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📍नई दिल्ली | 6 months ago

India-China Disengagement: पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भले ही कुछ राहत महसूस हो रही हो, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल एक छोटी सफलता है, जबकि राह में अभी कई रोड़े बाकी हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार सी. राजा मोहन ने कहा है कि भारत को अपनी तकनीकी और आर्थिक प्रगति के लिए अमेरिका के साथ संबंध और मजबूत करने की जरूरत है।

India-China Disengagement: Troop Withdrawal from LAC in Eastern Ladakh Brings Minor Relief, Major Challenges Remain
Chinese Foreign Minister Wang Yi met with the visiting Indian Foreign Secretary Vikram Misri

हाल ही में एशिया सोसाइटी इंडिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में चर्चा के दौरान, राजा मोहन ने कहा, “थोड़ी राहत जरूर मिली है। भारत और चीन के बीच सीधी उड़ानें फिर से शुरू हो रही हैं, वीजा प्रक्रिया बहाल हो रही है और मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू करने पर सहमति बनी है, लेकिन अभी भी सीमा पर 50,000 सैनिक आमने-सामने खड़े हैं। व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर के पार है और चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बड़ा बांध बना रहा है, जो भविष्य में भारत के लिए नई समस्याएं खड़ी कर सकता है।”

उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान स्थिति को “सैनिकों की वापसी” (Disengagement) कहा जा सकता है, लेकिन इसे “तनाव में कमी” (De-escalation) नहीं माना जा सकता। भारत को इस छोटे मौके का उपयोग अपने रणनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए करना चाहिए, लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि चीन के साथ असली समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं।

भारत और चीन ने हाल ही में कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, जिनका उद्देश्य आपसी संबंधों में सुधार करना है। इन फैसलों में कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, सीधी उड़ान सेवाओं की बहाली और अन्य द्विपक्षीय संबंध सुधारने के प्रयास शामिल हैं।

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इन समझौतों की घोषणा भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री और चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेइडोंग के बीच हुई बातचीत के बाद की गई। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इन प्रयासों से केवल सीमित लाभ होगा, क्योंकि सीमा पर सैन्य तनाव अब भी बना हुआ है।

चर्चा के दौरान यह भी सवाल उठा कि क्या भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के भविष्य को लेकर तैयार है? इस पर डीबीएस रिसर्च ग्रुप के प्रबंध निदेशक और मुख्य अर्थशास्त्री तैयमुर बेग ने कहा कि भारत में कई सकारात्मक पहल हुई हैं। उन्होंने कहा, “भारत में एपल के प्रोडक्शन प्लांट्स में प्रोडक्शन चीन के प्लांट्स की तुलना में लगभग समान स्तर पर है। यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि अधिकांश लोगों को लगा था कि भारत में आईफोन असेंबली करना बहुत कठिन होगा।”

बेग ने बताया कि “आईफोन निर्माण सिर्फ कुछ पुर्जों को जोड़ने की प्रक्रिया नहीं है। इसमें टेस्टिंग, पैकेजिंग और असेंबली जैसी प्रक्रियाएं शामिल होती हैं, जिनके लिए उच्च स्तरीय तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है।” फॉक्सकॉन के अधिकारियों के अनुसार, एपल भारतीय उत्पादन से बेहद प्रभावित है, जो भारत के लिए भविष्य में और अधिक तकनीकी निवेश के अवसर खोल सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को भू-राजनीतिक घटनाक्रमों से उत्पन्न हालात का फायदा उठाना चाहिए। पूर्व सिंगापुरी राजनयिक किशोर महबूबानी, जो संयुक्त राष्ट्र में सिंगापुर के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य कर चुके हैं, ने कहा कि यूरोप के पास अमेरिका-चीन टकराव के बीच एक तीसरे ध्रुव की भूमिका निभाने का सुनहरा अवसर था, लेकिन उसने यह अवसर खो दिया और पूरी तरह से अमेरिका पर निर्भर हो गया।

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महबूबानी ने कहा, “अब अमेरिका यूरोप की चााइना पॉलिसी तय करता है, जिससे यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता कम हो गई है।” उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिए और अपनी विदेश नीति को और अधिक संतुलित बनाना चाहिए।

हालांकि, भारत और चीन के बीच हाल ही में हुई बातचीत और सैनिकों की वापसी से दोनों देशों के संबंधों में कुछ सकारात्मक बदलाव आए हैं, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि असली समस्याएं अभी बनी हुई हैं। व्यापार घाटा, सीमा विवाद और भू-राजनीतिक तनाव जैसे मुद्दे भारत के लिए चुनौती बने हुए हैं।

इसके अलावा, चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाए जा रहे बांध को लेकर भी भारत में चिंता बढ़ रही है। इस परियोजना से भविष्य में जल संसाधनों पर नियंत्रण और सीमा क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है।

भारत को अपनी विदेश नीति और आर्थिक रणनीति को और मजबूत करने की जरूरत है, ताकि वह इन चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना कर सके। अमेरिका और अन्य मित्र देशों के साथ संबंधों को गहरा करना, स्वदेशी तकनीक और मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना और घरेलू रक्षा क्षमताओं को मजबूत करना भारत की प्राथमिकताओं में होना चाहिए।

वर्तमान में भारत को मिले इस छोटे मौके का उपयोग अपनी कूटनीतिक और आर्थिक स्थिति को और मजबूत करने के लिए करना होगा, क्योंकि चीन के साथ उसके असली मुद्दे अभी खत्म नहीं हुए हैं।

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