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भारतीय वायुसेना ने 2007 से मिड-एयर रिफ्यूलर (Mid-air Refuellers) विमानों की खरीद की कोशिश शुरू की थी, लेकिन यह तीसरी कोशिश है। इससे पहले दो बार टेंडर रद्द किए जा चुके हैं, क्योंकि कीमत को लेकर विवाद हो गया था। इस बार वायुसेना ने पुराने (pre-owned) विमानों को रिफ्यूलर में बदलने का विकल्प भी खुला रखा है। इन विमानों को बाद में टैंकर में बदला जा सकता है...
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📍नई दिल्ली | 3 weeks ago

Mid-air Refuellers: भारतीय वायुसेना (आईएएफ) ने छह मिड-एयर रिफ्यूलर विमानों की खरीद के लिए टेक्निकल इवेल्यूशन शुरू कर दिया है। ये विमान वायुसेना के लिए बेहद अहम माने जा रहे हैं। यह प्रक्रिया 2007 से लंबित रही है, लेकिन अब रक्षा मंत्रालय और वायुसेना ने इस दिशा में तेजी दिखाई है। सूत्रों के अनुसार, तीन से चार कंपनियों ने इन छह रिफ्यूलर विमानों के लिए अपनी बोली जमा की है।

सूत्रों ने बताया कि अभी टेक्निकल इवेल्यूशन की स्टेज चल रही है, और इन कंपनियों द्वारा पेश किए गए रिफ्यूलर विमानों की जांच की जा रही है। यह देखा जा रहा है कि कौन-सा टैंकर (Mid-air Refuellers) भारतीय जरूरतों के हिसाब से सबसे उपयुक्त है। एक बार यह चरण पूरा हो जाने के बाद, इन टैंकर विमानों के मेंटेनेंस के लिए एक भारतीय पार्टनर की तलाश भी की जाएगी।

क्यों है मिड-एयर रिफ्यूलर (Mid-air Refuellers) की जरूरत

मिड-एयर रिफ्यूलर (Mid-air Refuellers) विमान भारतीय वायुसेना के लिए फोर्स मल्टीप्लायर हैं। ये विमान फाइटर जेट्स को हवा में ही ईंधन भरने की सुविधा देते हैं। इससे लड़ाकू विमान अधिक समय तक हवा में रह सकते हैं, ज़्यादा दूरी तक ऑपरेशन कर सकते हैं और दुश्मन की सीमा के भीतर गहराई तक हमला कर सकते हैं। इस तकनीक से भारतीय वायुसेना की रणनीतिक पहुंच (Strategic Reach) बढ़ती है। वहीं, भारतीय वायुसेना की तैयारी कई नए फाइटर जेट्स को शामिल करने की है, जिनमें हवा में ईंधन भरा जा सके। इसीलिए रिफ्यूलर विमानों की जरूरत और भी बढ़ गई है। वर्तमान में वायुसेना के पास 36 फाइटर स्क्वाड्रन हैं, लेकिन इसे और मजबूत करने के लिए नए विमानों की आवश्यकता है। रिफ्यूलर विमान इन स्क्वाड्रनों की क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

अभी कितने हैं टैंकर?

फिलहाल भारतीय वायुसेना के पास रूस से खरीदे गए 6 इल्यूशिन आईएल-78 (Ilyushin Il-78MKI) टैंकर (Mid-air Refuellers) हैं, जो 2003-04 के दौरान उज्बेकिस्तान से खरीदे गए थे। लेकिन इन छह विमानों में से आमतौर पर केवल तीन या चार ही किसी भी समय उड़ान भरने की स्थिति में रहते हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट (2010 से 2016 के बीच की जांच) में भी इन टैंकरों की मेंटेनेंस और इस्तेमाल को लेकर कई खामियां उजागर की गई थीं। रिपोर्ट में बताया गया था कि विमान अक्सर मरम्मत में रहते हैं और समय पर ऑपरेशन के लिए उपलब्ध नहीं रहते।

