भारत का एयर डिफेंस सिस्टम अब पहले से कहीं ज्यादा ताकतवर, आधुनिक और आत्मनिर्भर होता जा रही है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद सामने आए घटनाक्रमों ने यह साबित कर दिया है कि भारत सिर्फ रक्षा ही नहीं, अब आक्रामक क्षमता में भी तेजी से आगे बढ़ चुका है। इस पूरी रणनीतिक परिदृश्य में रूस की S-500 प्रणाली का प्रस्ताव, डीआरडीओ का प्रोजेक्ट कुशा और मोदी सरकार की एक दशक की तैयारी ने भारत की एयर डिफेंस पावर को दुनियाभर में नई पहचान दी है...
📍नई दिल्ली | 2 months ago
Air Defense: भारत ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपने एयर डिफेंस और अपनी सैन्य ताकत का ऐसा प्रदर्शन किया, जिसने न केवल दुश्मन देश पाकिस्तान के होश उड़ गए, बल्कि चीन को भी तगड़ा सरप्राइज मिला। इस अभियान में भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान के भीतर नौ आतंकी ठिकानों को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। इसके जवाब में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में भारतीय सैन्य ठिकानों पर मिसाइल और ड्रोनों से हमले किए, लेकिन भारत के अचूक एयर डिफेंस सिस्टम ने इन सभी खतरों को नाकाम कर दिया। इस ऑपरेशन ने भारत की मल्टी लेयर डिफेंस सिस्टम को दुनिया के सामने ला खड़ा किया, जिसमें रूस से मिले S-400 ट्रायम्फ, इजरायल के साथ विकसित बराक-8, स्वदेशी आकाश मिसाइल, और डीआरडीओ की एडवांस टेक्नोलॉजी ने अहम भूमिका निभाई।
Air Defense: रूस ने दिया S-500 का ऑफर
इस सफलता के बाद रूस ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ही भारत को एडवांस S-500 प्रोमेथियस एय़र डिफेंस सिस्टम के संयुक्त उत्पादन का भी प्रस्ताव दिया है। इससे पहले जुलाई 2024 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा के दौरान, रूस ने S-500 के संयुक्त उत्पादन का प्रस्ताव दिया था। दिसंबर 2021 में, रूसी उपप्रधानमंत्री यूरी बोरिसोव ने कहा था कि भारत S-500 सिस्टम का पहला विदेशी खरीदार हो सकता है। S-500 प्रोमेथियस (Prometheus), जिसे 55R6M त्रिउम्फ़टोर-M भी कहा जाता है, यह रूस का सबसे एडवांस सतह से हवा में मार करने वाला मिसाइल सिस्टम है, जो S-400 का उत्तराधिकारी है। एस-500 की रेंज 600 किमी (बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए) और 500 किमी (वायु रक्षा के लिए) है। यह हाइपरसोनिक मिसाइलों, स्टील्थ विमानों, इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBM), और निम्न-कक्षा उपग्रहों को भी निशाना बना सकती है। इसका AESA रडार 2,000 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्य का पता लगा सकता है, और इसका प्रतिक्रिया समय केवल 4 सेकंड है, जो S-400 के 10 सेकंड से कहीं तेज है।
🚨 #BREAKING | No shortage in #S400 reloading
🇮🇳 India has requested additional S-400 missiles from Russia to replenish those used in #OperationSindoor.
💥 Russian air defence systems played a decisive role in neutralizing Pakistani drones & missiles.
