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नौसेना के सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान के पास सीमित संख्या में आधुनिक सतह युद्धपोत हैं और उनके पास खास एंटी सबमरीन वारफेयर प्लेटफॉर्म्स की भी भारी कमी है। ऐसे में पाकिस्तान अपनी नौसैनिक रणनीति में पनडुब्बियों पर ज्यादा निर्भर रहता है। वहीं, INS अर्णाला का रणनीतिक महत्व खासतौर पर पाकिस्तान के खिलाफ है। INS अर्णाला जैसे जहाजों की तैनाती से भारत के तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा और मजबूत हो जाएगी...
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📍नई दिल्ली | 1 month ago

INS Arnala Commissioning: भारतीय नौसेना बुधवार को विशाखापट्टनम डॉकयार्ड में अपने पहले एंटी-सबमरीन वारफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट (ASW-SWC) INS अर्णाला (पनडुब्बी रोधी) को कमीशन करने जा रही है। यह ऐतिहासिक कदम पूर्वी नौसेना कमान के तहत उठाया जा रहा है। INS अर्णाला देश का पहला ऐसा युद्धपोत है, जो खास तौर पर तटीय इलाकों में दुश्मन की पनडुब्बियों को मार गिराने के लिए बनाया गया है। INS अर्णाला को बुधवार 18 जून को पूर्वी नौसेना कमान के अधीन विशाखापट्टनम के नौसैनिक डॉकयार्ड में नौसेना में शामिल किया जाएगा। इस अवसर पर भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे।

INS Arnala Commissioning: क्यों खास है INS अर्णाला?

नौसेना सूत्रों के मुताबिक, जहां बड़े वारफेयर यूनिट्स जैसे फ्रिगेट्स (Frigates) और डिस्ट्रॉयर (Destroyers) आमतौर पर एंटी-सबमरीन वारफेयर (ASW) क्षमता से लैस होते हैं, लेकिन उनका प्रमुख काम दुश्मन की वायु और सतह से होने वाले हमलों को नष्ट करना होता है। इसके मुकाबले INS अर्णाला जैसे जहाज खास तौर पर डिफेंसिव ऑपरेशंस के लिए बनाए गए हैं। यानी तटीय क्षेत्रों यानी उथले पानी में दुश्मन की पनडुब्बियों को पहचानना, ट्रैक करना और नष्ट करना। इससे बड़े वारफेयर शिप्स को रणनीतिक मिशंस पर ध्यान देने का मौका मिलता है।

INS अर्णाला को ऐसे खतरों से निपटने के लिए डिजाइन किया गया है, जो उथले पानी (50-60 मीटर गहराई) में दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगा सकता है। ये पनडुब्बियां टॉरपीडो फायर करने के लिए ऐसी जगहों पर आती हैं। अर्णाला इनका दूर से ही पता लगा सकता है और स्टैंड-ऑफ रेंज से हमला कर सकता है। इससे बड़े युद्धपोतों को खतरा कम होता है।

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आकार और ताकत में सबसे आगे

INS अर्णाला 77 मीटर लंबा और 1,490 टन से ज्यादा वजन वाला युद्धपोत है। यह भारतीय नौसेना का सबसे बड़ा ऐसा जहाज है, जो डीजल इंजन और वॉटरजेट प्रोपल्शन सिस्टम से चलता है। यह सिस्टम इसे उथले पानी में तेज रफ्तार और बेहतर मैन्यूवरेबिलिटी देता है। नौसेना के मुताबिक, यह जहाज न सिर्फ पनडुब्बियों का पता लगाने और उनसे मुकाबला करने में माहिर है, बल्कि सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन्स, लो-इंटेंसिटी मैरीटाइम ऑपरेशन्स (LIMO), और माइन-लेइंग जैसे काम भी कर सकता है। माइन-लेइंग की क्षमता इस क्लास के जहाजों में बहुत कम देखने को मिलती है।

