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📍नई दिल्ली | 6 months ago

Tashi Namgyal: 15 जनवरी 2025 को भारतीय सेना ने 77वें सेना दिवस के अवसर पर ताशी नामग्याल को श्रद्धांजलि अर्पित की। लद्दाख के आर्यन घाटी के गार्कोन गांव के निवासी ताशी नामग्याल ने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन की घुसपैठ की जानकारी देकर भारतीय सेना को एक निर्णायक बढ़त दिलाई थी। सेना ने इस वीर नायक की स्मृति को अमर बनाने के लिए बियामाह वॉर मेमोरियल पर एक स्मृति पट्टिका स्थापित की। रक्षा समाचार.कॉम ने उनके निधन की खबर सबसे पहले छापी थी। साथ ही, इस साल सेना दिवस के मौके पर सेना प्रमुख उपेंद्र द्विवेदी से एक स्मारक बनवाने की अपील की थी, तो उन्होंने भरोसा दिलाया था कि जल्द ही इस पर कार्रवाई होगी।

Tashi Namgyal: Kargil Hero Honoured with Special Place at War Memorial

17 दिसंबर 2024 को, ताशी नामग्याल का निधन उनके पैतृक गांव गार्कोन में हो गया। उनके परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटी और दो बेटे हैं। भारतीय सेना ने उनके परिवार को हरसंभव समर्थन देने का वादा किया है और इसे उनकी देशभक्ति के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में देखा जा रहा है।

1999 के मई महीने में ताशी नामग्याल ने अपने गांव के आसपास चरते हुए अपने याक को खोजते समय जुबेर रिज पर कुछ लोगों को देखा, जो काले पठानी सूट में बंकर बना रहे थे। अपनी गहरी समझ और सतर्कता के चलते उन्होंने हालात की गंभीरता को पहचाना और तुरंत भारतीय सेना को इस घुसपैठ की जानकारी दी। उनकी इस जानकारी ने सेना को तेजी से जवाबी कार्रवाई करने में मदद की, जिसने अंततः कारगिल विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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कारगिल युद्ध के बाद भी, ताशी नामग्याल अपने गांव और समुदाय के लिए प्रेरणा बने रहे। उन्होंने अक्सर भारतीय सेना के कार्यों और कारगिल युद्ध की कहानियां सुनाकर लोगों को प्रेरित किया। वे 2024 में कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ समारोह में भी शामिल हुए थे।

Tashi Namgyal: सेना ने दी श्रद्धांजलि

सेना दिवस के मौके पर भारतीय सेना ने बियामाह वॉर मेमोरियल पर ताशी नामग्याल की स्मृति में एक पट्टिका स्थापित की। इस समारोह में उनके परिवार, स्थानीय नागरिकों और सैन्य अधिकारियों ने भाग लिया। यह न केवल उनके साहस को सम्मानित करने का अवसर था, बल्कि उनके योगदान को देश के सामने लाने का भी एक प्रयास था।

इसके अलावा, भारतीय सेना ने उनके पैतृक गांव गारकोन में उनकी एक प्रतिमा स्थापित करने की योजना बनाई है। यह प्रतिमा उनके बलिदान और देशभक्ति की स्थायी यादगार होगी, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी।

भारतीय सेना ने इस अवसर पर कहा, “ताशी नामग्याल की निष्ठा और देशभक्ति का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। उनका योगदान हमें यह याद दिलाता है कि देश की सुरक्षा के लिए प्रत्येक नागरिक की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।”

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कैसे बने Tashi Namgyal कारगिल युद्ध के नायक?

2024 में करगिल युद्ध की 25वीं वर्षगांठ पर ताशी नामग्याल से मुलाकात के दौरान उन्होंने अपनी खिन्नता जाहिर की। उनका कहना था कि सरकार ने उनके योगदान को न तो सराहा और न ही उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कोई कदम उठाया। उन्होंने बताया, “हमने देश के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन हमें आज भी गुमनामी का जीवन जीना पड़ रहा है। हमारी गरीबी का किसी ने ध्यान नहीं दिया।”

ताशी नामग्याल ने बताया था कि मई 1999 में, जब उनकी उम्र 35 साल थी, वे अपने याक ढूंढने गरखुन नाला की ओर गए। वहां उन्होंने बर्फ पर कुछ अजीब निशान देखे। यह असामान्य था, क्योंकि वह क्षेत्र आमतौर पर निर्जन रहता था। उन्होंने अपने भाई मोरुप त्सेरिंग के साथ दूरबीन से देखा तो कुछ लोग काले पठानी कपड़ों में बंकर बनाते हुए दिखाई दिए।

यह संदिग्ध गतिविधि देखकर वे तुरंत निकटतम सेना चौकी पर गए और वहां तैनात बारा साहब को इसकी सूचना दी। शुरुआती संदेह के बावजूद, सेना ने उनकी बात को गंभीरता से लिया। एक दिन बाद, सेना के अधिकारी उनके साथ इलाके में गए।

सेना को घुसपैठ का सबूत कैसे मिला?

जब सेना ताशी और उनके भाई के साथ 5 किलोमीटर दूर गरखुन नाला पहुंची, तो उन्होंने घुसपैठियों को अपनी आंखों से देखा। इसके बाद ताशी ने सेना को इलाके के दुर्गम रास्तों की सटीक जानकारी दी और यह भी बताया कि घुसपैठिए कहां-कहां बंकर बना रहे हैं।

उन्होंने दाह नाले का भी रास्ता दिखाया, जहां घुसपैठियों ने भारी मात्रा में गोला-बारूद और हथियार जमा कर रखे थे। उनकी सतर्कता और मार्गदर्शन के कारण सेना ने न केवल दुश्मन की गतिविधियों का खुलासा किया, बल्कि समय रहते रणनीतिक कदम उठाने में सक्षम हुई।

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करगिल युद्ध में बने पोर्टर

युद्ध के दौरान, ताशी ने भारतीय सेना के लिए कुली यानी पोर्टर के तौर पर भी काम किया। उन्होंने रसद और हथियार पहुंचाने में मदद की। उनकी बहादुरी ने भारतीय सेना को न केवल रणनीतिक बढ़त दी, बल्कि दुश्मन की साजिशों को विफल करने में भी मदद की।

अपने इतने बड़े योगदान के बावजूद, ताशी नामग्याल ने हमेशा सादगी से जीवन बिताया। वे भेड़ और याक चराने के साथ-साथ अन्य छोटे-मोटे काम करके अपनी आजीविका चलाते रहे। उनके कपड़े और हाथों पर मिट्टी के निशान उनकी कठिनाइयों की कहानी बयां करते थे। ताशी ने कभी अपने योगदान को लेकर बड़ा दावा नहीं किया। उनके लिए देशभक्ति ही सबसे बड़ी पहचान थी।

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