📍नई दिल्ली | 2 weeks ago
IAF UAV Squadron: भारतीय वायुसेना (IAF) ने भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके लिए वायुसेना ने एक खास योजना तैयार की है और इस योजना को अमली जामा भी पहनाना शुरू कर दिया है। इस “अनमैन्ड फोर्स प्लान” (Unmanned Force Plan) के तहत अगले तीन से पांच साल में छोटे, मध्यम और बड़े आकार के 30 से 50 अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) यानी ड्रोन शामिल होंगे। इन ड्रोनों को विशेष रूप से लड़ाकू अभियानों में इस्तेमाल किया जाएगा। यह योजना मौजूदा युद्धों में ड्रोनों की बढ़ती अहमियत को देखते हुए बनाई गई है, ताकि भारतीय वायुसेना आधुनिक युद्ध की चुनौतियों का सामना कर सके।
IAF UAV Squadron: क्यों जरूरी है अनमैन्ड फोर्स प्लान?
आज दुनिया भर में युद्ध का तरीका बदल रहा है। आज युद्ध केवल पारंपरिक हथियारों और सैनिकों तक सीमित नहीं रह गया है। आज की सेनाएं युद्ध के मैदान में इंसानी जान को जोखिम में डालने से बचना चाहती हैं। तकनीक का इस्तेमाल कर दुश्मन पर हमला करना ही आज की जरूरत है। ड्रोन और रोबोट तकनीक ने जंग के मैदान को पूरी तरह बदल दिया है। अमेरिका, चीन और यूक्रेन जैसे देश इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुके हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां यूक्रेन ने दुनिया की पहली अनमैन्ड सिस्टम फोर्स (Unmanned Systems Force) बनाई। इस सेना ने ड्रोनों और रोबोट हथियारों के दम पर रूस के खिलाफ जंग में मजबूत स्थिति बनाई। भारतीय वायुसेना ने भी इन बदलावों से सबक लेते हुए ड्रोनों का एक मजबूत बेड़ा तैयार करने की योजना बनाई है।

वायुसेना के एयर कमोडोर (ऑपरेशन) संदीप सिंह ने नई दिल्ली में फिक्की के एक सेमिनार ‘हथियारबंद ड्रोन: अवसर और चुनौतियां’ में बताया, “हमने 2013 में ही अनमैन्ड फोर्स प्लान पर काम करना शुरू कर दिया था। अब अगले तीन से पांच साल में हम 30 से 50 ड्रोन यूनिट्स तैयार करेंगे, जिनमें छोटे, मध्यम और बड़े ड्रोन शामिल होंगे।”
MALE और HALE UAVs होंगे IAF के अगली पीढ़ी के हथियार
वायुसेना ने अपने स्ट्रक्चर्ड यूएवी रोडमैप यानी अनमैन्ड फोर्स प्लान को दो हिस्सों में बांटा है। इनमें शॉर्ट टर्म और मिड टर्म लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। इस योजना का मकसद ड्रोनों को युद्ध में अलग-अलग भूमिकाओं के लिए तैयार करना है, जैसे दुश्मन के ठिकानों की जासूसी, हमला करना, और सुरक्षा करना शामिल है।
शॉर्ट टर्म प्लान में मध्यम ऊंचाई पर लंबे समय तक उड़ान भरने वाले यानी मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ड एंड्यूरेंस (MALE UAVs) यूएवी शामिल हैं। ये ड्रोन 10,000 से 30,000 फीट की ऊंचाई पर लंबे समय तक उड़ सकते हैं। ये निगरानी, टोही और अन्य रणनीतिक कार्यों के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे।
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— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) July 6, 2025
वहीं, मिड टर्म प्लान में HALE UAVs (High Altitude Long Endurance) उच्च ऊंचाई और अधिक रेंज वाले ड्रोन शामिल किए जाएंगे, जो 30,000 फीट से ऊपर उड़ान भर सकते हैं और इनमें लंबी दूरी तक दुश्मन के इलाके में जाकर मिशन अंजाम देने की क्षमता होगी।