Sources say Moscow will… pic.twitter.com/vFfngj9hbq— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) May 13, 2025
हालांकि भारत ने रूस के इस प्रस्ताव पर कोई आधिकारिक तौर पर कोई बयान जारी नहीं किया है। रक्षा सूत्रों का कहना है कि दीर्घकालिक स्वदेशी समाधानों पर ध्यान दे रहा है। क्योंकि भारत को अमेरिका, इजरायल, और अन्य पश्चिमी देशों के साथ रक्षा सहयोग को भी बनाए रखना है। उन्होंने बताया कि S-400 सौदे के बाद CAATSA प्रतिबंधों का खतरा था। S-500 के लिए भी यही जोखिम है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पहले ही बाकी बची दो S-400 की डिलीवरी में देरी हुई है, जो S-500 के लिए भी हो सकती है। ऐसे में भारत स्वदेश में ही निर्मित एयर डिफेंस टेक्नोलॉजी पर फोकस कर रहा है।

भारत का स्वदेशी S-400!
रक्षा सूत्रों के मुताबिक भारत अपने स्वदेशी S-400 को बनाने में जुटा है। डीआरडीओ का प्रोजेक्ट कुशा, यह लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (LRSAM) है, जो S-400 के समकक्ष है, जिसका पहला परीक्षण 2026 में होने की उम्मीद है। यह सिस्टम भारतीय वायुसेना (IAF) और नौसेना को हवाई खतरों जैसे स्टील्थ फाइटर जेट, क्रूज मिसाइल, ड्रोन, और बैलिस्टिक मिसाइलों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। अप्रैल 2024 में कुशा का डिजाइन फेज पूरा हुआ, और अब डुअल-पल्स रॉकेट मोटर और नए प्रोपेलेंट फ्यूल-1 की टेस्टिंग जल्द होने वाली है। प्रोजेक्ट कुशा को रूस के S-400 ट्रायम्फ और इज़राइल के आयरन डोम के समकक्ष माना जा रहा है। यह भारत के एयर डिफेंस हवाई को मजबूत करने के साथ-साथ विदेशी हथियार प्रणालियों पर निर्भरता को कम करेगा। हाल ही में फरवरी में हुए एयरो इंडिया 2025 में प्रोजेक्ट कुशा का स्केल मॉडल भी शोकेस किया गया था, जिसमें तीन अलग-अलग SAM (120-350 किमी रेंज) और उनकी टेक्नोलॉजी को दिखाया गया था।
350-400 किलोमीटर होगी रेंज
अगस्त 2024 तक, डीआरडीओ ने M1 मिसाइल (150 किमी रेंज) के लिए पांच यूनिट्स का निर्माण शुरू कर दिया था। इसके लिए 20 सेट एयरफ्रेम, 20 सेट रॉकेट मोटर, और 50 किल व्हीकल (वॉरहेड) का ऑर्डर दिया गया। इस सिस्टम में तीन तरह की इंटरसेप्टर मिसाइलें होंगी, जिनकी रेंज 150, 250, और 350-400 किलोमीटर होगी। मिसाइल की रफ्तार मैक 5.5 होगी, और यह IR+RF सीकर से लैस होगी। इसमें लंबी दूरी का सर्विलांस और फायर कंट्रोल रडार शामिल होगा, जिसमें LRBMR (लॉन्ग रेंज बैटल मैनेजमेंट रडार) S-बैंड रडार 500 किमी से अधिक की दूरी तक खतरों का पता लगा सकता है। खास बात यह होगी कि यह सिस्टम भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) के साथ पूरी तरह इंटीग्रेट होगा, जो विभिन्न रडारों और वेपन सिस्टम को जोड़ता है।
वहीं, अगर भारत में ही सिस्टम तैयार होता है, तो भारत को एस-400 की मिसाइलों की तरह इसके लिए मिसाइलें खरीदने के लिए विदेश की तरफ नहीं ताकना होगा। भारतीय नौसेना इसे अपने अगली पीढ़ी के युद्धपोतों पर तैनात करने की योजना बना रही है। 2022 में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने इस परियोजना को मंजूरी दी थी, और 2023 में रक्षा मंत्रालय ने 21,700 करोड़ रुपये की लागत से पांच स्क्वाड्रन की खरीद को हरी झंडी दिखाई। इसे 2028-29 तक वायुसेना और नौसेना में तैनात किया जाएगा। भारतीय वायुसेना कुल 10 स्क्वाड्रन शामिल करने की योजना बना रही है, जिससे भारत का एय़र डिफेंस मजबूत होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रोजेक्ट कुशा की सफलता के बाद भारत इसे ASEAN देशों को निर्यात कर सकता है, जिससे चीन के क्षेत्रीय प्रभाव को संतुलित करने में मदद मिलेगी।