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इन विमानों की लागत उस समय प्रति विमान 132 करोड़ रुपये थी। इसके अलावा, वायुसेना भारतीय नौसेना के मिग-29के फाइटर जेट्स को भी सीमित रिफ्यूलिंग सुविधा देती है।

2007 से तीसरी कोशिश

भारतीय वायुसेना ने 2007 से मिड-एयर रिफ्यूलर (Mid-air Refuellers) विमानों की खरीद की कोशिश शुरू की थी, लेकिन यह तीसरी कोशिश है। इससे पहले दो बार टेंडर रद्द किए जा चुके हैं, क्योंकि कीमत को लेकर विवाद हो गया था। इस बार वायुसेना ने पुराने (pre-owned) विमानों को रिफ्यूलर में बदलने का विकल्प भी खुला रखा है। इन विमानों को बाद में टैंकर में बदला जा सकता है। इसकी वजह है कि आने वाले सालों में दुनिया भर की एयरलाइंस कंपनियां पुराने विमानों की जगह नए इंजनों वाले विमान खरीदने जा रही हैं। इससे बाजार में पर्याप्त संख्या में पुराने विमान उपलब्ध होंगे, जिन्हें बाद में टैंकर में बदला जा सकता है।

सूत्रों के मुताबिक, यह स्पष्ट नहीं है कि बोली लगाने वाली सभी कंपनियों ने पुराने विमानों को ही पेश किए हैं या नहीं। लेकिन इस रणनीति से वायुसेना को अगले 25-30 साल की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी। एक बार रिफ्यूलर विमानों का चयन हो जाने के बाद, उनके रखरखाव के लिए भारत में एक मेंटेनेंस पार्टनर की तलाश की जाएगी।

वेट लीज पर लिया अमेरिकी एयरक्राफ्ट

फरवरी 2024 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले रक्षा अधिग्रहण परिषद (Defence Acquisition Council – DAC) ने छह नए मिड-एयर रिफ्यूलर (Mid-air Refuellers) की खरीद को मंजूरी दी थी। इसके अलावा मार्च 2025 में रक्षा मंत्रालय ने मेट्रिया मैनेजमेंट (Metrea Management) नाम की अमेरिकी कंपनी के साथ एक समझौता किया था। इसके तहत भारत को एक KC-135 विमान मिलेगा, जो भारतीय वायुसेना और नौसेना के पायलटों को एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग की ट्रेनिंग देने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इस समझौते के अनुसार, Metrea को छह महीने के भीतर यह विमान भारतीय वायुसेना को उपलब्ध कराना होगा। वहीं, यह भारतीय वायुसेना द्वारा वेट लीज (wet lease-किराए पर चालक दल सहित) पर लिया गया, पहला रिफ्यूलिंग एयरक्राफ्ट होगा।

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क्यों फेल हुए पहले दो प्रयास?

यह तीसरी बार है जब भारतीय वायुसेना मिड-एयर रिफ्यूलर (Mid-air Refuellers) टैंकर खरीदने की कोशिश कर रही है। इससे पहले दो बार यह प्रक्रिया कीमतों को लेकर हुए विवाद के कारण रद्द हो चुकी है। एयरबस ए330 मल्टी-रोल टैंकर ट्रांसपोर्ट (MRTT) और इल्यूशिन आईएल-78 दोनों ही इस कॉन्ट्रैक्ट को हासिल करने की दौड़ में थे। लेकिन कीमत और रखरखाव को लेकर अंतिम फैसला नहीं हो पाया।

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इसके अलावा, सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) के साथ मिलकर बोइंग 767 यात्री विमानों को भारत में रिफ्यूलर (Mid-air Refuellers) में बदलने के लिए एक समझौता किया था। लेकिन यह भी अब तक पूरा नहीं हो सका।

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