अपने लॉन्ग टर्म प्लान के बारे में बात करते हुए उन्होंने वायुसेना भविष्य में ऐसे ड्रोन डेवलप करना चाहती है, जो GPS-रहित या इलेक्ट्रॉनिक युद्ध जैसे मुश्किल हालात में भी काम कर सकें। साथ ही, काउंटर-ड्रोन सिस्टम पर भी काम होगा, जो दुश्मन के ड्रोनों को नाकाम कर सके।
भटिंडा में खुला यूएवी ट्रेनिंग स्कूल
वायु सेना ने अनमैन्ड इकोसिस्टम को जल्द से जल्द अडॉप्ट करने के लिए पंजाब के भटिंडा में अनमैन्ड एरियल सिस्टम्स स्कूल (Unmanned Aerial Systems School) शुरू किया है। यह स्कूल रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) पर ध्यान देगा। साथ ही, यह शिक्षा जगत और उद्योगों के साथ मिलकर काम करेगा। स्कूल में ड्रोन के लिए टेस्ट रेंज भी उपलब्ध होगी, जिससे उद्योगों को नई टेक्नोलॉजी डेवलप करने में मदद मिलेगी। एयर कमोडोर सिंह ने कहा कि यह स्कूल सभी क्षेत्रों में काम करेगा। यह न केवल ड्रोन तकनीक को बेहतर बनाएगा, बल्कि उद्योगों को उनके लक्ष्य हासिल करने में भी सहायता देगा।
प्राइवेट सेक्टर को न्योता
वायु सेना ने अपनी जरूरतों को स्पष्ट करते हुए उद्योगों को सहयोग के लिए आमंत्रित किया है। सिंह ने बताया कि वायु सेना को ऐसे ड्रोन चाहिए, जो बेस से दूर जाकर दुश्मन के इलाके में गहराई तक पहुंच सकें। आज के युद्ध क्षेत्र में मुकाबला पारंपरिक तरीके से नहीं बल्कि इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (Electronic Warfare) और GPS जैमिंग जैसी तकनीकों के बीच हो रहा है। इसलिए वायुसेना ऐसे काउंटर-यूएवी सिस्टम चाहती है, जो GPS के बिना भी दिशा पहचान सकें, फ्रीक्वेंसी हॉपिंग (बार-बार सिग्नल बदलने) करने वाले दुश्मन ड्रोन को बेअसर कर सकें और घुस कर दुश्मन के इलाके में मिशन को अंजाम दे सकें।
उन्होंने कहा कि वायु सेना चाहती है कि ये ड्रोन कहीं से भी ऑपरेट हो सकें और इन्हें चलाने के लिए कम से कम ह्यूमन रिसोर्सेज की जरूरत पड़े। इससे न केवल लागत होगी, बल्कि युद्ध के दौरान तेजी से फैसले लेने में भी मदद मिलेगी।
नौसेना ने शुरू की थी पहल
इससे पहले भारतीय नौसेना ने अनमैन्ड एरियल सिस्टम्स के लिए सबसे पहले कदम उठाया था। रिटायर्ड कमोडोर अरुण गोलाया ने बताया कि नौसेना ने 2021 में अपना ‘अनमैन्ड रोडमैप’ तैयार किया था। इसका नॉन क्लासिफाइड हिस्सा 2022 में स्वावलंबन सेमिनार के दौरान उद्योगों के साथ साझा किया गया था। इस रोडमैप में नौसेना ने समुद्री निगरानी, पनडुब्बी रोधी युद्ध और अन्य कार्यों के लिए ड्रोन और अनमैन्ड एरियल सिस्टम्स की खरीद और विकास की योजना बनाई थी। गोलाया ने कहा, “वायु सेना ने अब अपनी योजना सामने रखी है, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या भारतीय थल सेना ने भी ऐसी कोई योजना बनाई है या यह अभी सार्वजनिक नहीं की गई है?” उन्होंने यह भी कहा कि खरीद योजनाओं को सार्वजनिक करना उद्योगों के लिए फायदेमंद है। इससे उन्हें पता चलता है कि कहां और कितना निवेश करना है।
संयुक्त योजना बनाने की जरूरत
कमोडोर गोलाया ने सुझाव दिया कि इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के तहत तीनों सेनाओं की संयुक्त योजना बनाना फायदेमंद हो सकता है। इससे न केवल संसाधनों का बेहतर इस्सेमाल होगा, बल्कि ड्रोन और अनमैन्ड एरियल सिस्टम्स का डेवलपमेंट भी तेजी से होगा। एक संयुक्त योजना से सेवाओं के बीच तालमेल बढ़ेगा और डुप्लिकेसी कम होगी।
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