मोदी सरकार ने मजबूत किया एयर डिफेंस सिस्टम
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता रातोंरात नहीं मिली। यह पिछले 11 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की रक्षा नीति और रणनीतिक तैयारी का नतीजा है। 2014 के बाद से, भारत ने अपनी हवाई रक्षा को मजबूत करने के लिए कई बड़े और ठोस कदम उठाए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है रूस के साथ 2018 में हुआ 35,000 करोड़ रुपये का सौदा, जिसमें भारत ने पांच S-400 ट्रायम्फ स्क्वाड्रन खरीदे। इनमें से तीन स्क्वाड्रन अब चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर तैनात हैं। यह प्रणाली 400 किलोमीटर की दूरी तक हवाई खतरों को नष्ट करने में सक्षम है और ऑपरेशन सिंदूर में इसने पाकिस्तानी मिसाइलों और ड्रोन को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसके अलावा, भारत ने 2017 में इजरायल के साथ 2.5 बिलियन डॉलर का सौदा किया, जिसके तहत बराक-8 मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाला मिसाइल सिस्टम खरीदा था। यह सिस्टम अब बठिंडा जैसे अग्रिम सैन्य अड्डों की सुरक्षा में तैनात है। डीआरडीओ के स्वदेशी आकाश मिसाइल सिस्टम ने भी छोटी और मध्यम दूरी के खतरों को नष्ट करने में अपनी क्षमता साबित की। साथ ही, डीआरडीओ की एंटी-ड्रोन तकनीक और मैन पोर्टेबल काउंटर ड्रोन सिस्टम (MPCDS) ने पाकिस्तानी ड्रोन को जाम कर उन्हें मार गिराया।
एलओसी पार किए बिना सर्जिकल स्ट्राइक
2021 में भारत ने स्वदेशी लॉइटरिंग म्यूनिशन्स का ऑर्डर दिया था, जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर में पहली बार युद्ध में हिस्सा लिया। ये आत्मघाती ड्रोन एक साथ कई लक्ष्यों पर सटीक हमले करने में सक्षम हैं। इसके अलावा, इजरायल के हारोप ड्रोन, जो अब भारत में ही बनाए जा रहे हैं, ने पाकिस्तानी हवाई रक्षा इकाइयों को नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई। राफेल विमानों ने SCALP और HAMMER मिसाइलों के साथ जमकर कहर बरपाया, जिससे साबित हुआ कि भारत एलओसी पार किए बिना ही पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक करने की ताकत रखता है। इन सभी सिस्टम को इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) के साथ जोड़ा गया है। यह सिस्टम विभिन्न रडारों और वेपन सिस्टम को एकजुट करता है, जिससे भारत को एक ऐसी हवाई रक्षा छतरी मिली है, जो खतरों का पता लगाने के साथ-साथ उन्हें तुरंत नष्ट कर सकती है। यह सिस्टम ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का आधार बना।
Operation Sindoor: भारत की जवाबी कार्रवाई, ढेर हुआ चीन से खरीदा पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम, ड्रोन से लाहौर तक की मार!
ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पूरी दुनिया ने भारत की डिफेंस कैपेबिलिटी को देखा है। जिसने यह दिखा दिया कि खुद को बेहद एडवांस कहने वाली पाकिस्तानी सेना भी घुटने टेकने को मजबूर हो गई। साथ ही ये भी बता दिया कि बिना सीमा लांघे भारत न केवल दुश्मन के इलाके में भी निर्णायक कार्रवाई कर सकता है, बल्कि अपने आसमान और अपनी सीमाओं की भी सुरक्षा कर सकता है।