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DRDO के मुताबिक, HEAUV को बनाने का मकसद यह है कि यह भारतीय नौसेना की ताकत को बढ़ाएगा, खासकर उन इलाकों में, जहां पहुंचना मुश्किल या खतरनाक है। यह व्हीकल बड़े जहाजों की मदद करेगा और इंसानों या महंगे उपकरणों को खतरे में डाले बिना काम करेगा...
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📍नई दिल्ली | 3 months ago

HEAUV: डीआरडीओ ने अपने हाई एंड्योरेंस ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल (HEAUV) का ट्रायल शुरू कर दिया है। यह एक ऐसा पानी के नीचे चलने वाला व्हीकल है जो बिना इंसान की मदद के खुद काम कर सकता है। पिछले एक साल से इसकी टेस्टिंग चल रही है और हाल ही में मार्च 2025 में एक झील में इसका सफल ट्रायल हुआ। DRDO ने बताया कि इस टेस्ट में HEAUV ने पानी की सतह पर और पानी के अंदर दोनों जगह शानदार प्रदर्शन किया। इसमें लगे सोनार और कम्युनिकेशन सिस्टम ने भी बिना किसी गड़बड़ी के काम किया।

Explained- Why India’s HEAUV is a Gamechanger for Naval Undersea Surveillance

क्या है HEAUV?

इस प्रोजेक्ट की शुरुआत मार्च 2024 में कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) में हुई थी, जो इस प्रोजेक्ट में DRDO का पार्टनर है। HEAUV को DRDO की नेवल साइंस एंड टेक्नोलॉजिकल लैबोरेटरी (NSTL) ने बनाया है। यह 6 टन वजनी है, करीब 10 मीटर लंबा है और इसकी चौड़ाई 1 मीटर है। यह 300 मीटर की गहराई तक पानी में जा सकता है। इसे इस तरह बनाया गया है कि यह 3 नॉट की रफ्तार से 15 दिन तक लगातार चल सकता है, और इसकी सबसे ज्यादा रफ्तार 8 नॉट है। HEAUV का डिज़ाइन मॉड्यूलर है, यानी इसमें अलग-अलग मिशन के लिए अलग-अलग उपकरण लगाए जा सकते हैं।

HEAUV क्यों बनाया गया?

DRDO के मुताबिक, HEAUV को बनाने का मकसद यह है कि यह भारतीय नौसेना की ताकत को बढ़ाएगा, खासकर उन इलाकों में, जहां पहुंचना मुश्किल या खतरनाक है। यह व्हीकल बड़े जहाजों की मदद करेगा और इंसानों या महंगे उपकरणों को खतरे में डाले बिना काम करेगा। HEAUV का इस्तेमाल कई तरह के मिशन में हो सकता है, जैसे दुश्मन की पनडुब्बियों को ढूंढना, पानी में बारूदी सुरंगों को हटाना, जासूसी करना और समुद्र की गहराई व पानी की जानकारी इकट्ठा करना।

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Explained- Why India’s HEAUV is a Gamechanger for Naval Undersea Surveillance

HEAUV में क्या है खास?

HEAUV में DRDO की लैब LRDE का बनाया एक खास X-बैंड रडार लगा है, जो 360 डिग्री तक देख सकता है। यह रडार पानी के नीचे के टारगेट को ढूंढने और उनकी निगरानी करने में मदद करता है। साथ ही, यह टक्कर से बचने के लिए भी काम करता है। रडार को एक खास 45 बार प्रेशर रेटेड मास्ट में रखा गया है। इस वाहन में कई तरह के कम्युनिकेशन सिस्टम हैं, जैसे एकॉस्टिक, UHF, C बैंड और सैटकॉम।

