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भारत ने हेलीकॉप्टर इंजन बनाने में कुछ सफलता हासिल की है। फ्रांस की कंपनी सैफरान के साथ मिलकर भारत हेलीकॉप्टर इंजन बना रहा है। इसके अलावा, सुखोई 30-MKI विमानों में इस्तेमाल होने वाले AL-31F इंजनों के प्रोडक्शन का लाइसेंस भी भारत के पास है। लेकिन फाइटर जेट्स के लिए ताकतवर जेट इंजन बनाने की तकनीक अभी भारत के पास नहीं है...
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📍नई दिल्ली | 2 weeks ago

Indigenous Fighter Jet: भारत ने अगले 20 सालों में 500 से अधिक स्वदेशी फाइटर जेट बनाने की योजना पर काम कर रहा है। लेकिन इस सपने को साकार करने के लिए एक बड़ी चुनौती सामने खड़ी है वह है एक दमदार इंजन। जो भारत के पास नहीं है। इस के चलते भारत को विदेशी कंपनियों खासकर अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक (GE) कंपनी परपर निर्भर रहना पड़ रहा है। हाल ही में, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्रा ने बेंगलुरु में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) का दौरा किया। इस दौरे ने भारत के स्वदेशी विमान कार्यक्रम और इंजन सप्लाई की चुनौतियों को फिर से सुर्खियों में ला दिया है।

डॉ. पीके मिश्रा ने अपने दौरे की शुरुआत बेंगलुरु में एचएएल के ARDC (एयरक्राफ्ट रिसर्च एंड डिज़ाइन सेंटर) में LCA Mk-2 हैंगर से की। इसके बाद उन्होंने तेजस Mk-1A के असेंबली हैंगर और एयरोस्पेस डिवीजन का जायजा लिया। इस दौरान उन्हें तेजस Mk-1A के प्रोडक्शन स्टेटस के बारे में विस्तार से बताया गया। इस दौरान उन्हें एचएएल ने छह Mk-1A फाइटर जेट और दो Mk-1 ट्रेनर जेट को भी प्रदर्शित किया, जिनका निर्माण अभी जारी है। एचएएल के अधिकारियों ने उन्हें भविष्य की योजनाओं, जैसे तेजस Mk-2 और एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) के बारे में भी जानकारी दी।

इसके अलावा, प्रधान सचिव मिश्रा ने उन्होंने ‘प्रचंड’ (लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर), लाइट यूटिलिटी हेलिकॉप्टर (LUH), ध्रुव (ALH) और HTT-40 ट्रेनर एयरक्राफ्ट के प्रोटोटाइप भी देखे। उन्होंने GSLV MkIII और PSLV रॉकेट्स के असेंबली शॉप्स का भी दौरा किया, जो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का हिस्सा हैं। साथ ही, गगनयान मिशन के लिए एचएएल के सिस्टम्स और इंटीग्रेटेड क्रायोजेनिक इंजन मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी को भी देखा। उनका यह इस बात का संकेत है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) एचएएल के कामकाज और भारत के रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र की प्रगति पर करीबी नजर रख रहा है।

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Indigenous Fighter Jet: दो चुनौतियां हैं भारत के सामने

भारत का स्वदेशी लड़ाकू विमान कार्यक्रम दो मुख्य चुनौतियों का सामना कर रहा है। पहली, जनरल इलेक्ट्रिक से F404 इंजनों की सप्लाई में देरी। दूसरी, भारत में F414 इंजन के जॉइंट प्रोडक्शन के लिए अमेरिकी सरकार से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की मंजूरी। ये दोनों इंजन भारत के तेजस कार्यक्रम के लिए बेहद जरूरी हैं। F414 इंजन, F404 से 35 फीसदी ज्यादा ताकतवर है और इसे तेजस Mk-2, नौसेना के विमानों, और AMCA के शुरुआती वर्जन में इस्तेमाल किया जाना है।

इस साल 12 इंजन सप्लाई

भारत ने 2021 में एचएएल और जनरल इलेक्ट्रिक के बीच 716 मिलियन डॉलर का करार किया था, जिसके तहत 99 F404 इंजनों की सप्लाई होनी थी। ये इंजन तेजस Mk-1A विमानों के लिए हैं, जिनका प्रोडक्शन एचएएल को दो चरणों में करना है, पहले चरण में 83 विमान और दूसरे में 97 विमान। एग्रीमेंट के मुताबिक, अप्रैल 2023 से हर साल 16 इंजनों की सप्लाई शुरू होनी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जनरल इलेक्ट्रिक ने अब नई समय-सीमा दी है कि इस साल 12 इंजन और अगले साल 20 इंजन सप्लााई किए जााएंगे। इस देरी के चलते तेजस Mk-1A की डिलीवरी में भी दिक्कत हो रही है। पहले चरण के 83 विमानों की डिलीवरी मार्च 2024 से शुरू होनी थी, लेकिन अभी तक शुरू नहीं हो सकी।

