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📍नई दिल्ली | 7 months ago

India-China Disengagement: भारतीय सेना की वेस्टर्न कमांड के जीओसी रहे लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) कमलजीत सिंह ने आशंका जताई है कि लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के बाद चीन की नजर अब उत्तराखंड पर है। उनका कहना है कि लद्दाख में मौजूदा गतिरोध और अरुणाचल प्रदेश के विवादित क्षेत्रों के बाद अब उत्तराखंड का इलाका चीन का अगला निशाना हो सकता है। जनरल सिंह ने यह बात यूट्यूब चैनल रायसीना हिल्स पर एक डिस्कशन के दौरान कही। उन्होंने हाल ही में उनकी किताब ‘जनरल्स जॉटिंग्स: नेशनल सिक्योरिटी, कॉन्फ्लिक्ट्स एंड स्ट्रेटेजीज’ इन काफी चर्चा में है। बता दें कि भारत और चीन के बीच पिछले सप्ताह ही बीजिंग में 23वें विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता हुई, जिसमें सीमा तनाव को खत्म करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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बनाया पहला रीजनल थिंक टैंक “ज्ञान चक्र” 

पांच दशकों तक भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे चुके रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल कमलजीत सिंह, जिन्हें केजे सिंह के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में बताया कि वे राजस्थान के एक छोटे से कस्बे से आते हैं। सैनिक स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने सेना में जाने का निश्चय कर लिया था। सैनिक स्कूल से सेना में आए। उन्होंने कहा, “मेरे परिवार का सेना से कोई संबंध नहीं था, लेकिन सेना ने मुझे मौके दिए और मेरी काबिलियत को पहचाना।” उन्होंने 63 कैवेलरी रेजिमेंट का हिस्सा बनने और फिर पश्चिमी कमान का नेतृत्व करने को अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया। वे सिक्किम में कोर कमांडर भी रहे, जहां उन्होंने चीन की रणनीतिक गतिविधियों को काउंटर करने में अहम भूमिका निभाई। सेना से रिटायर होने के बाद चंडीगढ़ में पहला रीजनल थिंक टैंक “ज्ञान चक्र” बनाने का श्रेय भी उन्हें जाता है।

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India-China Disengagement: लद्दाख में मौजूदा हालात

जनरल सिंह के अनुसार, भारत-चीन सीमा तीन हिस्सों – पूर्वी, मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में बंटी हुई है। पिछले तीन वर्षों में, चीन ने दो प्रमुख क्षेत्रों – डोकलाम (2017) और पूर्वी लद्दाख (2020) में तनाव पैदा किया है। पूर्वी लद्दाख में हालात अभी भी पूरी तरह से सामान्य नहीं है। उन्होंने कहा, “2020 में गलवान झड़प के बाद से चीन ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में हमारी पेट्रोलिंग की सीमाएं तय करना भारत के लिए चिंता का विषय है।” उन्होंने कैलाश रेंज पर कब्जे को भारतीय सेना की बड़ी सफलता बताया, लेकिन यह भी जोड़ा कि इसे रणनीतिक रूप से और मजबूत किया जा सकता था। उन्होंने कहा कि कैलाश रेंज न केवल सामरिक दृष्टि से बल्कि मनोवैज्ञानिक बढ़त के लिए भी महत्वपूर्ण है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि चीन द्वारा बनाए गए नए पुल और बुनियादी ढांचे से उनकी आक्रामक रणनीति स्पष्ट होती है।

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India-China Disengagement: उत्तराखंड: संभावित अगला मोर्चा?

जनरल सिंह ने विशेष रूप से उत्तराखंड सेक्टर चीन की तरफ से तनाव बढ़ने की संभावना जताई। उन्होंने कहा, “चीन, भारत को अलग-अलग मोर्चों पर उलझाए रखना चाहता है। उत्तराखंड के बाराहोती इलाके पर चीन की पहले ही नजर है। सेना को इस क्षेत्र में सतर्क रहना होगा।” उन्होंने आगे कहा कि 1954 में चीन ने उत्तराखंड के बाराहोती क्षेत्र में घुसपैठ की थी। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में चीन की रुचि लंबे समय से बनी हुई है। बाराहोती क्षेत्र पर चीन अपना दावा जताता है और यह भारत के लिए एक संवेदनशील क्षेत्र है। उन्होंने चेतावनी दी कि चीन की रणनीति है कि वह छोटे और अप्रत्याशित इलाकों पर अपना दावा करता है। यह इलाका अभी तक अपेक्षाकृत शांत रहा है, लेकिन इसके महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने जोर देकर कहा, “चीन पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है। हमारी तैयारियां सतर्क और दूरदर्शी होनी चाहिए।”

जनरल सिंह के मुताबिक, “चीनी सेना (पीएलए) नए मोर्चों को खोलने में माहिर है, और आने वाले समय में उत्तराखंड के लिपुलेख, बाराहोटी और नीलांग घाटी जैसे क्षेत्रों में तनाव बढ़ सकता है।”