HEAUV में पानी के नीचे देखने के लिए दो मुख्य सोनार लगे हैं – एक सामने देखने वाला सोनार और दूसरा साइड में लगा फ्लैंक ऐरे सोनार। इसके अलावा, बारूदी सुरंगों को ढूंढने के लिए साइड स्कैन सोनार भी है। ये दोनों सोनार DRDO की नेवल फिजिकल एंड ओशनोग्राफिक लैबोरेटरी (NPOL) ने बनाए हैं। इस वाहन को चलाने के लिए ढेर सारी बैटरियां लगी हैं, जो इसके इलेक्ट्रिक मोटर और प्रोपेलर को पावर देती हैं। भविष्य में DRDO की नेवल मैटेरियल्स रिसर्च लैबोरेटरी (NMRL) इसमें हाइड्रोजन फ्यूल सेल पावर प्लांट लगाने की योजना बना रही है।

भारतीय नौसेना को HEAUV की जरूरत

भारतीय रक्षा मंत्रालय ने 2018 में एक रिक्वेस्ट फॉर इन्फॉर्मेशन जारी की थी, जिसमें नौसेना के लिए 8 HEAUV खरीदने की बात कही गई थी। इनका इस्तेमाल पनडुब्बी रोधी युद्ध (ASW), बारूदी सुरंग हटाने (MCM), जासूसी (ISR) और समुद्र की जानकारी इकट्ठा करने के लिए होना था। 2023 में, रक्षा मंत्रालय ने भारत की डिफेंस एक्विजिशन प्रोसीजर 2020 के तहत मेक-II कैटेगरी में एक एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EoI) जारी किया, जिसमें भारतीय कंपनियों से नौसेना के लिए ASW के लिए HEAUV बनाने को कहा गया। लेकिन तब तक DRDO का HEAUV प्रोजेक्ट काफी आगे बढ़ चुका था।

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Explained- Why India’s HEAUV is a Gamechanger for Naval Undersea Surveillance

ऐसा माना जा रहा है कि DRDO का HEAUV ही नौसेना की जरूरतों को पूरा करने वाला मुख्य दावेदार होगा, क्योंकि अभी तक कोई दूसरा स्वदेशी HEAUV नहीं बना है। नौसेना को कम से कम 8 HEAUV की जरूरत होगी, लेकिन ऑपरेशनल जरूरतों को देखते हुए यह संख्या और बढ़ सकती है।

दूसरे शिपयार्ड भी रेस में

जहां CSL इस प्रोजेक्ट में DRDO के साथ काम कर रहा है, वहीं दूसरी शिपयार्ड गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) भी 2027 तक एक स्वदेशी HEAUV-ASW बनाने की कोशिश कर रही है। यह भारत के रक्षा मंत्रालय की 5वीं पॉजिटिव इंडिजनाइजेशन लिस्ट (PIL) का हिस्सा है। मझगांव डॉक्स (MDL) ने भी 2023 में एक EoI जारी किया था, जिसमें अपना HEAUV-ASW बनाने की बात कही थी।

HEAUV से नौसेना को होगा क्या फायदा?

HEAUV के नौसेना में शामिल होने से भारत की समुद्री ताकत में बड़ा इजाफा होगा। अभी भारतीय नौसेना को आधुनिक पनडुब्बियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि खरीद प्रोग्राम में देरी हो रही है। HEAUV इस कमी को कुछ हद तक पूरा कर सकता है। हालांकि, इसे पूरी तरह तैयार होने में अभी समय लगेगा, क्योंकि इसके लिए कई और टेस्ट और समुद्री परीक्षण किए जाने बाकी हैं।

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चल रहा है XLUUV प्रोजेक्ट भी

भारतीय नौसेना एक और बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, जिसमें 12 एक्स्ट्रा लार्ज अनमैन्ड अंडरवाटर व्हीकल (XLUUV) बनाए जाएंगे। यह प्रोजेक्ट मेक-1 स्कीम के तहत है। 2024 में रक्षा मंत्रालय ने 2,500 करोड़ रुपये (लगभग 290 मिलियन डॉलर) की लागत से 100 टन वजनी XLUUV बनाने की मंजूरी दी थी। यह XLUUV दुश्मन की पनडुब्बियों और जहाजों पर हमला करने, बारूदी सुरंग हटाने, सुरंग बिछाने और निगरानी करने में सक्षम होगा। जल्द ही शिपयार्ड चुनने के लिए टेंडर जारी किया जाएगा।

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