Indigenous Fighter Jet Project: PM’s Principal Secretary Visits HAL, PMO Closely Monitoring
Image Source: HAL

अभी तक भारत और अमेरिका के बीच मिलिट्री पार्टनरशिप अब तक खरीददार-विक्रेता के रिश्ते तक सीमित रही है। पिछले डेढ़ दशक में भारत ने अमेरिका से लगभग 20 बिलियन डॉलर के मिलिट्री इक्विपमेंट्स खरीदे हैं, लेकिन विमान, ड्रोन या हेलीकॉप्टर जैसे बड़े उपकरणों के लिए कोई टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं हुआ। अब F414 इंजन के जॉइंट प्रोडक्शन का प्रस्ताव इस साझेदारी की पहली बड़ी परीक्षा है।

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जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की मुलाकात के दौरान इस जॉइंट प्रोडक्शन की घोषणा हुई थी। लेकिन डेढ़ साल बाद भी इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में अपने अमेरिकी समकक्ष रक्षा सचिव पीट हेग्सेथ से फोन पर बात की थी। उन्होंने F404 इंजनों की तेज सप्लाई और F414 इंजन के जॉइंट प्रोडक्शन के लिए जल्द समझौते की बात कही। इसकी वजह है कि सरकार जल्द से जल्द विमानों की शॉर्टेज को पूरा करना चाहती है। क्योंकि इन इंजनों की देरी भारत के स्वदेशी विमान कार्यक्रम तय समय से कााफी पीछे चल रहा है।

42 स्क्वाड्रन की जरूरत

भारतीय वायुसेना (IAF) के पास इस समय 31 स्क्वाड्रन (प्रत्येक में 16-18 विमान) हैं, जबकि पाकिस्तान और चीन से दोहरे खतरे का सामना करने के लिए उन्हें कम से कम 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है। विमानों की यह शॉर्टेज तुरंत पूरी होनी चाहिए, और इसके लिए इंजनों की सप्लाई और भी जरूरी है। तेजस Mk-1A, Mk-2 और AMCA जैसे प्रोजेक्ट्स भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़े कदम हैं, लेकिन इंजन की कमी इनकी रफ्तार को धीमा कर रही है।

हेलीकॉप्टर इंजन बनाने में सफलता

भारत ने हेलीकॉप्टर इंजन बनाने में कुछ सफलता हासिल की है। फ्रांस की कंपनी सैफरान के साथ मिलकर भारत हेलीकॉप्टर इंजन बना रहा है। इसके अलावा, सुखोई 30-MKI विमानों में इस्तेमाल होने वाले AL-31F इंजनों के प्रोडक्शन का लाइसेंस भी भारत के पास है। लेकिन फाइटर जेट्स के लिए ताकतवर जेट इंजन बनाने की तकनीक अभी भारत के पास नहीं है। F414 इंजन के जॉइंट प्रोडक्शन से भारत को न केवल तकनीकी ज्ञान मिलेगा, बल्कि यह भविष्य में पूरी तरह स्वदेशी इंजन बनाने की दिशा में भी एक कदम होगा।

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है, “हमारा प्रयास है कि फैसले जल्दी लिए जाएं ताकि हम भारत में ही बड़े इंजनों का निर्माण शुरू कर सकें।” यह लेकिन यह प्रक्रिया आसान नहीं है। टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए अमेरिकी सरकार की मंजूरी, जनरल इलेक्ट्रिक की व्यावसायिक प्राथमिकताएं, और भारत में प्रोडक्शन की क्षमता जैसे कई मुद्दों को हल करना होगा।

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बता दें, एचएएल तेजस, ध्रुव, LCH, LUH जैसे प्रोजेक्ट्स के अलावा, यह गगनयान मिशन और इसरो के रॉकेट प्रोग्राम में भी योगदान दे रहा है। डॉ. मिश्रा के दौरे के दौरान एचएएल ने भविष्य के मल्टी-स्टेकहोल्डर प्रोग्राम्स को लीड करने के अपने वादे को दोहराया। एचएएल AMCA जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स में अहम भूमिका निभाने को तैयार है। लेकिन इंजन सप्लाई की अनिश्चितता एचएएल के सामने भी चुनौती खड़ी कर रही है।

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