरोस्पेस फोर्स

चीन ने पिछले साल अप्रैल में पीएलए एयरोस्पेस फोर्स बनाई थी। इस महीने की शुरुआत में एक सेमिनार में एकीकृत रक्षा स्टाफ (IDS) के प्रमुख एयर मार्शल अशुतोष दीक्षित ने भारत की निगरानी सीमा (सर्विलांस एनवेलप) को बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “हमें अपनी सीमाओं पर खतरे आने से पहले ही, जब वे दुश्मन के एयरबेस या तैयारी क्षेत्रों में हों, तभी पहचानना और ट्रैक करना जरूरी है। इससे हमें रियल-टाइम सिचुएशनल अवेयरनेस (Real-Time Situational Awareness) मिलेगी।”

एयर मार्शल दीक्षित ने बताया कि चीन के उपग्रह हाल ही में निम्न पृथ्वी कक्षा में जटिल “डॉगफाइटिंग” युद्धाभ्यास (मैनुवर्स) करते हुए देखे गए हैं। उन्होंने बताया, चीन अब ‘किल चेन’ (Kill Chain) से ‘किल मेष’ (Kill Mesh) की ओर बढ़ चुका है, जो एक इंटीग्रेटेड नेटवर्क है जिसमें आईएसआर उपग्रहों को विपंस सिस्टम के साथ जोड़ा गया है।”

सैन्य रणनीति में स्पेस का महत्व बढ़ा

भारत की यह नई योजना न केवल दुश्मन की गतिविधियों पर बेहतर नजर रखेगी, बल्कि यह भारत की सैन्य रणनीति को तकनीकी रूप से और सशक्त बनाएगी। सैन्य अंतरिक्ष सिद्धांत (Military Space Doctrine) को भी इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जा रहा है, जिसमें भविष्य के युद्धों में स्पेस डोमेन को निर्णायक भूमिका दी जाएगी।

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उपग्रहों के साथ-साथ, भारतीय वायु सेना (आईएएफ) तीन हाई-एल्टिट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम (एचएपीएस) विमानों के लिए भी प्रस्ताव पर काम कर रही है। ये मानवरहित हवाई वाहन (यूएवी) या “छद्म-उपग्रह” (स्यूडो-सैटेलाइट्स) हैं, जो स्ट्रैटोस्फेयर में लंबे समय तक खुफिया, निगरानी और टोही मिशनों के लिए काम करते हैं।

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