India-China Disengagement: हिमाचल प्रदेश में चीनी खतरा

सिंह ने हिमाचल प्रदेश के रामपुर क्षेत्र में अपनी तैनाती के दिनों को याद करते हुए कहा, “जब मैं पश्चिमी सेना का कमांडर था, तो मुझे बताया गया कि यह एक ‘हॉलिडे सेक्टर’ है। इसे ‘शुगर सेक्टर’ कहा जाता था।” शुगर सेक्टर हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के बीच का सीमा क्षेत्र है, जहां चीन का प्रभाव देखा जाता है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के रामपुर और शिपकी ला जैसे क्षेत्रों में भी तैनाती बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाकर चीन को चुनौती देने की तैयारी की है। हमने इसे 36 ब्रिगेड से 136 स्वतंत्र इंफेंट्री ब्रिगेड बनाया। उस समय, इसमें केवल दो बटालियन थीं। आज, इसमें चार बटालियन हैं। पहले केवल एक लाइट रेजिमेंट थी, जबकि अब एक मीडियम रेजिमेंट और एक लाइट रेजिमेंट भी है।

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सिक्किम में चीन की चालें

सिक्किम में कोर कमांडर पद पर रहने के दौरान के अपने अनुभवों को साझा करते हुए, सिंह ने बताया कि कैसे हिमाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे क्षेत्रों में चीन ने अचानक गतिविधियां शुरू कर दीं। “सिक्किम में एक जगह है नाकू-ला। जब मैं कोर कमांडर था, तो मुझे बताया गया कि यहां कोई खतरा नहीं है, कुछ नहीं होता। उन्होंने बताया कि लेकिन मेरी सेवा समाप्ति के एक साल बाद, मुझे बताया गया कि चीनी वहां सक्रिय हो गए।” उन्होंने आगे बताया, “नाकू-ला में पहले आईटीबीपी तैनात थी, लेकिन मैंने वहां हमारी इंफेंट्री कंपनी तैनात करने की योजना बनाई। एक साल बाद, चीनी ने वहां सक्रियता दिखाई। इसका मतलब है कि चीनी किसी भी स्थान पर दावा जता सकता है। सिंह ने यह भी बताया कि उनके कार्यकाल के दौरान चीन ने स्मगलर्स गैप, ब्लैक रॉक और नकु पास जैसे स्थानों पर भी अपनी गतिविधियां शुरू कर दीं। बता दें कि नकु पास मुगुथांग घाटी के ग्लेशियर इलाके में स्थित है।

भूगोल और रणनीति का महत्व

जनरल सिंह ने कहा कि भूगोल किसी भी सैन्य रणनीति की रीढ़ होता है। सिक्किम के चुम्बी घाटी से लेकर पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी तक, भारत के कई इलाकों में चीनी रणनीति का सामना करने के लिए भूगोल का गहन अध्ययन और औऱ उसका इस्तेमाल जरूरी है। उन्होंने कहा कि चुम्बी घाटी का क्षेत्र सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन चीन इसे लगातार अपना विस्तार देने की कोशिश करता है। वहीं, पैंगोंग त्सो के फिंगर 4 से फिंगर 8 तक का इलाका अब बफर जोन है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा चीन को मिलता है। दौलत बेग ओल्डी की बात करें, तो  चीन इस इलाके को अपनी रणनीति में एक कमजोर कड़ी मानता है और यहां तनाव बनाए रखना चाहता है।

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सैन्य बलों का पुनर्गठन जरूरी

भारत-चीन सीमा पर तैनात अर्धसैनिक बलों को लेकर जनरल सिंह ने इंटीग्रेटेड कमांड का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, “यह आवश्यक है कि सभी अर्धसैनिक बलों जैसे आईटीबीपी, बीएसएफ, और असम राइफल्स को सेना के अधीन लाया जाए। इससे न केवल समन्वय बढ़ेगा बल्कि इन बलों की दक्षता में भी सुधार होगा।” उनका मानना है कि अर्धसैनिक बलों के शीर्ष पदों पर प्रशिक्षित सैन्य अधिकारियों को नियुक्त किया जाना चाहिए और “एक सीमा-एक बल” का सिद्धांत अपनाना चाहिए।

बांग्लादेश और पूर्वोत्तर भारत पर नजर

पूर्वोत्तर भारत के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के साथ संबंधों को मजबूत करना रणनीतिक दृष्टि से जरूरी है। शेख हसीना के कार्यकाल को भारत-बांग्लादेश संबंधों का स्वर्ण युग बताते हुए उन्होंने कहा, “हमारे कूटनीतिक प्रयासों में स्थिरता की कमी रही है, जिससे चीन को इस क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने का मौका मिला।” लेफ्टिनेंट जनरल सिंह वर्तमान में पूर्वोत्तर भारत को लेकर एक नई पुस्तक पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि भारत की “एक्ट ईस्ट” नीति को तभी सफलता मिलेगी जब पूर्वोत्तर राज्यों के बुनियादी ढांचे और सुरक्षा को मजबूत किया जाएगा।

चीन की मंशा और रणनीति

चीन की दीर्घकालिक रणनीति के बारे में जनरल सिंह ने कहा कि वह “धीरे-धीरे और छोटे-छोटे कदमों” के जरिए अपनी स्थिति मजबूत करता है। उन्होंने बताया कि चीन ने लद्दाख में झीलों और ऊंचे इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है। अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे इलाकों में चीन ने अपने दावे को बार-बार दोहराया है। उत्तराखंड में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए नई चुनौतियां प्रस्तुत कर सकता है। जनरल सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय सेना ने सीमावर्ती इलाकों में हर चुनौती का सामना किया है। उन्होंने कहा कि चीन से निपटने के लिए केवल सैन्य ताकत ही पर्याप्त नहीं है। हमें अपनी आर्थिक और कूटनीतिक शक्ति का भी उपयोग करना होगा।”

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