हाई-टेक सोनार सिस्टम से लैस

INS अर्णाला में भारत की सीएफएफ फ्लूइड कंट्रोल लिमिटेड और जर्मन कंपनी थायसेनक्रुप की सब्सिडियरी एटलस इलेक्ट्रॉनिक ने मिलकर बनाया वेरिएबल-डेप्थ सोनार सिस्टम (Variable-Depth Sonar System) लगाया गया है। यह सोनार सिस्टम Active और Passive दोनों मोड में काम करता है और शत्रु की पनडुब्बियों को उस रेंज से पहले ही डिटेक्ट कर सकता है, जहां से वे हमला कर सकती हैं। इसका मतलब यह है कि भारतीय नौसेना पहले ही उन्हें ट्रैक कर नष्ट करने में सक्षम होगी।

इसके अलावा, जहाज में 80% से ज्यादा स्वदेशी उपकरण और सिस्टम्स लगे हैं। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), लार्सन एंड टुब्रो (L&T), महिंद्रा डिफेंस, और MEIL जैसी भारतीय कंपनियों ने इसके लिए एडवांस्ड सिस्टम्स बनाए हैं। यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक बड़ा कदम है।

INS Arnala Commissioning: India’s New Submarine Hunter Joins the Indian Navy

पाकिस्तान की रणनीति को मात

नौसेना के सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान के पास सीमित संख्या में आधुनिक सतह युद्धपोत हैं और उनके पास खास एंटी सबमरीन वारफेयर प्लेटफॉर्म्स की भी भारी कमी है। ऐसे में पाकिस्तान अपनी नौसैनिक रणनीति में पनडुब्बियों पर ज्यादा निर्भर रहता है। वहीं, INS अर्णाला का रणनीतिक महत्व खासतौर पर पाकिस्तान के खिलाफ है। INS अर्णाला जैसे जहाजों की तैनाती से भारत के तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा और मजबूत हो जाएगी और दूसरी तरफ बड़े जहाजों को अधिक स्वतंत्रता मिलेगी कि वे आक्रामक या मिशन-बेस्ड कार्यों में जुट सकें।

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बनाए जाएंगे 16 जहाज

INS अर्णाला को गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) ने लार्सन एंड टुब्रो के साथ पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप में डिजाइन और बनाया है। यह पहला भारतीय युद्धपोत है, जिसे शिपबिल्डर ने डिजाइन भी किया और बनाया भी। पहले नौसेना डिजाइन देती थी और शिपयार्ड उसे बनाते थे। यह बदलाव भारतीय शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री की बढ़ती क्षमता को दिखाता है।

ASW-SWC क्लास के पहले आठ जहाज GRSE बना रहा है, जबकि बाकी आठ को कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) डिजाइन और डेवलप करेगा। इस क्लास के जहाज पुराने को नौसेना के पुराने अभय-क्लास (Abhay-Class) जहाजों की जगह लेंगे। अभय-क्लास जहाज सोवियत पाउक-क्लास कॉर्वेट्स का कस्टमाइज्ड वर्जन हैं, जो तटीय ASW ऑपरेशंस के लिए इस्तेमाल होते हैं। INS अर्णाला अपने पुराने जहाजों की तुलना में बड़ा, ज्यादा टिकाऊ, और एडवांस्ड कॉम्बैट सिस्टम्स से लैस है।

तटीय सुरक्षा के लिए खास रणनीति

भारतीय नौसेना भविष्य में सभी 16 ASW-SWC जहाजों को देश के 16 प्रमुख बंदरगाहों के पास तैनात करने की योजना बना रही है। इससे तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत एंटी सबमरीन शील्ड तैयार किया जाएगा। INS अर्णाला इस रेंज का पहला जहाज है और दूसरा जहाज इसी साल के अंत तक कमीशन किया जा सकता है।

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कमीशनिंग समारोह

INS अर्णाला के कमीशनिंग समारोह की अध्यक्षता चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान करेंगे। इस मौके पर वरिष्ठ नौसेना अधिकारी, शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री के प्रतिनिधि, और अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहेंगे। यह समारोह भारतीय नौसेना के लिए एक गर्व का पल होगा, क्योंकि यह न केवल एक जहाज का कमीशन है, बल्कि स्वदेशी तकनीक और डिजाइन की जीत भी है।

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